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![पानी सहेजने के लिये इकट्ठा ग्रामीण](https://farm8.staticflickr.com/7238/26590207150_596d55d66e_z.jpg)
जल संचयन के उद्देश्य से चल रहे इस श्रमदान कार्यक्रम में बड़ी संख्या में समाज के लोग उत्साह से डटे हुए हैं। यहाँ किशोरों के साथ-साथ अधेड़ उम्र के ग्रामीण भी लगे हुए हैं। वे चाहते हैं कि इस बार की बारिश में उनके हिस्से का पानी बर्बाद न हो और उनका गाँव हरा-भरा हो जाये। पहले अपने पानी की चिन्ता समाज ही करता था। बाद में इसकी जिम्मेवारी सरकार ने ले ली। धीरे-धीरे समाज पानी की चिन्ता की अपनी जिम्मेवारी को भूलने लगा।जल संचयन के उद्देश्य से चल रहे इस श्रमदान कार्यक्रम में बड़ी संख्या में समाज के लोग उत्साह से डटे हुए हैं। यहाँ किशोरों के साथ-साथ अधेड़ उम्र के ग्रामीण भी लगे हुए हैं। वे चाहते हैं कि इस बार की बारिश में उनके हिस्से का पानी बर्बाद न हो और उनका गाँव हरा-भरा हो जाये। पहले अपने पानी की चिन्ता समाज ही करता था। बाद में इसकी जिम्मेवारी सरकार ने ले ली।
धीरे-धीरे समाज पानी की चिन्ता की अपनी जिम्मेवारी को भूलने लगा। अब पानी के इस संकट की घड़ी में जब सरकार ने अपने हाथ खड़े कर दिये हैं। क्योंकि सरकार समझ गई है कि इस सूखे की घड़ी में पानी की व्यवस्था देख पाना अकेले उसके वश की बात नहीं है।
ऐसे समय में बुन्देलखण्ड का समाज अपनी पानी की चिन्ता बारिश आने से पहले कर रहा है, मतलब पानी को सहेजने की तैयारी में लग कर पूरे देश को एक सन्देश दे रहा है। बारिश आने वाली है, तुम सब भी अपने-अपने हिस्से का पानी बचाने की तैयारी में लग जाओ।
छरी और टोरी पंचायत के डेढ़ सौ ग्रामीण स्थानीय सांदनी नदी पर 150 फीट लम्बा, 15 फीट चौड़ा और 5 फीट ऊँचा बाँध बना रहे हैं।
![पानी सहेजने के मुहिम में लगे ग्रामीण](https://farm8.staticflickr.com/7697/26795512721_39c041671f_z.jpg)
जब तक यह श्रमदान चल रहा है। श्रमदान में लगे समाज के लोगों की दिनचर्या में सुबह 7 बजे से 11 बजे तक का समय श्रमदान का है। श्रमदान के दौरान ग्रामीण अपने साथ लाए चना, मुरमुरा और गुड़ खाकर काम करते हैं। इस स्टापडैम को बनाने में एक रुपया भी खर्च नहीं किया जा रहा है। यह पूरी तरह से समुदाय की पहल पर समुदाय द्वारा समुदाय के लिये बनाया जा रहा है।
वास्तव में पानी के मुद्दे पर इस सूखे की घड़ी में जब मीडिया में हर तरफ नकारात्मक खबर आ रही है, ऐसे समय में टीकमगढ़ की खबर समाज में जरूर एक उम्मीद जगाएगी। वे जरूर सोचेंगे आने वाले मानसून के स्वागत में जुटे बुन्देलखण्ड के इन ग्रामीणों का उत्साह अभूतपूर्व है। चाहे संसद में महिलाएँ 33 फीसदी तक ना पहुँची हों लेकिन यहाँ श्रमदान करने वालों में आधी संख्या महिलाओं की है। पलेरा विकासखण्ड के लोग अब इस बात की तैयारी कर कर रहे हैं कि भविष्य में उन्हें जल संकट का सामना ना करना पड़े। इसके लिये वे अपना सतही जलस्रोत विकसित कर रहे हैं।
![पानी सहेजने के मुहिम में लगीं ग्रामीण महिलाएँ](https://farm8.staticflickr.com/7395/26257636654_c8cdabb6b0_z.jpg)
ग्रामीणों को इकट्ठा करने और अपने पानी को बचाने के लिये प्रेरित करने वाली संस्था ‘एकता परिषद’ का इस सम्बन्ध में मानना है कि बुन्देलखण्ड और बघेलखण्ड में भी हालात लातूर से अलग नहीं हैं। उसके बावजूद ऐसे समय में पानी बचाने के लिये सरकारी पहल का इन्तजार करने की जगह समाज का अपने स्तर पर पहल करना अधिक बेहतर विकल्प है। श्रमदान में लिधोरा, बसटगुवा, टोरी, रतनगुवा, और पलेरा के ग्रामीण शामिल हैं।
![पत्थर ढोते ग्रामीण](https://farm8.staticflickr.com/7470/26769544962_d1970e7ed0_z.jpg)
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Post By: RuralWater