भारत इस समय सूखे के भयावह दौर से गुजर रहा है

जल संस्कृति वाला देश पानी की कमी से जूझ रहा है।
जल संस्कृति वाला देश पानी की कमी से जूझ रहा है।

कहते हैं कि जल है तो कल है, जल ही जीवन का आधार है। जल को किसी लैब में भी नहीं बनाया जा सकता है। भारत में जल और नदियों को संस्कृति का हिस्सा माना गया है, जहां ‘पग पग पर नीर है’ की उक्ति अक्सर बोली जाती थी, लेकिन आज वही देश नदी, तालाब, झील आदि सूखने के कारण बूंद-बूंद पानी के लिए मोहताज हो गया है। उत्तर, मध्य और प्रायद्वीपीय भारत के जिले भयानक व गंभीर सूखे की मार झेल रहे हैं। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने आंध्र प्रदेश, उत्तर आंतरिक कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार और झारखंड में सूखे की भयावह तस्वीर अपनी रिपोर्ट में पेश की है। जिसमे आंध्र प्रदेश सबसे ज्यादा जल संकट से जूझ रहा है। यदि यही स्थिति रही तो आने वाले समय में भारत की जनता को बूंद-बूंद के लिए मोहताज़ होना पड़ेगा।

जल संस्कृति वाला भारत देश पिछले कुछ समय से पानी की भारी कमी से जूझ रहा है। भूजल स्तर तेजी से कम होता जा रहा है। जहां पांच से दस मीटर खोदने पार पानी मिलता था, आज वहां तीन सौ मीटर खोदने पर भी पानी नहीं मिल रहा है। नौले, धारे, तालाब, झील और नदियां अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। पानी की कमी के कारण खेती प्रभावित हो रही है। इस वर्ष तो स्थिति में सुधार आने के बजाए समस्या और विकट हो गई है। दरअसल एसपीआई की सकारात्मक मात्रा औसत बारिश से अधिक और नकारात्मक मात्रा औसत से कम बारिश होने का संकेत देते हैं। एसपीआई लगातार नकारात्मक होने और इसकी मात्रा -1.0 व इससे कम होने पर किसी भी समय सूखा पड़ सकता है, किंतु एसपीआई सकारात्मक होने पर सूखा भी समाप्त हो जाता है, लेकिन एसपीआई डाटा के अनुसार इस बार उत्तर, मध्य और प्रायद्वीपीय भारत के कई जिले भीषण सूखे की चपेट में हैं। 

बंगाल की खाड़ी में कम दबाव प्रणाली उत्पन्न होने से वायु चक्रवात के बाद मानूसन में तेजी आई थी, लेकिन अभी प्रणाली कमजोर पड़ रही है। मानसून प्रचलन को और आगे ले जाने के लिए मौसम विभाग के पास बंगाल की खाड़ी मे कोई मौसम प्रणाली नहीं है, इसलिए वैज्ञानिक 27 से 1 जुलाई के बीच मानसून की प्रगति कम होने की उम्मीद जता रहे हैं। हालाकि वैज्ञानिक मानते हैं कि अगले हफ्ते उन्हें पता चल जाएगा कि पूर्वानुमान में एक और निम्न दबाव क्षेत्र बन रहा है या नहीं। 


23 मई से 19 जून तक का एसपीआई मानचित्र दर्शाता है कि आधे से ज्यादा भारत में अपर्याप्त बारिश हुई है। यहां तक कि उत्तरी और प्रायद्वीपीय भारत के कुछ जिले पिछले मानसून से ही सूखे की चपेट में हैं। जून 2018 से मई 2019 के एसपीआई दर्शाता है कि आंध्र प्रदेश के काफी बड़े हिस्से में, आंतरिक कर्नाटक, मध्य प्रदेश के कुछ जिले, महाराष्ट्र, बिहार और झारखंड में एक वर्ष से भी अधिक समय से गंभीर व अत्यंत सूखा है। जलाशयों के संबंध में केंद्रीय जल आयोग की हाल की अपडेट ये पता चलता है कि कई जलाशयों से जल विद्युत उत्पन्न की जा रही है, जबकि प्रायद्वीपीय भारत के जलाशयों में पानी का भंडाराण काफी कम हो गया है।

आंकड़ों पर नजर डाले तो तेलंगाना के जलाशय सामान्य से 36 प्रतिशत नीचे हैं, जबकि आंध्र प्रदेश के  भयावह रूप से 83 प्रतिशत तक सूख चुके हैं। कर्नाटक के 23 प्रतिशत, तमिलनाडु के 43 प्रतिशत और केरल के सामान्य से 38 प्रतिशत कम हो चुके हैं। चेन्नई को पानी सप्लाई करने वाले तमिलनाडु के तीन जलाशय पोंडी, शोलावरम और चेम्बरामबक्क्म में पानी काफी कम हो गया है। नतीजतन आईटी कंपनी को अपनी परियोजना को फिर से तैयार करना पड़ा और कई भोजनालयों को तो दोपहर का भोजन और जल निकायों की सेवाओं को बंद करना पड़ा। चेम्बरामबक्क्म और पुझहल झील का पानी भी काफी कम हो रहा है।

अल्प प्री-मानसून वर्षा और मानसून में देरी के कारण भी सूखे की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। मानसून में देरी और कम वर्षा के कारण नदियों के किनारे भी सूख गए हैं। तापी नदी का किनारा दस वर्षों के औसत भंडारण से 81 प्रतिशत नीचे है, जबकि साबरमती 42 प्रतिशत, कृष्णा 55 प्रतिशत, कावेरी 45 प्रतिशत और गंगा का किनारा दस वर्षों के औसत भंडारण से 9.25 प्रतिशत नीचे है। 22 जून तक मानसून में भी 39 प्रतिशत की कमी देखी गई है। भारतीय मौसम विज्ञान की रविवार के बुलेटिन के अनुसार मानसून अभी मध्य महाराष्ट्र के हिस्सों, मराठवाड़ा के कुछ हिस्सों, विदर्भ, कर्नाटक के कुछ क्षेत्रों, तेलंगाना, उडीसा, झारखंड, गैंगेटिक पश्चिम बंगाल और बिहार, छत्तीसगढ़ के काफी हिस्सों सहित उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में प्रवेश कर चुका है।

हालांकि वायु चक्रवात के कारण मानसून की सामान्य प्रगति बाधित होने से मानसून में देरी हुई थी, लेकिन अब मानसून की प्रगति सामान्य होने से ये मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में प्रवेश कर चुका है। आने वाले कुछ दिनों में दिल्ली में भी बारिश होगी। हालाकि 27 जनू से 1 जुलाई के बीच मानसून की प्रगति में कमी देखने को मिल सकती है। मौसम वैज्ञानिक मानसून की प्रगति में मद्द करने वाली बंगाल की खाड़ी पर एक कम दबाव के क्षेत्र की उम्मीद कर रहे हैं। दरअसल बंगाल की खाड़ी में कम दबाव प्रणाली उत्पन्न होने से वायु चक्रवात के बाद मानूसन में तेजी आई थी, लेकिन अभी प्रणाली कमजोर पड़ रही है। मानसून प्रचलन को और आगे ले जाने के लिए मौसम विभाग के पास बंगाल की खाड़ी मे कोई मौसम प्रणाली नहीं है, इसलिए वैज्ञानिक 27 से 1 जुलाई के बीच मानसून की प्रगति कम होने की उम्मीद जता रहे हैं। हालाकि वैज्ञानिक मानते हैं कि अगले हफ्ते उन्हें पता चल जाएगा कि पूर्वानुमान में एक और निम्न दबाव क्षेत्र बन रहा है या नहीं।

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