भारत का पहला हिमालय अनुसन्धान स्टेशन हिमांश


भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के बनने के बाद से हिमालयी अध्ययनों को एक नई दिशा मिली है। मंत्रालय ने हिमालय की वैश्विक महत्ता की गहराई को समझते हुए 9 अक्टूबर, 2016 को हिमाचल प्रदेश के स्पीति में 4080 मीटर की ऊँचाई पर 'हिमांश' नामक भारत का प्रथम हिमालय अनुसन्धान स्टेशन स्थापित किया है। हिमांश की सम्पूर्ण गतिविधियाँ मंत्रालय के गोवा-स्थित एक स्वायत्त संस्थान राष्ट्रीय अंटार्कटिक एवं समुद्री अनुसन्धान केन्द्र द्वारा संचालित की जाती हैं।

पृथ्वी पर हिमालय को तीसरे ध्रुव की संज्ञा दी गई है, क्योंकि ध्रुवीय क्षेत्र के बाहर हिमालय हिमनदों (ग्लेशियरों) का सबसे बड़ा केन्द्र है। यहाँ हिमनदों का व्यापक विस्तार है और इसलिये इसे एशिया का वाटर टावर भी कहा जाता है। काराकोरम क्षेत्र सहित हिमालय और हिमालय-पार क्षेत्र के लगभग 75,779 वर्ग किमी में 34,919 हिमनद स्थित हैं। बाल्तोरो, बियाफो, सियाचिन, गंगोत्री और जेमू इत्यादि हिमालय के बड़े-बड़े हिमनदों की श्रेणी में आते हैं।

इन हिमनदों के कारण ही हिमालयी नदियाँ वर्ष भर जल से लबालब भरी रहती हैं। इसकी प्रमुख नदियों में सिन्धु, ब्रह्मपुत्र, सतलुज, गंगा, यमुना और झेलम शामिल हैं। हिमालय के हिमनद भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश की एक बड़ी आबादी को बिजली, सिंचाई और पेयजल की आधारभूत सुविधाएँ प्रदान करने में महती भूमिका निभाते हैं। इसके अलावा हिमालय के हिमनदों का भूमण्डलीय जलवायु से भी गहरा सम्बन्ध है, क्योंकि लगातार बढ़ रहे वैश्विक तापमान के प्रति उनकी अत्यधिक संवेदनशीलता की पुष्टि अनेक वैज्ञानिक अनुसन्धानों से हो चुकी है।

हिमांश स्टेशन की स्थापना


हिमालय का गहन वैज्ञानिक विश्लेषण, शोध व अध्ययन अब भारत के लिये कोई नई बात नहीं रह गई है। स्वतंत्र भारत का वैज्ञानिक इतिहास इस बात का साक्षी है कि भारत के प्रतिष्ठित वैज्ञानिक संस्थानों जैसे भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण, वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्‍थान, देहरादून, जी.बी. पंत हिमालय पर्यावरण एवं विकास संस्थान, अल्मोड़ा, हिमालयन वन अनुसन्धान संस्थान, शिमला से लेकर अन्तरिक्ष अनुप्रयोग केन्द्र, अहमदाबाद एवं भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन (इसरो) तक के वैज्ञानिकों ने अपने स्तर पर हर तरह से हिमालय का गहन विश्लेषण किया है।

भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के बनने के बाद से हिमालयी अध्ययनों को एक नई दिशा मिली है। मंत्रालय ने हिमालय की वैश्विक महत्ता की गहराई को समझते हुए 9 अक्टूबर, 2016 को हिमाचल प्रदेश के स्पीति में 4080 मीटर की ऊँचाई पर 'हिमांश' नामक भारत का प्रथम हिमालय अनुसन्धान स्टेशन स्थापित किया है। हिमांश की सम्पूर्ण गतिविधियाँ मंत्रालय के गोवा-स्थित एक स्वायत्त संस्थान राष्ट्रीय अंटार्कटिक एवं समुद्री अनुसन्धान केन्द्र (एनसीएओआर) द्वारा संचालित की जाती हैं।

हिमांश को विशेष रूप से हिमालय में हिमांक मण्डलीय अध्ययन करने के लिये चंद्रा बेसिन, पश्चिमी हिमालय में सूत्री ढाका में स्थापित किया गया है। इसके निर्माण स्थल का चयन चंद्रा नदी के पास हिमनदों के अवघात प्रभाव क्षेत्र से दूर ऐसे स्थान पर किया गया है, जिससे हिमालय के लगभग 2437 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में अध्ययन किया जा सके। इस स्थान से लगभग 206 हिमनदों तक पहुँचा जा सकता है, जिनका कुल क्षेत्रफल 706 वर्ग किलोमीटर है।

हिमांश तक कैसे पहुँचे?


हिमांश स्टेशन देश के प्रसिद्ध हिल स्टेशन मनाली से लगभग 130 किलोमीटर दूर है। वहाँ तक पहुँचने के लिये मनाली से काजा के बीच के सड़क मार्ग पर एक स्थान बाताल तक पहुँचना पड़ता है। बाताल से पहाड़ी कच्चे रास्ते पर करीब 6-7 किलोमीटर पैदल चलकर हिमांश स्टेशन पहुँचा जाता है।

बाताल से ही एक अन्य पहाड़ी मार्ग भी है, जिसमें जीप आदि वाहनों द्वारा लगभग 12 किलोमीटर की दूरी तय करके चंद्रा नदी के किनारे तक पहुँचा जा सकता है। फिर वहाँ से नदी पार करके 1.5 किलोमीटर की दूरी पैदल चलकर भी हिमांश तक जाया जा सकता है। चंद्रा नदी को पार करने के लिये रस्सियों से बना एक झूलानुमा पुल बनाया गया है, जिससे हिमांश तक आसानी से पहुँचा जा सके।

सम्पर्क साधन


वर्तमान में हिमांश से छः चयनित सतही हिमनदों (सूत्री ढाका, बाताल, बारा शिग्री, समुद्र टापू, गेपांग और कुंजाम) में विभिन्न हिमनद वैज्ञानिक अध्ययन किये जा रहे हैं, जिनका कुल क्षेत्रफल लगभग 306 वर्ग किलोमीटर है। स्टेशन से हिमनदों के अध्ययन के लिये वैज्ञानिकों को उपकरणों सहित जाना पड़ता है और अध्ययन क्षेत्रों में वे टेंट लगाकर रहते भी हैं।

वैज्ञानिक आपस में तथा हिमांश स्टेशन के साथ केनवुड रेडियो ट्रांसमीटर वीएचएफ / यूएचएफ पोर्टेबल रेडियो (वॉकीटॉकी) के माध्यम से सम्पर्क में बने रहते हैं। हिमांश के बाहरी दुनिया से सम्पर्क के लिये सेटेलाइट फोन सुविधा की व्यवस्था भारत संचार निगम के डिजिटल सेटेलाइट पब्लिक टेलीफोन के माध्यम से की गई है।

स्टेशन इमारत एवं सुविधाएँ


हिमांश स्टेशन का निर्माण पूर्वनिर्मित मॉड्युलों को जमीन के नीचे गड़ाए गए लोहे के स्तम्भों पर स्थापित करके किया गया है। इस स्टेशन के निर्माण का उत्तरदायित्व भारत की ही एक कम्पनी मीरा इंजीनियरिंग को दिया गया था। पूर्वनिर्मित मॉड्युलों को गेल्वनीकृत स्टील की परतों के बीच 150 मिलीमीटर मोटाई के तापअवरोधी पदार्थों के भराव द्वारा बनाया गया है। इन मॉड्यूलों के अन्दर की दीवारों और फर्श को लकड़ी से ढँका गया है, जिससे कक्ष के अन्दर का तापमान सामान्य बना रहता है। यहाँ विशेष उल्लेखनीय बात यह है कि स्टेशन की इमारत तथा उसके आसपास बनाई गईं किन्हीं भी संरचनाओं में सीमेंट का प्रयोग नहीं किया गया है।

इस स्टेशन पर तीन मॉड्यूल कक्ष स्थापित किये गए हैं। पहले कक्ष में चार लोगों के रहने की व्यवस्था है, जिसमें छोटा सा भण्डार कक्ष व एक जैवशौचालय संलग्न हैं। दूसरे कक्ष में अन्य चार लोगों के रहने की व्यवस्था के साथ-साथ एक रसोईघर भी है। रसोई में भोजन पकाने के लिये एलपीजी का प्रयोग किया जाता है। तीसरे कक्ष को पूर्ण रूप से प्रयोगशाला के रूप में उपयोग किया जाता है।

इन तीनों कक्षों के अलावा बाहर अलग से दो जैव शौचालय भी बनाए गए हैं। स्टेशन में अत्यधिक शीत की परिस्थिति में गर्मी के लिये तेल-आधारित ऊष्मायन तंत्र भी लगाए गए हैं। हिमांश पर हेलिकॉप्टरों के उतरने के लिये दो अस्थायी हेलीपैड भी हैं। हालांकि अभी स्टेशन में मनोरंजन के लिये कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है, फिर भी समय मिलने पर वैज्ञानिक क्रिकेट, फुटबॉल, बालीबॉल आदि खेल खेलते हैं।

जल आपूर्ति


पेयजल व अन्य जल आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये स्टेशन से लगभग 800 मीटर की दूरी पर स्थित एक बारहमासी झरने से पाइप द्वारा चौबीसों घंटे स्वच्छ जल उपलब्ध रहता है। इसके साथ ही जल भण्डारण के लिये स्टेशन की मूल इमारत के पीछे पानी की एक टंकी भी रखी गई है।

विद्युत आपूर्ति


हिमांश की विद्युत आपूर्ति के लिये स्टेशन के पीछे ही दो किलोवाट के सौर ऊर्जा पैनलों को लगाया गया है, जिससे स्टेशन में बिजली की आम जरूरतों के साथ-साथ छोटे-छोटे वैज्ञानिक उपकरणों को चलाया जाता है। इसके अतिरिक्त एक तीन किलोवाट का पेट्रोल जनरेटर भी बैक-अप तथा अधिक विद्युत खपत वाले उपकरणों के प्रचालन हेतु प्रयुक्त किया जाता है। हालांकि स्टेशन पर अभी सौ लीटर से अधिक पेट्रोल भण्डारण की सुविधा उपलब्ध नहीं है। अतः पेट्रोल को नियमित रूप से बाताल से मँगवाया जाता है।

अपशिष्ट निपटान


स्टेशन में अवशिष्टों के निपटान के लिये सभी पर्यावरण मानदण्डों का सशक्त रूप से पालन किया जाता है। जैव शौचालयों के कारण शौचालयों का कोई अवशिष्ट निर्मित नहीं होता है। रसोईघर आदि से निकलने वाले जैव विघटित पदार्थों का निपटान वहीं पर बागवानी आदि में उपयोग करके कर लिया जाता है। जबकि अ-जैवविघटित पदार्थों को एकत्रकर वापस लाया जाता है।

सहायक कामगार


वैज्ञानिकों को अपने कार्य क्षेत्रों के लिये बहुत से सामानों व उपकरणों को लाना ले जाना पड़ता है तथा बाताल से हिमांश तक स्टेशन पर आवश्यक अन्य सामानों की आपूर्ति के लिये भी सामान ढोने वाले लोगों की जरूरत पड़ती है। अतः स्टेशन के पास ही इन सहायक कामगारों के रहने के लिये टेंट लगाए गए हैं तथा कुछ पत्थरों से बने कमरे भी तैयार किये गए हैं।

यहाँ पर लगभग 15 सहायक कामगार रहते हैं और इनके लिये भी जैवशौचालयों व स्टेशन की तरफ जाने वाले जल पाइप से एक अतिरिक्त पाइप लगाकर पानी की व्यवस्था की गई है। बाताल से रस्सी वाले पुल तक एक चारपहिया वाहन की व्यवस्था भी रहती है, जिससे सामानों को आसानी से लाया जा सके और आपात स्थिति में इस्तेमाल किया जा सके।

हिमांश की प्रचालन अवधि


वैसे तो हिमांश को साल भर वहाँ काम करने की दृष्टि से तैयार किया गया है, परन्तु वर्तमान में इसमें अप्रैल से लेकर मध्य नवम्बर तक ही काम किया जाता है। शेष मध्य नवम्बर से मार्च तक अत्यधिक शीत परिस्थितियों के कारण प्रबन्धन सम्बन्धी सुविधाएँ न होने से स्टेशन को बन्द कर दिया जाता है।

शोध उपकरण सुविधाएँ


हिमांश अनेक अत्याधुनिक उपकरणों से लैस एक उत्कृष्ट व अपने किस्म का अनूठा भारतीय अनुसन्धान स्टेशन है। यह स्वचालित मौसम स्टेशन, जल स्तर रिकॉर्डर, स्टीम ड्रिल, स्नो/आइस कोरर, ग्राउंड पेनीट्रेटिंग रडार, डिफेरेंशियल ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम, हिम फोर्क, फ्लो ट्रेकर, थर्मिस्टर स्ट्रिंग, रेडियो मीटर आदि जैसे उन्नत शोध उपकरणों से सुसज्जित है। स्वचालित मौसम स्टेशन समुद्र तल से 4900 मीटर की ऊँचाई पर हिमनद सतह पर स्थापित किया गया है। हिमांश स्टेशन पर शोधकर्ता लेजर स्कैनर और मानव रहित हवाई उपकरणों (यूएवी) का उपयोग कर हिमनदों से सम्बन्धित विभिन्न आँकड़ों का डिजिटल रूप में एकत्रण कर रहे हैं। प्रयोगशाला में जल व तलछट प्रादर्शों के विश्लेषण हेतु आधारभूत सुविधाएँ भी हैं।

हिमांश रिसर्च स्टेशन

शोधकार्य


यहाँ मुख्य रूप से वैज्ञानिक हिमालयी हिमनदों के पिघलने और जलवायु परिवर्तन से सम्बन्धित अध्ययन कर रहे हैं। वास्तव में इन अध्ययनों का उद्देश्य जल विज्ञान और जलवायु के दृष्टिकोण से हिमालय की गत्यात्मकता एवं परिवर्तनों की दर को समझना है। इसके अलावा हिमनद हिमांकों एवं हिमालय के गर्तसंस्तरों की सूक्ष्मजीवीय विविधता, सूक्ष्मजीव वैज्ञानिक अध्ययन तथा भारतीय हिमालय एवं आर्कटिक के हिमनदीय हिमांकीय तत्वों का तुलनात्मक विश्लेषण सम्बन्धी शोध भी किये जा रहे हैं। हिमांश को स्थापित हुए अभी एक वर्ष ही हुआ है और इस समय एनसीएओआर के वैज्ञानिक ही यहाँ शोधकार्य कर रहे हैं, लेकिन भविष्य में देश के अन्य संस्थानों के वैज्ञानिक भी अध्ययन कर सकेंगे।

वैज्ञानिकों के अनुसार हिमनदीय भार सन्तुलन अध्ययन हिमनद के व्यवहार की व्याख्या और भविष्यवाणी करने के लिये अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होते हैं। हिमालय के चयनित हिमनदों की गत्यात्मकता व परिवर्तन की दर और वार्षिक भार सन्तुलन का अध्ययन करने के उद्देश्य से सन 2013 से छः हिमनदों की हिमनदीय सतह के लगभग 280 वर्ग किमी क्षेत्र के ऊपर 92 दण्डों का एक नेटवर्क अपक्षरण/संचयन पर्यवेक्षण के लिये स्थापित किया गया है।

हिमांश में रहकर वैज्ञानिकों ने पाया कि हिमालय के चरम निम्न तापमान और अल्पपोषीय पर्यावरण जैसी रुक्ष परिस्थितियों के बावजूद भी वहाँ जीवन का अस्तित्व है। उनके द्वारा हमताह नामक हिमनद पर जीवाणवीय और फँफूदीय जीवन की विविधता और उनके शारीरिक और जैव रासायनिक गुणधर्मों के अध्ययन इस बात की पुष्टि करते हैं।

हिमांकीय छिद्रों से प्राप्त तलछट और जल प्रादर्शों में पाये गए जीवाणुओं आर्थ्रोबेक्टर रोम्बी, एसीनेटोबेक्टर ल्वोफ्फी, बेसिलस फोरामिनिस, बेसिलस ह्यूमी, बेसिलस एरीआभात्ताई, बेसिलस मारिसफ्लेवी, क्राइसिओबेक्टीरियम हिस्पेलेंस, क्रायोबेक्टीरियम आर्कटिकम, डिमेक्विना ल्यूटिया, ग्लेसिमोनास सिंगुलेरिस, जेंथिनोबेक्टीरियम लिविडम, कोक्युरिया पेलसट्रिस, माइक्रोकोकस एलोवेरी, माइक्रोकोकस ल्यूटीओलम, माइक्रोकोकस ल्यूटिअस, माइक्रोबेक्टीरियम होमिनिस, माइक्रोबेक्टीरियम पेराऑक्सीडेंस, माइक्रोबेक्टीरियम एरोलेटम, स्यूडोमोनास मेरिडिअन, स्यूडोमोनास मेनडिली, स्यूडोमोनास मेरिडिअन, स्यूडोमोनास साइक्रोफिला, रोडोकोकस फेसिअन्स, रुगामोनास रुब्रा, सेलिनिबेक्टीरियम जिनिएन्जेनीज, स्फिन्गोबेक्टीरियम मल्टीवोरम में समान डीएनए अनुक्रम का पता लगाया है।

हिमालयी हिमनदों के हिमांकीय छिद्रों में भारी धातुओं की सान्द्रता प्राकृतिक रूप से काफी अधिक पाई गई है। इन छिद्रों में भारी धातुएँ संचित होती जाती हैं और उनकी सान्द्रता उस क्षेत्र में इन तत्त्वों के पर्यावरणीय स्तर को प्रदर्शित करती है। हिमांश स्टेशन में शोधरत वैज्ञानिक हिमालयी हिमनदों के भौतिक रासायनिक गुणधर्मों की तुलना आर्कटिक के हिमनदों से कर रहे हैं। हिमनदीय हिमांकीय तलछटों को एकत्रित कर इनमें बीस तत्त्वों का विश्लेषण प्रेरण युग्मित प्लाज्मा मास स्पेक्ट्रोस्कोपी (आईसीपी-एमएस) द्वारा किया गया है। आर्कटिक हिमनदों की तुलना में हिमालयी हिमनदों में तत्त्वों की सान्द्रता उच्च पाई गई है।

हिमांश स्टेशन की महत्ता


संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार हिमालयी क्षेत्र में ब्रह्मपुत्र तथा गंगा घाटी की तुलना में सिंधु घाटी क्षेत्र में ग्लेशियर अत्यधिक तेजी से पिघल रहे हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि सन 2050 तक हिमालय हिमनदों से रहित हो सकता है। एक प्रेक्षण के अनुसार पिछले 50 वर्षों में ग्लेशियरों में 13% की कमी हुई है।

हिमनदों के पिघलने से जहाँ एक ओर नदियों के जलस्तर में वृद्धि होगी, वहीं कृत्रिम झीलों के बनने और अन्य प्राकृतिक आपदाएँ जैसे भूस्खलन, भूकम्प, बाढ़ और बादल विस्फोट का खतरा भी बढ़ जाएगा। हिमांश स्टेशन हिमालयी हिमनद वैज्ञानिक अध्ययनों के लिये ऐसी सुविधाएँ उपलब्ध कराने की दिशा में प्रयासरत है, जिनसे हिमालयीन परिस्थितियों में ही स्वस्थाने प्रयोग किये जा सकें। इसके अलावा जल, हिम, मृदा, जीववैज्ञानिक प्रादर्शों को एकत्र करके उनका विश्लेषण स्टेशन की प्रयोगशाला में ही किया जा सके। अतः हिमांश स्टेशन हिमालयी हिमनदों के भावी अध्ययनों के लिये एक मील का पत्थर साबित होगा।

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