बुंदेलखंड की जीवित हुई इस नदी ने दम तोड़ दिया

लापरवाही की वजह से सिंघश्रोता नदी सूख गई है।
लापरवाही की वजह से सिंघश्रोता नदी सूख गई है।

फरवरी 2011 बसंत आने वाला था पर चित्रकूट की बरगढ़ की न्याय पंचायत की गुईया ग्राम पंचायत के भौटी गांव में फसल सूखने का मातम था। पानी की खोज में हम लोग सूखी सिघाश्रोत नदी के किनारे जैसे ही कुछ कदम चले थे कि अचानक एक आवाज आई, रुको रुको! भइया जी रुका। हमारे साथ बरसात की बूंद को सहेजने वाले साथी थे जिसमें फ्रांस का युवा ऐलेक्सी रोमन भी था। कुछ लोग सिघाश्रोत नदी में चेकडैम की मरम्मत का धन खर्च कराने के लिए बेताब थे। मैंने साथियों से कहा था कि मरम्मत के पहले गांव की सुनो, जब वे अपनी सहमति दें तब यह धन उनकी राय और सहभागिता में खर्च करना।

चित्रकूट जनपद की मंदाकिनी सहित सभी जलस्रोत सूख गए थे, पानी के लिए हाहाकार मचा था और जिलाधिकारी तक परेशान थे। कुछ दिनों बाद सभी महिलाएं बड़ी खुश थी, उनकी खुशी का ठिकाना नहीं था। उनकी मेहनत से सूखी नदी बहने लगी थी। बाद में जिलाधिकारी ने आगे भी खुदाई जारी रखने का वादा किया लेकिन खुदाई नहीं हुई। अंततः जीवित हुई नदी ने फिर दम तोड़ दिया।

यह चेक डैम सिंचाई विभाग ने बनवाया था। हमारे सारे लोग चारों ओर देखने लगे कि आवाज कहां से आ रही है? तभी मैंने देखा कि बेशर्म की झाड़ियों से किसी के निकलने की आवाज आ रही है। हम लोग वहीं खड़े रहे, कुछ देर बाद फटी धोती में कुछ महिलाएं हंसिया और गट्ठर लेकर हमारी ही ओर आ रही हैं। वो महिलाएं मुझे जानती थीं। उन्हीं में से सावित्री बड़ी तेज आवाज में रोने लगी। उसके साथ और भी महिलाएं थीं जो रो रहीं थीं। वो हमसे पूछ रही थी कि हमारा जीवन कैसे चले? बच्चों का पेट कैसे भरी फिर पाथर थोड़े बुढ़ौती मा जाएका परी। हे भगवान साल भर अनाज कैसे खरिदबे। अरे हमारी नदी हमें धोखा दिहसि। इ नदी के सहारे हम जीवन मा खुशी खोजा रहा। उनमें से एक महिला ने बताया कि जबसे शादी हुई है तब से नदी पहली बार सूखी है। नदी कभी नहीं सूखी हमारे जीवन में। हमारे साथ चेकडैम मरम्मत के लिए आए साथी ने कहा कि हम इसलिए आए हैं कि नदी में पानी बनी रहेगा यदि चेकडैम की मरम्मत हो जाए।

सावित्री तेज आवाज में बोली, यह चेकडैम हमरी नदी को मार दिहसि। ये सुनकर सभी लोग सुन्न हो गये। सावित्री ने कहा ‘‘शादी होके जब हम गोइया आये और य पथरन की भौटी में झोपड़ी मा जीवन चला। मजूरी करे के बाद भोजन मिलत रहा, केवल एक टाइम। लडकन का रात मा दिखात नहीं रहा। पांच पांच पाव मजूरी हमे मिलत रही, कर्ज कतौ न खतम होय। पूरी जिंदगी पथर थोड के पीस के बन्धुवा बितावा। पेट भर खाना न हम खा पाये न बच्चन को खिला पाये। खेती करब हमरे यहां कोई नहीं करत रहा। बड़े लोगन के घर जरूर खेती की मजूरी करत रहे। जब से सर्वोदय आया और हमरी परती जमीन में खेती करब सिखाइस तब से घर में गल्ला साल भर कर होई जात रहा। लड़का पढे लोग, अब या साल तो फसल सूखगे, का खइबे। अब आप बताओे हमार नदी नहीं मरी, हमार बच्चन का भविष्य मर गया’’। भाटी गांव की महिलाओं के विलाप ने सभी को सोचने को मजबूर कर दिया। हमारे साथ चेकडैम की मरम्मत कराने वाली टीम में संतोष सोनी भी थे।

हम सभी ने सावित्री से कहा कि कल गांव के साथ हम लोग आप से जानेंगे कि नदी का इतिहास क्या है? और नदी हत्या किसने की, क्या नदी फिर से जीवित हो सकती है? सावित्री ने कहा कि प्रधानजी के घर के पास हम सब को एकत्र करेंगे। एलेक्सी फ्रांस से आकर प्रकृति को बचाने और बरसात की एक-एक बूंद को संरक्षित करने के उद्देश्य से भारत आकर बरगढ़ को चुना था। बरगढ़ की तपन को सहता था और गांव में जाकर आदिवासी की टूटे घरों में नमक रोटी प्याज को खाता, कभी-कभी उनके चूल्हे में जाकर रोटी भी बनाने लगता। बड़ी विनम्रता से लोगों से बोलता और गरीब से गरीब मजदूर को बड़ा सम्मान देता। गरीब आदिवासी मजबूर आज तक साफ कपड़े वालों से सम्मान नहीं पाए थे, जिसे एलेक्सी ने दिया। एलेक्सी यह जानने के लिए बहुत उत्सुक था कि महिलाओं से क्या बात हुई?

पूरा गांव जल संकट से जूझ रहा है। पूरा गांव जल संकट से जूझ रहा है।

संतोष से उसने अंग्रेजी में सब जाना और कहा हम भी कल गांव के साथ बैठेंगे। अगले दिन हम लोग समय पर पहुंच गए। वहां देखा कि पूरा गांव हमारा ही इंतजार कर रहा था। हम वहीं पेड़ के नीचे बैठ गये, एक अजीब-सी खामोशी पसरी हुई थी। आदिवासी कुछ बोल ही नहीं रहे थे, तब सावित्री ने सभी को कल की बात बताई और कहा कि आज सर्वोदय से जो लोग आए हैं और ये सिंघाश्रोत नदी के बारे में जानना चाहते हैं। हमने पूछा कि आप की नदी कहां से निकलती है? पूरे साल पानी कितना रहता है? गांव की बुजुर्ग महिलाओं ने कहा हम जब  शादी के बाद से आए तब से ये नदी बह रही है, कभी नहीं सूखी। एक बुजुर्ग उठे और बोले ये नदी हमारे झलरी बाबा की देन है। गांव के उत्तर में एक बरगद का पेड़ है वहीं झलरी बाबा रहते हैं, ये नदी वहीं से निकली थी। पहले वहां बहुत जलधाराएं थीं, उन्हीं से पानी निकलता था। नदी जैसे-जैसे आगे बढ़ती गई, वहां भी जलधाराएं मिलती गईं।

तब हमने पूछा क्या कारण था कि जलधाराएं सूख गईं। उनमें से एक महिला ने कहा कि भइया जी! जबसे मिड डे मील आया, तब से जलधाराएं सूख गईं। नदी किनारे लगे पेड़ गांव प्रधान ने काट दिए और उन लकड़ियों से खाना बनवाया। जिन जड़ों से जलधाराएं आती थीं, पेड़ न होने की वजह से जलधाराएं खत्म हो गईं। इन्हीं में एक महिला बोली, हमार नदी को चेकडैम ने मार दिया। हमारे साथ चेकडैम से नदी सुरक्षित करने वाली विचारधारा के जो साथ थे सब ये बात सुनकर अवाक रह गये। उस महिला ने बताया एक किलोमीटर के अंदर दो बड़े-बड़े चेकडैम बना दिए और नदी बहुत छोटी है। बरसात में जो मिट्टी आती है वो नदी में जमा हो गई है और सब जलस्रोत बंद हो गए हैं। जब से नदी सूखी है तब से सबसे बड़ा दुख पानी का है। जानवर प्यार से मर रहे हैं, केवल एक हैंडपंप है। वो हैंडपंप कितने घरों को पानी दे पायेगा। इस वजह से सब परेशान हैं, लेकिन सुनने वाला कौन है? कोई नहीं सुनता हमार दर्द न सरकार और न ही प्रधान। गांव में रोजगार नहीं है, नरेगा भी नहीं लगता।

हम भूख से लड़ाई लड़ रहे हैं। तब हमने कहा कि सरकार से आशा करना बेकार है। आप लोगों को ही कुछ करना होगा। आप लोगों ने ही इस नदी की हत्या की है, अब आपकी ही जिम्मेदारी बनती है कि इस नदी को बचायें। हमने राजस्थान की उन नदियों के बारे में बताया जिन्हें वहां के लोगों ने मेहनत करके पुनर्जीवित किया। तब ये काम करने के लिए तीन महिलाएं आगे आईं। वे बोलीं कि कल से ही नदी में हम लोग खुदाई करेंगे और नदी को साफ करेंगे। महिलाओं ने गांव वालों से कहा कि गांव के लोग नदी के किनारे शौच न जाए। गांव की ही रानी ने कहा कि जो पेड़ बचे हैं, हम सब मिलकर उन में रक्षा धागा बाधेंगे। 21 फरवरी 2011 से 3 महिलाओं ने पूजा और भजन के साथ श्रमदान शुरू कर दिया। इस श्रमदान ने इन महिलाओं के साथ वो युवा भी थे जिन्होंने युग पुरुष शुब्बाराव जी के साथ युवा प्रशिक्षण शिविर में श्रमदान के महत्व को जाना था और विनोबा नगर के तालाब में श्रमदान किया था। 22 फरवरी को नदी जीवित करने वालों को देखने के लिए लोग नेवादा भौटी और गुइया से आए। इस काम में महिलाएं बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रहीं थीं और गांव के प्रधान और सरकार दूर से तमाशा देख रही थी।

चित्रकूट जनपद की मंदाकिनी सहित सभी जलस्रोत सूख गए थे, पानी के लिए हाहाकार मचा था और जिलाधिकारी तक परेशान थे। कुछ दिनों बाद 24 फरवरी को सभी महिलाएं बड़ी खुश थी, उनकी खुशी का ठिकाना नहीं था। उनकी मेहनत से सूखी नदी बहने लगी थी। बाद में जिलाधिकारी ने आगे भी खुदाई जारी रखने का वादा किया लेकिन खुदाई नहीं हुई। अंततः जीवित हुई नदी ने फिर दम तोड़ दिया। 

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