पुण्डीर फसलों की सिंचाई के लिये बरसाती पानी तो उपयोग में लाते ही हैं, घर में उपयोग होने वाले पानी को भी एक अलग टैंक में संग्रहीत करते हैं। रही बरसाती पानी के संचय की बात तो इसका तरीका भी बेहद सरल है। घरों की छतों के किनारे टिन की नालियाँ बनाकर उन्हे टैंकों से जोड़ा गया है। बारिश होने पर सारा पानी इन नालियों से टैंको में चला जाता है, जिसे बाद में सिंचाई में उपयोग किया जाता है।
असिंचित जमीन में पानी की एक-एक बूँद का सदुपयोग कर किस तरह नकदी फसलें उगानी हैं, यह प्रगतिशील काश्तकार विजय सिंह पुण्डीर से सीखा जा सकता है। 58 वर्षीय पुण्डीर बरसाती पानी का संचय कर उसे फसलों की सिंचाई के लिये उपयोग में ला रहे हैं और हर साल लाखों की सब्जियाँ बेचकर अपनी आर्थिकी संवारने में जुटे हैं। एक सीजन में वह डेढ़ लाख रुपए तक की सब्जियाँ बेच देते हैं।
टिहरी जिले में चम्बा प्रखण्ड के सलकोटी गाँव निवासी विजय सिंह पुण्डीर अपनी वैज्ञानिक सोच के बूते असिंचित भूमि पर दर्जनों प्रकार की नकदी फसलें उगा रहे हैं। खास बात यह है कि फसलों की सिंचाई वह बरसात में एकत्र किये गये पानी से ही करते हैं। 12वीं तक पढ़े पुण्डीर ने तीन दशक पहले मुजफ्फरनगर (उत्तर प्रदेश) रतलाम (मध्य प्रदेश) में कुछ साल निजी कम्पनियों में नौकरी की। लेकिन, मन तो पहाड़ में रमा हुआ था, सो नौकरी छोड़कर घर लौट आये और खेती-किसानी में ही कुछ नया करने का निर्णय लिया।
पुण्डीर परम्परागत खेती से हटकर आधुनिक खेती में हाथ आजमाना चाहते थे लेकिन, जमीन असिंचित थी और सिंचाई का भी कोई साधन नहीं था। ऐसे में नकदी फसलें कैसे उगाएँ, यह किसी चुनौती से कम नहीं था। नकदी फसलें यानी सब्जियों के उत्पादन को अधिक पानी की आवश्यकता होती है। सो, सबसे पहले इसके लिये उन्होने घर के पास टैंक बनाये और उनमें बरसात का पानी संचय किया। साथ ही नकदी फसलें उगाने की जानकारी भी प्राप्त करते रहे। शुरुआत में दिक्कतें भी पेश आई, लेकिन धीरे-धीरे सीखकर और अनुभव से सब-कुछ सामान्य हो गया। आज पुण्डीर को नकदी फसलें उगाते हुये 20 साल से अधिक का अर्सा हो गया है और खेती के बदौलत खुशहाल जिन्दगी जी रहे हैं।
इस तरह करते हैं पानी का उपयोग
पुण्डीर फसलों की सिंचाई के लिये बरसाती पानी तो उपयोग में लाते ही हैं, घर में उपयोग होने वाले पानी को भी एक अलग टैंक में संग्रहीत करते हैं। रही बरसाती पानी के संचय की बात तो इसका तरीका भी बेहद सरल है। घरों की छतों के किनारे टिन की नालियाँ बनाकर उन्हे टैंकों से जोड़ा गया है। बारिश होने पर सारा पानी इन नालियों से टैंको में चला जाता है, जिसे बाद में सिंचाई में उपयोग किया जाता है।
उद्यान विभाग से मिला सहयोग
पुण्डीर को नकदी फसलें उगाने के लिये शुरुआती समय में उद्यान विभाग का सहयोग मिला। उन्होंने विभाग की ओर से आयोजित प्रशिक्षण शिविरों में नकदी फसलें उगाने की बारीकियाँ सीखी। साथ ही कम भूमि में अधिक उत्पादन लेने के लिये खुद भी नये-नये प्रयोग करते रहे। अब तो विभाग के लोग भी उनसे खेती के सुझाव लेते हैं। उन्हे प्रगतिशील काश्तकार का पुरस्कार भी मिल चुका है।
इस तरह उगाते हैं सब्जियाँ
पुण्डीर सबसे पहले सीजन के अनुसार सब्जियों की नर्सरी तैयार करते हैं और फिर पौध के बड़ी होने पर उसे खेतों में रोप देते हैं। निराई-गुड़ाई और खाद डालने के साथ ही जरूरत के हिसाब से पौधों की सिंचाई की जाती है। पुण्डीर दूसरे किसानों को भी पौध उपलब्ध कराते हैं। खास बात यह कि सब्जियों को उगाने में जैविक खाद का ही प्रयोग करते हैं।
सीख ले रहे गाँव के दूसरे लोग
सिलकोटी गाँव में करीब 150 परिवार रहते हैं। सभी की भूमि असिंचित है। साथ ही गाँव में पीने के पानी का भी संकट है। दूर के स्रोत से लोग जलापूर्ति करते हैं। लेकिन पुण्डीर से सीख लेकर गाँव के आधे से अधिक परिवार उनकी तरह ही नकदी फसलें उगा रहे हैं। इसके लिये उन्होंने भी टैंक बनाये हुये हैं।
इन नकदी फसलों को उगा रहे हैं पुण्डीर
पुण्डीर करीब 80 नाली भूमि पर नकदी फसलें उगा रहे हैं। इनमें आलू, मटर, बीन, शिमला मिर्च, कद्दू, राई, मूली, गोभी, टमाटर, चचिंडा, तोरी, बैंगन, खीरा आदि प्रमुख हैं।
घर में ही बिक जाता है माल
इन दिनों पुण्डीर के खेतों में कद्दू की फसल तैयार हो रही है। अब तक वे 30 हजार रुपए से अधिक के कद्दू बेच चुके हैं। सब्जियाँ बेचने में उन्हें किसी तरह की परेशानी नही होती। कुछ माल घर पर ही बिक जाता है और कुछ नजदीकी बाजार में।
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