बूँद-बूँद पानी सहेजने की सीख


जिले के ऐतिहासिक महत्त्व के आसई गाँव के करीब ढाई कि.मी. इलाके में जमीन में प्राकृतिक स्रोत फूटे हैं। इनसे साल भर पानी रिसता है। इस बूँद-बूँद पानी को सहेज कर गाँव वालों ने जल प्रबन्धन का बेहतर इन्तजाम किया है। आस-पास छह तालाब खोदे गए हैं, जो इसके पानी से लबालब हैं। इनसे रोजमर्रा के काम के साथ ही करीब 20 एकड़ से अधिक खेती की सिंचाई होती है।

महोबा विकास खंड के बीहड़ में यमुना किनारे बसे आसई की पौराणिक नजरिये से खास पहचान रही है। कई जगह जलस्रोतों का अस्तित्व सदियों से है। मौसम कोई भी हो, इनसे सदैव मीठा पानी निकलता रहता है। यह पानी यूँ ही बहकर यमुना में जाता था। 2012-13 में तत्कालीन ग्राम प्रधान रवींद्र दीक्षित ने खंड विकास अधिकारी के साथ मिलकर प्राकृतिक जल के सदुपयोग की योजना बनाई। ग्रामीणों की मदद से ढाई कि.मी. क्षेत्र में छह तालाब खोदे गये। इनमें चार इन जलस्रोतों से सीधे भरते हैं और इनके ओवरफ्लो होने पर बाकी दो तालाब भी भर जाते हैं।

ये तालाब जीवों, पक्षियों व मवेशी की प्यास बुझाने के साथ ही गाँव वालों की पानी की जरूरतों को पूरा करते हैं। रवींद्र इन स्रोतों को वरदान मानते हैं। वह कहते हैं कि ग्राम पंचायत ने ऐसे बंदोबस्त किए हैं कि प्राकृतिक स्रोत से मिलने वाले पानी का पूरा सदुपयोग किया जाए और पानी की एक भी बूँद को बर्बाद नहीं होने दिया जाए। इसके लिये भारत सरकार ने रवींद्र दीक्षित को पंचायतीराज सशक्तीकरण पुरस्कार भी दिया है।

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