बुंदेलखंड में अनियंत्रित खनन

विगत फरवरी में मैं मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र के टीकमगढ़ जिले में ओरछा के पास प्रतापपुरा गाँव में ग्रेनाइट की खदानों के पास सर्वेक्षण कर रहा था। उस दिन मैंने जो खदान की गहरे तथा पत्थरो के निष्कासन की प्रक्रिया देखी उससे अत्यंत व्यथित हुआ। पहाड़ की ऊंचाई से भी कई गुना गहरे गढ़े बना कर पूरा पत्थर निकाला जा रहा है। उन गड्ढों को न तो भरने का प्राविधान है न ही उनकी गहराई की कोई सीमा तय की गई है। पूरा बुंदेलखंड इसी तरह छतरपुर, पन्ना ( म.प्र.) एवं उ.प्र. के झाँसी, ललितपुर, महोबा तथा चित्रकूट के आस-पास बुरी तरह खोदा एवं रौंदा जा रहा है। एक भूकंप के लिए सुरक्षित, कभी गहन जंगलों से युक्त, सदानीरा नदियों से भरा हुआ संपन्न क्षेत्र आज लगातार सूखे, अकाल, तथा लोगों के मजबूर पलायन का शिकार हो रहा है। नदियाँ सूख रही हैं वर्षा हर वर्ष कमतर होती जा रही है, किसान आत्महत्याओं के लिए मजबूर है। प्रकृति का दोहन शहरी सेठों, साहूकारों, ठेकेदारों तथा निर्यातकों को संपन्न कर रहा है। गाँव का आदमी यदि कुछ कहता है, उसे चुप करा दिया जाता है।

भारतेंदु प्रकाश, बुंदेलखंड रिसोर्सेस स्टडी सेंटर 51, सन सीटी, छतरपुर-471001, मध्यप्रदेश, मो.न. 09425814405

प्रतापपुरा की खदानों तथा गाँव के निकट रोज लगाए जा रहे डाइनामाइट के कारण घरों की हालत आदि के कुछ चित्र यहां संलग्न हैं।















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