भैया, ये प्यास बुझती क्यों नहीं


D2O को भारी जल कहा जाता है जोकि जीव-धारियों के लिये इस लिये हानिकारक है कि यह उनके मेटाबोलिज़्म (Metabolism) को शिथिल कर देता है। परन्तु सौभाग्य से D2O तथा T2O की मौजूद मात्राएँ इतनी कम है कि सामान्य जल से हमें कोई नुकसान नहीं पहुँच सकता।

जलपाठक मित्रों, हमसे अक्सर पूछा जाता है कि जब पानी को सीधे-सीधे ‘पानी’ नाम से बुलाया जा सकता है तो इसे ‘जल’ कहने की क्या जरूरत है? मसलन ‘जल चेतना’ पत्रिका को ‘पानी सम्बन्धी चेतना’ नाम भी तो दिया जा सकता था, है न? इस मिसाल से उत्तर स्वयं स्पष्ट-साफ हो जाता है क्योंकि ‘जल चेतना’ कहने से पत्रिका का नाम शार्ट-क्रिस्प तथा टू-द-प्वांइट बन गया। दूसरी बात यह है कि जल शब्द के इस्तेमाल से विज्ञान ज्यादा सरल बन जाता है जैसे कि हमें जलीय (Aquerus), जलयुक्त (Hydrated), जलमग्न, जलकुण्ड, जलगति विज्ञान (Hydraulics), जलविज्ञान (Hydrology), जलचर (Aquatic Aninal), जलद्वार (Flood Gate), जल धारा (Current of water), जलपक्षी (Aqatic bird), जलमार्ग (Channel), व जल शोषक (Hygroscopic Material) जैसे कई-कई शार्ट एंड क्रिस्प वैज्ञानिक शब्द सहज ही मिल जाते हैं जोकि पानी शब्द को लेकर आसानी से नहीं रचे जा सकते। पर हाँ, हम भी सीधी-सरल भाषा के हिमायती हैं और जहाँ-जहाँ मुमकिन होता है, वहाँ पानी शब्द का ही इस्तेमाल करते हैं। अलबत्ता, काव्य अथवा ललित साहित्य रचते समय हम कवि एवं साहित्यकार को नीर, सलिल अथवा वाॅटर Water) जैसे शब्दों के इस्तेमाल की छूट भी देते हैं।

रसायन शास्त्र की पुस्तकों में पानी को रंगहीन-गंधहीन-स्वादहीन आदि शब्दों से अक्सर परिभाषित किया गया है। सरसरी तौर पर यह सब ठीक होगा परन्तु ये बातें सतही ही हैं। अब आप ही बताइए कि गर्मी की चिलचिलाती दोपहर को पंथी और पंछी की प्यास बुझाने के लिये कुछ ठंडा पानी मिल जाये तो क्या उन्हें यह स्वादहीन लगेगा? उस समय उन्हें यह संसार का सबसे स्वादिष्ट पेय लगेगा, है न? रेगिस्तान के जहाज ऊँट के बारे में वैज्ञानिक भी मानते हैं कि उसे इजाजत मिले तो वह 24 घंटे बस पानी ही पीता रहे (उसके कुब में पानी नहीं रहता बल्कि वसा (Fat) रहती है। तो क्या कोई गंधहीन-स्वादहीन पेय चैबीसों घंटे पी सकता है, भले ही वह पशु हो? जाहिर है कि हमारी पृथ्वी के सबसे अद्भुत द्रव्य पदार्थ पानी को ठीक से समझने, परिभाषित करने की बहुत जरूरत है। यह भी हम पृथ्वीवासियों का परम सौभाग्य है कि पृथ्वी का औसत तापमान 150 डिग्री सेल्सियस होने के कारण पानी द्रव्य अवस्था में न केवल मौजूद है बल्कि पृथ्वी की 72 प्रतिशत सतह इसी द्रव्य से पटी पड़ी है, है न?

दूषित पानी पीना-एक मजबूरी मनुष्य को अन्तरिक्ष में पक्की तरह पानी ढूँढ लेने में कोई कामयाबी नहीं मिली, परन्तु आश्चर्य यह है कि सामान्य कीट भी खुइक रेगिस्तान में पानी ढूँढ लेते हैं। कैसे? अगर जल गंधहीन है तो ततैया या बर्र जैसे कीड़े पानी कैसे खोज लेते हैं। जी हाँ, चिलचिलाती दोपहर में रेगिस्तानी जमीन के कुछ खास इलाकों के ऊपर कुछ खास उड़ते कीट मँडरा कर पानी की मौजूदगी बता देते हैं और जंगल का हाथी 10 किलोमीटर दूर से हवा में सूंड़ हिला कर सरोवर या नदी का पता कैसे लगा लेता है? जल के वो कौन से भौतिक-रासायनिक गुण हैं जोकि पशु-पक्षियों-कीटों को भी इसकी उपस्थिति बता देते हैं यह आज भी बायोनिक्स वैज्ञानिकों के लिये रहस्य है। बहरहाल यह बात तो पक्की है कि मनुष्य हो या अन्य जीवधारी, जिन्दगी की निरन्तरता के लिये उसे जल तो चाहिए ही चाहिए। अब एक और दिलचस्प जीव के बारे में आपको बताएँ? इस जीव को वाॅटर-होल्डिंग फ्राॅग कहते हैं जोकि सेंट्रल आॅस्ट्रेलिया के रेगिस्तान में भूमिगत जीवन बिताता है। साइक्लोराना प्लाटीसेफ़ेलस (Cyclorana Platycephalus) नाम के इस मेंढक को जमीन के अन्दर ही पता चल जाता है कि जमीन के ऊपर बारिश की कुछ बूँदें गिर रही हैं (जोकि कभी-कभार ही होता है) और वह फौरन जमीन पर आ जाता है।

कुछ ही पलों में वह इतना पानी सोख लेता है कि उसके शरीर पर कई गुब्बारेनुमा पानी भरे बोरे दिखने लगते हैं। यह भारी वज़न लेकर वह चींटी की चाल से अपने भूमिगत-घर वापस पहुँच इस पानी से कई महीने फिर सुख से बिताता है। पाठक मित्रों, रेगिस्तानी जीवन पानी की चाहत और जरूरत की अद्भुत मिसाल है जिसमें वनस्पतियाँ भी शामिल हैं। इसके भी आगे की सच्चाई यही है कि हमारे लिये जल के बिना जीवन की कल्पना कठिन है। जल में उत्पन्न प्रथम प्राणधारी (मत्स्यवतार) से लेकर आज के समय तक हमारे प्राण हमेशा पानी से जुड़े रहे हैं भले ही पहले हम प्राणी जलचर से उभयचर बने, फिर पर्याप्त भोजन के अभाव में पूरी तरह थलचर बन गए। इस बात का पक्का सबूत तो यही है कि मनुष्य के शिशु में आज भी 97 प्रतिशत जल होता है तथा एक स्वस्थ वयस्क मनुष्य में 75 प्रतिशत जल मौजूद रहता है। हमारे मस्तिष्क में भी 75 प्रतिशत तक पानी है, यहाँ तक कि हमारी कठोर-साॅलिड हड्डियों में 22 प्रतिशत जल अवश्य मौजूद है। तो हमारी पानी की यह प्यास ऐसी है जोकि जनम-जनम से आज भी बुझ नहीं पाई है।

पानी अनमोल है, इसके महत्व को जाने और इसे प्रदूषित न करें इससे पहले कि हम प्यास को परिभाषित करें और पीने योग्य पानी की दैनिक मात्रा तथा गुणों का जायजा लें। एक दिलचस्प वैज्ञानिक प्रश्न को अवश्य डिस्कस कर लें। सवाल यह है कि हम जब पानी पीते हैं तो दरअसल कितने तरह के पानी पीते हैं? सवाल अटपटा लगा न? हमारा सवाल यह है कि सामान्य पेयजल में कितने प्रकार के जल अणु होते हैं? पानी का रासायनिक फार्मूला यद्यपि H2O है, परन्तु सच यह है कि प्राकृतिक हाइड्रोजन के तीन आइसोटोप हैं (1.) प्रोटियम (H) (2) ड्यूटेरियम (D) तथा ट्रीशियम (T) जिनमें ड्यूटेरियम करीब 150 PPM है तो ट्रीशियम (12.5 वर्ष अर्धायु वाला, 1017 हाइड्रोजन परमाणुओं में केवल 1 परमाणु) अत्यन्त सूक्ष्म मात्र का रेडियोसक्रिय आइसोटोप। इसी प्रकार आॅक्सीजन के भी आॅक्सीजन-16, आॅक्सीजन-17 तथा आॅक्सीजन-18 नाम के तीन कुदरती आइसोटोप हैं जिनमें आॅक्सीजन-16 को छोड़ अन्य सूक्ष्म मात्रा में हैं। अब इनके काॅम्बीनेशनों की गणना करें तो हम सामान्य पानी में 18 प्रकार के पानी पीते है -

H2O16, HDO16, HTO16 , DTO16, D2O16, T2O16, H2O17, HDO17, HTO17, DTO17, D2O17, T2O17, H2O18, HDO18, HTO18, DTO18, D2O18, T2O18

D2O को भारी जल कहा जाता है जोकि जीव-धारियों के लिये इस लिये हानिकारक है कि यह उनके मेटाबोलिज़्म (Metabolism) को शिथिल कर देता है। परन्तु सौभाग्य से D2O तथा T2O की मौजूद मात्राएँ इतनी कम है कि सामान्य जल से हमें कोई नुकसान नहीं पहुँच सकता। अलबत्ता, कुछ वैज्ञानिकों की राय है कि रेडियोसक्रिय विकिरण की अल्प-मात्र से ट्रीशियम शायद हमें फायदा ही पहुँचाता हो।

प्यास और पेयजल की बात को आगे बढ़ाएँ तो एक पुराना प्रश्न यह है कि हम रोज कम-से-कम कितना पानी पीएँ? विशेषज्ञ तो आठ-दस गिलास पानी की बात कहते हैं पर गिलास पानी का साइज, मौसम, व्यक्ति का स्वयं का जेनेटिक मेक-अप आदि कई घटक इसमें अपनी-अपनी भूमिका अदा करते हैं। वह इसलिये कि पसीना-मल-मूत्र-दूबास आदि क्रियाओं द्वारा त्यागा जल हर व्यक्ति का अपना-अपना है। तो थंब-रूल यह है कि प्यास का जरा सा भी अहसास हो तो फौरन एक गिलास पानी पी डालिये। जी हाँ, जब बाकायदा प्यास लगती है तो समझो कि हमारे शरीर का जल उस स्तर पहुँच गया है जिसके नीचे डिहाइड्रेशन का जोखिम शुरू हो जाता है। सच्चाई यह है कि हमे 2 प्रतिशत डिहाइड्रेशन भी हो जाये तो हमारी कार्यकुशल ऊर्जा 20 प्रतिशत तक घट जाती है। अब आप स्वयं सोचिए कि शरीर की मेटाबोलिक व अन्य रासायनिक क्रियाएँ जलीय माध्यम में ही सम्पन्न होती हैं, अतः जल की कमी कितनी नुकसानदायक हो सकती है, है न? अब भी अगर आप इस बारे में नियम बना लेने की बात करना चाहते हैं तो उत्तम होगा अगर सर्दियों में हर तीन घंटों में तथा गर्मियों में हर डेढ़ घंटा स्वयं पानी पी लें, भले प्यास का अहसास नगण्य सा हो।

जल गुणवत्ता परीक्षण हालांकि अधिकतर लोग पानी पीने की तहजीब से जुड़े हैं पर इसके बारे में कम ही जानते हैं। तो याद रखिए कि खाना खाते समय पानी कम-से-कम लें क्योंकि यह आमाशय में स्रवित तेजाब को पतला कर देता है जिस कारण भोजन ठीक से नहीं टूट पाता। अलबत्ता खाने से आधा घंटा पूर्व इसे पी लीजिए। कई लोग पूछते है कि पानी सादा पीएँ याकि ठंडा, तो बता दें कि सर्दियों में ठंडा पानी पीने का कोई तुक ही नहीं, हाँ गर्मियों में मामूली ठंडा पानी पीने में हर्ज नहीं। ज्यादा ठंडा पानी पीने से मोटापा इसलिये बढ़ता है कि चयापचयन शिथिल हो जाता है। ज्यादा गर्मी लगे तो ठंडे जल से स्नान कर लो या बदन पोंछ लो, बेशक! परन्तु एक बात याद रखने योग्य है कि पेयजल स्वच्छ हो। यदि आपके गाँव-कस्बे में पीने वाला पानी कीटाणु युक्त है तो इसे सामान्य प्लास्टिक बोतलों में भर कर दो दिन धूप में रखें, फिर छान कर पीएँ और हाँ, यदि यात्रा-प्रवास पर हों तो घर का पानी पीएँ या फिर अच्छी ब्रांड का बोतल का पानी ले। जगह-जगह का पानी पीना जोखिम भरा हो सकता है। विदेश में हो तो केवल बाॅटल्ड-वाॅटर ही पीएँ, दाँत वगैरह भी इसी से साफ़ करें। इसका मतलब यह कतई नहीं कि हम बाॅटल्ड-वाॅटर के हिमायती हैं। घर का उबाला जल श्रेष्ठ है जिसके हम आदी होते हैं पर हमें अपनी सेहत भी देखनी है।

पाठक मित्रों, बाॅटल्ड वाॅटर को प्रोत्साहित करना इसलिये भी अनुचित है कि रिवर्स आॅस्मासिस के जरिए पानी का जब एक्स्ट्रा साॅल्ट हटाया जाता है तो इसमें 60 प्रतिशत पानी बर्बाद हो जाता है। इसके बावजूद 100 साल पुरानी इस टेक्नोलाॅजी का कोई विकल्प इसलिये भी नहीं है चूँकि दुनिया का भूजल स्तर लगातार गिर रहा है और लवण की मात्रा (TDS) इसमें लगातार बढ़ रही हैं।

देश-दुनिया के मौजूदा हालात देखें तो लगेगा कि वस्तुतः रिवर्स आॅक्सॉसिज (RO) वरदान सिद्ध हुई है। इसकी अहमियत का अनुमान बहुत पहले लग गया था जब सन 1901 में वांट-हाॅफ़ को आॅस्मासिज़ के गणितीय विश्लेषण के लिये रासायनिकी का पहला नोबल दिया गया था। सच है कि आज देश के कई भागों में भूजल में सामान्य साॅल्ट के साथ-साथ इतना आर्सेनिक, फ्लोराइड, कीटनाशक आदि मौजूद है कि इसे पीना सम्भव नहीं। ऐसे में आॅयन एक्सचेंज अथवा आरओ टेक्नोलाॅजी के अलावा क्या समाधान है। आरओ की दक्षता का समाधान भी है कि 60 प्रतिशत बर्बाद होने वाले पानी को वापस भूगर्भ में भेजें। पेयजल में लवण अधिक होगा तो हमारा सोडियम-पोटेशियम सन्तुलन बिगड़ जाएगा और हम बेहोेश हो जाएँगे। यही समुद्र में फँसे कई उन यात्रियों के संग घटा जिनका पेयजल खत्म हो गया था।

पाठक मित्रों, हवा के अन्दर नमी के रूप में पानी रहता है जिसमें लवण आदि नहीं होते। अमेरिका में कुछ उद्योगपतियों ने ऐसे वैज्ञानिक प्रयोग करवाएँ हैं जिससे हवा से यह पेय पानी लगातार प्राप्त किया जा सके परन्तु हवा में इस जल की मात्रा बहुत ही कम है अतः ये प्रयोग आर्थिक कामयाबी न पा सके। क्या विडम्बना है कि हमारी पृथ्वी 1337 मिलियन क्यूबिक किलोमीटर जल से भरी पड़ी है जिसमें से पेयजल की उपलब्धता 1 प्रतिशत से भी कम है। इस पर तर्क यह है कि इसका भी 90 प्रतिशत हिस्सा हमें कृषि और उद्योग में खर्च करना पड़ता है। ऐसे में पेयजल को लेकर भावी युद्धों की कल्पना भला सच्चा रूप क्यों नहीं ले सकती?

पाठक मित्रों, प्यास से जुड़ी हमारी बातें अभी खत्म नहीं हुई। हमें बाजार में बिक रही कोल्ड-ड्रिंक्स और प्यास के अजीबोगरीब रिश्ते को भी एक्सपोज़ करना है। इनमें कुछ ड्रिंक्स पूरी तरह प्यास बुझाने का दावा करती है तो अन्य आकाश व अन्तरिक्ष को जीत लेने का। आप अगर इन्हें पूछें कि प्यास क्या है और इसके बुझ जाने के साक्ष्य संकेत क्या हैं तो ये बगलें झाँकने लगेंगे। सच तो यह है कि ये प्यास भड़काती हैं। कैसे?

बढ़ती आबादी के ारण गहराती जल आपूर्ति समस्याहमारे भोजन का दहन साँस की आॅक्सीजन द्वारा शरीर की कोशिकाओं में होता है जिसके फलस्वरूप कार्बन डाइआॅक्साइड गैस बनती है। इसका कुछ हिस्सा (4 प्रतिशथ) बाहर फेंकी साँस में चला जाता है परन्तु हवा से भारी होने के कारण बाकी गैस कोशिकाओं में बनी रहती है और सामान्य शारीरिक गतिविधियों में रुकावट डालती है। इसे कुछ हद तक अनुलोम-विलोम व कपालभाँति द्वारा फ्लश-आउट किया जा सकता है। अब कोल्ड-ड्रिंक्स पीकर हम ढेर सी कार्बन डाइआॅक्साइड ही तो पीते हैं। ये ड्रिंक्स जब बनती हैं तो पानी में ढेर सी चीनी व आर्थोफ़ाॅस्फोरिक एसिड जैसे नुकसानदायक यौगिक डाल इस विलयन को 2 डिग्री सेंटीग्रेड पर ठंडा कर इसमें CO2 गैस सन्तृप्त की जाती है। यही कार्बन डाइआॅक्साइड हमारी कोशिकाओं को जरूरत का पानी प्राप्त करने में अड़चन पैदा करती है। मेटाबोलिज्म़ गड़बड़ाने से मोटापा भी बढ़ता है।

वैज्ञानिक सच यही है कि 100 प्रतिशत जल ही हमारी प्यास को पूरा शान्त कर सकता है, उसमें मौजूद अन्य रसायन (सॉल्यूट्स) दरअसल पानी को सोल्यूशन में बदल डालते हैं। ये साॅल्यूट्स रासायनिक - भौतिक बन्धनों के जरिए जल-अणुओं की आजादी खत्म कर देते हैं।

आइए, इसे ठीक से समझें। आयन एक्सचेंजर्स व कई अन्य अधिशोषकों के ‘वाॅटर सोप्ट्रान आइसोथॉर्मस’ सम्बन्धी अध्ययन बताते हैं कि पानी में 2-3 प्रतिशत भी सॉल्यूट हो तो इन अधिशोषका द्वारा सोखे जल की मात्रा दरअसल आधी रह जाती है। जी हाँ, 100 प्रतिशत जल के मुकाबले इन सोल्यूशन से हमारी कोशिकाएँ केवल आधा जल ही प्राप्त कर पाएँगी। तो बताइए, आधे जल से प्यास शान्त होगी या फिर भड़केगी? कोल्ड-ड्रिंक्स के रसायन अलग से हमारे शरीर को प्रताड़ित करते हैं। हमारा सुझाव यह है कि घर का कोकम शर्बत, कोकोनट पानी वगैरह इन कोल्ड ड्रिंक्स के मुकाबले बेहतर उपाय हैं। CO2 का झंझट तो नहीं!

पाठक मित्रों, अपने देश में कभी हथेली में पानी लेकर संकल्प लिया जाता था। यह द्रव्य हमारे जीवन का हमेशा ही एक अनमोल द्रव्य रहा है। यहाँ हमने पीने के पानी की कुछेक विशिष्टताएँ गिनाई है, अन्य और कई भी हैं। जल के अनेक अन्य पहलुओं पर बातें करना बाकी है। रिएक्टर में यह शीतलक है, मंदक है। रंगहीन होते हुए भी यह ग्रीन, ब्लू तथा ग्रे-वाॅटर है। इसमे विद्युत, चुंबकत्व है, इसकी भाप से टर्बाइन चलती है। कृषि की यह बैक बोन है। वाॅटर वो साइकिल है जिसमें मनुष्य व्यवधान डाल अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहा है। जी हाँ, यह औषधि भी है। होम्योपैथी के अन्वेशक डाॅ. हॅनीमैन मानते थे कि इस चिकित्सा का आधार है जल की रचना में मैकेनिकल एनर्जी द्वारा जनित परिवर्तन। संक्षेप में कहें तो यहीं एकमात्र यौगिक है जोकि मनुष्य द्वारा उत्पादित अथवा 40 लाख यौगिकों में सबसे विलक्षण है, सबसे अहम है, सबसे जरूरी है। मगर आश्चर्य, अप्रैल-मई 2014 में 16वीं लोकसभा के चुनावों में यह किसी भी राजनीतिक दल के घोषणा-पत्र तक नहीं पहुँच पाया। परन्तु देर-सबेर यह शुद्ध जल इस सरकार को लोगों तक पहुँचाना ही होगा जिसका जिक्र मैथिलीशरण गुप्त जी ने किया है।

पीयूष सम, पीकर जिसे होता प्रसन्न शरीर है,
हाँ, रोगनाशक, बल विनाशक उस समय का नीर है।।


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