भारत के जलमार्गों में एंटीबायोटिक निपटान के प्रभाव का अध्ययन

भारत के जलमार्गों में एंटीबायोटिक निपटान के प्रभाव का अध्ययन
भारत के जलमार्गों में एंटीबायोटिक निपटान के प्रभाव का अध्ययन

(Image: Newcastle University)

भारत में हर साल औसतन 58 हजार शिशुओं की मौत सुपरबग संक्रमण के कारण होती है, जो उनकी माताओं से उनके शरीर में प्रवेश करता है। यूरोपीय संघ में हर साल दवा प्रतिरोधी रोगजनकों के कारण 28 हजार से 38 हजार तक अतिरिक्त मौतें होती हैं। AMRflows नाम से एक शोध प्रोजेक्ट चलाया जा रहा है, जिसमें न्यूकैसल विश्वविद्यालय के विशेषज्ञ भी शामिल हैं। प्रोजेक्ट का उद्देश्य रोगाणुरोधी प्रतिरोध (एएमआर) को बढ़ाने में भारत की नदियों की भूमिका का पता लगाता है। इस काम (प्रोजेक्ट) के लिए यूके और भारत ने 1.2 मिलियन यूरो की फंडिंग की है। 

पूरा प्रोजेक्ट यूके के प्राकृतिक पर्यावरण अनुसंधान परिषद और भारत के जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा समर्थित है, जिसमें क्राॅस-डिसिप्लिनरी टीम में न्यूकैसल विश्वविद्यालय, स्काॅटलैंड की जेम्स हटन संस्थान, आइआइटी गांधीनगर और आइआइटी मद्रास के शोधार्थी शामिल हैं। विशेषज्ञ भारत की दो विपरीत नदियों - हैदराबाद की मुसी नदी और चेन्नई की अड्यार नदी का नमूना लेंगे और माॅडल तैयार करेंगे। मुसी नदी का चयन इसलिए किया गया है क्योंकि इसमें एंटीबायोटिक्स की उच्च सांद्रता है, जबकि अड्यार नदी अपेक्षाकृत कम प्रदूषित है।

यूके के रिसर्च एंड इनावेशन फंड द्वारा अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिए समर्थित परियोजना का मकसद ये सीखना है कि मरने से पहले प्रतिरोधी बैक्टीरिया कितनी दूर तक यात्रा करते हैं या फिर प्रतिरोध की गतिशीलता और जल प्रवाह के अन्य प्रकार के अनूठे प्रयागों, फील्ड सैंपलिंग और गणितीय माॅडलिंग में दूसरे जीवों द्वारा खाए जाते हैं। 

प्रोजेक्ट में न्यूकैसल की टीम का नेतृत्व पर्यावरणीय इंजीनियर डेविड ग्राहम करेंगे। डेविड ने दुनियाभर में एंटीबायोटिक प्रतिरोध के पर्यावरणीय संचरण का अध्ययन कर करने में बीस साल बिताए हैं। प्रो. ग्राहम के नेतृत्व में उनके सहयोगियों द्वारा हाल के वर्षों में किए गए कार्य से पता चला है कि एंटीबायोटिक प्रतिरोधी जीनों को रोगाणुओं के बीच आसानी से आदान प्रदान किया जाता है और ये कइ मार्गों से होकर गुजरते हैं। यहां तक कि उन मार्गों से भी गुजरते और आदान प्रदान होते हैं जहां कार्यात्मक रूप से ये एंटीबायोटिक मौजूद नहीं हैं। 

यूके और भारत के इस प्रोजेक्ट के बारे में बात करते हुए प्रो. ग्राहम ने कहा कि एएमआर का ये अध्ययन मात्रात्मक (quantitative) और भावीसूचक (predictive) तरीके से किया जाएगा, जिसे पर्यावरणीय जोखिम का तत्काल आंकलन करने की आवश्यकता है। इसलिए इस परियोजना में बहुत अधिक संभावनाएं हैं। इसके अतिरिक्त हमारी जानकारी व ज्ञान के लिए प्रतिरोध जीन विनिमय के आनुवांशिकी से लेकर मेटागेनोमिक्स (metagenomics) तक माइक्रो और मैक्रो-स्केल संख्यात्मक माॅडलिंग विभिन्न पैमानों पर अध्ययन को जोड़ती है। ऐसा पहले कभी नहीं किया गया है। 

प्रो. ग्राहम ने हाल ही में एंटीबायोटिक प्रतिरोध के प्रसास से निपटने की प्रो. ग्राहम द्वारा दी गई सिफारिशों को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जून में प्रकाशित किया गया है। नए निर्देशनों का उद्देश्य देशों को स्थानीय स्तर पर संचालित राष्ट्रीय कार्य योजना बनाने के लिए एक ढांचा प्रदान करना है, तो उनकी स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप हो। ये प्रो. ग्राहम के शोध सहित सुपरबग की समस्या के बढ़ते प्रमाणों पर विचार भी करता है, जिसमें बताया गया है कि ‘सुपरबग समस्या केवल एंटीबायोटिक का उपयोग करने से ही हल नहीं होगी। इसमें पर्यावरणीय और कारकों का समान या अधिक महत्व भी हो सकता है।’ बर्मिंघम विश्वविद्यालय के यूके प्रोजेक्ट लीड कर रहे जन क्रेफ्ट का कहना है कि हमें नहीं पता कि पर्यावरण में एंटीबायोटिक दवाओं का क्षरण कितनी जल्दी होता है और बारिश तथा बड़ी नदियों में प्रवेश करने के बाद ये पानी में कितना घुल जाता है।

एएमआर परियोजना में हम सीखेंगे कि विनिर्माण से एंटीबायोटिक्स और उनके द्वारा चुने गए प्रतिरोधी बैक्टीरिया नदी नेटवर्क के माध्यम से कैसे बहेंगे और उन्हें नदियों में कितनी दूर तक ले जाया जा सकता है, जहां से वे बाढ़ के दौरान खेतों और समुदायों में फैल सकते हैं। इसमें हम जल निकायों में एंटीबायोटिक दवाओं की सुरक्षित सांद्रता के लिए पर्यावरण मानकों को बनाने में मदद करने के लिए एक मात्रात्मक जोखिम मूल्यांकन करेंगे। 

आइआइटी हैदराबाद से भारत में परियोजना के प्रमुख प्रोफेसर शशिधर थाटीकोंडा ने कहा कि हम पिछले शोध से ही जानते हैं कि मुसी नदी अब सुपरबग्स का कारखाना है। पर्यावरण में प्रतिरोधी बैक्टीरिया के भाग्य की भविष्यवाणी करने में माॅडलिंग जल प्रवाह महत्वपूर्ण होगा और हमारा लक्ष्य ऐसे माॅडल बनाना है, जो अन्य नदियों और देशों में लागू होंगे।

वैज्ञानिक प्रगति एंटीबायोटिक दवाओं के निर्माण से अलग-अलग उपचार, विकेंद्रीकृत सीवेज उपचार या रोकथाम जलाशय जैसे विभिन्न हस्तक्षेपों की प्रभावशीलता की तुलना करने की अनुमति देगी। प्रोफेसर शशिधर ने कहा कि जो सिफारिशें हम करेंगे वें पर्यावरण में प्रतिरोध के स्तर को कम करने में मदद करेंगी। यह प्रतिरोधी रोगजनकों की अधिकता को कम करने में योगदान देगा, जो संक्रमण को अनुपयोगी बनाते हैं।

द कन्वर्सेशन यूके में इस वर्ष के शुरुआत में प्रकाशित प्रोफेसर ग्राहम के लेख ‘इनसाइट्स’ में लिखा गया है कि पानी की खराब गुणवत्ता और स्वच्छता के अभाव वाले स्थानों में मौजूदा एंटीबायोटिक दवाओं का प्रतिरोध कैसे बढ़ता है। लेख में प्रोफेसर ग्राहम और ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी में आफ इंफेक्शियस डिजीज एंड माइक्रोबायोलाॅजी के प्रोफेसर सह-लेखक पीटर कोलिग्नन इससे निपटने के प्रभावी तरीकों के बारे में चर्चा करते हुए कहते हैं कि ‘स्थानीय स्थिति एंटीबायोटिक प्रतिरोध के प्रसार को कम करने के लिए महत्वपूर्ण है। ‘हर देश भिन्न है, इसलिए दुनिया भर की सरकारों को एक साथ काम करना चाहिए और प्रतिरोध के खिलाफ स्थानीय आवश्यकताओं और योजनाओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

प्रोफेसर ग्राहम कहते हैं, ‘एंटीबायोटिक प्रतिरोध के प्रसार की कोई सीमा नहीं है, इसलिए यह सभी की समस्या है और समस्या को हल करने में भी सभी देशों को अपनी भूमिका अदा करनी होगी। AMRflows समर्थित अनुसंधान यूके-भारत सरकार के पांच मिलियन पाउंड के पैकेज का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध से निपटने के लिए पांच नए कार्यक्रमों के साथ मौजूदा वैज्ञानिक अनुसंधान सहयोग को बढ़ाना है, जो एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी बैक्टीरिया और जीन के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में महत्वपूर्ण प्रगति का कारण बन सकता है।


यहां पढ़ें मूल लेख - India-UK team tackles antimicrobial resistance spread in waterways

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Post By: Shivendra
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