बुन्देलखण्ड के जुड़वा गाँव खिसनी बुजुर्ग और खिसनी खुर्द इस बात का जीता-जागता उदाहरण है कि प्रशासनिक लापरवाही किस तरह मौसम की मार के असर को कई गुना बढ़ा सकती है।
इतिहास की किताबों में जब हम पढ़ते कि अंग्रेजों ने बुन्देलखण्ड क्षेत्र की पूरी आबादी को कहीं और स्थानान्तरित करने की सिफारिश की थी तो हमें उनकी समझ पर रश्क होता है।
अगर कल्पना साथ नहीं दे तो एक बार बुन्देलखण्ड होकर आइए। पहले से ही भीषण जलसंकट का शिकार बुन्देलखण्ड इलाक़ा साल-दर-साल नई त्रासदियों का शिकार होता जा रहा है।
लगातार कम होती बारिश, प्राकृतिक जलस्रोतों का खात्मा और भूजल के विवेकहीन दोहन ने बुन्देलखण्ड को बंजर रेगिस्तान बनाने की पृष्ठभूमि तैयार कर दी है। पलायन के दृश्य यहाँ एकदम आम हैं।
लम्बे अरसे से यहाँ के गाँवों से पलायन का सिलसिला जारी है। गर्वीले किसान शहरों में जाकर मजबूरन मज़दूर बन रहे हैं।
बुन्देलखण्ड क्षेत्र के झाँसी जिले के बंगरा विकासखण्ड के गाँव खिसनी बुजुर्ग और खिसनी खुर्द यहाँ की विभीषिका के जीते-जागते उदाहरण हैं। एक-दूसरे से सटे इन गाँवों को एक ही गाँव माना जाता है।
जनवरी का महीना चल रहा है, जाड़ा पूरे शबाब पर है। पानी की कमी दूर करने के लिये सरकार ने यांत्रिक तकनीक अपनाई और जगह-जगह हैण्डपम्प खुदवाकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली। लेकिन यहाँ के कुएँ और हैण्डपम्प पूरी तरह सूख चुके हैं।
गाँव में पीने का पानी नहीं है। सूखे की सूचना ने सरकारी अमले की हलचल बढ़ा दी है लेकिन शोध और परम्पराओं से कट चुकी सरकार एक बार फिर वही गलती दोहराने जा रही है। यानी गाँव के सूखे हैण्डपम्पों में दोबारा बोरिंग कराई जा रही है। यहाँ टैंकर की मदद से पानी की आपूर्ति सुनिश्चित की जा रही है।
किसान के लिये जहाँ कुओं, तालाब और हैण्डपम्प में पानी सूख रहा है, वहीं सरकारी अमले की आँखों के सूखते पानी ने उनकी मुश्किल और बढ़ा दी है।
कहने का तात्पर्य यह है कि सरकार लगातार सूखे के बावजूद पुराने हैण्डपम्प को गहरा करने जैसे वही घिसे-पिटे उपाय अपना रही है। उसे इस समस्या की जड़ तलाशनी चाहिए लेकिन वह टहनियाँ काटछाँट कर ही अपने कर्तव्य की इतिश्री करना चाहती है।
यहाँ की कुल आबादी 9,000 है। यह समझना मुश्किल है कि बिना पानी के यहाँ जीवन कैसे चल रहा है और आगे कैसे चलेगा? खिसनी बुजुर्ग के 27 में से 25 हैण्डपम्प पूरी तरह सूख चुके हैं जबकि खिसनी खुर्द के 50 में से 22 हैण्डपम्प किसी तरह काम चला रहे हैं।
इस क्षेत्र में कई किसानों ने सूखे के कारण फसल खराब होने तथा कर्ज में डूबे होने के कारण आत्महत्या तक कर ली है। झाँसी के निकट ही मेढकी नामक गाँव के एक किसान ने तो कुएँ का पानी सूख जाने के बाद अपनी जान दे दी। पानी की कमी का कोई इलाज नहीं है। या तो पानी उपलब्ध कराया जाये या फिर लोग यहाँ से कहीं और चले जाएँ। लोगों ने पानी की कमी के चलते नहाना-धोना तक बन्द कर दिया है क्योंकि बचे हुए पानी को वे खाने-पीने जैसे जरूरी कामों में इस्तेमाल करते हैं। खिसनी बुजुर्ग के निवासी सुमेर सिंह बताते हैं कि इस वैश्य-ठाकुर बहुल गाँव की सुध सरकार ने पहली बार 1977 में ली थी। पानी की समस्या को देखते हुए यहाँ हैण्डपम्प और कुओं की व्यवस्था की गई।
हालांकि यह तरीका बहुत कारगर नहीं हो सका क्योंकि यह पूरा इलाक़ा पहाड़ी पर स्थित है। बाद में लोगों ने कुओं में पम्प लगाकर भी पानी निकालने की कोशिश की लेकिन बहुत लम्बे समय तक और अधिक सफलता नहीं मिल सकी।
मउरानीपुर में जंगलात विभाग के रेंजर देवेंद्र सिंह कहते हैं कि सरकार का पूरा ध्यान हैण्डपम्प पर ही केन्द्रित है। पुराने कुओं और बावड़ियों के जीर्णोंद्धार की बात तो तब पैदा होती है जब उनमें जरा भी पानी हो। लेकिन वर्षों से बनी अवर्षा की स्थिति ने पानी के किसी भी प्राकृतिक स्रोत में जरा सा भी पानी शेष नहीं रहने दिया है।
ऐसे में उनके जीर्णोंद्धार या नए कुएँ, तालाब खोदने से कुछ मदद मिल पाएगी या नहीं इसमें वह सन्देह ही जताते हैं। आसपास के जंगलों में रहने वाले जंगली जानवर अपना काम घने जंगलों में बने एक तालाब से चला लेते हैं जो हरियाली तथा तमाम अन्य वजहों के चलते सूखने से बच गया है। लेकिन यहाँ के रहवासियों के पानी की समस्या जस-की-तस है।
एक अन्य स्थानीय व्यक्ति भवानी ठाकुर बताते हैं कि सूखे की वजह से यहाँ की तकरीबन 40 फीसदी आबादी दूसरे स्थानों पर पलायन कर चुकी है। स्थानीय लोगों ने अपने पशुओं को खुला छोड़ दिया है क्योंकि उनके पास अपने पीने के लिये पानी ही नहीं है तो वे भला पशुओं को कहाँ से पिलाएँगे। अगर पीने और अन्य जरूरी कामों तक के लिये पानी नहीं है तो खेती किसानी तो बहुत दूर की बात हो जाती है। गाँव में 15-20 ट्रैक्टर हैं लेकिन सबके सब दिखावा बने हुए हैं। खेती करने के लिये मूलभत चीज का अभाव है, पानी नदारद है। गाँव में तकरीबन 30-35 लोग नरेगा योजना के तहत रोजगारशुदा हैं।
गाँव की विभीषिका की खबर जब अधिशासी अभियन्ता जल संस्थान आर एस यादव के नेतृत्त्व में एक टीम ज़मीनी हालात का जायजा लेने पहुँची। उन्होंने स्थानीय ग्रामीणों से बातचीत की और कई बोरिंग को और अधिक गहरा करने का निर्देश जारी कर दिया गया।
स्थानीय जनपद पंचायत के सदस्य प्रीतम सिंह कहते हैं कि पानी की कमी की समस्या आज से नहीं है। बुन्देलखण्ड का पूरा इलाक़ा अब इस समस्या के हल होने को लेकर पूरी तरह नाउम्मीद हो चला है।
इस क्षेत्र में कई किसानों ने सूखे के कारण फसल खराब होने तथा कर्ज में डूबे होने के कारण आत्महत्या तक कर ली है। झाँसी के निकट ही मेढकी नामक गाँव के एक किसान ने तो कुएँ का पानी सूख जाने के बाद अपनी जान दे दी।
पानी की कमी का कोई इलाज नहीं है। या तो पानी उपलब्ध कराया जाये या फिर लोग यहाँ से कहीं और चले जाएँ। लोगों ने पानी की कमी के चलते नहाना-धोना तक बन्द कर दिया है क्योंकि बचे हुए पानी को वे खाने-पीने जैसे जरूरी कामों में इस्तेमाल करते हैं। पानी लाने के लिये लोगों को मीलों लम्बा सफर तय करना पड़ता है।
प्रीतम सिंह कहते हैं कि सरकार जितने प्रयास यहाँ पानी उपलब्ध कराने को लेकर कर रही है उससे कई गुना अधिक उपाय उसे यह शोध करने में करना चाहिए कि आखिर बुन्देलखण्ड ऐतिहासिक तौर पर इस गहन जल संकट से क्यों गुजर रहा है। विज्ञान और तकनीक के इस युग में यह असम्भव नहीं कि इस समस्या का निदान निकल आये।
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