बूँद-बूँद सिंचाई प्रणाली कृषि क्षेत्र में नई क्रान्ति लेकर आई है। इससे पानी की खपत कम होती है, बिजली का खर्चा कम होता है और मानव श्रम भी कम लगता है। मिट्टी की उर्वरता भी प्रभावित नहीं होने पाती है।
सिंचाई संसाधनों के विकास को ध्यान में रखकर ही प्रति बूँद अधिक फसल की अवधारणा लागू की जा रही है। यानी हम सिंचाई मद में अधिक पानी भी नहीं खर्च करेंगे और सिंचाई के लिए उपयुक्त होने वाली हर बूँद का फसल के लिए फायदा लेंगे। इससे न सिर्फ सिंचाई मद में होने वाला खर्च कम होगा बल्कि कम लागत में अधिक उपज लेने का सपना भी साकार होगा। बल्कि कम लागत में अधिक उपज लेने का सपना भी साकार होगा। केन्द्र सरकार की ओर से शुरू की गई प्रधानमंत्री ग्राम सिंचाई योजना का लक्ष्य हर किसान का खेत सींचने के साथ ‘प्रति बूँद अधिक फसल’ पैदा करने की व्यवस्था करना है।
बूँद-बूँद सिंचाई प्रणाली से आत्मनिर्भर बनते किसान
बढ़ती आबादी और औद्योगिकीकरण की वजह से कृषि योग्य जमीन का रकबा तेजी से घट रहा है। ऐसी स्थिति में असिंचित जमीन को सिंचित बनाकर उत्पादन बढ़ाने के साथ ही खेती का रकबा भी बचाया जा सकता है। जब खेत को सिंचाई के लिए भरपूर पानी मिलेगा तो फसल उत्पादन अपने आप बढ़ेगा। इसी सूत्र को ध्यान में रखकर सरकार वन ड्राप मोर क्राप यानी प्रति बूँद अधिक फसल पर जोर दे रही है। केन्द्र सरकार की ओर से 2014-15 में शुरू की गई यह योजना अब परवान चढ़ने लगी है। इस सूत्र के तहत सिंचाई मद का बजट भी बढ़ाया गया है। जिस तरह से सिंचाई परियोजनाओं को मजबूत किया जा रहा है, उसका असर भी दिखने लगा है। सरकार 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लिए प्रतिबद्ध है। इस बार के बजट में तमाम ऐसे प्रावधान किए गए हैं। इसमें बूँद-बूँद सिंचाई प्रणाली का खासतौर से ध्यान रखा गया है। इससे पानी की खपत कम होती है, बिजली का खर्चा कम होता है और मानव श्रम भी कम लगता है। मिट्टी की उर्वरता भी प्रभावित नहीं होने पाती है। इस तरह से बूँद-बूँद सिंचाई प्रणाली कृषि क्षेत्र में नई क्रान्ति लेकर आई है। इसके पीछे तर्क है कि देश में एक बड़ी आबादी ग्रामीण इलाकों में रहती है। इसमें ज्यादातर किसान हैं। किसानों की तरक्की से देश में खुशहाली आएगी। इस खुशहाली को कायम रखने के लिए मैदानी और पर्वतीय क्षेत्र में समान व्यवस्थाएँ लागू करनी होंगी। मैदान के साथ ही पर्वतीय क्षेत्र में उत्पादन बढ़ाने का लक्ष्य रखना होगा। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए बूँद-बूँद सिंचाई प्रणाली की भूमिका अहम है। पठारी इलाके में सिंचाई नहीं की जा सकती है, लेकिन बूँद-बूँद सिंचाई प्रणाली शुरू होने से यहाँ की फसलों को भी पानी मिल पा रहा है। इसी को ध्यान में रखकर केन्द्र सरकार ने बजट 2019-20 में कृषि एवं किसान कल्याण के विषयों को अभूतपूर्व प्राथमिकता दी है।
प्रधानमंत्री ने किसानों को आत्मनिर्भर और खुशहाल बनाने के सपने को साकार करते हुए सात-सूत्रीय कार्यनीति तैयार की है। इसमें ‘प्रति बूँद अधिक फसल’ के सिद्धान्त को प्रथम स्थान पर रखा गया है। इस दिशा में पर्याप्त संसाधनों के साथ सिंचाई पर विशेष बल दिया गया है। इसी तरह प्रत्येक खेत की मिट्टी की गुणवत्ता के अनुसार गुणवत्ता वाले बीज एवं पोषक तत्वों का भी प्रावधान किया गया है।
कृषि सुधारों में सिंचाई सहित अन्य कारकों का विस्तारीकरण करके सरकार ने किसानों की माली हालत के साथ ही देश की आर्थिक स्थिति में भी सुधार करने की पहल की है। बागवानी फसल के प्रति किसानों को आकर्षित करने के लिए सरकार ने बूँद-बूँद सिंचाई प्रणाली में बागवानी को वरीयता दी है। इसके लिए अतिरिक्त अनुदान की व्यवस्था की गई है। ज्यादातर किसान अनुदान के तहत इस प्रणाली का उपयोग भी कर रहे हैं। इससे असिंचित इलाके में बागवानी का दायरा बढ़ा है और उसी हिसाब से उत्पादन भी बढ़ रहा है।
नाबार्ड को शामिल करने से मिला फायदा
सरकार ने प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के अन्तर्गत नाबार्ड के साथ सूक्ष्म सिंचाई कोष को मंजूरी दी है। इसका फायदा किसानों को मिल रहा है। अब प्रधानंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई) के अन्तर्गत समर्पित सूक्ष्म सिंचाई कोष (एमआईएफ) स्थापित करने के लिए नाबार्ड के साथ 5,000 करोड़ रुपए की आरम्भिक राशि देने को मंजूरी दी गई है। आवंटित 2,000 करोड़ रुपए और 3,000 करोड़ रुपए की राशि का इस्तेमाल क्रमशः 2018-19 और 2019-20 के दौरान किया जा रहा है। नाबार्ड इस अवधि के दौरान राज्य सरकारों को ऋण का भुगतान करेगा। नाबार्ड से प्राप्त ऋण राशि दो वर्ष की छूट अवधि सहित सात वर्ष में लौटाई जा सकेगी। एमआईएफ के अन्तर्गत ऋण की प्रस्तावित दर तीन प्रतिशत रखी गई है जो नाबार्ड द्वारा धनराशि जुटाने की लागत से कम है। इसके खर्च को वर्तमान दिशा-निर्देशों में संशोधित करके वर्तमान पीएमकेएसवाई-पीडीएमसी योजना से पूरा किया जा सकता है। इसका ब्याज दर सहायता पर कुल वित्तीय प्रभाव करीब 750 करोड़ रुपए होगा। इसका फायदा यह मिलेगा कि समर्पित सूक्ष्म सिंचाई कोष से प्रभावशाली तरीके से और समय पर प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत ‘प्रति बूँद अधिक फसल’ का सपना साकार होगा।
कोप सम्मेलन में भी रही बूँद-बूँद सिंचाई प्रणाली की गूँज
14वें कोप सम्मेलन में भूमि गुणवत्ता बहाली, सूखा, जलवायु परिवर्तन, नवीकरणीय ऊर्जा, महिला सशक्तीकरण, पानी की कमी जैसे मुद्दों पर चर्चा करते हुए केन्द्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने माना कि पानी बचाने की दिशा में प्रधानमंत्री की ओर से शुरू की गई बूँद-बूँद सिंचाई प्रणाली मील का पत्थर साबित हो रही है। इससे मिट्टी की उर्वरक क्षमता बच रही है, क्योंकि तेज गति से पानी का बहाव होने, अधिक पानी भरने की वजह से मिट्टी को उर्वर बनाने वाले तत्व या तो नीचे चले जाते हैं अथवा पानी के बहाव के साथ बह जाते हैं। जब हम पानी बचाने की दिशा में काम करेंगे और बूँद-बूँद को उपयोगी बनाएँगे तो जलवायु परिवर्तन की दिशा में भी अहम काम होगा। पानी की बचत पर्यावरण संरक्षण का अहम हिस्सा है। बूँद-बूँद सिंचाई की महत्ता बताते हुए बूँद-बूँद सिंचाई प्रणाली को फसल उत्पादन के आँकड़ों पर गौर करें तो सिंचाई के क्षेत्र में सरकार की ओर से किए गए अभूतपूर्व परिवर्तन का असर साफ दिखता है।
बूँद-बूँद सिंचाई की कहानी, किसानों की जुबानी
केन्द्र सरकार की ओर से शुरू की गई बूँद-बूँद सिंचाई प्रणाली का फायदा उन किसानों को ज्यादा मिल रहा है, जिनके खेत समतल नहीं हैं। जौनपुर के निवासी किसान अखिलेश कुमार ने बताया कि उनके पास करीब 8 बीघा खेत हैं। इसमें चार बीघे में गेहूँ की खेती करते हैं। खेत समतल नहीं हैं। ऐसी स्थिति में फसल बारिश पर निर्भर रहती है। बारिश नहीं हुई तो पम्पसेट से एक या दो बार पानी देते हैं, लेकिन खेत के समतल नहीं होने की वजह से सिंचाई के दौरान पानी निचले इलाके में ज्यादा लगता था। ऐसे में खेत में तैयार पूरी फसल को पानी नहीं मिल पाता था। बारिश होने के बाद भी उत्पादन प्रभावित होता है क्योंकि बलुई दोमट मिट्टी होने की वजह से उसमें कम-से-कम दो या तीन बार सिंचाई की जरूरत होती रहती है। चार बीघे में पाँच से आठ कुतल गेहूँ पैदा होता रहा है, लेकिन बूँद-बूँद सिंचाई प्रणाली अपनाने के बाद चार बीघे में 12 से 14 कुतल उत्पादन होने लगा। इसी तरह दो बीघा खेत में पहले पाँच कुंतल धान पैदा होता था, लेकिन अब आठ से 10 कुंतल पैदा होने लगा है। अखिलेश बताते हैं कि धान की परम्परागत खेती में खेत में पाँच-छह इंच तक पानी का भराव जरूरी होता है, जबकि ड्रिप सिस्टम लगाने के बाद एक इंच तक पानी से ही धान की भरपूर उपज ले ली। ड्रिप सिंचाई के जरिए एक इंच पानी कुछ ही घंटों में दिया जा सकता है। अखिलेश बताते हैं कि बूँद-बूँद सिंचाई प्रणाली का सबसे बड़ा फायदा यह है कि पानी की हर बूँद पौधे के लिए उपयोगी होती है। पौधे को जितने पानी की जरूरत है, हम उसे उतना ही देते हैं। एक हिस्से में सिंचाई पूरी होते ही पाइप को दूसरी तरफ बढ़ा दिया जाता है। इससे कम बिजली की खपत और कम वक्त में पानी की हर बूँद उपयोगी हो जाती है। उपज भी दोगुना हो जाती है। अखिलेश की तरह ही गाँव के दूसरे किसान बलिकरन, दिनेश सिंह यादव आदि भी बूँद-बूँद सिंचाई प्रणाली अपना रहे हैं। खास बात यह है कि ये किसान दूसरे किसानों को भी बूँद-बूँद सिंचाई प्रणाली अपनाने के लिए जागरूक कर रहे हैं। ड्रिप सिस्टम से न केवल सिंचाई की जाती है बल्कि खाद एवं कीटनाशक दवा को भी घुलनशील अवस्था में पूरे खेत में पहुँचाया जाता है। उन्होंने बताया कि खेत में खुले रूप से पानी देने से पानी व्यर्थ ही चला जाता है, जबकि बूँद-बूँद पद्धति से समूचा पानी जमीन में ही समा जाता है। खुले पानी से सिंचाई करने पर फसल को फिर पानी की आवश्यकता पड़ती है, जबकि ड्रिप सिस्टम से पानी की आवश्यकता देर से महसूस हुई। बूँद-बूँद सिंचाई पद्धति के कारण पानी व बिजली की करीब 50 फीसदी बचत होती है।
बुंदेलखण्ड के किसान ने बूँद-बूँद सिंचाई से तैयार की बागवानी
बुंदेलखण्ड का नाम सुनते ही एक तरफ प्राकृतिक हरियाली का नजारा मन-मस्तिष्क पर छा जाता है तो दूसरी तरफ सूखे खेत। यहाँ के खेतों में मैदानी इलाके की अपेक्षा पैदावार का आंकड़ा बेहद कम है। ऐसे में प्रगतिशील किसान राजितराम प्रजापति भी बागवानी में बूँद-बूँद सिंचाई की तकनीक अपना रहे हैं। वह बताते हैं कि बुंदेलखण्ड में पानी कम है। ऐसे में ड्रिप सिस्टम से कम पानी में अधिक उपज ली जा सकती है। यही वजह है कि उन्होंने पहले बागवानी के लिए बूँद-बूँद सिंचाई की तकनीक अपनाई। इसके लिए राष्ट्रीय बागवानी मिशन में ड्रिप सिस्टम लगवाया। बगीचों के लिए अनुदान भी मिल गया। करीब पाँच बीघे में संतरे की खेती कर रहे हैं। फसल तैयार होने के बाद संतरों को लखनऊ भेजते हैं। इस तरह वह हर साल करीब दो से ढाई लाख के संतरे बेच रहे हैं। बागवानी के लिए लगाई गई बूँद-बूँद सिंचाई प्रणाली से ही अब खेतों में भी सिंचाई कर लेते हैं।
सिंचित भूमि का दायरा बढ़ाना जरूरी
भारत की स्थिति पर गौर करें तो भारत में कुल भूमि क्षेत्रफल करीब 329 मिलियन हेक्टेयर है। इसमें खेती करीब 144 मिलियन हेक्टेयर में होती है, जबकि लगभग 178 मिलियन हेक्टेयर भूमि बंजर है। इस बंजर भूमि को सुधारने की बेहत जरूरत है। इसी तरह 47.23 मिलियन हेक्टेयर भूमि को परती भूमि के रूप में चिन्हित किया गया जो देश के कुल भूक्षेत्र का 14,19 फीसदी हिस्सा है। घनी झाड़ी वाली करीब 9.3 मि. हेक्टेयर भूमि मुख्य परती भूमि है जबकि खुली झाड़ी वाली 9.16 मि. हेक्टेयर भूमि का दूसरा स्थान आता है। करीब 8.58 मि. हेक्टेयर भूमि कम उपयोग की गई या क्षरित वन झाड़ी भूमि है। इस भूमि को सुधारने के लिए प्रति बूँद अधिक फसले की अहम भूमिका है। आँकड़ों पर गौर करें तो विश्व की कुल भूमि का 2.5 प्रतिशत हिस्सा भारत के पास है। दुनिया की 17 प्रतिशत जनसंख्या का भार भारत वहन कर रहा है। देश की जनसंख्या सन् 2050 तक करीब एक अरब 61 करोड़ 38 लाख से ज्यादा होने की सम्भावना है। लगातार बढ़ती जनसंख्या के अतिरिक्त भूमि कृषि के अन्तर्गत लाए जाने की जरूरत है। जिस दिन हम बंजर एवं परती जमीन को खेती योग्य बना लेंगे, उस दिन भारत के हिस्से खेती का बड़ा हिस्सा होगा। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि भारत में वर्ष 1951 में मनुष्य भूमि अनुपात 0.48 हेक्टेयर प्रति व्यक्ति था जो दुनिया के न्यूनतम अनुपात में से एक है। वर्ष 2025 में घटकर यह आंकड़ा 0.23 हेक्टेयर होने का अनुमान है। ऐसे में खेती के भूमि संसाधन के जरिए एक बड़ी चुनौती से निबटा जा सकता है। ऐसे में उपजाऊ मिट्टी की सुरक्षा किया जाना और बंजर जमीन को सिंचित जमीन में बदलना भी बेहद जरूरी है। भारत में सिंचाई की स्थिति देखें तो यहाँ 64 फीसदी खेती योग्य भूमि मानसून पर निर्भर होती है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश की कृषि योग्य 14 करोड़ हेक्टेयर भूमि में से मात्र 44 प्रतिशत ही सिंचित है। बाकी खेत असिंचित क्षेत्र में हैं। खेतों के घटते रकबे को देखते हुए इन्हें सिंचित करने की जरूरत महसूस की जा रही है।
TAGS |
agriculture department, dbt agriculture, up agriculture, agriculture department bihar, dbt agriculture bihar govt, agriculture definition, agriculture in india, agriculture meaning, agriculture jobs, agriculture technology, agriculture machine, agriculture farming, agriculture minister of india, agriculture business, agriculture in india today, importance of agriculture in india, agriculture in india essay, agriculture in india pdf, history of agriculture in india, agriculture in india in hindi, types of agriculture in india, percentage of population dependent on agriculture in india, agriculture in india pdf, agriculture in india essay, agriculture in india upsc, agriculture in india ppt, agriculture in india wikipedia, agriculture in india 2019, agriculture in india in hindi, agriculture in india map, agriculture in india depends on its, agriculture in india images, crop residue management, crop residue meaning, crop residue burning, crop residue burning in india, crop residue management machinery, crop residue in hindi, crop residue pdf, crop residue management ppt, crop residue management in hindi, crop residue management machinery, crop residue management ppt, crop residue management in hindi, crop residue management tnau, crop residue management pdf, crop residue management in haryana, crop residue management research papers, crop residue management definition, crop residue management in india, crop residue management in india, crop residue management in india ppt, crop residue management in india pdf, significance of crop residue management in indian agriculture, crop management system, crop management practices, crop management using iot, crop management techniques, crop management ppt, crop management technologies in problematic areas, crop management software, crop management definition , crop management practices pdf, crop management wikipedia, crop management system project, crop management system abstract, crop management system, crop management system software, crop management system pdf, farm crop management system, crop survey management system, farm crop management system login, farm crop management system using android, crop data management system, crop residue management, crop residue meaning, crop residue burning, crop residue burning in india, crop residue management machinery, crop residue in hindi, crop residue pdf, crop residue management ppt, crop residue management in hindi, crop residue management machinery, crop residue management ppt, crop residue management in hindi, crop residue management tnau, crop residue management pdf, crop residue management in haryana, crop residue management research papers, crop residue management definition, crop residue management in india, crop residue management in india, crop residue management in india ppt, crop residue management in india pdf, significance of crop residue management in indian agriculture, crop management system hindi, crop management practices hindi, crop management using iot hindi, crop management techniques hindi, crop management ppt hindi, crop management technologies in problematic areas hindi, crop management software hindi, crop management definition hindi, crop management practices pdf hindi, crop management wikipedia hindi, crop management system project hindi, crop management system abstract hindi, crop management system hindi, crop management system software hindi, crop management system pdf hindi, farm crop management system hindi, crop survey management system hindi, farm crop management system login hindi, farm crop management system using android hindi, crop data management system hindi, farmer income in india, farmer salary in india, farmers income in india, average farmer income in india, how to increase farmers income in india, what is irrigation in english, types of irrigation, drip irrigation, irrigation system, modern methods of irrigation, irrigation in india, traditional methods of irrigation, surface irrigation, drip irrigation system cost per acre, drip irrigation in english, drip irrigation diagram, drip irrigation advantages, types of drip irrigation, drip irrigation price, sprinkler irrigation, sprinkler irrigation, irrigation meaning, irrigation system, irrigation meaning in hindi, irrigation types, irrigation department, irrigation in hindi, irrigation in india, irrigation methods, irrigation engineering, irrigation department uttarakhand, drip irrigation system, drip irrigation in hindi, drip irrigation model, drip irrigation kit, drip irrigation definition, drip irrigation images, drip irrigation pipe, drip irrigation disadvantages, drip irrigation meaning, surface irrigation system, surface irrigation methods, surface irrigation pdf, surface irrigation images, surface irrigation diagram, surface irrigation types, surface irrigation methods pdf, surface irrigation meaning in hindi, surface irrigation ppt, surface irrigation crops. |
/articles/bauunda-bauunda-saincaai-paranaalai-daraipa-iraigaesana