संयुक्त राष्ट्र की वैज्ञानिक समिति ने चेतावनी दी है कि अगर ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा लगातार बढ़ती रही तो भारत में खाद्य सुरक्षा खतरे में पड़ जाएंगी। सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव चावल और मक्के की फसल पर होगा। इसके अलावा गंगा बेसिन में होने वाले मछली पालन व्यवसाय पर भी बुरा प्रभाव पड़ेगा।
इस रिपोर्ट का नाम ‘क्लाइमेट चेंज 2014 : इंपैक्ट्स, एडॉप्टेशन एंड वल्नेरिबिलिटी’ है। इसे इंटर-गवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) ने जारी किया है। देश में कार्बन डाइऑक्साइड और ओजोन गैसों की वजह से गेंहूं की फसल में 10 फीसदी और सोयाबीन की फसल पर 3 से 5 फीसदी असर पड़ेगा। समिति अध्यक्ष राजेंद्र पचौरी ने 2610 पत्रों वाली 32 खंडों की एक रिपोर्ट जारी की है।
समिति ने चेतावनी दी है कि अगर ग्रीनहाउस गैसों का प्रदूषण कम नहीं किया गया तो जलवायु परिवर्तन का दुष्प्रभाव बेकाबू हो सकता है। ग्रीनहाउस गैसें धरती की गर्मी को वायुमंडल में अवरूद्ध कर लेती हैं, जिससे वायुमंडल का तापमान बढ़ जाता है। इससे मौसम में बदलाव देखे जा रहे हैं।
अब ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम नहीं किया गया तो हालात बेकाबू हो जाएंगे। जोखिम पहले ही बहुत बढ़ चुका है। इसके मुताबिक यूरोप में जानलेवा लू, अमेरिका में दावानल, ऑस्ट्रेलिया में भीषण सूखा और थाईलैंड और पाक में प्रलयंकारी बाढ़ जैसी 21वीं शताब्दी की आपदाओं ने यह दिखा दिया है कि मानवता के लिए मौसम का खतरा कितना बड़ा है। रिपोर्ट के मुताबिक 100 वर्षों में दुनिया का तापमान 0.3 से 4.8 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगा।
इस रिपोर्ट का नाम ‘क्लाइमेट चेंज 2014 : इंपैक्ट्स, एडॉप्टेशन एंड वल्नेरिबिलिटी’ है। इसे इंटर-गवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) ने जारी किया है। देश में कार्बन डाइऑक्साइड और ओजोन गैसों की वजह से गेंहूं की फसल में 10 फीसदी और सोयाबीन की फसल पर 3 से 5 फीसदी असर पड़ेगा। समिति अध्यक्ष राजेंद्र पचौरी ने 2610 पत्रों वाली 32 खंडों की एक रिपोर्ट जारी की है।
दुष्प्रभाव हो जाएगा बेकाबू
समिति ने चेतावनी दी है कि अगर ग्रीनहाउस गैसों का प्रदूषण कम नहीं किया गया तो जलवायु परिवर्तन का दुष्प्रभाव बेकाबू हो सकता है। ग्रीनहाउस गैसें धरती की गर्मी को वायुमंडल में अवरूद्ध कर लेती हैं, जिससे वायुमंडल का तापमान बढ़ जाता है। इससे मौसम में बदलाव देखे जा रहे हैं।
अब ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम नहीं किया गया तो हालात बेकाबू हो जाएंगे। जोखिम पहले ही बहुत बढ़ चुका है। इसके मुताबिक यूरोप में जानलेवा लू, अमेरिका में दावानल, ऑस्ट्रेलिया में भीषण सूखा और थाईलैंड और पाक में प्रलयंकारी बाढ़ जैसी 21वीं शताब्दी की आपदाओं ने यह दिखा दिया है कि मानवता के लिए मौसम का खतरा कितना बड़ा है। रिपोर्ट के मुताबिक 100 वर्षों में दुनिया का तापमान 0.3 से 4.8 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगा।
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