भारत के उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में भूजल गुणवत्ता का आकलन

भारत के उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में भूजल गुणवत्ता का आकलन
भारत के उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में भूजल गुणवत्ता का आकलन

सारांश

भूजल संसाधनों का उपयोग पीने, सिंचाई और औद्योगिक उद्देश्यों हेतु किया जाता है। भूगर्भीय और मानवजनित गतिविधियों के कारण भूजल की बिगड़ती गुणवत्ता पर चिंता बढ़ रही है। विशेष रूप से गंगा नदी बेसिन में भूजल का आर्सेनिक (As) दूषित होना मानव स्वास्थ्य के लिए प्रमुख खतरों में से एक है और इसने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय ध्यान आकर्षित किया है। वर्तमान अध्ययन में, उत्तर प्रदेश के बलिया जिला के लिए भूजल की जल-रासायनिक विशेषताओं एवं पीने और सिंचाई के लिए इसकी उपयुक्तता की जांच की गई द्यमानसून से पूर्व बलिया जिले के चार प्रभावित ब्लॉकों (सोहावन, हनुमान-गंज, बेल्हारी और दुभड़) से (मई, 2015) के दौरान सरकारी हैण्ड पम्प(110-140 फीट की गहराई) से एकत्र किए गए भूजल के नमूनों का भौतिक रसायन मापदंडों का मूल्यांकन किया गया इससे ज्ञात हुआ कि Mg2+ Na+, और k+ के तुलना में कैल्शियम प्रमुख धनायन (cation) है एवं Cl& और SO4- की तुलना में HCO3-प्रमुख ऋण आयन (anion) है। भूजल के लिए (Ca2+ Mg2+) बनाम कुल धनायन (total cation) के बीच स्कैटर डायग्राम दृढ़ सकारात्मक सहसंबंध (R2 = 0.73) दिखाता है और इसने भूजल में कैल्शियम और मैग्नीशियम की उच्च मात्रा को दर्शाया है। पाइपर आरेख ने सुझाव दिया कि प्रमुख हाइड्रो जियोकेमिकल संलक्षणीविष Ca-Mg-HCO3 प्रकार के हैं। रासायनिक परिणामों से पता चला कि लगभग 70% नमूनों में आर्सेनिक की सांद्रता 10μg/L लीटर से अधिक थी। निगरानी किए गए जल के नमूनों में आर्सेनिक की सांद्रताकी सीमा (बीडीएल) से लेकर 461μg/L तक थी। कई भूजल नमूनों में Ca2+, Mg2+ और HCO3-आयनों की सांद्रता पेय जल हेतु स्वीकार्य सीमा से ज्यादा थी। SAR मूल्य के आधार पर सिंचाई के प्रयोजनों के लिए भूजल को उत्तम से उपयुक्त श्रेणी के तहत मान्यता प्राप्त है।

विशिष्ट शब्दः आर्सेनिक, भूजल गुणवत्ता, सोडियम अधिशोषण अनुपात, बलिया जिला, मध्य गंगा बेसिन

Abstract

Groundwater resources are utilized for drinking, irrigation and industrial purposes. There is growing concern on deteriorating quality of groundwater due to geogenic and anthropogenic activities. Arsenic (As) contamination of ground water is one of the major threats to human health especially in the Ganga river basin (GRB) and it has attracted national and international attention. In the present study, the hydro-chemical characteristics of groundwater and its suitability for drinking and irrigation purposewas investigatedforBallia District, Uttar Pradesh. Groundwater samples collected during pre-monsoon season (May, 2015) from India-mark-hand pump (110-140 feet depth) from four As affected blocks (Sohaon, Hanuman-ganj, Bellhari and Dubhad) ofBallia district for evaluating the physicochemical parameters and the results revealed that calcium is the dominant cation followed by Mg2+, Na+, and K+ and HCO3− is the major anion followed by Cl- and SO4-. The scatter diagram between (Ca2++Mg2+) vs. Tz+ for groundwater showed a strongly positive correlation (R2=0.73) and it reflected the high abundance of calcium and magnesium in the groundwater. The Piper diagram suggested that major hydro geochemical faciesare of Ca–Mg-HCO3 type. The chemical results showed that approximately 70% of samples were enriched with As concentrations >10μg/. Arsenic concentration in the monitored water samples ranged from below detectable limit (BDL) to 461μg/L. The concentration of Ca2+, Mg2+ and HCO3- ions exceeded the acceptable limit of drinking water in many of groundwater samples. Groundwater is recognized as under good to suitable category for irrigation purposes based on SAR value.

Key words: Arsenic, ground water quality, Sodium adsorption ratio, Ballia district, Central Ganges Basin

परिचय

भारत के कई हिस्सों में उपलब्ध जल संसाधनों की घटती गुणवत्ता एवं पेय जल की उपलब्धता के रूप में देश में एक बड़े संकट की पहचान की गई है (चैबीसा एट अल, 2001 सुब्रमण्यम, 2000 सिंह एट अल, 2012)। भूजल में आर्सेनिक की समृद्ध सांद्रता भी एक वैश्विक चिंता बन गई है और दुनिया भर में कई शोधकर्ताओं द्वारा यथा विशेष। रूप से कम्बोडिया के (निकोलस एट अल, 2008), चीन के (स्मेडलेऔर किन्नी बुर्घ, 2002), नेपाल के (तन्दुलकर एट अलय 2001), बंग्लादेश के (बर्ग एट अल, 2001) और भारत के (चक्रवर्ती एट अल, 2003) ने इसकी रिपोर्ट की है। बड़ी संख्या में हाइड्रो-जियोलॉजिकल अध्ययन किए गए हैं। जो संदूषण के स्रोत को उजागर करने और आर्सेनिक मुक्त जलभृत के कारण को समझने के लिए और निवारक और उपचारात्मक उपायों को खोजने के लिए किए गए थे (वान गेन एट अल 2003).भारतीय उपमहाद्वीप में, आर्सेनिक की उच्च सांद्रता को पहली बार चंडीगढ़ क्षेत्र (हरियाना और पंजाब राज्यों की राजधानी) में (दत्ता और कौल, 1976) बताई गई थी, इसके बाद पश्चिम बंगाल के कुछ जिले (केंद्रीय भूजल बोर्ड, 1997 चक्रवर्ती एट अल, 2003 मैकआर्थर एट अल, 2004, मुखर्जी, 2006) में पाई गई। भारत में, अधिकांश अध्ययन गंगा-ब्रह्मपुत्र-मेघना और निचले गैंगेटिक बेसिन तक सीमित हैं और केंद्रीय गैंगेटिक बेसिन में कुछ अध्ययन किए गए हैं। केंद्रीय गंगा बेसिन में मुख्य। रूप से दो राज्य शामिल हैं, उत्तर प्रदेश और बिहार, जो कि सबसे बड़े फ्लुवियो-डेल्टा प्रणाली में से एक है एवं इन राज्यों में घनी आबादी वाले क्षेत्र शामिल हैं। हाल के कुछ दशकों में, बढ़ती जनसंख्या दर के साथ घरेलू, सिंचाई उद्योग के लिए भूजल की बढ़ती मांग ने ताजा और पीने योग्य भूजल के व्यापक दोहन का नेतृत्व किया। आधुनिक काल में, इस क्षेत्र में सुरक्षित और पीने योग्य भूजल की समस्या है, क्योंकि अधिकांश क्षेत्र आर्सेनिक द्वारा दूषित हैं। उत्तर प्रदेश, मध्य गंगा बेसिन का सबसे घनी आबादी वाला राज्य है, इस अध्ययन में स्वास्थ्य की स्थिति में गिरावट मुख्य चिंता का विषय है। उत्तर प्रदेश में आर्सेनिक की समस्या को सबसे पहले वर्ष 2003 में जिला बलिया में चिन्हित की गई थी तथा यह जिला आर्सेनिक से गंभीर। रूप से प्रभावित जिले में से एक है। इसलिए, वर्तमान अध्ययन में, अध्ययन क्षेत्र के हाइड्रो-रसायन विज्ञान को समझने का प्रयास किया गया। बलिया जिले के चार अलग-अलग ब्लॉकों के लिए आर्सेनिक वितरण मानचित्र अपने सामाजिक महत्व के साथ पर्यावरणीय निहितार्थ एक दिलचस्प वैज्ञानिक उत्पादन होगा और यह आधारभूत डेटा प्रदान करेगा। पीने और सिंचाई के प्रयोजनों के लिए भूजल की उपयुक्तता का भी आकलन किया गया।

2. सामग्री और कार्य प्रणाली

 अध्ययन क्षेत्र

बलिया उत्तर प्रदेश का सबसे पूर्वी जिला है, जो 2981 वर्ग किमी के क्षेत्र का आच्छादन करता है, यह 25 º 33’ और 26 º 11’ उ. के अक्षांशों और 83 º 38’ और 84 º 39’पू. के देशांतर के मध्य स्थित है। जिले के उत्तर में घाघरा नदी और दक्षिण में छोटा सरयू और गंगा नदी बहती है। वर्तमान अध्ययन में, बलिया जिले के मुख्य। से चार अलग-अलग ब्लॉकों यानी सोहन, हनुमानगंज, बेलहरी और दुभद (चित्र 1) पर ध्यान केंद्रित किया गया। अध्ययन क्षेत्र में औसत वर्षा 983 मिमी है एवं औसत वार्षिक तापमान 27 ºC जो 5.4 ºC से 41.5 ºC के मध्य परिवर्तित होता है। बलिया एक कृषि प्रधान जिला है। जिले में सिंचाई के दो स्रोत हैं। (ए) धारिघाट लिफ्ट सिंचाई नहर और (बी) नलकूप (भूजल) जिसका 72.61% भूजल और 27.39% सतही जल है। पूरे क्षेत्र में घाघरा और गंगा नदी का अंतर-प्रवाह क्षेत्र है एवं स्थलाकृति समतल है।

 चित्रा 1. बलिया जिले (उत्तर प्रदेश) के चार ब्लॉकों में वाटर सेम्पलिंग लोकेशन चित्रा 1. बलिया जिले (उत्तर प्रदेश) के चार ब्लॉकों में वाटर सेम्पलिंग लोकेशन

नमूनाकरण दृष्टिकोण और रासायनिक विश्लेषण

वर्ष 2015 के मानसून से पूर्व मई माह के दौरान सरकारी हैण्ड पम्प (110-140 फीट गहराई) से भू-जल के इकतीस नमूने लिए गए। भूजल का नमूना स्थल गंगा-नदी के किनारे स्थित बलिया जिले के 4 प्रशासनिक ब्लॉक को आच्छादित करता है। नमूना स्थलों का विवरण चित्र 1 में दर्शाया गया है। नमूने लेने हेतु हैण्ड पं को पहले 20 मिनट तक चलाया गया फिर ०.45 माइक्रों के झिल्ली फिल्टर पेपर से छानने के बाद HDPE बोतलों में संरक्षित किया गया द्यप्रत्येक स्थान से नमूने को संरक्षित एवं असंरक्षित। पों के दो सेट तैयार किए गए। संरक्षित नमूनों का उपयोग भारी ट्रेस धातु आयनों के विश्लेषण के लिए किया गया था, जबकि प्रमुख आयन विश्लेषण के लिए असंरक्षित नमूने का उपयोग किया गया। आर्सेनिक की सांद्रता का विश्लेषण युग्मित प्लाज्मा-मास स्पेक्ट्रोमीटर (आईसीपी-एमएस, मॉडल संख्या। एलेन डीआरसी-ई, पर्किन एल्मर इंक) द्वारा किया गया था। N और K को फ्लेम-फोटोमीटर द्वारा ज्ञात किया गया। Ca2+, Mg2+ और HCO3−को अनुमापन द्वारा ज्ञात किया गया एवं Cl-,NO3 और SO42- को यूवी-दृश्य स्पेक्ट्रोफोटोमीटर (मॉडल संख्या ADR&6000 TM] Hach Inc-) द्वारा ज्ञात किया गया। सभी प्राचलों को मानक विधियों (APHA, AWWA, WEF, 2012) के अनुसार विश्लेषित किया गया।

परिणाम और चर्चा

3.1 भूजल रसायन

तालिका-1 में विभिन्न भौतिक-रासायनिक मापदंडों का सांख्यिकीय सारांश प्रस्तुत किया गया है। पीएच का मान (औसत मान 7.25 के साथ) 6.54 से लेकर 8.56 के मध्य था यह दर्शाता है कि भूजल के अधिकांश नमूने मामूली क्षारीय प्रकृति के हैं, जबकि इन नमूनों का विद्युत चालकता (EC) मान (औसत मान 681- S/cm के साथ) 479 से लेकर 1047- S/cm के मध्य था। इस अध्ययन में नमूनों के विश्लेषण के लिए ईसी और पीएच मानों के बीच कोई स्पष्ट प्रवृत्ति स्थापित नहीं की जा सकी। कुल घुलित ठोस (टीडीएस) का मन (औसत मान 464.5 मिलीग्राम, लीटर के साथ) 306.0 से ले कर 745.0 मिलीग्राम, लीटर पाया गया Mg2+Na, और K+ के बाद भूजल के नमूनों में कैल्शियम (Ca2+) प्रमुख रूप से पाया जाता है, जबकि आयनों के रसायन विज्ञान से ज्ञात होता है कि SO4- एवं NO 3- के बाद HCO 3- और C1- प्रमुख आयन हैं। चित्र 2 से ज्ञात होता है कि Ca2- कुल केट आयन चार्ज (टोटल कैट आयन )का औसतन 49.0%, भाग बनाता है एवं इसके बाद Na (24.9%), Mg2 (23.0%) और K(3.1%)का योगदान दे रहे हैं। विश्लेषित किए गए परिणामों से ज्ञात होता कि कुल मिलाकर क्षारीय भूमि (Ca2+ तथा Mg2+) क्षार (Na+ तथा K+) से अधिक है। इसी प्रकार, आयनों में, HCO3– टोटल आयन चार्ज ; (TZ) का औसतन 88.6% भाग बनाता है इसके बाद Cl- (8.9%), SO42- (2-3%) और NO3- (0-2%) का योगदान देते हैं। चक्रपाणि इत्यादि ने वर्ष 2009 में बताया कि कैल्शियम और मैग्नीशियम के प्रमुख स्रोत केल्साइट (CaCO3) और डोलोमाइट CaMg(CO3) 2 युक्त कार्बोनेट चट्टानें हो सकते हैं, एवं Ca– सिलिकेट खनिजों यानि Ca-plagioclase, जिप्सम और फेल्द्सपर आदि द्वारा मामूली हिस्सा योगदान देते हैंद्य तालिका 2 में TDS और HCO3–, Ca2+,,Mg2+ और Na+के बीच संबंध ने एक अच्छा सहसंबंध दर्शाया है, जो यह बताता है कि अध्ययन क्षेत्र में भूजल की भू-रसायन को नियंत्रित करने के लिए कार्बोनेट अपक्षय प्रमुख भूमिका निभा रहा है।

 चित्र 2. पानी के नमूनों में प्रमुख आयनों के सापेक्ष बहुलता दिखाने वाला पाई चार्ट चित्र 2. पानी के नमूनों में प्रमुख आयनों के सापेक्ष बहुलता दिखाने वाला पाई चार्ट

तालिका 1 भौतिक-रासायनिक घटकों का सारांश और पेयजल के लिए BIS ¼2012½

 मानकों के साथ तुलना

Parameters

pH

EC

TDS

Cl-

HCO3-

SO42-

NO3-

Ca2+

Mg2+

Na+

K+

As (ppb)

न्यूनतम

6.54

479

305

ND

195

ND

ND

26.7

10.4

13.7

  1.4

3.22

अधिकतम

8.56

1047

744

213

547

45

2.9

110

57.5

100

10.5

461

औसत

7.19

707

488

37

368

9.7

0.5

74

35

37.4

4.65

73

स्वीकार्य सीमा

6.5-8.5

-

500

250

200

200

45

75

30

200

 

-

10

(BIS, 2012)

 

अनुज्ञेय सीमा

No relaxation

-

2000

1000

600

400

100

200

100

-

 

-

50

(बीआईएस 2012)

 

नमूना का|% स्वीकार्य सीमा से अधिक है

Nil

 

39

Nil

93

Nil

Nil

45

67

Nil

 

-

70

तालिका 2 विभिन्न विश्लेषण किए गए आयनों के सहसबंध मैट्रिक्स (एन 31 ½A

 

PH

EC

TDS

Cl-

HCO3-

SO42-

NO3-

Ca2+

Mg2+

Na+

K+

As

PH

1.00

                     

EC

-0.34

1.00

                   

TDS

-0.32

0.96

1.00

                 

Cl-

-0.05

0.43

0.42

1.00

               

HCO3-

-0.21

0.50

0.49

-0.41

1.00

             

SO42-

0.17

0.13

0.14

0.18

-0.25

1.00

           

NO3-

-0.07

-0.11

-0.09

-0.08

0.09

-0.30

1.00

         

Ca2+

-0.15

0.66

0.66

0.34

0.48

-0.02

0.01

1.00

       

Mg2+

-0.17

0.56

0.52

0.20

0.49

0.02

0.04

0.59

1.00

     

Na+

-0.06

0.58

0.55

0.32

0.29

-0.10

-0.07

0.06

0.03

1.00

   

K+

0.15

0.13

0.13

0.49

-0.20

0.01

-0.07

0.43

0.41

-0.17

1.00

 

As

-0.19

0.34

0.35

-0.10

0.43

-0.19

-0.09

0.35

-0.08

0.33

-0.10

1.00

 

3.1 जल प्रकार और हाइड्रो रासायनिक संकाय

पाइपर आरेख एक उपयोगी प्लाट है जो अपने रासायनिक विशेषता के आधार पर जल के प्रकारों को वर्गीकृत करता है। पाइपर आरेख के त्रिकोणीय केट आयनिक क्षेत्र से पता चलता है कि भूजल के नमूने C2+ प्रकार के थे, जबकि आयनिक त्रिकोण के अधिकांश नमूने बाइकार्बोनेट प्रकार (चित्र 3) के थे। पाइपर के मध्य क्षेत्र के आकार में पाइपर आरेखों में प्रमुख जल प्रकार/लक्षणीविष यथा Ca-Mg-CO3-और मामूली जल प्रकार Mg-Na-HCO 3-हैं। अधिकांश भूजल नमूनों में, क्षारीय धातु (Ca2+ Mg2+)क्षार धातु के उद्धरण (Na+ K$) से अधिक है। (Ca2+ Mg2+(/TZ+ )अनुपात द्वारा कार्बोनेट मिनरल अपक्षय द्वारा समर्थित भूजल में (Ca2+ Mg2+)की प्रचुरता की पुष्टि की जाती है।

 चित्र 3. अध्ययन क्षेत्र के विश्लेषण किए गए नमूनों के लिए पाइपर प्लाट चित्र 3. अध्ययन क्षेत्र के विश्लेषण किए गए नमूनों के लिए पाइपर प्लाट

भूजल रासायनिक संयोजन भूगर्भीय संरचना, वर्षा जल की रिसाव की संरचना एवं चट्टानों की खनिज संरचना तथा क्षेत्र में मानवजनित गतिविधियों (सिंह एट अल,2008 आंद्रे एट अल, 2005) सहित कई कारकों द्वारा नियंत्रित की जाती हैं। जियोकेमिकल डेटा को गिब्स के आरेख (गिब्स, 1970) पर प्लॉट किया गया और दिखाया गया कि अध्ययन क्षेत्र के Na+/(Na$$K+) का अनुपात और (Cl- Cl-(Cl-+HCO 3-) का अनुपात बनाम TDS भूजल को नियंत्रित करने में चट्टानों के अपक्षय के प्रभुत्व का संकेत देता है। (चित्र 4)

 चित्र 4. भूजल के रासायनिक संयोजन को दर्शाने वाला गिब्स का आरेख चित्र 4. भूजल के रासायनिक संयोजन को दर्शाने वाला गिब्स का आरेख

3.2 पीने के प्रयोजनों के लिए भूजल की उपयुक्तता

पीने और सिंचाई के उपयोग के लिए इसकी उपयुक्तता के संदर्भ में हाइड्रो-जियोकेमिकल विश्लेषण द्वारा प्राप्त आंकड़ों का मूल्यांकन किया गया। तालिका-1 में पीने और सार्वजनिक स्वास्थ्य उद्देश्यों के लिए भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस, 2012) द्वारा अनुशंसित मानक दिशानिर्देश मूल्यों के साथ विश्लेषण किए गए मापदंडों की तुलना की गई। भूजल के नमूनों का पीएच मान मात्र एक नमूने को छोड़कर, अन्य नामोनों के लिए पेय जल के लिए निर्धारित मान 6.5 से लेकर 8.5 की सुरक्षित सीमा के भीतर है। टीडीएस का मान 39% नमूनों में 500 मिलीग्रामध्लीटर की स्वीकार्य सीमा से अधिक है और नमूने में से कोई भी नमूना 2.0 मिली ग्राम/लीटर की अनुमेय सीमा से अधिक नहीं है। 31 नमूनों में से 93.50% नमूने HCO3-के लिए स्वीकार्य सीमा से अधिक है। Cl-,SO42- NO 3- के लिए नमूनों में से किसी भी नमूने में इनका मान ने क्रमशः 250 मिलीग्रामध्लीटर, 200 मिलीग्रामध्लीटर और 45 मिलीग्रामध्लीटर की स्वीकार्य सीमा से अधिक नहीं पाया गया।

पेयजल में सोडियम सांद्रता की स्वीकार्य सीमा 200 मिली ग्राम/लीटर (BIS, 2012) है। उच्च सोडियम सेवन से उच्च रक्तचाप, जन्मजात हृदय रोग और तंत्रिका विकार और गुर्दे की समस्याएं हो सकती हैं। छंकी सांद्रता विश्लेषण किए गए भूजल नमूनों में 200 मिलीग्रामध्लीटर की स्वीकार्य सीमा के भीतर है। 45.20% से 67.70% नमूनों में भूजल में Ca2+ और Mg2+ की सांद्रता क्रमशः एवं 75 और 30 मिलीग्रामध्लीटर की स्वीकार्य सीमा को पार कर गई। कैल्शियम और मैग्नीशियम हड्डी, तंत्रिका तंत्र और कोशिका विकास के लिए आवश्यक तत्व हैं। लंबी अवधि के लिए Ca2+ की उच्च सांद्रता को ग्रहण करने से इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है इसके कारण गुर्दे की पथरी का खतरा बढ़ सकता है (मार्गैला एट अल, 1996)।

3.3 पेय जल में आर्सेनिक उपस्थिति और इसकी उपयुक्तता

विश्लेषित नमूनों में आर्सेनिक सांद्रता की सीमा 461.10 पीपीबी (औसत: 73.6 पीपीबी) है। आर्सेनिक हेतु स्वीकार्य और अनुमेय सीमा बीआईएस, 2012 के अनुसार 10 और 50 पीपीबी है। विश्लेषण किए गए नमूनों के 70% नमूने स्वीकार्य सीमा से अधिक पाए गए। चित्र 5 के बार चार्ट से पता चला है कि सोहावन और दुभड़ ब्लॉक में आर्सेनिक सांद्रता क्रमशः 25.7 से लेकर 461.1 और 5.6 से लेकर 246.0 पीपीबी(पार्टस पर बिलियन) तक के अतरू ये ब्लाक उच्च आर्सेनिक सांद्रता वाले भाग हैं। दूसरी ओर, हनुमानगंज और बेलहरी ब्लॉकों से भूजल के नमूनों में आर्सेनिक की सांद्रता कम पाई गई। बलिया जिले के भूजल नमूनों में उच्च आर्सेनिक की मात्रा अन्य शोधकर्ताओं (कुमार एट अल, 2010 चैहान एट अल, 2009, घोष एट अल 2009) इत्यादि द्वारा भी बताई गई है।

 चित्र 5. अध्ययन क्षेत्र में आर्सेनिक (पीपीबी) के ब्लॉक वार सांद्रता को दर्शाने वाले बार प्लॉट चित्र 5. अध्ययन क्षेत्र में आर्सेनिक (पीपीबी) के ब्लॉक वार सांद्रता को दर्शाने वाले बार प्लॉट

अध्ययन क्षेत्र में भूजल में आर्सेनिक सांद्रता की स्थानिक विषमता देखी गई जिसे चित्र 6 के माध्यम से देखा जा सकता है। जलोढ़क की जल विज्ञानीय जल-भूवैज्ञानिक और जल-भू-रासायनिक विशेषता का अध्ययन किया जाना चाहिए ताकि जलोढ़ गठन में आर्सेनिक की प्रचंड घटना को समझा जा सके।बाढ़ के मैदानों में मौजूद जलोढ़ के लिए आर्सेनिक की उपस्थिति को अलग-अलग जांचकर्ताओं (चैहान और अन्य, 2009) द्वारा बताया गया है।

 चित्र 6. अध्ययन क्षेत्र के भूजल के नमूनों में आर्सेनिक की सांद्रता (पीपीपीबी) का स्थानिक वितरण मानचित्र चित्र 6. अध्ययन क्षेत्र के भूजल के नमूनों में आर्सेनिक की सांद्रता (पीपीपीबी) का स्थानिक वितरण मानचित्र

3.4 सिंचाई उपयोग के लिए उपयुक्तता

कुल विद्युत चालकता (EC), सोडियम सांद्रता, सोडियम अधिशोषण अनुपात (एसएआर), सोडियम प्रतिशत (Na%), और मैग्नीशियम खतरा (एमएच) इत्यादि महत्त्वपूर्ण पैरामीटर हैं जो व्यापक रूप से सिंचाई के लिए जल की उपयुक्तता का आकलन करने में उपयोग किए जाते हैं (अयेर और वेस्टकोट, 1985)। सिंचाई जल को वर्गीकृत करने में विद्युत चालकता (ईसी) और सोडियम सांद्रता बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। पानी में सोडियम की अधिक सांद्रता मिट्टी में केट आयन की जगह मिट्टी के गुण को प्रभावित करती है और इसलिए यह सिंचाई जल के वर्गीकरण में एक महत्व्पपूर्ण मानदंड है। इस प्रतिस्थापन की सीमा को सोडियम प्रतिशत (Na%) और सोडियम अधिशोषण अनुपात (SAR) द्वारा (पुरुषोत्तमन एट अल, 2013 और सिंह एट अल, 2012) द्वारा अनुमानित किया गया है।

सोडियम प्रतिशत ; (Na%)

पानी के नमूनों में Na के प्रतिशत मान की निम्नलिखित समीकरण द्वारा गणना की जाती है।

 Na% ¾ ¼Na + K½ / ¼Ca + Mg + Na + K½ × 100

अध्ययन क्षेत्र में सोडियम प्रतिशत 14.6% और 68.85% (औसत 27.41%) के बीच है। सोडियम का उच्च प्रतिशत मृदा के झुकाव और पारगम्यता के विक्षेपण और हानि का कारण बनता है। सिंचाई जल में, बीआईएस दिशा निर्देशों के अनुसार, सामान्य तौर पर अधिकतम 60% सोडियम की सिफारिश की जाती है। चित्र-7 में विद्युत चालकता (ईसी) एवं Na% के विश्लेषणात्मक आंकड़ों से पता चलता है कि सोडियम का प्रतिशत मान अनुशंसित मूल्यों के भीतर हैं जो सिंचाई हेतु जल के लिए उपयुक्त है।

 चित्र 7. विद्युत चालकता और प्रतिशत सोडियम (विल्कोक्स, 1948 के बाद) के आधार पर भूजल नमूनों की रेटिंग चित्र 7. विद्युत चालकता और प्रतिशत सोडियम (विल्कोक्स, 1948 के बाद) के आधार पर भूजल नमूनों की रेटिंग

3.5 सोडियम अधिशोषण अनुपात (सोडियम ऐड्सॉर्प्शन रेश्यु (SAR)

सिंचाई हेतु भूजल की उपयुक्तता का भी यूएसएसएल वर्गीकरण (विद्युत चालकता और सोडियम अधिशोषण अनुपात के बीच प्लाट को यूएसएसएल, 1954) के आधार पर अध्ययन किया जाता है। इस आरेख में, सिंचाई के पानी को अल्प (EC <250 µS/cm), मध्यम (250-750 750-µS/cm), उच्च (750-,250 S/cm) और अति उच्च (2,250-5,000-µS/cm) के रूप में वर्गीकृत किया गया है। लवणता का खतरा, ईसी की अवधि में व्यक्त टीडीएस का एक माप, पौधे की आसमायिक गतिविधि को कम कर देता है और इस प्रकार मिट्टी से पानी और पोषक तत्वों के सोखने में बाधा उत्पन्न करता है (सालेह एट अल, 1999)। पानी में लवण की उच्च सांद्रता मिट्टी के गठन की ओर जाता है और उच्च सोडियम सांद्रता क्षारीय मिट्टी के विकास की ओर जाता है। सिंचाई के पानी में यह समस्या अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में एक आम समस्या है जहां वाष्पीकरण के माध्यम से पानी की हानि अधिकतम है। जहाँ जल निकासी खराब होती है वहां सिंचित कृषि के सम्मुख आने वाली लवणता की समस्या सबसे अधिक उत्पन्न होती है। यह वाटर टेबल को पौधों के जड़ क्षेत्र के करीब बढ़ने की अनुमति देता है, जिससे पानी की सतह के वाष्पीकरण के बाद केशिका वृद्धि के माध्यम से मिट्टी के घोल में सोडियम लवण का संचय होता है। सिंचाई के लिए पानी में सोडियम या क्षार का खतरा केट आयन की पूर्ण और सापेक्ष सांद्रता से निर्धारित होता है और इसे SAR द्वारा व्यक्त किया जाता है। इसका अनुमान निम्न सूत्र द्वारा लगाया जा सकता है।

  SAR ¾ Na / [¼Ca + Mg½ /2] 0.5

यदि सिंचाई के लिए उपयोग किया जाने वाला जल सोडियम में अधिक और कैल्शियम में कम है, तो cation&ex change परिसर सोडियम के साथ संतृप्त हो सकता है। यह मिट्टी के कणों के फैलाव के कारण मिट्टी की संरचना को नष्ट कर सकता है। अध्ययन क्षेत्र में एसएआर का मान 0.34 से लेकर 3.34 meq/1 (औसत 0.94) के मध्य है। अमेरिकी लवणता आरेख पर आकड़ो को प्लाट किया गया, जिसमें विद्युत् चालकता को लवणता के खतरे और एसएआर को क्षारीयता के खतरे के रूप में लिया जाता है, यह दर्शाता है कि जल के अधिकांश नमूने C2S1 और C3S1 श्रेणी में आते हैं जो मध्यम से उच्च लवणता और निम्न मध्यम क्षारीय जल का संकेत देते हैं (चित्र 8)। इस पानी का इस्तेमाल उच्च नमक सहिष्णुता वाले पौधों के लिए किया जा सकता है।

सारणी 3 सिंचाई जल को SAR और  EC के आधार पर चार श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है।

SAR

Water Category

% Sample

EC µS/cm

Water Category

% Sample

 0-10

Excellent (S-1)

100

<250

Low (C-1)

0.0

10-18

Good (S-II)

-

250-750

Medium (C-II)

70.9

18-26

Fair (S-3)

-

750-2250

High (C-3)

29.1

>26

Poor (S-4)

-

>2250

Very High (C-4)

0.0

 चित्र 8. सोडियम अधिशोषण अनुपात (एसएआर) और ईसी पर आधारित सिंचाई जल वर्गीकरण चित्र 8. सोडियम अधिशोषण अनुपात (एसएआर) और ईसी पर आधारित सिंचाई जल वर्गीकरण

 4 निष्कर्ष

 अध्ययन क्षेत्र के भूजल रसायन विज्ञान ने Ca2+ >Mg2+ >Na+>K+ का प्रभुत्व दिखाया जबकि क्षारीय भूमि (Ca2+ -Mg2+) कुल धन आयन सांद्रता (TZ+) का 72.0% है। विश्लेषण किए गए नमूनों की आयनों की रासायनिक गुण HCO3->Cl->SO4->NO3-के प्रचुरता क्रम का अनुसरण करते है। रासायनिक आंकड़ो के पाइपर प्लॉट में पता चला कि प्रमुख जल का प्रकार Ca2+ -Mg2+ -HCO3 प्रमुख हाइड्रों-जियोकेमिकल संकायों के रूप में है। अध्ययन क्षेत्र के जल का रसायन विज्ञान एंथ्रोपोजेनिक और वायुमंडलीय स्रोतों से माध्यमिक इनपुट के साथ चट्टान बनाने वाले खनिजों के अपक्षय के प्रभुत्व को दर्शाता है। विलकॉक्स प्लाट इंगित करता है कि बलिया के इन चार ब्लॉकों का भूजल सिंचाई प्रयोजनों के लिए अनुमेय गुणवत्ता के लिए उत्कृष्ट है। अमेरिकी लवणता आरेख के आधार पर, यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि जल के अधिकांश नमूने C2S1 और C3S1 श्रेणी की श्रेणी में आते हैं जो मध्यम से उच्च लवणता और निम्न क्षारीयता का संकेत देते हैं। हनुमानगंज और बेलहरी की तुलना में सोहवन और दूबभड़ ब्लॉक क्षेत्र में उच्च आर्सेनिक सांद्रता देखी गई। वर्तमान अध्ययन के परिणाम में पता चलता है कि विश्लेषण किए गए नमूने का लगभग 70.9% पीने के पानी में आर्सेनिक की स्वीकार्य सीमा 10 पीपीबी, (बीआईएस मानकों के अनुसार, 2012) से अधिक है।

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