किसानों को उन्नत बीज, खाद, सिंचाई के साथ पैदावार की बिक्री की गारंटी वाले बाजारों की ज्यादा जरूरत है। देश में खेती की इन बुनियादी सुविधाओं का व्यापक स्तर पर अभाव है। जरूरत है कि किसानों को सुविधा देने, तकनीक देने और उन्हें कृषि कार्य में जुटे रहने लायक वातावरण, लाभ की गारंटी और प्रोत्साहन देने की। अच्छी फसल उगाने वालों को उसी सीजन में पुरस्कृत-सम्मानित करने की। लेकिन इसके लिये एक साहसिक कदम उठाने की जरूरत है। हालिया सम्पन्न उत्तर प्रदेश सहित पाँच राज्यों के विधानसभा चुनावों में किसानों की कर्ज माफी की बात भाजपा, कांग्रेस सहित सभी दल अपने-अपने तरीके से कर रहे थे। उत्तर प्रदेश में तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यहाँ तक कह दिया था कि अगर सरकार बनी तो कैबिनेट की पहली बैठक में ही किसानों की कर्ज-माफी का फैसला कर दिया जाएगा। अमित शाह ने भी अवैध बूचड़खाने बन्द करने और एंटी रोमियो स्क्वाड बनाने की घोषणा भी की थी।
अमित शाह की इन चुनावी घोषणाओं पर सरकार बनते ही अमल कर दिया गया; क्योंकि इसके लिये धन का जुगाड़ नहीं करना था। पर किसानों की कर्ज माफी की घोषणा को अमल में लाने के लिये सरकारी खजाने पर पड़ने वाले बोझ और पैसे के इन्तजाम को लेकर गुणा-गणित चलता रहा; जिसके चलते कैबिनेट की बैठक टलती रही।
आखिरकार योगी सरकार ने सत्ता में आने के 16 दिन बाद किसानों की कर्ज-माफी की घोषणा अपने फार्मूले के हिसाब से कर दी। इसके तहत, एक लाख रुपए तक के फसली कर्ज माफ कर दिये गए हैं। इसमें सरकार के 30,729 करोड़ रुपए खर्च होंगे और प्रदेश के 2.15 करोड़ लघु-सीमान्त किसान लाभान्वित होंगे। लघु-सीमान्त के दायरे से बाहर आने वाले सात लाख किसानों के 5,630 करोड़ रुपए के कर्ज को एनपीए में डाला गया है। इस तरह कुल 36,359 करोड़ रुपए की कर्ज-माफी की बात कही गई है।
लेकिन देखिए, बात उत्तर प्रदेश तक ही सीमित नहीं रहने वाली है। यह बात मोदी सरकार भी समझती थी, इसलिये इस दौरान दिल्ली आये मुख्यमंत्री योगी को अपने बूते कर्ज-माफी का प्रबन्ध करने को कहा गया। लेकिन इसका अपेक्षित असर नहीं हुआ। महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा, ओड़िशा आदि राज्य ऐसी ही रियायतें पाने की उम्मीद पाले हैं या उसका फार्मूला ढूँढ रहे हैं। खासकर आसन्न चुनाव वाले राज्य। जहाँ भाजपा की सरकारें हैं, वहाँ कांग्रेस सहित दूसरे दलों ने कर्ज माफी की मुहिम तेज कर दी है। ऐसा ही दूसरे राज्यों में भी चल रहा है।
मैं कोई किसान विरोधी नहीं हूँ पर मेरा स्पष्ट मानना है कि यह कर्ज-माफी स्थायी निदान नहीं है। इसलिये कि एक तो सरकारी आमदनी के स्रोत सीमित हैं और ऐसे फैसलों से खजाने पर बोझ पड़ता है। इसकी भरपाई के लिये दूसरे मदों में कराधान करना पड़ता है। दूसरे, इसके चलते विकास की बहुतेरी व जनकल्याणकारी योजनाएँ प्रभावित होती हैं। इसलिये मेरा मानना है कि किसानों की कर्ज माफी से ज्यादा जरूरी है कि सरकार किसानों के हितों तथा कृषि से जुड़े लोगों को आधारभूत संसाधन, पैदावार के लाभकारी मूल्य दिलाने वाले बाजारों की सुनिश्चित सुविधा और अद्यतन तकनीक मुहैया कराए, जिससे उन्हें नुकसान तो बिल्कुल न हो। आमदनी अधिक-से-अधिक बढ़े।
अब यह तो मोदी सरकार ही है, जो यह कहते सत्ता में आई थी कि वह किसानों को उनकी लागत का 50 फीसद मुनाफा दिलाने की व्यवस्था करेगी। हालांकि इस दावे-वादे के अमलीकरण को अर्थशास्त्र फिलहाल असम्भव बताता है। मोदी सरकार ही किसानों को इंटरनेट और मोबाइल के जरिए जोड़कर उन्हें घर बैठे खेती के बारे में आधुनिक व फायदेमन्द जानकारी देने की बात करती रही है। आज किसानों को उन्नत बीज, खाद, सिंचाई के साथ पैदावार की बिक्री की गारंटी वाले बाजारों की ज्यादा जरूरत है। देश में खेती की इन बुनियादी सुविधाओं का व्यापक स्तर पर अभाव है। जरूरत है कि किसानों को सुविधा देने, तकनीक देने और उन्हें कृषि कार्य में जुटे रहने लायक वातावरण, लाभ की गारंटी और प्रोत्साहन देने की।
अच्छी फसल उगाने वालों को उसी सीजन में पुरस्कृत-सम्मानित करने की। लेकिन इसके लिये एक साहसिक कदम उठाने की जरूरत है। ऐसे में मेरा सुझाव है कि सभी राजनीतिक दलों को एक साथ बैठकर इस विषय पर सहमति बनानी होगी कि ऐसी कोई घोषणाएँ चुनाव जीतने के लिये न करें, जिससे सरकारी खजाने पर बोझ आये और अप्रत्यक्ष रूप से जनता से जुड़े दूसरे कार्य को प्रभावित करे।
पंजाब के किसान यदि अच्छी पैदावार कर रहे हैं, नई तरह की फसलों और विश्व बाजार की माँग के अनुसार फूलों की खेती कर रहे हैं तो उनके अनुभवों का लाभ देश के अन्य किसानों को भी दिये जाने की व्यवस्था हो। पंचायतों के जरिए या सहकारी संस्थाओं के माध्यम से खेती के आधुनिक साधनों, आसान किस्त में ट्रैक्टरों जैसी सुविधा मुहैया कराने पर विचार हो; जिसका उपयोग मझोले और छोटे किसान भी कर सकें। मंडियों और ट्रांसपोर्ट की सार्वजनिक व्यवस्था ऐसी हो कि एक कॉल पर किसान अपनी फसल उठवाने की बुकिंग करवा सकें।
हर साल मीडिया में खबरें आती हैं, जब बम्पर पैदावार की उचित कीमत न मिल पाने से आहत किसान टमाटर, आलू जैसी सब्जियाँ सड़क पर फेंकने को लाचार हो जाता है। किसानों को लागत मूल्य से उचित कीमत पर बिकवाली की सुविधाजनक प्रक्रिया सामूहिक प्रयासों से ही सम्भव है। मंडियों से बड़े आढ़तियों और मुनाफाखोर जमाखोरों पर उचित व कड़ी कार्रवाई भी इसी में शामिल किया जाये। जब किसानों को उनकी उपज का सही मूल्य मिलेगा तो वे स्वयं किसी सरकार का मुँह ताकना बन्द कर देंगे।
मेरा मानना है कि किसानों की कर्ज माफी तथा किसी भी तरह की ऐसी सामूहिक माफी से ईमानदार करदाता हतोत्साहित होते हैं। जो ईमानदारी से जीवन जी रहे हैं और सरकार की बनाई सभी व्यवस्थाओं में भागीदार होते हुए नियम-कानून का पालन कर रहे हैं, वे सरकार के ऐसे फैसलों से हतोत्साहित होते हैं और उनके मन में ऐसे ख्याल आते हैं कि शायद बेईमानी करने वालों को ही फायदा है। दूसरी तरफ कर्ज लेने वाले लोगों के मन में उसे लौटाने को लेकर मन में दुविधा आ जाती है।
कर्ज लेने वाले लोगों को उम्मीद लगी रहती है कि कोई-न-कोई राजनीतिक दल उनकी बात सुनेगा और यदि उस पार्टी की सत्ता आई तो उनका कर्ज माफ हो जाएगा। इससे नौकरी-पेशा मध्यवर्गीय लोगों के लिये या यों कहें तो ईमानदार करदाताओं के लिये कर्ज लेना मुश्किल हो जाता है। ऐसे ही जैसे उत्तर प्रदेश में हुआ है, वह अगर सभी राज्यों में होगा और आगे भी होता रहेगा तो हम सभी के भविष्य के साथ-साथ देश का भविष्य भी प्रभावित होगा।
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Post By: Editorial Team