बादल-घर से
धरती पर
उतर रहे हैं
बूँद-बुँदानी
माटी महक रही है
भीग-भीग कर
गीत बन रही
अपनी बोली-बानी।।
धरती पर
उतर रहे हैं
बूँद-बुँदानी
माटी महक रही है
भीग-भीग कर
गीत बन रही
अपनी बोली-बानी।।
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