![भारत में बढ़ेगा सूखा, गहराएगा खाद्यान्न संकट](/sites/default/files/styles/node_lead_image/public/hwp-images/bharat%20mein%20sookha_3.jpg?itok=H3eUA5oG)
जलवायु परिवर्तन की दृष्टि से भारत सबसे संवदेनशील देशों में शामिल है। 2017 में भारत जलवायु परिवर्तन से संकटग्रस्त देशों की सूची में छठे नंबर पर था, लेकिन 2018 में एचएसबीसी ने भारत को जलवायु परिवर्तन की वजह से भारत को सबसे ज्यादा खतरा होने की आशंका जताई। इसका सीधा असर देश की अर्थव्यवस्था, आजीविका और खेती पर पड़ेगा। क्योंकि भारत कृषि प्रधान देश है। देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ कृषि है, लेकिन जलवायु परिवर्तन व ग्लोबल वार्मिंग के कारण गर्मी लगातार बढ़ती जा रही है। इससे बरसात का पैटर्न बदल रहा है। जमीन लगातार बंजर/सूखती जा रही है। इससे फसल उत्पादन कम होने की संभावना है, जो किसानों के सामने रोजगार का संकट खडा करेगी। तो वहीं फसल उत्पादन कम होने से भारत की बढ़ती आबादी को भोजन उपलब्ध कराना भी चुनौतीपूर्ण होगा, जिससे भुखमरी बढ़ने की संभावना है। विश्व बैंक तक कह चुका है कि ‘‘ग्लोबल वार्मिंग के कारण भारत को कई लाख करोड़ रुपये का नुकसान हो सकता है।’’ लेकिन फिलहाल हम बात करेंगे सूखे की, जिसका ज़िक्र हाल ही में पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की रिपोर्ट असेसमेंट ऑफ क्लाइमेट चेंज ओवर द इंडियन रीजन में किया गया है।
इस साल प्री-मानसून बारिश के मेहरबान होने के कारण भले की सूखा कम पड़ा हो, लेकिन निकट समय में देश में भयंकर सूखा पड़ने की संभावना है। रिपोर्ट में कहा गया है कि घटते मानसून के कारण सूखे की घटनाएं अधिक हो रही हैं और इससे प्रभावित क्षेत्रफल लगातार बढ़ रहा है। 1951 से 2016 के बीच हर दशक में देश के अलग अलग हिस्सों में सूखे की औसतन 2 घटनाएं हो रही हैं और इसकी जद में आने वाला रकबा 1.3 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। मॉनसून के बदलते मिजाज को देखते हुए 21वीं सदी के अंत तक हालात और खराब होंगे।
रिपोर्ट कहती है कि सदी के अंत तक जहां पूरी दुनिया में समुद्री जलस्तर में औसत वृद्धि 150 मिलीमीटर होगी वहीं भारत में यह 300 मिलीमीटर (करीब एक फुट) हो जाएगी। हालांकि रिपोर्ट में सरकार ने शहरों के हिसाब से कोई आंकलन नहीं दिया है, लेकिन इस दर से समुंद्र का जलस्तर बढ़ता गया तो मुंबई, कोलकाता और त्रिवेंद्रम जैसे शहरों के वजूद के लिए खतरा है, जिनकी तट रेखा पर घनी आबादी रहती है। महत्वपूर्ण है कि भारत तीन ओर से समुद्र से घिरा है और इसकी 7,500 किलोमीटर लम्बी तटरेखा पर कम से कम 25 करोड़ लोगों की रोजी रोटी भी जुड़ी है। ऐसे में भारत सरकार और देश के जागरुकों को जलवायु परिवर्तन के प्रति गंभीर होने की जरूरत है, लेकिन सरकारों और जनता की कार्यप्रणाली को देखकर फिलहाल ऐसा नहीं लगता है। इससे समस्या विकराल रूप ले सकती है, क्योंकि भारत के हिमालयी क्षेत्रों में हजारों छोट-बड़े ग्लेशियर हैं और देश में कई एग्रो-क्लाइमेट ज़ोन भी हैं। हर साल भारत विभिन्न आपदाओं का सामना भी करता है, जिससे करोड़ों रुपये का नुकसान अलग से उठाना पड़ता है। ऐसे में भारत की दृष्टि से जलवायु परिवर्तन बेहद गंभीर समस्या है।
हिमांशु भट्ट (8057170025)
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