बुझानी होगी धरती की प्यास

बुझानी होगी धरती की प्यास।
बुझानी होगी धरती की प्यास।

नदी, तालाब, जोहड़, कुंड, झील, बावडियाँ, कुंओं आदि परंपरागत जलस्त्रोतों का जीवन में विशिष्ट स्थान होता था इसलिए यह भी होने लगा कि जीवन के अधिकतर शुभ प्रसंगों में इनकी पूजा अनिवार्य अनुष्ठान की तरह शामिल हो गई।

 
बादलों से जलवर्षण के दिन हमारी परम्पराओं में सौभाग्य के संवाहक माने गए हैं। यह वह अवधि होती है, जब किसान धरती में अपने और सम्पूर्ण मानवता के सपनों के बीज बोते हैं और शायद इसी संचेतना को सम्मान देने के लिए विविध धर्मचेतनाओं के प्रचेता किसी एक स्थान पर ठहर जाते हैं। अन्यथा रमते जोगी और बहते पानी को विश्राम कहां ?
 
भारत में चार महीने मानसून के माने गए हैं। सामान्य भाषा में इन चार महीनों को चातुर्मास कहते हैं। इनमें भी आषाढ़ का महीना मानसून के उत्साह और उंद्वेलन के क्षणों के साक्ष्य का महीना है। इस साक्ष्य को सुख में परिवर्तित करने के लिए तैयारियाँ करनी होती हैं। प्राचीन काल में यह तैयारी बहुत अनुष्ठान पूर्वक होती थी। सच तो यह है कि वैदिक काल में जो अनुष्ठान बरसात के स्वागत की तैयारियों के उत्साह के पोषक थे, कालान्तर में वो बरसात के आह्वान के अनुष्ठान में परिवर्तित हो गए। यह वह दौर था जब विविध अनुष्ठान ही व्यक्ति के अंतस के उत्साह को अभिव्यक्त करने का सशक्त माध्यम हुआ करते थे। धरती पर अमृत की बूंदों के वर्षण का शगुन हो और इंसानों में उल्लास के रंग न बिखरें, यह कैसे सम्भव था? दरअसल मानसून की शुरुआत के दिन धरती के गर्भ में फसल के बीज रोपने के दिन ही नहीं होते, बल्कि ये दिन इस सम्भावना का सृजन भी करते हैं कि अपनी जरूरत का पानी संग्रहित किया जा सके और धरती के अंतस की प्यास को भी बुझाने की व्यवस्था की जा सके। जब से पानी पाइप लाइनों के माध्यम से घर-घर पहुँचा, परम्परागत जल-स्रोतों से इंसान कट गया और स्थिति यह हुई कि अधिकांश नदियों के प्राचीन घाट उजाड़ हो गए। कुछ जलस्रोत उपेक्षा के शिकार हुए और कुछ जमीन के लिए बढ़ते इंसानी लालच का शिकार हो गए। आज भूजलस्तर इतना नीचे चला गया है कि नलकूप हांफने लगे हैं। राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र में तो प्रमुख नदियों के किनारे स्थित इलाके भी भूजल की दृष्टि से डार्क जोन में चले गए हैं।
 
मानसून एक अवसर देता है कि हम वर्षाजल संग्रहण कर जरूरत का पानी तो एकत्र करें ही, भूगर्भ जल को कायम रखने की दिशा में भी जागृत प्रयास करें। यह अवसर जीवन के लिए शुभ शगुन जागृत करने का अवसर है और इसीलिए मानसून का स्वागत उत्साहपूर्वक किया जाना चाहिए। पश्चिमी राजस्थान के जैसलमेर शहर में एक तालाब है-गढ़सीसर तालाब। रियासतकाल में पहली बारिश से पहले नागरिकों के साथ मिलकर जैसलमेर के रावल स्वयं इस तालाब की सफाई के लिए श्रमदान करते थे। मरू भूमि से अधिक संचित पानी प्रांजलता के संरक्षण की चेतना कहाँ मिलेगी, लेकिन आज देश के अधिकांश हिस्सों में इस चेतना को जागृत करना महत्त्वपूर्ण हो गया है। 

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Post By: Shivendra
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