भारत कृषि उपज के उत्पादन, उपभोग और निर्यात के मामले में दुनिया के अग्रणी देशों में शामिल है। कृषि क्षेत्र पहले देश की अर्थव्यवस्था में सर्वाधिक योगदान करने वाला क्षेत्र था। आज भी ये ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। कृषि क्षेत्र के महत्व को देखते हुए नीति-निर्माताओं ने इस क्षेत्र के विकास के लिये कई बड़े कदम उठाएँ हैं।
भारत के कुल सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में योगदान के मामले में आज कृषि व उससे सम्बद्ध क्षेत्र (वन एवं मत्स्य पालन आदि) तीसरे पायदान पर हैं। वर्तमान में जीडीपी में इनका योगदान 17.32 प्रतिशत है। 53.66 प्रतिशत योगदान के साथ सेवा क्षेत्र (सर्विस सेक्टर) पहले पायदान पर और दूसरे पायदान पर उद्योग क्षेत्र (इंडस्ट्री सेक्टर) है, जिसका योगदान करीब 29.02 प्रतिशत है।
आजादी के समय यह परिदृश्य बिल्कुल अलग था। तब जीडीपी में कृषि क्षेत्र का योगदान करीब 55 प्रतिशत था। हर गुजरते दशक के साथ भारत में कृषि क्षेत्र का योगदान कम होता गया और यह एक निर्विवाद तथ्य है कि भारत जैसे कृषि प्रधान देश में (जहाँ अभी भी आधी आबादी कृषि पर निर्भर है) इस क्षेत्र के तेज विकास के बगैर देश की अर्थव्यवस्था को अपेक्षित गति नहीं मिल सकती है। पिछले कुछ वर्षों में इस बात को नीति-निर्माताओं ने शिद्दत से महसूस किया है और इस दिशा में ठोस उपाय भी किये जा रहे हैं। सरकार ने इस दिशा में कई बड़ी योजनाएँ बनाई हैं और उनका क्रियान्वयन भी शुरू हो गया है। भारतीय अर्थव्यवस्था को मुख्य रूप से तीन सेक्टरों में बाँटा जाता है- कृषि व उससे सम्बद्ध क्षेत्र, उद्योग और सर्विस सेक्टर।
वर्तमान कीमतों के आधार पर 1950-51 में भारत की जीडीपी में कृषि क्षेत्र का योगदान 51.81 प्रतिशत था, जो 2013-14 में गिरकर 18.20 प्रतिशत रह गया। फिर भी कृषि का भारतीय अर्थव्यवस्था में योगदान वैश्विक औसत से ज्यादा है। जीडीपी में कृषि क्षेत्र के योगदान का वैश्विक औसत 6.1 प्रतिशत है, जबकि भारत की जीडीपी में इस क्षेत्र का योगदान वर्तमान में 17 प्रतिशत से ज्यादा है। सर्वाधिक कृषि योग्य भूमि के मामले में भारत (16.10 करोड़ हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि) का स्थान दुनिया में दूसरा है। यहाँ कुल सिंचित भूमि 5.5 करोड़ हेक्टेयर है और इस मामले में भारत पहले नम्बर पर है। वहीं कुल मिलाकर भारत में 20 कृषि-जलवायु क्षेत्र हैं और खास बात यह है कि दुनिया की सभी 15 प्रमुख जलवायु (क्लाइमेट) यहाँ पाई जाती है। विश्व में मिट्टी की 60 किस्में पाई जाती हैं और इनमें से 46 प्रकार की मिट्टी भारत में पाई जाती है।
भारत मसालों, दालों, दूध व जूट का सबसे बड़ा उत्पादक है और गेहूँ, चावल, फलों व सब्जियों, गन्ना, कपास और तिलहन का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। साथ ही आम और केला का भी सबसे बड़ा उत्पादक है। एक आकलन के मुताबिक फसल वर्ष 2017-18 में भारत में खाद्यान्न का उत्पादन करीब 28.48 करोड़ टन पहुँच गया था। भारत सरकार ने वर्ष 2018-19 में खाद्यान्न उत्पादन का लक्ष्य 28.52 करोड़ टन रखा है। 2017 में भारत कृषि उत्पादों का नौवां सबसे बड़ा निर्यातक देश था। भारत द्वारा कृषि उत्पादों का निर्यात वित्तीय वर्ष 2018 में 38.21 खरब अमरीकी डॉलर था, जबकि अप्रैल 2018 से अक्टूबर 2018 के बीच यह आंकड़ा 21.61 खरब अमरीकी डॉलर था। भारत सरकार ने 2022 तक कृषि उत्पादों के निर्यात को 60 खरब अमरीकी डॉलर तक पहुँचाने का लक्ष्य निर्धारित किया है।
कृषि क्षेत्र को अहमियत देते हुए भारत सरकार ने 2018-19 के बजट में कृषि के निरन्तर विकास के लिये कई उपायों की योजना बनाई है। इसके अलावा अनुबन्ध पर कृषि कार्य करने वाले लोगों के हित में ‘मॉडल कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग एंड सर्विसेज एक्ट 2018’ तैयार किया है।
प्रोसेस्ड फूड का बढ़ता बाजार
घरेलू बाजार में प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों यानी प्रोसेस्ड फूड की बिक्री बहुत तेजी से बढ़ रही है। उम्मीद है कि 2020 तक बारत में पैकेज्ड फूड का बाजार 65 अरब अमरीकी डॉलर के पार पहुँच जाएगा। फूड प्रोसेसिंग उद्योग के विकास में भारत सरकार की अहम भूमिका रही है। खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय ने इस क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा देने के कई उपाय किये हैं व संयुक्त उपक्रमों, विदेशी सहयोग, इंडस्ट्रियल लाइसेंस और शत-प्रतिशत निर्यात उन्मुखी इकाइयों के प्रस्तावों को मंजूरी दी है।
भारत में कृषि से सम्बन्धित कुछ तथ्य
1. भारत कृषि उत्पादों का दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है।
2. भारत फलों व सब्जियों का सबसे बड़ा उत्पादक देश है।
3. भारत एग्रोकेमिकल्स का दुनिया में चौथा सबसे बड़ा उत्पादक देश है।
4. भारत ब्लैक टी का दुनिया में सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता है।
5. भारत मसालों का दुनिया में सबस बड़ा उत्पादक, उपभोक्ता और निर्यातक है।
6. भारत कृषि उपकरणों, जैसे ट्रैक्टर, हार्वेस्टर और टिलर आदि के निर्माण में दुनिया के अग्रणी देशों में है। ट्रैक्टर उत्पादन में करीब एक-तिहाई हिस्सा केवल भारत का है।
कृषि क्षेत्र के लिये योजनाएँ
कृषि क्षेत्र को तेज रफ्तार देने के लिये भारत सरकार ने कई योजनाओं की शुरुआत की है। केन्द्र सरकार ने 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुना करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इस दिशा में कुछ महत्त्वपूर्ण योजनाएँ निम्नलिखित हैं।
प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान (पीएम-आशा)
सितम्बर 2018 में भारत सरकार ने 15,053 करोड़ रुपए की खरीद नीति की घोषणा की है। इसके तहत राज्य मुआवजा योजना के बारे में फैसला कर सकते हैं और निजी एजेन्सियों के साथ साझेदारी कर सकते हैं, जिससे किसानों को उनकी फसलों की सही कीमत मिलना सुनिश्चित किया जा सके।
परम्परागत कृषि विकास योजना
इस योजना का उद्देश्य है किसानों के समूह को ऑर्गेनिक खेती के लिये प्रोत्साहित करना। 2017-18 के दौरान इसके लिये 7.287 करोड़ अमरीकी डॉलर की राशि आवंटित की गई। वर्ष 2014 से 2018 के बीच 10 हजार समूहों को मंजूरी दी गई।
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना
इसका उद्देश्य ‘पर ड्रॉप मोर क्रॉप’ (हर बूँद से ज्यादा पैदावार) को सुनिश्चित करने के लिये देश की सारी कृषि भूमि तक सिंचाई के साधन पहुँचाना है, जिससे ग्रामीण इलाकों में समृद्धि बढ़ाई जा सके।
इलेक्ट्रॉनिक नेशनल एग्रीकल्चर मार्केट
मौजूदा ‘एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केट कमिटी’(एपीएमसी) के जरिए कृषि उत्पादों के लिये एकीकृत राष्ट्रीय बाजार का निर्माण करने के लिये अप्रैल 2016 में ईएनएएम की शुरुआत की गई। मई 2018 तक ईएनएएम प्लेटफॉर्म पर 98.7 लाख किसानों, करीब एक लाख दस हजार व्यापारियों को पंजीकृत किया गया।
भारत के कुल सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में योगदान के मामले में आज कृषि व उससे सम्बद्ध क्षेत्र (वन एवं मत्स्य पालन आदि) तीसरे पायदान पर हैं। वर्तमान में जीडीपी में इनका योगदान 17.32 प्रतिशत है। 53.66 प्रतिशत योगदान के साथ सेवा क्षेत्र (सर्विस सेक्टर) पहले पायदान पर और दूसरे पायदान पर उद्योग क्षेत्र (इंडस्ट्री सेक्टर) है, जिसका योगदान करीब 29.02 प्रतिशत है।
आजादी के समय यह परिदृश्य बिल्कुल अलग था। तब जीडीपी में कृषि क्षेत्र का योगदान करीब 55 प्रतिशत था। हर गुजरते दशक के साथ भारत में कृषि क्षेत्र का योगदान कम होता गया और यह एक निर्विवाद तथ्य है कि भारत जैसे कृषि प्रधान देश में (जहाँ अभी भी आधी आबादी कृषि पर निर्भर है) इस क्षेत्र के तेज विकास के बगैर देश की अर्थव्यवस्था को अपेक्षित गति नहीं मिल सकती है। पिछले कुछ वर्षों में इस बात को नीति-निर्माताओं ने शिद्दत से महसूस किया है और इस दिशा में ठोस उपाय भी किये जा रहे हैं। सरकार ने इस दिशा में कई बड़ी योजनाएँ बनाई हैं और उनका क्रियान्वयन भी शुरू हो गया है। भारतीय अर्थव्यवस्था को मुख्य रूप से तीन सेक्टरों में बाँटा जाता है- कृषि व उससे सम्बद्ध क्षेत्र, उद्योग और सर्विस सेक्टर।
वर्तमान कीमतों के आधार पर 1950-51 में भारत की जीडीपी में कृषि क्षेत्र का योगदान 51.81 प्रतिशत था, जो 2013-14 में गिरकर 18.20 प्रतिशत रह गया। फिर भी कृषि का भारतीय अर्थव्यवस्था में योगदान वैश्विक औसत से ज्यादा है। जीडीपी में कृषि क्षेत्र के योगदान का वैश्विक औसत 6.1 प्रतिशत है, जबकि भारत की जीडीपी में इस क्षेत्र का योगदान वर्तमान में 17 प्रतिशत से ज्यादा है। सर्वाधिक कृषि योग्य भूमि के मामले में भारत (16.10 करोड़ हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि) का स्थान दुनिया में दूसरा है। यहाँ कुल सिंचित भूमि 5.5 करोड़ हेक्टेयर है और इस मामले में भारत पहले नम्बर पर है। वहीं कुल मिलाकर भारत में 20 कृषि-जलवायु क्षेत्र हैं और खास बात यह है कि दुनिया की सभी 15 प्रमुख जलवायु (क्लाइमेट) यहाँ पाई जाती है। विश्व में मिट्टी की 60 किस्में पाई जाती हैं और इनमें से 46 प्रकार की मिट्टी भारत में पाई जाती है।
भारत मसालों, दालों, दूध व जूट का सबसे बड़ा उत्पादक है और गेहूँ, चावल, फलों व सब्जियों, गन्ना, कपास और तिलहन का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। साथ ही आम और केला का भी सबसे बड़ा उत्पादक है। एक आकलन के मुताबिक फसल वर्ष 2017-18 में भारत में खाद्यान्न का उत्पादन करीब 28.48 करोड़ टन पहुँच गया था। भारत सरकार ने वर्ष 2018-19 में खाद्यान्न उत्पादन का लक्ष्य 28.52 करोड़ टन रखा है। 2017 में भारत कृषि उत्पादों का नौवां सबसे बड़ा निर्यातक देश था। भारत द्वारा कृषि उत्पादों का निर्यात वित्तीय वर्ष 2018 में 38.21 खरब अमरीकी डॉलर था, जबकि अप्रैल 2018 से अक्टूबर 2018 के बीच यह आंकड़ा 21.61 खरब अमरीकी डॉलर था। भारत सरकार ने 2022 तक कृषि उत्पादों के निर्यात को 60 खरब अमरीकी डॉलर तक पहुँचाने का लक्ष्य निर्धारित किया है।
कृषि क्षेत्र को अहमियत देते हुए भारत सरकार ने 2018-19 के बजट में कृषि के निरन्तर विकास के लिये कई उपायों की योजना बनाई है। इसके अलावा अनुबन्ध पर कृषि कार्य करने वाले लोगों के हित में ‘मॉडल कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग एंड सर्विसेज एक्ट 2018’ तैयार किया है।
प्रोसेस्ड फूड का बढ़ता बाजार
घरेलू बाजार में प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों यानी प्रोसेस्ड फूड की बिक्री बहुत तेजी से बढ़ रही है। उम्मीद है कि 2020 तक बारत में पैकेज्ड फूड का बाजार 65 अरब अमरीकी डॉलर के पार पहुँच जाएगा। फूड प्रोसेसिंग उद्योग के विकास में भारत सरकार की अहम भूमिका रही है। खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय ने इस क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा देने के कई उपाय किये हैं व संयुक्त उपक्रमों, विदेशी सहयोग, इंडस्ट्रियल लाइसेंस और शत-प्रतिशत निर्यात उन्मुखी इकाइयों के प्रस्तावों को मंजूरी दी है।
भारत में कृषि से सम्बन्धित कुछ तथ्य
1. भारत कृषि उत्पादों का दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है।
2. भारत फलों व सब्जियों का सबसे बड़ा उत्पादक देश है।
3. भारत एग्रोकेमिकल्स का दुनिया में चौथा सबसे बड़ा उत्पादक देश है।
4. भारत ब्लैक टी का दुनिया में सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता है।
5. भारत मसालों का दुनिया में सबस बड़ा उत्पादक, उपभोक्ता और निर्यातक है।
6. भारत कृषि उपकरणों, जैसे ट्रैक्टर, हार्वेस्टर और टिलर आदि के निर्माण में दुनिया के अग्रणी देशों में है। ट्रैक्टर उत्पादन में करीब एक-तिहाई हिस्सा केवल भारत का है।
कृषि क्षेत्र के लिये योजनाएँ
कृषि क्षेत्र को तेज रफ्तार देने के लिये भारत सरकार ने कई योजनाओं की शुरुआत की है। केन्द्र सरकार ने 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुना करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इस दिशा में कुछ महत्त्वपूर्ण योजनाएँ निम्नलिखित हैं।
प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान (पीएम-आशा)
सितम्बर 2018 में भारत सरकार ने 15,053 करोड़ रुपए की खरीद नीति की घोषणा की है। इसके तहत राज्य मुआवजा योजना के बारे में फैसला कर सकते हैं और निजी एजेन्सियों के साथ साझेदारी कर सकते हैं, जिससे किसानों को उनकी फसलों की सही कीमत मिलना सुनिश्चित किया जा सके।
परम्परागत कृषि विकास योजना
इस योजना का उद्देश्य है किसानों के समूह को ऑर्गेनिक खेती के लिये प्रोत्साहित करना। 2017-18 के दौरान इसके लिये 7.287 करोड़ अमरीकी डॉलर की राशि आवंटित की गई। वर्ष 2014 से 2018 के बीच 10 हजार समूहों को मंजूरी दी गई।
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना
इसका उद्देश्य ‘पर ड्रॉप मोर क्रॉप’ (हर बूँद से ज्यादा पैदावार) को सुनिश्चित करने के लिये देश की सारी कृषि भूमि तक सिंचाई के साधन पहुँचाना है, जिससे ग्रामीण इलाकों में समृद्धि बढ़ाई जा सके।
इलेक्ट्रॉनिक नेशनल एग्रीकल्चर मार्केट
मौजूदा ‘एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केट कमिटी’(एपीएमसी) के जरिए कृषि उत्पादों के लिये एकीकृत राष्ट्रीय बाजार का निर्माण करने के लिये अप्रैल 2016 में ईएनएएम की शुरुआत की गई। मई 2018 तक ईएनएएम प्लेटफॉर्म पर 98.7 लाख किसानों, करीब एक लाख दस हजार व्यापारियों को पंजीकृत किया गया।
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