(1981 का अधिनियम संख्यांक 42)
{28 सितम्बर, 1981}
भारत के कुछ सामुद्रिक क्षेत्रों में विदेशी जलयानों द्वारा मत्स्यन को विनियमित करने और उससे सम्बन्धित विषयों के लिये उपबन्ध करने के लिये अधिनियम
भारत गणराज्य के बत्तीसवें वर्ष में संसद द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो :-
अध्याय 1
प्रारम्भिक
1. संक्षिप्त नाम और प्रारम्भ
(1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम भारत का सामुद्रिक क्षेत्र (विदेशी जलयानों द्वारा मत्स्यन का विनियमन) अधिनियम, 1981 है।
(2) यह उस तारीख को प्रवृत्त होगा जो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, नियत करे:
परन्तु इस अधिनियम के विभिन्न उपबन्धों के लिये विभिन्न तारीखें नियत की जा सकेंगी और ऐसे किसी उपबन्ध में इस अधिनियम के प्रारम्भ के प्रति किसी निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह उस उपबन्ध के प्रवृत्त होने के प्रति निर्देश है।
2. परिभाषाएँ
इस अधिनियम में, जब तक कि सन्दर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,-
(क) “भारत का अनन्य आर्थिक क्षेत्र से राज्य क्षेत्रीय सागर खण्ड, महाद्वीपीय मग्नतट भूमि, अनन्य आर्थिक क्षेत्र और अन्य सामुद्रिक क्षेत्र अधिनियम, 1976 (1976 का 80) की धारा 7 के उपबन्धों के अनुसार भारत का अनन्य आर्थिक क्षेत्र अभिप्रेत है;
(ख) “मत्स्य” से कोई जलीय जीव जन्तु अभिप्रेत है चाहे वह सरोवर पाटप समुदाय का हो अथवा नहीं और इसके अन्तर्गत जलीय कवच प्राणी, क्रस्टेशियाई, मोलस्क, कूर्म (चेनोनिया) जलीय स्तनधारी, (उसके युवशील, पोना अंडे और जलांडक) होल्थूरियन्स, सीलन्टरेटूस, समुद्री घास-पात, प्रवाल (पोरीफेरा) और कोई अन्य जलीय जीव हैं-
(ग) “मत्स्यन” से किसी भी ढंग से मछली को फँसाना, बझाना, उसको मार डालना, आकर्षित करना या उसका पीछा करना अभिप्रेत है और इसके अन्तर्गत मछली का प्रसंस्करण, परिरक्षण, अन्तरण, प्राप्त करना तथा परिवहन है;
(घ) “विदेशी जलयान” से भारतीय जलयान से भिन्न कोई जलयान अभिप्रेत है;
(ङ) “भारतीय जलयान” से अभिप्रेत है-
(I) वह जलयान जो सरकार या किसी केन्द्रीय अधिनियम या प्रान्तीय या राज्य अधिनियम द्वारा स्थापित किसी निगम के स्वामित्वाधीन है, या
(II) वह जलयान-
(i) जो पूर्णतः ऐसे व्यक्तियों के स्वामित्वाधीन है जिनमें से प्रत्येक को निम्नलिखित वर्णनों में से कोई लागू होता हैः-
(1) भारत का नागरिक,
(2) ऐसी कम्पनी जिसमें कम-से-कम साठ प्रतिशत शेयर पूँजी भारत के नागरिकों द्वारा धारित है,
(3) कोई ऐसी रजिस्ट्रीकृत सहकारी सोसाइटी जिसका प्रत्येक सदस्य भारत का नागरिक है या जहाँ कोई अन्य सहकारी सोसाइटी उसकी सदस्य हो वहाँ ऐसा प्रत्येक व्यक्ति जो ऐसी अन्य सहकारी सोसाइटी का सदस्य है, भारत का नागरिक है; और
(ii) जो वाणिज्य पोत परिवहन अधिनियम, 1958 (1958 का 44) के अधीन या किसी अन्य केन्द्रीय अधिनियम या प्रान्तीय या राज्य अधिनियम के अधीन रजिस्ट्रीकृत है।
स्पष्टीकरण
इस खण्ड के प्रयोजनों के लिये “रजिस्ट्रीकृत सहकारी सोसाइटी” से ऐसी सोसाइटी अभिप्रेत है जो सहकारी सोसाइटी अधिनियम, 1912 (1912 का 2) या किसी राज्य में उस समय प्रवृत्त सहकारी सोसाइटी से सम्बन्धित किसी अन्य विधि के अधीन रजिस्ट्रीकृत है या रजिस्ट्रीकृत हुई समझी जाती है;
(च) “अनुज्ञप्ति” से धारा 4 के अधीन मंजूर की गई अनुज्ञप्ति अभिप्रेत है;
(छ) “भारत का सामुद्रिक क्षेत्र” से भारत का राज्य क्षेत्रीय सागर खण्ड या भारत का अनन्य आर्थिक क्षेत्र अभिप्रेत है;
(ज) “मास्टर” से किसी जलयान के सम्बन्ध में ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जिसके समादेशन या भारसाधन में उस समय जलयान है;
(झ) “स्वामी” के अन्तर्गत किसी जलयान के सम्बन्ध में व्यक्तियों का कोई संगम, चाहे वह निगमित हो या नहीं जिसके स्वामित्व के अधीन जलयान है या जिसके द्वारा उसे चार्टर किया गया है, अभिप्रेत है;
(ञ) “अनुज्ञापत्र” से धारा 5 के अधीन मंजूर किया गया या मंजूर किया गया समझा गया अनुज्ञापत्र अभिप्रेत है;
(ट) “विहित से इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा विहित अभिप्रेत है;
(ठ) “प्रसंस्करण” के अन्तर्गत मत्स्यन के सम्बन्ध में मछली को साफ करना, उसका सिर काटना, पतले टुकड़े करना, छिलका उतारना, स्वक्षण करना, बर्फ में रखना, प्रशीतन करना, डिब्बा बन्दी करना, लवणीय करना, धूमन करना, पकाना, अचार डालना, सुखाना और अन्यथा किसी ढंग से तैयार या परिरक्षण करना है;
(ड) “विनिर्दिष्ट पत्तन” से ऐसे पत्तन अभिप्रेत हैं जो केन्द्रीय सरकार राजपत्र में अधिसूचना द्वारा इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिये विनिर्दिष्ट करे;
(ढ) “भारत के राज्य क्षेत्रीय सागरखण्ड” से राज्य क्षेत्रीय सागर खण्ड, महाद्वीपीय मग्नतट भूमि, अनन्य आर्थिक क्षेत्र और अन्य सामुद्रिक क्षेत्र अधिनियम, 1976 (1976 का 80) की धारा 3 के उपबन्धों के अनुसार भारत का राज्यक्षेत्रीय सागर खण्ड अभिप्रेत है;
(ण) “जलयान” के अन्तर्गत कोई पोत, नौका, चलत जलयान या किसी अन्य प्रकार का कोई जलयान है।
अध्याय 2
विदेशी जलयानों द्वारा मत्स्यन का विनियमन
3. भारत के सामुद्रिक क्षेत्र में विदेशी जलयानों द्वारा मत्स्यन पर प्रतिषेध
इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन रहते हुए किसी विदेशी जलयान का उपयोग भारत के किसी सामुद्रिक क्षेत्र के भीतर मत्स्यन के लिये केन्द्रीय सरकार द्वारा-
(क) धारा 4 के अधीन मंजूर की गई अनुज्ञप्ति; या
(ख) धारा 5 के अधीन मंजूर किये गए अनुज्ञापत्र, के अधीन या उसके अनुसार ही किया जाएगा, अन्यथा नहीं।
4. अनुज्ञप्तियों की मंजूरी
(1) किसी विदेशी जलयान का स्वामी या कोई अन्य व्यक्ति {जो इन दोनों में से किसी भी दशा में कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है जिसे धारा 2 के खण्ड (ङ) के उपखण्ड (ii) की मद (i) की उपमद (1) से उपमद (3) तक में विनिर्दिष्ट वर्णनों में से कोई लागू होता है, जो ऐसे जलयान का भारत के सामुद्रिक क्षेत्र में मत्स्यन के लिये उपयोग करना चाहता है, केन्द्रीय सरकार को अनुज्ञप्ति की मंजूरी के लिये आवेदन कर सकेगा।
(2) उपधारा (1) के अधीन प्रत्येक आवेदन ऐसे प्रारूप में होगा और उसके साथ ऐसी फीस होगी जो विहित की जाये।
(3) किसी अनुज्ञप्ति को तब तक मंजूर नहीं किया जाएगा जब तक कि ऐसे विषयों को ध्यान में रखते हुए जो लोकहित में इस निमित्त विहित किये जाएँ और ऐसे अन्य विषयों की बाबत जो सुसंगत हैं, जाँच करने के पश्चात केन्द्रीय सरकार का यह समाधान नहीं हो जाता है कि अनुज्ञप्ति को मंजूर किया जा सकता है।
(4) किसी अनुज्ञप्ति के जारी किये जाने के लिये आवेदन को मंजूर या नामंजूर करने वाला प्रत्येक आदेश लिखित रूप में होगा।
(5) इस धारा के अधीन मंजूर की गई कोई अनुज्ञप्ति-
(क) ऐसे प्रारूप में होगी जो विहित किया जाये;
(ख) ऐसे क्षेत्रों, ऐसी अवधि, मत्स्यन के ऐसे ढंग और ऐसे प्रयोजनों के लिये जो उसमें विनिर्दिष्ट किये जाएँ, वैध होगी;
(ग) समय-समय पर नवीकृत की जा सकेगी; और
(घ) ऐसी शर्तों और निर्बन्धनों के अधीन होगी जो विहित की जाएँ और ऐसी अतिरिक्त शर्तों और निर्बन्धनों के अधीन होगी जो उसमें विनिर्दिष्ट की जाएँ।
(6) इस धारा के अधीन अनुज्ञप्ति धारण करने वाला कोई व्यक्ति यह सुनिश्चित करेगा कि उसके द्वारा नियोजित प्रत्येक व्यक्ति ऐसे नियोजन के दौरान इस अधिनियम या उसके अधीन बनाए गए किसी नियम या आदेश के उपबन्धों और ऐसी अनुज्ञप्ति की शर्तों का अनुपालन करता है।
5. विदेशी जलयानों का उपयोग करने वाले भारतीय नागरिकों, आदि द्वारा मत्स्यन पर प्रतिषेध
(1) ऐसा प्रत्येक भारतीय नागरिक और प्रत्येक वह व्यक्ति जो धारा 2 के खण्ड (ङ) के उपखण्ड (II) की मद (i) की उपमद (2) या उपमद (3) में विनिर्दिष्ट किसी प्रवर्ग में आता है और जो विदेशी जलयान का भारत के सामुद्रिक क्षेत्र में मत्स्यन के लिये उपयोग करना चाहता है, केन्द्रीय सरकार को ऐसे प्रयोजन के लिये ऐसे जलयान का उपयोग करने के अनुज्ञापत्र के लिये कोई आवेदन कर सकेगा।
(2) उपधारा (1) के अधीन प्रत्येक आवेदन ऐसे प्रारूप में होगा और उसके साथ ऐसी फीस होगी जो विहित की जाये।
(3) किसी अनुज्ञापत्र को तब तक मंजूर नहीं किया जाएगा जब तक कि ऐसे विषयों को ध्यान में रखते हुए जो लोकहित में इस निमित्त विहित किये जाएँ और ऐसे अन्य विषयों की बाबत, जो सुसंगत हैं, जाँच करने के पश्चात केन्द्रीय सरकार का यह समाधान नहीं हो जाता है कि अनुज्ञापत्र मंजूर किया जा सकता है।
(4) किसी अनुज्ञापत्र के जारी किये जाने के लिये आवेदन को मंजूर या नामंजूर करने वाला प्रत्येक आदेश लिखित रूप में होगा।
(5) इस धारा के अधीन मंजूर किया गया अनुज्ञापत्रः-
(क) ऐसे प्रारूप में होगा जो विहित किया जाये;
(ख) ऐसे क्षेत्रों, ऐसी अवधि, मत्स्यन के ऐसे ढंग और ऐसे प्रयोजनों के लिये जो उसमें विनिर्दिष्ट किये जाएँ, वैध होगा;
(ग) समय-समय पर नवीकृत किया जा सकेगा; और
(घ) ऐसी शर्तों तथा निर्बन्धनों के अधीन होगा जो विहित किये जाएँ और ऐसी अतिरिक्त शर्तों और निर्बन्धनों के अधीन होगा जो उसमें विनिर्दिष्ट किये जाएँ।
(6) इस धारा के अधीन अनुज्ञापत्र धारण करने वाला कोई व्यक्ति यह सुनिश्चित करेगा कि उसके द्वारा नियोजित प्रत्येक व्यक्ति ऐसे नियोजन के दौरान इस अधिनियम या उसके अधीन बनाए गए किसी नियम और आदेश के उपबन्धों और ऐसे अनुज्ञापत्र की शर्तों का अनुपालन करता है।
(7) इस धारा के पूर्वगामी उपबन्धों में या धारा 3 में किसी बात के होते हुए भी, ऐसी किसी अनुज्ञा के बारे में, जो किसी भारतीय नागरिक को किसी भारतीय सामुद्रिक क्षेत्र में किसी विदेशी मत्स्य जलयान का उपयोग करने या उसे नियोजित करने के लिये दी गई है और जो इस अधिनियम के प्रारम्भ के ठीक पूर्व प्रवृत्त है, यदि ऐसी अनुज्ञा के निबन्धन और शर्तें इस अधिनियम के उपबन्धों से असंगत नहीं हैं तो यह समझा जाएगा कि वह इस धारा के अधीन मंजूर किया गया अनुज्ञापत्र है और ऐसी अनुज्ञा ऐसे प्रारम्भ के पश्चात उन्हीं निबन्धनों और शर्तों पर, जिनके अन्तर्गत संक्रिया के क्षेत्र और उसकी विधिमान्यता की अवधि की शर्तें भी हैं, प्रवृत्त बनी रहेगी और इस अधिनियम के उपबन्ध जहाँ तक हो सके ऐसी अनुज्ञा को लागू होंगे।
6. अनुज्ञप्ति या अनुज्ञापत्र का रद्दकरण या निलम्बन
(1) यदि यह विश्वास करने का कोई युक्तियुक्त कारण हो किसी अनुज्ञप्ति या अनुज्ञापत्र के धारक ने ऐसी अनुज्ञप्ति या अनुज्ञापत्र की मंजूरी या नवीकरण के लिये आवेदन में या उसके सम्बन्ध में ऐसा कोई कथन किया है जो असत्य है या तात्त्विक विशिष्टियों में मिथ्या है या इस अधिनियम या उसके अधीन बनाए गए किसी नियम या आदेश के किन्हीं उपबन्धों का या किसी अनुज्ञप्ति या अनुज्ञापत्र के किन्हीं उपबन्धों का या उसमें विनिर्दिष्ट शर्तों या निर्बन्धनों का उल्लंघन है, तो केन्द्रीय सरकार, यथास्थिति, ऐसी अनुज्ञप्ति या अनुज्ञापत्र को, ऐसे धारक द्वारा, यथास्थिति, ऐसा सत्य या मिथ्या कथन करने के लिये या ऐसे उल्लंघन के लिये उसके विरुद्ध की जा रही जाँच के पूरा होने तक, निलम्बित कर सकेगी।
(2) जहाँ केन्द्रीय सरकार का ऐसी जाँच करने के पश्चात जो वह आवश्यक समझे यह समाधान हो जाता है कि किसी अनुज्ञप्ति या अनुज्ञापत्र के धारक ने ऐसा असत्य या मिथ्या कथन किया है जो उपधारा (1) में निर्दिष्ट है या उसने इस अधिनियम, या उसके अधीन बनाए गए किसी नियम या आदेश के किन्हीं उपबन्धों का या किसी अनुज्ञप्ति या अनुज्ञापत्र के किन्हीं उपबन्धों का या उसमें विनिर्दिष्ट किन्हीं शर्तों या निर्बन्धनों का उल्लंघन किया है तो वह किसी ऐसी अन्य शास्ति पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना जिसके लिये ऐसा धारक इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन दायी हो, यथास्थिति, ऐसी अनुज्ञप्ति या अनुज्ञापत्र को रद्द कर सकेगी।
(3) ऐसा प्रत्येक व्यक्ति जिसकी अनुज्ञप्ति या अनुज्ञापत्र उपधारा (1) के अधीन निलम्बित कर दिया गया है, ऐसे निलम्बन के ठीक पश्चात ऐसे विदेशी मत्स्य जलयान का, जिसकी बाबत ऐसी अनुज्ञप्ति, या अनुज्ञापत्र दिया गया है, उपयोग करना रोक देगा और इस प्रकार मत्स्यन का कार्य पुनः आरम्भ तब तक नहीं करेगा जब तक निलम्बन आदेश को प्रतिसंहृत नहीं कर दिया जाता है।
(4) ऐसी अनुज्ञप्ति या अनुज्ञापत्र का प्रत्येक धारक जिसे निलम्बित या रद्द कर दिया गया है, ऐसे निलम्बन या रद्दकरण के ठीक पश्चात, यथास्थिति, ऐसी अनुज्ञप्ति या अनुज्ञापत्र को केन्द्रीय सरकार को अभ्यर्पित कर देगा।
7. भारत के सामुद्रिक क्षेत्रों में सम्भार भराई के लिये अनुज्ञप्ति या अनुज्ञापत्र के बिना विदेशी जलयान का प्रवेश करना
जहाँ भारत के किसी सामुद्रिक क्षेत्र में कोई विदेशी जलयान इस अधिनियम के अधीन मंजूर की गई किसी विधिमान्य अनुज्ञप्ति या अनुज्ञापत्र के बिना प्रवेश करता है वहाँ ऐसे जलयान का मत्स्यन सम्भार, यदि कोई हो, उन सभी समयों पर जब वह ऐसे क्षेत्र में रहता है, विहित रीति से भरण अवस्था में रखा जाएगा।
8. वैज्ञानिक अनुसन्धान, अन्वेषण, आदि के लिये मत्स्यन
धारा 3 में किसी बात के होते हुए भी, केन्द्रीय सरकार, किसी विदेशी जलयान को कोई वैज्ञानिक अनुसन्धान या अन्वेषण करने के प्रयोजन के लिये या प्रायोगिक आधार पर मत्स्यन के लिये ऐसे निबन्धनों और शर्तों के अनुसार जो विहित की जाएँ, भारत के सामुद्रिक क्षेत्र में मत्स्यन के लिये उपयोग करने के लिये लिखित रूप में अनुज्ञा दे सकेगी।
अध्याय 3
तलाशी और अभिग्रहण की शक्तियाँ
9. प्राधिकृत अधिकारी और उनकी शक्तियाँ
(1) तटरक्षक अधिनियम, 1978 (1978 का 30) के अधीन गठित तटरक्षक का कोई अधिकारी या सरकार का कोई ऐसा अन्य अधिकारी जो केन्द्रीय सरकार द्वारा प्राधिकृत किया जाये यह सुनिश्चित करने के प्रयोजन के लिये कि इस अधिनियम की अपेक्षाओं को पूरा किया गया है या नहीं वारंट के सहित या उसके बिना,-
(क) भारत के किसी सामुद्रिक क्षेत्र में किसी विदेशी जलयान को रोक सकेगा या उस पर चढ़ सकेगा और मछिलयों के लिये तथा मत्स्यन में उपयोग किये गए या उपयोग किये जाने योग्य उपस्करों के लिये ऐसे जलयान की तलाशी ले सकेगा;
(ख) ऐसे जलयान के मास्टर से-
(i) जलयान से सम्बन्धित किसी अनुज्ञप्ति, अनुज्ञापत्र, लाग बुक या अन्य दस्तावेजों को पेश करने की अपेक्षा कर सकेगा और ऐसी अनुज्ञप्ति, अनुज्ञापत्र, लाग बुक या दस्तावेजों की स्वयं परीक्षा कर सकेगा या उनकी प्रतियाँ ले सकेगा;
(ii) ऐसे जलयान के फलक पर के या ऐसे जलयान के किसी परग्राही, जाल, मत्स्यन सम्भार या अन्य उपस्कर को पेश करने की अपेक्षा कर सकेगा और ऐसी मछली, जाल, मत्स्यन सम्भार या उपस्कर की स्वयं परीक्षा कर सकेगा;
(ग) ऐसी कोई जाँच कर सकेगा जो यह सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक हो कि क्या इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध किया गया है।
(2) जहाँ उपधारा (1) में निर्दिष्ट अधिकारी (जिसे इसमें इसके पश्चात प्राधिकृत अधिकारी कहा गया है) के पास यह विश्वास करने का कारण है कि किसी विदेशी मत्स्य जलयान का इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध करने में उपयोग किया गया है, किया जा रहा है या किया जाने वाला है वहाँ वह वारंट के सहित या उसके बिना-
(क) ऐसे जलयान को जिसके अन्तर्गत ऐसे जलयान के फलक पर पाया गया या ऐसे जलयान का मत्स्यन सम्भार, मछली, उपस्कर, स्टोर या स्थोरा भी है, अभिगृहीत और निरुद्ध कर सकेगा और जलयान द्वारा परित्यक्त किसी मत्स्यन सम्भार को अभिगृहीत और निरुद्ध कर सकेगा;
(ख) इस प्रकार अभिगृहीत या निरुद्ध जलयान के मास्टर से ऐसे जलयान को किसी विनिर्दिष्ट पत्तन में लाने की अपेक्षा कर सकेगा;
(ग) किसी व्यक्ति को जिसके बारे में ऐसे अधिकारी को विश्वास करने का कारण हो कि उसने ऐसा कोई अपराध किया है, गिरफ्तार कर सकेगा।
(3) उपधारा (2) के अधीन कोई कार्रवाई करने में प्राधिकृत अधिकारी ऐसे बल का प्रयोग कर सकेगा जो युक्तियुक्त रूप से आवश्यक हो।
(4) जहाँ उपधारा (2) के अधीन कोई जलयान या अन्य चीजें अभिगृहीत की जाती हैं या कोई व्यक्ति गिरफ्तार किया जाता है वहाँ,-
(क) इस प्रकार अभिगृहीत जलयान या अन्य चीजें यथासम्भव शीघ्र इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध का विचारण करने के लिये सक्षम मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश की जाएँगी जो ऐसा आदेश पारित करेगा जो वह इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध के अभियोजन के लिये किन्हीं कार्यवाहियों के पूर्ण होने तक सरकार के पास या किसी अन्य प्राधिकारी के पास ऐसे जलयान या चीजों के प्रतिधारण या अभिरक्षा के लिये या ऐसे प्रतिधारण या अभिरक्षा के दौरान ऐसे निबन्धनों और शर्तों पर जो मजिस्ट्रेट अधिरोपित करना ठीक समझे, ऐसे प्राधिकारी द्वारा उसके उपयोग के लिये ठीक समझे;
परन्तु मजिस्ट्रेट ऐसे जलयान के स्वामी या मास्टर द्वारा विहित प्रारूप में आवेदन किये जाने पर इस प्रकार अभिगृहीत जलयान या चीजों के मूल्य की कम-से-कम पचास प्रतिशत रकम के लिये नकद या बैंक प्रत्याभूति के रूप में प्रतिभूति स्वामी या मास्टर द्वारा दिये जाने पर इस प्रकार अभिगृहीत जलयान या अन्य चीजों के निर्मोचन का आदेश दे सकेगा;
परन्तु यह और कि जहाँ इस प्रकार अभिगृहीत कोई मछली क्षयशील है वहाँ मजिस्ट्रेट ऐसी मछली के विक्रय को और ऐसे विक्रय आगमों को न्यायालय में निक्षिप्त करने को प्राधिकृत कर सकेगा;
(ख) गिरफ्तार किये गए व्यक्ति को यथासम्भव शीघ्र ऐसी गिरफ्तारी के आधारों की जानकारी दी जाएगी और उसे अनावश्यक विलम्ब के बिना ऐसे मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाएगा; और
(ग) केन्द्रीय सरकार को ऐसे अभिग्रहण या गिरफ्तारी की और उसके ब्यौरों की जानकारी दी जाएगी।
(5) जहाँ इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध के किये जाने के अनुसरण में किसी विदेशी जलयान का भारत के अनन्य आर्थिक क्षेत्र की सीमाओं के बाहर तक पीछा किया जाता है वहाँ इस धारा द्वारा प्राधिकृत किसी अधिकारी को प्रदत्त शक्तियों का ऐसी सीमाओं के बाहर प्रयोग अन्तरराष्ट्रीय विधि और राज्य की प्रथा द्वारा मान्यता प्राप्त परिस्थितियों में और विस्तार तक किया जा सकेगा।
अध्याय 4
अपराध और शास्तियाँ
10. धारा 3 के उल्लंघन के लिये शास्ति
जहाँ किसी विदेशी जलयान का उपयोग धारा 3 के उपबन्धों के उल्लंघन में किया जाता है वहाँ ऐसे जलयान का स्वामी या मास्टर,-
(क) उस दशा में जब ऐसा उल्लंघन भारत के राज्य क्षेत्रीय सागर खण्ड के भीतर किसी क्षेत्र में होता है, कारावास से जिसकी अवधि तीन वर्ष से अधिक की न हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पन्द्रह लाख रुपए से अधिक का न हो सकेगा, या दोनों से, दण्डनीय होगा; और
(ख) उस दशा में जब ऐसा उल्लंघन भारत के अनन्य आर्थिक क्षेत्र के भीतर किसी क्षेत्र में होता है, जुर्माने से, जो दस लाख रुपए से अधिक का न हो सकेगा, दण्डनीय होगा।
11. अनुज्ञप्ति के उल्लंघन के लिये शास्ति
जो कोई किसी अनुज्ञप्ति के उपबन्धों का उल्लंघन करेगा वह जुर्माने से जो दस लाख रुपए से अधिक का न हो सकेगा, दण्डनीय होगा।
12. अनुज्ञापत्र के उल्लंघन के लिये शास्ति
जो कोई किसी अनुज्ञापत्र के उपबन्धों का उल्लंघन करेगा, वह-
(क) जहाँ ऐसे उल्लंघन का सम्बन्ध अनुज्ञापत्र में विनिर्दिष्ट सक्रिय क्षेत्र या मत्स्यन की रीति से है, जुर्माने से, जो पाँच लाख रुपए से अधिक का न हो सकेगा; और
(ख) किसी अन्य दशा में जुर्माने से जो पचास हजार रुपए से अधिक का न हो सकेगा, दण्डनीय होगा।
13. जलयानों का अधिहरण आदि
(1) जहाँ किसी व्यक्ति को धारा 10 या धारा 11 या धारा 12 के अधीन किसी अपराध के लिये सिद्ध दोष ठहराया जाता है वहाँ उक्त अपराध के किये जाने में या उसके सम्बन्ध में प्रयुक्त विदेशी जलयान का उसके मत्स्यन सम्भार, उपस्कर, यान-सामग्री और स्थोरा तथा ऐसे पोत के फलक पर की किन्हीं मछलियों या धारा 8 की उपधारा (4) के खण्ड (क) के द्वितीय परन्तुक के अधीन विक्रय के लिये आदिष्ट किन्हीं मछलियों के विक्रय आगमों सहित अधिहरण भी किया जा सकेगा।
(2) उपधारा (1) के अधीन अधिहृत विदेशी जलयान या अन्य चीजें केन्द्रीय सरकार में निहित होंगी।
14. धारा 7 के उल्लंघन के लिये शास्ति
जहाँ कोई विदेशी जलयान धारा 7 के उपबन्धों का उल्लंघन करते हुए भारत के किसी सामुद्रिक क्षेत्र में पाया जाएगा वहाँ ऐसे जलयान का स्वामी या मास्टर जुर्माने से जो पाँच लाख रुपए से अधिक का नहीं होगा, दण्डनीय होगा।
15. प्राधिकृत अधिकारियों की बाधा के लिये शास्ति
यदि कोई व्यक्ति-
(क) किसी प्राधिकृत अधिकारी को इस अधिनियम के अधीन प्रदत्त किन्हीं शक्तियों का प्रयोग करने में जान-बूझकर बाधा पहुँचाएगा; या
(ख) प्राधिकृत अधिकारी या उसके सहायकों को जलयान पर चढ़ने के लिये युक्तियुक्त सुविधाएँ प्रदान करने में या ऐसे अधिकारी और उसके सहायकों के जलयान में प्रवेश के समय या उस समय जब वे ऐसे जलयान के फलक पर हों पर्याप्त सुरक्षा का प्रबन्ध करने में असफल रहेगा; या
(ग) जब प्राधिकृत अधिकारी द्वारा ऐसा किये जाने की अपेक्षा की जाने पर, जलयान को रोकने में या अनुज्ञप्ति, अनुज्ञापत्र, लाग बुक या अन्य दस्तावेजों को या ऐसे जलयान के फलक पर की किसी मछली, जाल, मत्स्यन सम्भार या अन्य उपस्कर को पेश करने में असफल रहेगा,
तो वह कारावास से जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से जो पचास हजार रुपए से अधिक का न हो सकेगा, या दोनों से, दण्डनीय होगा।
16. न्यायालयों द्वारा कुछ आदेशों का पारित किया जाना
जहाँ किसी व्यक्ति को इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध के लिये सिद्ध दोष ठहराया जाता है वहाँ न्यायालय कोई दण्ड अधिनिर्णीत करने के अतिरिक्त यह आदेश कर सकेगा कि इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध के अभियोजन के लिये किन्हीं कार्यवाहियों के लम्बित रहने के दौरान जलयान के प्रतिधारण या अभिरक्षा के सम्बन्ध में उपगत कोई व्यय उस रकम को यदि कोई हो, जो उस प्राधिकारी द्वारा जिसके पास ऐसा जलयान प्रतिधारित था या जिसकी अभिरक्षा में था, जलयान के उपयोग से वसूल की गई हो, घटाकर सिद्ध दोष व्यक्ति द्वारा सन्देय होगा।
17. कम्पनियों द्वारा अपराध
(1) जहाँ इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध किसी कम्पनी द्वारा किया जाता है, वहाँ प्रत्येक व्यक्ति जो उस अपराध के किये जाने के समय उस कम्पनी के कारबार के संचालन के लिये उस कम्पनी का भारसाधक और उसके प्रति उत्तरदायी था और साथ ही वह कम्पनी भी, ऐसे अपराध के दोषी समझे जाएँगे और तद्नुसार अपने विरुद्ध कार्यवाही किये जाने और दण्डित किये जाने के भागी होंगे;
परन्तु इस उपधारा की कोई भी बात किसी ऐसे व्यक्ति को इस अधिनियम में उपबन्धित किसी ऐसे दण्ड का भागी नहीं बनाएगी यदि वह यह साबित कर देता है कि अपराध उसकी जानकारी के बिना किया गया था या उसने ऐसे अपराध का निवारण करने के लिये सब सम्यक तत्परता बरती थी।
(2) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी, जहाँ इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध किसी कम्पनी द्वारा किया गया है तथा यह साबित हो जाता है कि वह अपराध कम्पनी के किसी निदेशक, प्रबन्धक, सचिव या अन्य अधिकारी की सहमति या मौनानुकूलता से किया गया है या उस अपराध का किया जाना उसकी किसी उपेक्षा के कारण माना जा सकता है, वहाँ ऐसा निदेशक, प्रबन्धक, सचिव या अन्य अधिकारी भी उस अपराध का दोषी समझा जाएगा तथा तद्नुसार अपने विरुद्ध कार्यवाही किये जाने और दण्डित किये जाने का भागी होगा।
स्पष्टीकरण
इस धारा के प्रयोजनों के लिये-
(क) “कम्पनी” से कोई निगमित निकाय अभिप्रेत है और इसके अन्तर्गत फर्म या व्यष्टियों का अन्य संगम भी है; तथा
(ख) फर्म के सम्बन्ध में “निदेशक” से उस फर्म का भागीदार अभिप्रेत है।
अध्याय 5
प्रकीर्ण
18. अपराधों का संज्ञेय होना
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी इस अधिनियम के अधीन दण्डनीय प्रत्येक अपराध संज्ञेय होगा।
19. अपराधों का संज्ञान और विचारण
(1) कोई न्यायालय इस अधिनियम के अधीन दण्डनीय किसी अपराध का संज्ञान ऐसे अपराध का गठन करने वाले तथ्यों की लिखित रिपोर्ट प्राधिकृत अधिकारी द्वारा दिये जाने पर ही करेगा, अन्यथा नहीं।
(2) किसी महानगर मजिस्ट्रेट या प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय से अवर कोई न्यायालय इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध का विचारण नहीं करेगा।
20. वर्धित शास्ति अधिरोपित करने की मजिस्ट्रेट की शक्ति
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 29 में किसी बात के होते हुए भी किसी महानगर मजिस्ट्रेट या प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट के लिये जो राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त विशेष रूप से सशक्त किया गया हो, इस अधिनियम द्वारा प्राधिकृत कोई दण्डादेश पारित करना विधिपूर्ण होगा।
21. विचारण का स्थान
इस अधिनियम या उसके अधीन बनाए गए किसी नियम के अधीन कोई अपराध करने वाले किसी व्यक्ति का अपराध के लिये विचारण ऐसे स्थान पर किया जा सकेगा जिसका केन्द्रीय सरकार राजपत्र में प्रकाशित साधारण या विशेष आदेश द्वारा इस निमित्त निदेश करे।
22. उपधारणाएँ
(1) जहाँ इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन किसी अपराध का किया जाना अभिकथित है वहाँ ऐसे अपराध के किये जाने का स्थान उस जलयान या वायुयान के जिसका उपयोग अपराध का पता चलाने के सम्बन्ध में किया गया था, लाग बुक या अन्य शासकीय अभिलेख में सुसंगत प्रविष्टि की प्रमाणित प्रति के आधार पर उपधारित किया जाएगा।
(2) जहाँ कोई विदेशी जलयान भारत के किसी सामुद्रिक क्षेत्र के भीतर पाया जाता है और ऐसे जलयान का मत्स्यन सम्भार विहित रीति से भरा नहीं गया है या ऐसे जलयान के फलक पर मछली पाई जाती है वहाँ जब तक उसके विरुद्ध साबित न किया जाये यह उपधारित किया जाएगा कि उक्त जलयान का उपयोग उस क्षेत्र के भीतर मत्स्यन के लिये किया गया था।
23. सद्भावपूर्वक की गई कार्रवाई के लिये संरक्षण
(1) इस अधिनियम के उपबन्धों के अनुसरण में सद्भावपूर्वक की गई या की जाने के लिये आशयित किसी बात के बारे में कोई वाद, अभियोजन या अन्य विधिक कार्यवाही किसी व्यक्ति के विरुद्ध न होगी।
(2) इस अधिनियम के उपबन्धों के अनुसरण में सद्भावपूर्वक की गई या की जाने के लिये आशयित किसी बात के कारण हुए या हो सकने वाले किसी नुकसान के लिये कोई वाद या अन्य विधिक कार्यवाही सरकार के विरुद्ध न होगी।
24. अधिनियम का अन्य विधियों का पूरक होना
इस अधिनियम के उपबन्ध तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के उपबन्धों के अतिरिक्त होंगे न कि उनके अल्पीकरण में।
25. नियम बनाने की शक्ति
(1) केन्द्रीय सरकार, इस अधिनियम के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिये नियम, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, बना सकेगी।
(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियमों में निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों के लिये उपबन्ध किया जा सकेगा, अर्थात:-
(क) वह प्रारूप जिसमें किसी अनुज्ञप्ति या अनुज्ञापत्र के लिये आवेदन किया जा सकेगा और वह फीस जो ऐसे आवेदन के साथ संलग्न होगी;
(ख) वे विषय जिन पर अनुज्ञप्ति और अनुज्ञापत्र की मंजूरी के समय विचार किया जाएगा;
(ग) अनुज्ञप्ति और अनुज्ञापत्र का प्रारूप और वे शर्तें और निर्बन्धन जिनके अधीन ऐसी अनुज्ञप्ति और अनुज्ञापत्र मंजूर किये जा सकेंगे;
(घ) वह रीति जिसमें विदेशी जलयान का मत्स्यन सम्भार धारा 7 के अधीन भरा रखा जाएगा;
(ङ) वे निबन्धन और शर्तें जिनके अधीन किसी विदेशी जलयान को कोई वैज्ञानिक अनुसन्धान या अन्वषेण करने के प्रयोजन के लिये या धारा 8 के अधीन प्रायोगिक आधार पर मत्स्यन के लिये किसी भारतीय सामुद्रिक क्षेत्र के भीतर मत्स्यन के लिये उपयोग किये जाने की अनुज्ञा दी जा सकेगी;
(च) वह प्रारूप जिसमें धारा 9 की उपधारा (4) के खण्ड (क) के प्रथम परन्तुक के अधीन अभिगृहीत जलयान या अन्य चीजों के निर्मोचन के लिये आवेदन किया जा सकेगा;
(छ) कोई अन्य विषय जिसका विहित किया जाना अपेक्षित है या जो विहित किया जाये।
(3) इस धारा के अधीन कोई नियम बनाने में केन्द्रीय सरकार यह उपबन्ध कर सकेगी कि उसका उल्लंघन जुर्माने से, जो पचास हजार रुपए तक का हो सकेगा, दण्डनीय होगा।
(4) इस धारा के अधीन केन्द्रीय सरकार द्वारा बनाया गया प्रत्येक नियम बनाए जाने के पश्चात यथाशीघ्र, संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष, जब वह सत्र में हो, कुल तीस दिन की अवधि के लिये रखा जाएगा। यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी। यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन, उस नियम में कोई परिवर्तन करने के लिये सहमत हो जाएँ तो तत्पश्चात, वह नियम ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा। यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएँ कि वह नियम नहीं बनाया जाना चाहिए तो तत्पश्चात वह निष्प्रभाव हो जाएगा। किन्तु नियम के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।
26. कठिनाइयों को दूर करना
(1) यदि इस अधिनियम के उपबन्धों को प्रभावी करने में कोई कठिनाई उत्पन्न होती है तो केन्द्रीय सरकार राजपत्र में प्रकाशित आदेश द्वारा ऐसे उपबन्ध कर सकेगी जो इस अधिनियम के उपबन्धों से असंगत न हों और जो कठिनाइयों को दूर करने के लिये आवश्यक प्रतीत होते हों;
परन्तु इस धारा के अधीन कोई आदेश इस अधिनियम के प्रारम्भ से तीन वर्ष के अवसान के पश्चात नहीं किया जाएगा।
(2) इस धारा के अधीन किया गया प्रत्येक आदेश किये जाने के पश्चात यथाशीघ्र संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखा जाएगा।
Path Alias
/articles/bhaarata-kaa-saamaudaraika-kasaetara-vaidaesai-jalayaanaon-davaaraa-matasayana-kaa
Post By: Editorial Team