यूं तो धान की खेती के लिए भरपूर पानी की जरूरत होती है। इसके लिए खेतों में लबालब पानी भरा रहना जरूरी होता है, जबकि इस लेख में दो ऐसे काश्तकारों की चर्चा की गई है जिन्होंने बूंद-बूंद सिंचाई सह्ति के जरिए धान की भरपूर पैदावार लेकर कृषि जगत में अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया है। कोटा शहर के समीपस्थ भदाना ग्राम के इन दोनों कृषक मित्रों ने पहली बार धान की फसल में ड्रिप सिस्टम का इस्तेमाल कर 10 से 20 प्रतिशत तक अधिक पैदावार ली है।‘बूंद-बूंद सिंचाई प्रणाली से हुई धान की भरपूर पैदावार।’ कहने और सुनने में यह बात आपको भले ही अटपटी और अविश्वसनीय लगे, लेकिन है सोलह आना सही। कोटा जिले के दो प्रयोगधर्मी एवं प्रगतिशील युवा कृषकों शांतनु तापड़िया और राजेश विजय ने अपने धान के खेतों में बूंद-बूंद सिंचाई (ड्रिप इरीगेशन तकनीक का इस्तेमाल कर भरपूर फसल लेने में कामयाबी हासिल की है।
प्रयोगधर्मी कृषक शांतनु तापड़िया ने बताया कि सर्वप्रथम गतवर्ष उन्होंने 28 बीघा धान के खेत में ड्रिप सिस्टम लगवाया, जिस पर प्रति बीघा चार हजार रुपए का खर्चा हुआ। धान की पूसा- 1121 तथा सुगंधा किस्मों को काम में लिया। धान उपजाने के लिए जरूरी फ्लड इरीगेशन के स्थान पर ड्रिप सिस्टम से सिंचाई की।
धान की परंपरागत खेती में खेत में पांच-छः इंच तक पानी का भराव जरूरी होता है, जबकि ड्रिप सिस्टम लगाने के बाद एक इंच पानी से ही धान की भरपूर उपज ले ली। ड्रिप सिस्टम के जरिए एक इंच पानी कुछ ही घंटों में दिया जा सकता है।
श्री तापड़िया ने बताया कि ड्रिप सिस्टम में दोनों किस्मों की उपज फ्लड इरीगेशन सिस्टम की तुलना में अधिक रही। पूसा- 1121 किस्म के धान की औसत उपज साढ़े सात क्विंटल प्रति बीघा रही, जबकि फ्लड इरीगेशन से औसत उपज 5 क्विंटल तक ही रहती हैं। इसी प्रकार सुगंधा किस्म के धान की उपज 1 क्विंटल प्रति बिघा रही, जबकि फ्लड इरीगेशन से 9 क्विंटल तक पैदावार बैठती है। ड्रिप सिंचाई के लिए एक बोरिंग से अच्छी तरह काम चल गया।
समस्या बनी प्रेरणा का स्रोत- धान के खेत में ड्रिप सिस्टम लगाने की सलाह एवं प्रेरणा किसने दी? इस प्रश्न के उत्तर में श्री तापड़िया ने एक छोटा-सा वाकया सुनाया। उन्होंने बताया कि एक दिन वह उनके एक मित्र (ड्रिप सिस्टम के डीलर) की दुकान पर बैठे थे, तभी एक काश्तकार वहां आया और डीलर मित्र को बताने लगा कि उसके लौकी के खेत में रात में ड्रिप से काफी पानी भर गया है, जिसे निकालने की समस्या आ खड़ी हुई है।
बस उस काश्तकार की समस्या ने ही उनके दिमाग में यह विचार ला दिया कि यदि ड्रिप सिस्टम से खेत में पानी भर सकता है तो क्यों न इसी सिस्टम का उपयोग धान की खेती में भी कर लिया जाए, जिसमें भी जलभराव की जरूरत होती है। बस अपने उसी विचार को गत वर्ष उन्होंने अपने 28 बीघा धान के खेत में क्रियान्वित कर डाला, जिसके अच्छे परिणाम भी प्राप्त हुए।
कैमिकल इंजीनियर तापड़िया ने बताया कि गत वर्ष धान की फसल लेने के बाद उसी खेत में प्याज लगाया तो प्याज की उपज भी 60 क्विंटल प्रति बीघा बैठी, जबकि आमतौर पर धान के बाद यह उपज प्रति बीघा 35 क्विंटल तथा सोयाबीन के बाद 40 से 50 क्विंटल ही बैठती है। अर्थात बूंद-बूंद सिंचाई पद्धति को अपनाने में धान की उपज के बाद उसी खेत में बोई गई प्याज की पैदावार भी औसत उपज से अधिक रही और पानी व बिजली की लगभग 40 से 60 प्रतिशत बचत हुई सो अलग। श्री तापड़िया धान के खेत में इस वर्ष भिण्डी की पैदावार ले रहे हैं।
शांतनु के ही मित्र राजेश विजय ने भी इस वर्ष करीब 38 बीघा धान के खेत में ड्रिप सिस्टम लगाया। राजेश ने अपने खेत में पूसा- 1121 तथा सुगंधा- 2 किस्म के धान की रोपाई की।
सर्वप्रथम उन्होंने खेत में खुला पानी देकर पडलिंग की। तत्पश्चात खेत पर ड्रिप के लैटरल बिछाने के बाद धान की पौधा रोपकर तुरंत ही ड्रिप से सिंचाई आरंभ कर दी। तीस दिन बाद जब फसल बाली निकलने की अवस्था में आई, उस समय नियमित सिंचाई का विशेष ध्यान रखा गया। कृषि स्नातक राजेश विजय ने बताया कि वह प्रति सप्ताह के अंतराल में बूंद-बूंद पद्धति से सिंचाई करते रहे। प्रत्येक सिंचाई में लगभग सात घंटे तक ड्रिप चलाई गई। बालियों में दाने पड़ने के बाद सिंचाई का अंतराल दो सप्ताह का कर दिया गया और यह स्थिति 90 दिन तक रही।
अंतिम सिंचाई के बाद फसल पकने की अवस्था में आ गई, जिसे अब और सिंचाई की जरूरत नहीं रही। फायदेमंद रही बूंद-बूंद सिंचाई पद्धति- कृषक राजेश ने बताया कि ड्रिप सिस्टम से न केवल सिंचाई की, बल्कि फर्टिलाइजर एवं कीटनाशक दवा को भी घुलनशील अवस्था में पूरे खेत में पहुंचाया गया। उन्होंने बताया कि खेत में खुले रूप में पानी देने से अधिकांश पानी व्यर्थ ही चला जाता है, जबकि बूंद-बूंद पद्धति से समूचा पानी जमीन में ही समा जाता है। खुले पानी से सिंचाई करने पर फसल को दुबारा पानी की आवश्यकता पड़ती है, जबकि ड्रिप सिस्टम से पानी की आवश्यकता देर से महसूस हुई।
श्री राजेश ने बताया कि इस पद्धति को अपनाने से उन्हें एक लाभ और हुआ कि धान में फ्लड इरीगेशन से होने वाला शीथ ब्लाइट एवं ब्लास्ट रोग ड्रिप सिस्टम को काम में लेने से हुआ ही नहीं। धान में ड्रिप सिस्टम अपनाने से पैदावार भी 15 से 20 प्रतिशत अधिक हुई। उन्होंने बताया कि बूंद-बूंद सिंचाई पद्धति के कारण पानी व बिजली की भी पचास प्रतिशत से अधिक की बचत हुई और मानवश्रम भी कम करवाना पड़ा। सामान्य पद्धति से धान की फसल लेने पर 12 बीघा में सिंचाई कार्य के लिए एक श्रमिक की आवश्यकता होती है, जबकि ड्रिप सिस्टम में 35 बीघा में मात्र एक श्रमिक ने ही सिंचाई कार्य संपन्न कर दिया। इस प्रकार तीन गुना श्रमिकों की भी बचत हुई।
श्री राजेश ने बताया कि सिंचाई के लिए उनके खेत में मात्र एक ही बोरिंग है, जिसके जरिए उन्होंने 35 बीघा में ड्रिप सिस्टम से सिंचाई कर ली। यदि वह फ्लड इरीगेशन सिस्टम से सिंचाई करते तो निश्चित रूप से एक बोरिंग से काम नहीं चल पाता। उन्होंने बताया कि ड्रिप सिस्टम से सिंचाई करने पर कृषकों को खरपतवार नियंत्रण का विशेष ध्यान रखना पड़ेगा, क्योंकि फ्लड इरीगेशन वाले खेतों में तो पानी भरा रहने के कारण खरपतवार होती ही नहीं, जबकि ड्रिप सिस्टम में खेत खाली रहने के कारण खरपतवार अधिक मात्रा में उग आती है, जिसे तुरंत हटाना जरूरी होता है।
भौचक्के रह गए कृषि विभाग के अधिकारी-दोनों कृषकों ने बताया कि एकबारगी तो ड्रिप सिस्टम से धान की खेती की बात कृषि विभाग के अधिकारियों के गले ही नहीं उतरी। वे लोग बीच-बीच में चार-पांच बार उनके खेतों पर आते रहे और फसल का जायजा लेते रहे। अंत में उन्होंने जब दोनों कृषकों के खेतों पर धान की फसल को परिपक्व अवस्था में देखा तो भौंचक्के रह गए। उन्होंने बताया कि कई किसान भाई भी उनके पेड़ी के खेत देखने आते थे और यह प्रतिक्रिया व्यक्त करके चले जाते थे कि- ‘‘भला ऐसे भी कोई पेडी की खेती हो सकती है क्या?’’ राष्ट्रीय बागवानी मिशन में ड्रिप सिस्टम लगाने पर कृषकों को उद्यानिकी फसलों तथा बगीचों के लिए 70 प्रतिशत और गैर उद्यानिकी फसलों के लिए 60 प्रतिशत अनुदान देय है। अतः इन दोनों कृषकों को भी लागत राशि का 70 प्रतिशत अनुदान लाभ दिया गया।
कोटा जिला कलेक्टर टी. रविकांत ने हाल ही में भदाना ग्राम में स्थित राजेश विजय के धान के खेत में जाकर उनके द्वारा अपनाए गए इस अनूठे नवाचार का वलोकन किया और उनके इस प्रयोग की सराहना की। उन्होंने कहा कि यदि सभी किसान इसी तरह प्रयोगधर्मिता अपनाएं और विजय एवं तापड़िया द्वारा अपनाई गई पद्धति को काम में लें तो निश्चित रूप से सिंचाई योग्य बहुमूल्य जल की बचत संभव है।
जिला कलेक्टर ने उद्यानिकी एवं कृषि विभाग के अधिकारियों को निर्देश दिए कि अधिकाधिक किसानों को बूंद-बूंद सिंचाई पद्धति का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करें। वाकई अपर्याप्त वर्षा की स्थिति में भी ड्रिप सिस्टम के जरिए पानी का कुशलतम उपयोग करते हुए धान की खेती करने का यह अनूठा नवाचार कृषि जगत के लिए वरदान सिद्ध होगा।
(लेखक सूचना एवं जन संपर्क अधिकारी हैं।)
ई-मेल : cprbun@hotmail.com
प्रयोगधर्मी कृषक शांतनु तापड़िया ने बताया कि सर्वप्रथम गतवर्ष उन्होंने 28 बीघा धान के खेत में ड्रिप सिस्टम लगवाया, जिस पर प्रति बीघा चार हजार रुपए का खर्चा हुआ। धान की पूसा- 1121 तथा सुगंधा किस्मों को काम में लिया। धान उपजाने के लिए जरूरी फ्लड इरीगेशन के स्थान पर ड्रिप सिस्टम से सिंचाई की।
धान की परंपरागत खेती में खेत में पांच-छः इंच तक पानी का भराव जरूरी होता है, जबकि ड्रिप सिस्टम लगाने के बाद एक इंच पानी से ही धान की भरपूर उपज ले ली। ड्रिप सिस्टम के जरिए एक इंच पानी कुछ ही घंटों में दिया जा सकता है।
श्री तापड़िया ने बताया कि ड्रिप सिस्टम में दोनों किस्मों की उपज फ्लड इरीगेशन सिस्टम की तुलना में अधिक रही। पूसा- 1121 किस्म के धान की औसत उपज साढ़े सात क्विंटल प्रति बीघा रही, जबकि फ्लड इरीगेशन से औसत उपज 5 क्विंटल तक ही रहती हैं। इसी प्रकार सुगंधा किस्म के धान की उपज 1 क्विंटल प्रति बिघा रही, जबकि फ्लड इरीगेशन से 9 क्विंटल तक पैदावार बैठती है। ड्रिप सिंचाई के लिए एक बोरिंग से अच्छी तरह काम चल गया।
समस्या बनी प्रेरणा का स्रोत- धान के खेत में ड्रिप सिस्टम लगाने की सलाह एवं प्रेरणा किसने दी? इस प्रश्न के उत्तर में श्री तापड़िया ने एक छोटा-सा वाकया सुनाया। उन्होंने बताया कि एक दिन वह उनके एक मित्र (ड्रिप सिस्टम के डीलर) की दुकान पर बैठे थे, तभी एक काश्तकार वहां आया और डीलर मित्र को बताने लगा कि उसके लौकी के खेत में रात में ड्रिप से काफी पानी भर गया है, जिसे निकालने की समस्या आ खड़ी हुई है।
बस उस काश्तकार की समस्या ने ही उनके दिमाग में यह विचार ला दिया कि यदि ड्रिप सिस्टम से खेत में पानी भर सकता है तो क्यों न इसी सिस्टम का उपयोग धान की खेती में भी कर लिया जाए, जिसमें भी जलभराव की जरूरत होती है। बस अपने उसी विचार को गत वर्ष उन्होंने अपने 28 बीघा धान के खेत में क्रियान्वित कर डाला, जिसके अच्छे परिणाम भी प्राप्त हुए।
कैमिकल इंजीनियर तापड़िया ने बताया कि गत वर्ष धान की फसल लेने के बाद उसी खेत में प्याज लगाया तो प्याज की उपज भी 60 क्विंटल प्रति बीघा बैठी, जबकि आमतौर पर धान के बाद यह उपज प्रति बीघा 35 क्विंटल तथा सोयाबीन के बाद 40 से 50 क्विंटल ही बैठती है। अर्थात बूंद-बूंद सिंचाई पद्धति को अपनाने में धान की उपज के बाद उसी खेत में बोई गई प्याज की पैदावार भी औसत उपज से अधिक रही और पानी व बिजली की लगभग 40 से 60 प्रतिशत बचत हुई सो अलग। श्री तापड़िया धान के खेत में इस वर्ष भिण्डी की पैदावार ले रहे हैं।
शांतनु के ही मित्र राजेश विजय ने भी इस वर्ष करीब 38 बीघा धान के खेत में ड्रिप सिस्टम लगाया। राजेश ने अपने खेत में पूसा- 1121 तथा सुगंधा- 2 किस्म के धान की रोपाई की।
सर्वप्रथम उन्होंने खेत में खुला पानी देकर पडलिंग की। तत्पश्चात खेत पर ड्रिप के लैटरल बिछाने के बाद धान की पौधा रोपकर तुरंत ही ड्रिप से सिंचाई आरंभ कर दी। तीस दिन बाद जब फसल बाली निकलने की अवस्था में आई, उस समय नियमित सिंचाई का विशेष ध्यान रखा गया। कृषि स्नातक राजेश विजय ने बताया कि वह प्रति सप्ताह के अंतराल में बूंद-बूंद पद्धति से सिंचाई करते रहे। प्रत्येक सिंचाई में लगभग सात घंटे तक ड्रिप चलाई गई। बालियों में दाने पड़ने के बाद सिंचाई का अंतराल दो सप्ताह का कर दिया गया और यह स्थिति 90 दिन तक रही।
अंतिम सिंचाई के बाद फसल पकने की अवस्था में आ गई, जिसे अब और सिंचाई की जरूरत नहीं रही। फायदेमंद रही बूंद-बूंद सिंचाई पद्धति- कृषक राजेश ने बताया कि ड्रिप सिस्टम से न केवल सिंचाई की, बल्कि फर्टिलाइजर एवं कीटनाशक दवा को भी घुलनशील अवस्था में पूरे खेत में पहुंचाया गया। उन्होंने बताया कि खेत में खुले रूप में पानी देने से अधिकांश पानी व्यर्थ ही चला जाता है, जबकि बूंद-बूंद पद्धति से समूचा पानी जमीन में ही समा जाता है। खुले पानी से सिंचाई करने पर फसल को दुबारा पानी की आवश्यकता पड़ती है, जबकि ड्रिप सिस्टम से पानी की आवश्यकता देर से महसूस हुई।
श्री राजेश ने बताया कि इस पद्धति को अपनाने से उन्हें एक लाभ और हुआ कि धान में फ्लड इरीगेशन से होने वाला शीथ ब्लाइट एवं ब्लास्ट रोग ड्रिप सिस्टम को काम में लेने से हुआ ही नहीं। धान में ड्रिप सिस्टम अपनाने से पैदावार भी 15 से 20 प्रतिशत अधिक हुई। उन्होंने बताया कि बूंद-बूंद सिंचाई पद्धति के कारण पानी व बिजली की भी पचास प्रतिशत से अधिक की बचत हुई और मानवश्रम भी कम करवाना पड़ा। सामान्य पद्धति से धान की फसल लेने पर 12 बीघा में सिंचाई कार्य के लिए एक श्रमिक की आवश्यकता होती है, जबकि ड्रिप सिस्टम में 35 बीघा में मात्र एक श्रमिक ने ही सिंचाई कार्य संपन्न कर दिया। इस प्रकार तीन गुना श्रमिकों की भी बचत हुई।
श्री राजेश ने बताया कि सिंचाई के लिए उनके खेत में मात्र एक ही बोरिंग है, जिसके जरिए उन्होंने 35 बीघा में ड्रिप सिस्टम से सिंचाई कर ली। यदि वह फ्लड इरीगेशन सिस्टम से सिंचाई करते तो निश्चित रूप से एक बोरिंग से काम नहीं चल पाता। उन्होंने बताया कि ड्रिप सिस्टम से सिंचाई करने पर कृषकों को खरपतवार नियंत्रण का विशेष ध्यान रखना पड़ेगा, क्योंकि फ्लड इरीगेशन वाले खेतों में तो पानी भरा रहने के कारण खरपतवार होती ही नहीं, जबकि ड्रिप सिस्टम में खेत खाली रहने के कारण खरपतवार अधिक मात्रा में उग आती है, जिसे तुरंत हटाना जरूरी होता है।
भौचक्के रह गए कृषि विभाग के अधिकारी-दोनों कृषकों ने बताया कि एकबारगी तो ड्रिप सिस्टम से धान की खेती की बात कृषि विभाग के अधिकारियों के गले ही नहीं उतरी। वे लोग बीच-बीच में चार-पांच बार उनके खेतों पर आते रहे और फसल का जायजा लेते रहे। अंत में उन्होंने जब दोनों कृषकों के खेतों पर धान की फसल को परिपक्व अवस्था में देखा तो भौंचक्के रह गए। उन्होंने बताया कि कई किसान भाई भी उनके पेड़ी के खेत देखने आते थे और यह प्रतिक्रिया व्यक्त करके चले जाते थे कि- ‘‘भला ऐसे भी कोई पेडी की खेती हो सकती है क्या?’’ राष्ट्रीय बागवानी मिशन में ड्रिप सिस्टम लगाने पर कृषकों को उद्यानिकी फसलों तथा बगीचों के लिए 70 प्रतिशत और गैर उद्यानिकी फसलों के लिए 60 प्रतिशत अनुदान देय है। अतः इन दोनों कृषकों को भी लागत राशि का 70 प्रतिशत अनुदान लाभ दिया गया।
कोटा जिला कलेक्टर टी. रविकांत ने हाल ही में भदाना ग्राम में स्थित राजेश विजय के धान के खेत में जाकर उनके द्वारा अपनाए गए इस अनूठे नवाचार का वलोकन किया और उनके इस प्रयोग की सराहना की। उन्होंने कहा कि यदि सभी किसान इसी तरह प्रयोगधर्मिता अपनाएं और विजय एवं तापड़िया द्वारा अपनाई गई पद्धति को काम में लें तो निश्चित रूप से सिंचाई योग्य बहुमूल्य जल की बचत संभव है।
जिला कलेक्टर ने उद्यानिकी एवं कृषि विभाग के अधिकारियों को निर्देश दिए कि अधिकाधिक किसानों को बूंद-बूंद सिंचाई पद्धति का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करें। वाकई अपर्याप्त वर्षा की स्थिति में भी ड्रिप सिस्टम के जरिए पानी का कुशलतम उपयोग करते हुए धान की खेती करने का यह अनूठा नवाचार कृषि जगत के लिए वरदान सिद्ध होगा।
(लेखक सूचना एवं जन संपर्क अधिकारी हैं।)
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Post By: Shivendra