बूँदों का अद्भुत आतिथ्य

water
water


जल....बूँद साहिबा! साहब सलाम.....!! ये ठाकुरों की अदब है....!

विंध्य क्षेत्र में यात्रा के दौरान आपको ‘साहब सलाम’ के सम्बोधन सुनाई देंगे! एक खास स्टाइल में यहाँ के ठाकुर अपने दाहिने पैर को आगे कर घुटना झुकाते हुए, दोनों हाथों को जोड़कर- नीचे झुकते हुए आत्मीय अभिवादन करते हैं!

इस अदा पर भला कौन न मर मिटे....!! फिर बूँद साहिबा की बिसात, जो इनकी धरती पर रीझे नहीं! जब बादल के रूप में होती हैं तो प्रायः अच्छे जंगल देखकर पिघल जाती हैं और जब इनकी धरती पर होती हैं, तब अपने यहाँ रुक जाने के ‘सलाम’ को टाल नहीं पाती हैं! ....आज हम आपको एक ऐसे क्षेत्र में ले चल रहे हैं, जहाँ बूँदों का अद्भुत और आत्मीय आतिथ्य किया गया है! लगभग 4 से 5 किलोमीटर लम्बे क्षेत्र में जगह-जगह उनसे ठहरने की प्रार्थना की गई है। ...और जनाब ये कहानी आजकल की नहीं, बल्कि दो सौ साल पुरानी है। ...लेकिन, है आज भी रोमांचक, ज्ञानवर्धक, प्रेरणास्पद और कहिये तो किसी हद तक चौंकाने वाली भी! ... तब न कोई इंजीनियरिंग काॅलेज था, न सरकारी नारों वाले वाटरशेड अभियान और न ही जल पर्यावरण के सेमिनार! .... लेकिन, हमारे पुरखों ने जल प्रबंधन का कमाल दिखा दिया!

मध्यप्रदेश के विंध्य क्षेत्र में तत्कालीन रीवा रियासत के तहत अनेक क्षेत्रों में जल प्रबंधन की बेहतर व्यवस्था रही है, जो वर्तमान में भी न केवल जिन्दा है, बल्कि एक माॅडल के रूप में भी स्वीकार की जाती है। जल संचय अभियान पहाड़ी क्षेत्रों में रिज टू वैली (पहाड़ी से नाले की ओर) की अवधारणा का साथ काम करता है। यह आवधारणा पानी-संचय अभियान का मूलमंत्र है। इन दिनों अनेक क्षेत्रों में इसी के तहत जगह-जगह पानी को रोका जाता है, लेकिन सतना जिले के रामनगर रोड के पास बसे गोरसरी गाँव में लगभग दो-ढाई सौ साल पहले से जल संचय की इस अनूठी प्रणाली पर काम किया जाता रहा है। इसके अवशेष आज भी बेहतर स्थिति में मौजूद हैं और अधिकांश स्थानों पर तो अपना कमाल आज भी दिखा रहे हैं। पानी संचय के क्षेत्र में गोरसरी की यह रियासतकालीन व्यवस्था पूरे देश की उन चुनिंदा प्रणालियों में शामिल की जा सकती है, जिनके हवाले के साथ हम यह कहते रहे हैं कि हमारा पारम्परिक जल संचय का ज्ञान आज के मुकाबले काफी आगे रहा है। सतना से रामनगर की ओर जाने वाले मार्ग पर एक पहाड़ी आती है। ये कैमूर पर्वत श्रेणी है। किंवदंती है कि बरसों पहले यहाँ पातंजलि ऋषि की तपोस्थली रही है। इसी पहाड़ी के नीचे गोरसरी गाँव बसा है।

पहाड़ी से नागौरा नाला के दूसरी ओर अन्य नाले नीचे बहते हुए हिनौता नदी में जाकर मिलते हैं। इसी दरमियान करीब 4-5 कि.मी. दूरी के बीच बूँदों की मनुहार की गई है। यहाँ आपको 10 बड़े बाँध, 25 मझोले बाँध और लगभग तीन हजार से ज्यादा बंधिया जगह-जगह मनुहार करती हुई मिलेंगी। इन बाँधों के बीच खड़े होकर यदि हम आस-पास नजर दौड़ाएँ तो चप्पा-चप्पा पर्यावरण प्रेमी, रियासतकालीन सत्ता पुरुषों को आबाद करते नजर आएगा, जिनकी कहानियाँ आज भी जिन्दा हैं। गोरसरी के तत्कालीन इलाकेदार लाल तोषण प्रतापसिंह व उनके साथियों ने मिलकर इस जल संचय अभियान को अमली जामा बरसों पहले पहनाया था। पहाड़ी से नाले की ओर के कुछ प्रमुख बाँधों के नाम हैं- पतोल, विधाता, ढीढ, बेसनवाला, धारा, खेरमाई, सिमरिया, बेहरहा ठिरिया बाँध आदि।

गाँव के तत्कालीन इलाकेदार बघेल ठाकुरों के वंशज कृष्णप्रताप सिंह (किस्सु), सुनील बघेल, राजेश कुमार सिंह, सदाशिव द्विवेदी व अन्य जल संचय की प्राचीन परम्परा को आज भी बड़े चाव से दिखाते हैं।

गोरसरी में बाँधों के अलावा पुराने समय में बनी छोटी-छोटी केनाल्स भी मौजूद हैं। अभी इनका ज्यादा उपयोग नहीं हो पा रहा है। गोरसरी में जल संचय प्रणाली को छोटी और रोचक संरचनाएँ परम्परागत टांके जैसी हैं। स्थानीय भाषा में इसे ‘काणी’ नाम दिया गया है। सुनील बघेल, कृष्णप्रताप सिंह और राजेश कुमार सिंह कहते हैं, “हमारे पूर्वजों द्वारा पानी के बहाव को तमाम प्रतिकूलताओं के बावजूद परिवर्तित कर जल प्रबंधन की बेहतर और सुनियोजित व्यवस्था की गई है। इसमें लगभग एक फीट का होल बना रहता है। यहाँ खास स्टाइल से पत्थरों का उपयोग कर पानी को जरूरत वाली दिशा में डाइवर्ट कर दिया जाता है। इससे आवश्यकतानुसार खेत लाभान्वित होते रहते हैं।” तत्कालीन समय में यह जल प्रबंधन उस सामाजिक व्यवस्था पर आधारित था, जिसमें कब, कौन क्या बो रहा है और किसको- किस समय कितने पानी की जरूरत है? उसके अनुसार पानी का समान वितरण किया जाता रहा, तब गाँव के बुजुर्ग एक साथ बैठकर यह तय कर लिया करते थे। इस समाजवादी व्यवस्था के चिन्तन से पानी के महत्व को आज भी वे लोग बखूबी समझा करते थे। ‘काणी’ एक बहुउपयोगी जल संरचना है। जब बाँध लबालब भर जाया करते थे तो उसका दबाव कम करने के लिए इसकी भूमिका एक सेफ्टीवाॅल्व की तरह भी यहाँ के पूर्वजों ने सुनिश्चित कर रखी थी। इस निकले हुए पानी को आगे के बाँधों में रोक लिया जाता था।

पहाड़ी से ठीक नीचे बना है विधाता बाँध। यह रीज के पास होने के कारण पानी के वार को सहन करते हुए उसे रोककर रखता रहा है। गाँव-समाज के लोग कहते हैं, “पानी की बूँदें किसी भी क्षेत्र की जीवन-रेखा कही जा सकती हैं। इस बाँध में पर्याप्त पानी रोकने की वजह से रहवासियों की समृद्धि के द्वार खुलते रहे होंगे, पर्याप्त अन्न मिलता रहा होगा, सम्भवतः इसीलिए रियासत काल से इसे भाग्य-विधाता कहा जाता है।”

इसके आगे के बाँधों को बैस बाँध कहा जाता है। यह नामकरण ठाकुरों की बैस उपजाति के आधार पर किया गया है। इसी के साथ बना है खेरमाई बाँध। ‘काणी’ के माध्यम से इस बाँध में भी पानी की मात्रा को नियन्त्रित किया जाता रहा है। यहीं पर पूर्वजों ने कुँआ भी बनवया था। दोनों से लगभग 60 एकड़ जमीन की सिंचाई होती रही है। गर्मी में भी इन सभी संरचनाओं की वजह से ये कुँआ जिन्दा रहता है। यहाँ पहाड़ी क्षेत्र के अलावा गाँव की ओर से जो पानी बहकर आता है, उसको भी एक तालाब बनाकर रोका गया है। जहाँ 15-15 एकड़ साइज के बाँधों के समानान्तर छोटे-छोटे बाँधों की भी शृंखला बनाई गई है। इन सबको पार कर जाने वाले पानी को अन्त में नदी में मिलने से पूर्व पुनः एक बार स्टाॅपडैम बनाकर रोका गया है। जल संचय की ‘रीज टू वैली’ अवधारणा का यहाँ चप्पे-चप्पे पर रियासत काल से ही बेहतर उपयोग किया गया है। ‘गांव का पानी गांव में और खेत का पानी खेत में’, जैसे नारे यहाँ केवल शो-बाजी का पर्याय नहीं रहे, बल्कि क्षेत्र की एक बहुत बड़ी सच्चाई बने हुए हैं।

बाँध शृंखला क अन्त में हमें दर्शन होते हैं ठिर्रिया बाँध के। यह भी जल संचय की एक अद्भुत संरचना है। इसमें कुल 3 इलाकों से पानी आता है। साइज इसकी भले ही छोटी हो, लेकिन पानी का दबाव सबसे ज्यादा रहता आया है। कृष्णप्रताप सिंह और सुनील बघेल कहते हैं, ‘गाँव में यह मान्यता है कि पानी की जीभ 18 हाथ की होती है।’ इसका आशय यह है कि इतना स्थान मिलने पर काफी हद तक पानी सुगमता के साथ निकल जाता है। 18 हाथ यानि 27 फीट। इसमें तो एक छोटी नदी क्राॅस हो सकती है। इस बाँध की दीवार को काफी तकनीकी महत्ता के साथ बनाया गया है। अपस्ट्रीम में 45 डिग्री का स्लोप दे रखा है। डाउन स्ट्रीम में स्टेप्स बनी हुई हैं। इससे पानी की गति कम होकर ही निकलती है, ताकि मिट्टी का अनावश्यक कटाव न हो। एक फीट का गेज देकर एक बड़ा पत्थर भी संरचना के ऊपर रखा गया है। इसको ब्लाॅक करने में बहुत सारा पानी रोका भी जा सकता है। बीच में सपोर्टिंग स्ट्रक्चर के रूप में पत्थर की बीम भी रखी गई है।

सदाशिव द्विवेदी कहते हैं, “यह संरचना 80 साल पुरानी है। लाल अवधेशप्रताप सिंह के निर्देश पर इसे अकाल के समय बनाया गया था। इसे गोंद, बेलपत्र, गुड़, कत्था, व अन्य मसाले का उपयोग करते हुए बनया गया है। यह इस मजबूती का परिचायक है कि चारों ओर से पहाड़ी दिखती है। इससे बाँध में आने वाले पानी के फोर्स का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है, लेकिन यह बाँध आज भी मजबूती से खड़ा है। तत्कालीन समय का मसाला अभी तक नहीं निकला है।” इस जल संचय शृंखला की कुछ और भी विशेषताएँ हैं। डेढ़ सौ साल पहले एक खास तरह की एक-एक फीट की छोटी दीवारें भी अनेक स्थानों पर बनाई गई हैं, जो अनचाहे पानी को खेतों में आने से रोकें। इसके अलावा यहाँ खेतों का नेटवर्किंग भी किया गया है। पाइपों के माध्यम से इन्हें एक-दूसरे से जोड़ा गया है। ‘काणी’ के अलावा पानी की जरूरत पड़ने पर दूसरे बाँध या खेतों में पहुँचाने की यह एक समानान्तर प्रणाली है। उरई घास की भरपूर पैदावार के साथ इन्हें बाँधों की मेढ़ पर लगाया जाता है। इससे दीवार मजबूत रहती है।

....गोरसरी में आप खैरियत जानना चाहेंगे बूँद साहिबा की...! वे कहेंगी: ‘ऐसी मेहमान नवाजी तो हमने कम ही देखी है....!’ ....पहाड़ी से नीचे आई तो एक बाँध से दूसरे बाँध! ....कभी एक बंधिया से दूसरी बंधिया! एक खेत से दूसरे खेत! नजरें दौड़ाएँ तो घास के तिनके भी ‘सलाम’ करते नजर आएँगे। इलाका छोड़कर जाएँ तो कैसे! हमारी कई सखियाँ तो हर साल इसी धरती की होकर रह जाती हैं....!!

.....पहाड़ी से नाले की ओर रियासतकालीन परम्परागत जल प्रबंधन की एक उम्दा प्रयोगशाला का नाम है- गोरसरी...!!

 

 

मध्य  प्रदेश में जल संरक्षण की परम्परा

(इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिये कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें।)

1

जहाज महल सार्थक

2

बूँदों का भूमिगत ‘ताजमहल’

3

पानी की जिंदा किंवदंती

4

महल में नदी

5

पाट का परचम

6

चौपड़ों की छावनी

7

माता टेकरी का प्रसाद

8

मोरी वाले तालाब

9

कुण्डियों का गढ़

10

पानी के छिपे खजाने

11

पानी के बड़ले

12

9 नदियाँ, 99 नाले और पाल 56

13

किले के डोयले

14

रामभजलो और कृत्रिम नदी

15

बूँदों की बौद्ध परम्परा

16

डग-डग डबरी

17

नालों की मनुहार

18

बावड़ियों का शहर

18

जल सुरंगों की नगरी

20

पानी की हवेलियाँ

21

बाँध, बँधिया और चूड़ी

22

बूँदों का अद्भुत आतिथ्य

23

मोघा से झरता जीवन

24

छह हजार जल खजाने

25

बावन किले, बावन बावड़ियाँ

26

गट्टा, ओटा और ‘डॉक्टर साहब’

 

Path Alias

/articles/bauundaon-kaa-adabhauta-ataithaya

Post By: Hindi
×