बूंद—बूंद में बरकत


पश्चिमी महाराष्ट्र में पहाडियों के बीच बसे जलगांव के किसान टपक सिंचाई और कॉन्टै्रक्ट फार्मिग के जरिए दो से तीन गुना उत्पादन बढाने में कामयाब हुए हैं। 'मोर क्रॉप, पर ड्रॉप' पर आधारित तकनीक ने किसानों और कृषि व्यवसाय को नई दिशा दी है।

महाराष्ट्र में पहाडियों के बीच बसा जलगांव देश के किसानों के लिए एक मॉडल और देश की आर्थिक उन्नति के लिए बेहतरीन उदाहरण साबित हो सकता है। यहां पानी की हर बूंद का मोल है। खास बात यह कि यहां कंकरीट युक्त जमीन पर टपक सिचाई से सोना उगाया जा रहा है। टपक (बूंद-बूंद) सिंचाई अपनाने से किसानों के दिन फिरने लगे हैं। जलगांव ही नहीं, पश्चिम महाराष्ट्र के कई जिलों में तेजी से बढ रहे टपक सिंचाई के उपयोग से किसान दो से तीन गुना और इससे भी ज्यादा उत्पादन करने लगे हैं। किसानों की आमदनी में अविश्वसनीय बढोतरी हुई है।

 

हर चेहरे पर खुशी


वैज्ञानिक तरीकों से मिल रही सफलता यहां के किसानों की बातों में भी नजर आती है। जलगांव के किसान प्रवीण शिंदे बताते हैं, 'टपक सिंचाई से मैंने ही नहीं, मेरे गांव के कई किसानों ने अपनी जिंदगी बदली है। मेरे पास पौने सात एकड जमीन है। जिसमें चार एकड में केले की खेती करके नौ महीने में पांच लाख रूपए से ज्यादा बचाता हूं। अपने खेत में माइक्रो ट्यूब के इस्तेमाल से मैंने 80 फीसदी तक पानी की बचत की है। बिजली के बिल में 50 फीसदी से ज्यादा की कटौती भी कर ली है।' जलगांव में कपास की खेती करने वाले युवा किसान गोविंदा आनंदा तांदडे के मुताबिक टपक सिंचाई तकनीक को अपनाने में उन्होंने सालाना औसतन दो हजार रूपए का अतिरिक्त निवेश खेती में किया। लेकिन पैदावार दुगुनी हो गई। यह कहानी केवल प्रवीण शिंदे और गोविंदा आनंदा तांदडे जैसे किसानों की ही नहीं है, जलगांव के पांच हजार से ज्यादा किसान परिवार इस मुहिम को आगे बढाने में जुटे हुए हैं।

 

टिश्यू कल्चर से बढा उत्पाद


यहां टपक सिंचाई के साथ बडे पैमाने पर टिश्यू कल्चर का उपयोग भी होने लगा है। जलगांव में ही बायोटेक प्रयोगशाला और किसानों को प्रशिक्षित करने वाले वैज्ञानिकों की उपलब्धता ने टिश्यू कल्चर की पहूंच आम किसानों तक कर दी है। एग्री टिश्यू कल्चर के क्षेत्र में किसानों को एक नई उडान देने के प्रयास में जुटे यहां के वैज्ञानिक उत्पादन क्षमता को ज्यादा से ज्यादा बढाने की दिशा में काम कर रहे हैं। यहां तैयार होने वाले टिश्यू (एग्री टिश्यू कल्चर) स्थानीय किसान तो ले ही रहे हैं साथ ही विदेशों में भी भेजे जा रहे हैं। जलगांव में ही एग्री-बायोटेक रिसर्च एंड डवलपमेंट के प्रबंधक डॉ. बालकृष्ण बताते हैं, 'प्रयोगशाला में तैयार होने वाले उन्नत किस्म के पौधे व बीज किसानों को खेती के लिए उपलब्ध करवाए जाते हैं। इन्हें कुछ इस तरह तैयार किया जाता है, जिससे उत्पादन बढने के अलावा गुणवत्ता को भी बरकरार रखा जा सके।'

 

आमदनी का जरिया फूड प्रोसेसिंग


जलगांव में ही लगी फूड प्रोसेसिंग यूनिटें स्थानीय किसानों की आमदनी का अहम जरिया बन गई हैं। इन यूनिटों में किसानों से केला, प्याज और आम की खरीद की जाती है, जिन्हें प्रोसेसिंग के बाद निर्यात कर दिया जाता है। कॉन्टे्रक्ट फार्मिग के जरिए प्राप्त उत्पाद को किसान यहीं प्रोसेसिंग यूनिटों को बेच देते हैं जिससे उनकी बाहर भेजने की लागत की बचत भी हो जाती है। टिश्यू कल्चर से तैयार पौधों के जरिए गुणवत्तापूर्ण उत्पादन तो किसानों को मिल ही रहा है, साथ ही इन यूनिटों से उन्हें वाजिब दाम भी मिल रही है।

 

'जैन इरिगेशन' उम्मीदों की किरण


जलगांव में किसानों के चेहरे पर खुशी लाने का पूरा श्रेय 'जैन इरिगेशन' को जाता है। दरअसल जलगांव में टपक सिंचाई और दूसरी कृषि वैज्ञानिक तकनीकों के किसानों तक पहुंचाने के लिए जैन इरिगेशन पिछले 45 वर्षो से काम कर रहा है। जलगांव में 1300 एकड में फैली जैन हिल्स सफलता की कहानी कहती नजर आती है। 1963 में सात हजार रूपए से शुरू की गई जैन ब्रदर्स आज जैन इरिगेशन के रूप में आठ हजार से ज्यादा लोगों का समूह बन चुका है।1963 में वाणिज्य और कानून की पढाई पूरी करने के बाद कृषि उत्पादों के व्यापार से जुडे भंवरलाल जैन 'भाऊ' ने 1978 में प्लास्टिक पाइप का निर्माण शुरू किया। कैलीफोर्निया के फ्रैसनो में 1985 में बूंद-बूंद सिंचाई तकनीक के बारे में पता चलने के बाद उन्होंने भारत में इसकी शुरूआत की। इजरायल के बाद लघु सिंचाई संयंत्रो के निर्माण में विश्व में दूसरे नंबर पर जैन इरिगेशन पश्चिमी महाराष्ट्र में किसानों का सहारा बनकर उभर रहा है। वह पश्चिम महाराष्ट्र सहित देशभर में 17 लाख एकड भूमि पर लाखों किसानों को टपक सिंचाई संयंत्र और तकनीक उपलब्ध करवा रहा है। कृषि तकनीकों को विकसित करने, टिश्यू कल्चर से गुणवत्तापूर्ण उत्पादन को बढावा देने और टपक सिंचाई को ज्यादा सुगम बनाने के लिए जैन हिल्स पर सैकडों कृषि वैज्ञानिक दिन-रात जुटे रहते हैं। देश-विदेश से हर रोज चार दर्जन से ज्यादा कृषि वैज्ञानिक, किसान, शोधार्थी और कृषि तकनीकों के जानकार जैन इरिगेशन को जानने के लिए यहां पहूंचते हैं।

 

गुणवत्ता हमारी प्राथमिकता


सात हजार रूपए में शुरू हुआ जैन इरिगेशन आज ढाई हजार करोड का कारोबार कर रहा है इस सफलता का राज क्या है?

इस दुनिया को आपने जैसा पाया, उससे बेहतर करके छोडो, बस मैंने इतना ही सोचा। सब कहते थे, यहां पहाडों में खेती नहीं हो सकती। लेकिन आज होती है। जैन हिल्स में प्रकृति के हर स्रोत का बेहतरी से इस्तेमाल किया जाता है, फिर चाहे वह बारिश का पानी हो या सौर ऊर्जा। मैंने हमेशा यही माना कि जब तक मेरे काश्तगार का उत्पादन नहीं बढता, तब तक जैन इरिगेशन नहीं बढ सकता। यदि काश्तगार को दस रूपए मिलते हैं, तो मैं उसमें सिर्फ एक रूपए का हकदार हूं।

कॉन्ट्रेक्ट फार्मिग की वजह से पांच हजार से ज्यादा किसानों के परिवारों में खुशी का माहौल है। लेकिन पांच हजार से क्या होगा। हमने जो किया वह बहुत थोडा और छोटा सा है। क्योंकि हम टपक सिंचाई भी देते हैं, जिसका उत्पादन में बडी भागीदारी होती है। अगले दो-तीन वर्षो में हमारी योजना कॉन्टे्रक्ट फार्मिग के जरिए एक लाख किसानों तक पहूंचने की है।

 

- भंवरलाल हीरालाल जैन, चेयरमैन, जैन इरिगेशन


महाराष्ट्र में 16 फीसदी ही सिंचित भूमि है, जबकि राजस्थान में यह आंकडा लगभग 32 फीसदी तक है। लेकिन यहां किसान खेती में व्यावसायिक दृष्टिकोण अभी तक नहीं अपना रहे हैं। हम उसी दृष्टिकोण को विकसित करने की मुहिम में जुटे हैं। किसानों को साथ लेकर चलने की वजह से ही हम पांच वर्षो में 40 से 43 फीसदी की औसत तेजी से बढ रहे हैं। कृषि में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का मतलब है जल, ऊर्जा और मानव शक्ति के संरक्षण (कंजर्वेशन) को प्रोत्साहित करता है, जैन हिल्स भी पूरी तरह संरक्षण आधारित तकनीकों को लेकर तैयार किया गया है।

 

-अजीत बी. जैन, जॉइंट मैनेजिंग डायरेक्टर, जैन इरिगेशन, जलगांव

 

 

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