वर्षा : वर्षा का वितरण, वार्षिक वितरण, मासिक वितरण, वर्षा के दिन, वर्षा की तीव्रता, वर्षा की परिवर्तनशीलता, वर्षा की प्रवृत्ति एवं वर्षा की संभाव्यता।
वाष्पन क्षमता : मिट्टी में नमी एवं उसका उपयोग, नमी, जल अल्पता (जलाभाव), जलाधिक्य, सूखा (अनावृष्टि), जलवायु विस्थापन
जल संसाधन का मूल्यांकन
वर्षा : प्राकृतिक जल का बहाव एवं वाष्पोत्सर्जन की पूर्ति वर्षा द्वारा होती है। जल संसाधन संभाव्यता, विकास एवं उपयोग की दृष्टि से वर्षा की विचलनशीलता गहनता और प्रादेशिक व्यवस्था के लिये इसका विस्तृत ज्ञान आवश्यक है।
बस्तर जिले में 95 प्रतिशत वार्षिक वर्षा दक्षिण-पश्चिमी मानसून के द्वारा जून से सितंबर के मध्य प्राप्त होती है। बस्तर जिले की औसत वार्षिक वर्षा 1,371 मिमी है। जिसके वितरण में स्थानिक विशेषताएँ विद्यमान है। जिले में जहाँ जून में मानसून का प्रारंभ एकाएक होता है, वहीं अक्टूबर के मध्य तक इसका निवर्तन हो जाता है।
वर्षा का मासिक एवं वार्षिक वितरण :
बस्तर जिले के 12 वर्षामापी केंद्रों से वर्ष 1957-1992 की अवधि के लिये प्राप्त आंकड़ों के आधार पर जिले की मासिक एवं वार्षिक वर्षा का अध्ययन किया गया है। जिले में सर्वाधिक वर्षा जुलाई में होती है। 1957-92 की अवधि में सर्वाधिक औसत वर्षा अंतागढ़ में 1,538 मिमी हुई है। सबसे कम वर्षा कोंटा में 1,206 मिमी हुई है। अन्य सभी केंद्रों में 1300 से 1400 मिमी के मध्य वर्षा हुई है। सितंबर के बाद वर्षा की मात्रा तीव्र गति से कम होती है। अक्टूबर में वार्षिक वर्षा 5 प्रतिशत हुई है। शीतकाल में चक्रवाती प्रभाव से जनवरी एवं फरवरी के महीनों में भी वर्षा हो जाती है। इस वर्षा की मात्रा अत्यंत अल्प होती है। फिर भी यह वर्षा रबी फसलों के लिये लाभकारी है। इस अवधि में बस्तर जिले के कांकेर में 7.36 मिमी, भानुप्रतापपुर में 2.61, जगदलपुर में 6.5, कोण्डागाँव में 3.5, अंतागढ़ में 4, बीजापुर में 2.53, भोपालपटनम में 6, कोंटा में 1.39, दंतेवाड़ा में 4.15, केशकाल में 6.31, सुकमा में 1.23 तथा नारायणपुर में 4.53 मिमी वर्षा होती है। शीतकालीन वर्षा सबसे अधिक कांकेर में तथा सबसे कम सुकमा में होती है। जिले में मार्च, अप्रैल एवं मई शुष्क महीने हैं।बस्तर जिले में वार्षिक वर्षा की मात्रा जिले के पश्चिमी क्षेत्र में अधिक है। जो दक्षिण-पूर्वी क्षेत्र में कम होते जाती है। यहाँ वर्षा दक्षिण-पश्चिम मानसून से होती है। अत: पश्चिम क्षेत्र में अधिक और पूर्वी क्षेत्र में कम वर्षा होती है। वार्षिक वर्षा की मात्रा में मानसून की अनिश्चितता के कारण भिन्नता दृष्टिगोचर होती है। इसके कारण कभी-कभी अकाल की स्थिति निर्मित हो जाती है। जिले में बंगाल की खाड़ी की मानसून से कम वर्षा होती है।
वर्षा की मासिक एवं वार्षिक विचलनशीलता : बस्तर जिले की औसत वार्षिक वर्षा की विचलनशीलता 22.56 प्रतिशत है। जिले के विभिन्न केंद्रों की वार्षिक वर्षा की विचलनशीलता का विवरण तालिका क्र. 2.1 से दर्शाया गया है।
वार्षिक वर्षा के गुणांक की विभिन्नता वर्षा की अनुकूलता एवं औचित्य को दर्शाता है। उच्च गुणांक वर्षा की निम्न अनुकूलता एवं औचित्य की विभिन्नता बताता है। 20 प्रतिशत से अधिक विचलनशीलता कृषि के लिये खतरे को इंगित करता है।
जिले में जगदलपुर, बीजापुर एवं अंतागढ़ 20 प्रतिशत से कम विचलनशीलता वाले केंद्र है। कांकेर, भानुप्रतापपुर, कोण्डागाँव, भोपालपटनम, कोंटा, दंतेवाड़ा, केशकाल, सुकमा, नारायणपुर, 20 प्रतिशत से अधिक विचलनशीलता वाले केंद्र हैं। अत: इन क्षेत्रों में कृषि के लिये सिंचाई की आवश्यकता होगी।
जिले में दक्षिण-पश्चिम मानसून से 96 प्रतिशत वर्षा होती है। शेष 4 प्रतिशत वर्षा लौटते मानसून (उत्तर-पूर्व) से होती है। मानसून के दौरान जिले के सभी केंद्रों में वर्षा की विभिन्नता पायी गयी है। इसलिये कृषि सिंचाई हेतु पानी के संचय का बड़ा महत्त्व है। वर्षा की विभिन्नता के कारण मासिक विचलनशीलता, वार्षिक विचलनशीलता से उच्च है। सितंबर के बाद वर्षा में कमी होती है। जिसके कारण विचलनशीलता बढ़ते जाती है। जैसे जगदलपुर में वार्षिक विचलनशीलता 11.89 प्रतिशत, मासिक विचलनशीलता जून-अक्टूबर में 44.49 प्रतिशत, नवंबर-फरवरी में 216.66 प्रतिशत तथा मार्च-मई में 78.20 प्रतिशत है। विभिन्न केंद्रों की वर्षा की विचलनशीलता को तालिका क्र. 2.2 में दर्शाया गया है।
जिले में धान (खरीफ) प्रमुख फसल है। जिसे अधिक जल की आवश्यकता होती है। खरीफ के मौसम में विचलनशीलता अधिक होने के कारण इस फसल के लिये जल पूर्ति की शंका प्राय: बनी रहती है। परंतु, नवंबर फरवरी में वर्षा विचलनशीलता अधिक है, जिससे धान की फसल ले पाना संभव नहीं है।
वर्षा की प्रवृत्ति : बस्तर जिले में वर्षा की मात्रा में प्रत्येक वर्ष परिवर्तन होता रहा है। मानचित्र क्र. 2.3 वास्तविक वर्षा की उच्च प्रवृत्ति की विभिन्नता को दर्शाता है। इससे वर्षा का सामान्यीकृत स्वरूप निर्धारित नहीं किया जा सकता, किंतु यह तथ्य अपेक्षाकृत स्पष्ट है कि सामान्यत: अधिक वर्षा की अवधि न्यून वर्षा युक्त अवधि का अनुसरण करती है। जिले के विभिन्न केंद्रों में वर्षा अनिश्चितता एवं परिवर्तनशीलता की स्थिति में है। अत: ये केंद्र जल संसाधन के विकास की दृष्टि से अनुकूल नहीं है। जिले में 1957-92 की अवधि की वर्षा की प्रवृत्ति को ज्ञात किया गया है। 1957-70 की अवधि में वार्षिक वर्षा की मात्रा में कमी आयी है। 1980-85 की अवधि में वार्षिक वर्षा अधिक हुई है। 1985-92 की अवधि में प्रत्येक केंद्र में वार्षिक वर्षा की मात्रा में प्रति वर्ष कमी आती जा रही है। जिले के विभिन्न वर्षामापी केंद्रों पर वर्षा की प्रवृत्ति को दर्शाने वाली प्रतिगमन रेखा वर्षा की मात्रा में क्रमश: ह्रास को प्रदर्शित कर रही है। ह्रास की इस दर में सभी स्थानों पर विभिन्नता के कारण ह्रास का स्थानिक स्वरूप निर्धारित नहीं होता। वर्षा ह्रास की अधिकतम दर दंतेवाड़ा में (-3.10 सेमी) तथा न्यूनतम कोण्डागाँव में (-0.36 सेमी) है (मानचित्र क्र. 2.3)। जिले में ह्रास की दर भानुप्रतापपुर में -0.62 सेमी, कांकेर में -1.0 सेमी, अंतागढ़ में -1.89 सेमी, केशकाल में -1.62 सेमी, नारायणपुर में -0.84 सेमी, भोपालपटनम में 1.99 सेमी, जगदलपुर में -0.58 सेमी, बीजापुर में -1.30 सेमी, सुकमा में -1.01 सेमी तथा कोंटा में -1.32 सेमी है। जिले में दंतेवाड़ा में ह्रास दर अधिक है, जो इस धान उत्पादक क्षेत्र के लिये संकट का सूचक है। वर्षा के ह्रास की इस प्रवृत्ति के कारण क्षेत्र में जल संसाधन का उचित एवं सही प्रबंधन जरूरी है। दंतेवाड़ा में अधिक ह्रास होने का कारण वनों की कटाई एवं लौह खनन की क्रिया है। बस्तर जिले में वनों की अधिकता है। लेकिन लगातार वनों की कटाई होने के कारण वर्षा की मात्रा कम होती जा रही है। यहाँ वर्षा के जल का उपयोग पूर्णत: नहीं हो पाता है। क्योंकि यहाँ स्टॉपडेम अथवा जलाशयों की कमी है। इसलिये जिले में जल संसाधन के प्रबंधन पर ध्यान देना अधिक आवश्यक है।
वर्षा की संभावना : कृषि प्रधान क्षेत्र में आर्थिक उन्नति कृषि एवं जल संसाधन पर निर्भर होती है। अत: वर्षा की संभावना को ज्ञात करना व्यावहारिक आवश्यकता है। धान की फसल के लिये वर्षा एवं सिंचाई की आवश्यकता होती है। वार्षिक वर्षा की मात्रा 1,000 मिमी से कम होने पर फसल कमजोर होती है एवं 900 मिमी से कम वर्षा होने पर वृहत पैमाने पर फसल को नुकसान होता है। 1000, 900 मिमी से कम वार्षिक वर्षा की संभावना को पाने की कोशिश इस जिले में की गई है। हुमोण्ड एवं मैकोलांग 1974, 98 (मानचित्र क्र. 2.4, 2.5)।
दंतेवाड़ा में सबसे कम वर्षा होने की संभावना 700 मिमी है। कोण्डागाँव, नारायणपुर, केशकाल, कोंटा, सुकमा, कांकेर, भानुप्रतापपुर में 900 मिमी से कम वर्षा होने की संभावना है और जगदलपुर, अंतागढ़, बीजापुर, भोपालपटनम में 1,000 मिमी से अधिक वर्षा होने की संभावना 90 प्रतिशत से अधिक है। (Z Scores) निर्देशित करता है कि जिले में एक तिहाई क्षेत्र में सूखे की संभावना 25 प्रतिशत से कम है और 2/5 से ज्यादा क्षेत्र में इसकी संभावना 30 प्रतिशत से ज्यादा है। जिसके कारण यह प्रदर्शित होता है कि बिना कोई सिंचाई के प्राय: सभी क्षेत्र में धान फसल न होने की संभावना है।
जलाधिशेष : बस्तर जिले के विभिन्न स्थानों की मासिक वर्षा तथा सामान्य वाष्पीय वाष्पोत्सर्जन के तुलनात्मक अध्ययन से मासिक वर्षा के संदर्भ में किसी क्षेत्र में जलाभाव एवं जलाधिक्य की स्थिति स्पष्ट होती है। जलाधिशेष से उस क्षेत्र की जल समस्याओं एवं जल की आवश्यकता का मूल्यांकन भी किया जा सकता है। जल संतुलन का अध्ययन सर्वप्रथम 1940 में थार्नथ्वेट के द्वारा किया गया। थार्नथ्वेट की अवधारण की पुन: संरचना थार्नथ्वेट एवं माथर (1955) द्वारा एक विस्तृत सीमा में मिट्टी और वनस्पति पर की गई थी। भारत में सुब्रम्हण्यम (1984) ने इस अवधारणा को विकसित किया। थार्नथ्वेट एवं माथर ने अपनी संकल्पना में अधिकतम वर्षाकाल में जल संग्रहण एवं न्यूनतम वर्षा काल में जल आपूर्ति को प्रमुख आधार माना है। इन्होंने मिट्टी के संदर्भ में वर्षण एवं सामान्य वाष्पोत्सर्जन का तुलनात्मक अध्ययन करते हुए किसी क्षेत्र के मासिक जल संतुलन या जल बजट की गणना की है। बस्तर जिले के सभी केंद्रों के लिये जल संतुलन की गणना थार्नथ्वेट एवं माथर द्वारा प्रतिपादित बुक कीपिंग प्रक्रिया के आधार पर वर्ष 1957-92 की अवधि के लिये की गई है (परिशिष्ट क्रमांक 1, मानचित्र क्र. 2.6)।
सामान्य वाष्पोत्सर्जन : मिट्टी की सतह तथा वनस्पति के द्वारा जल उत्सर्जन क्रिया की मात्रा सामान्य वाष्पोत्सर्जन है। विभिन्न प्रकार की मिट्टी में आर्द्रता का मान थार्नथ्वेट एवं माथर की सामान्य वाष्पोत्सर्जन सारणी से ज्ञात किया गया है।
बस्तर जिले में सामान्य वाष्पोत्सर्जन की गणना के लिये कांकेर एवं जगदपुर को चुना गया है। कांकेर जिले के उत्तरी मैदानी क्षेत्र से तथा जगदलपुर दक्षिण-पूर्वी पर्वतीय एवं वनाच्छादित क्षेत्र को प्रतिनिधित्व करते हैं। जिल में औसत सामान्य वाष्पोत्सर्जन की मात्रा अधिकतम कांकेर में (1691 मिमी वार्षिक) है। जबकि न्यूनतम वाष्पोत्सर्जन की मात्रा दक्षिण पूर्व पर्वतीय तथा वनाच्छादित क्षेत्र जगदलपुर में (1280 मिमी) है। जिले में सामान्य वाष्पोत्सर्जन की मात्रा दक्षिण से उत्तर की ओर बढ़ते जाती है। अत: उत्तरी भाग में जल की आवश्यकता दक्षिणी भाग की तुलना में अधिक है। इसके निम्नलिखित दो कारण हैं :-
(1) जिले के उत्तरी क्षेत्र में तापक्रम जनवरी में 20 डिग्री सेल्सियम तथा मई में 45 डिग्री सेल्सियस रहता है। जबकि दक्षिण क्षेत्र में इन्हीं महीनों में तापक्रम क्रमश: 10 डिग्री सेल्सियस तथा 32 डिग्री सेल्सियस रहता है। दक्षिणी क्षेत्र में कम तापक्रम होने के कारण सामान्य वाष्पोत्सर्जन की मात्रा घट जाती है। जबकि उत्तरी क्षेत्र में वाष्पोत्सर्जन की मात्रा बढ़ जाती है।
(2) मिट्टी में संचित आर्द्रता का निवेश घटने के साथ सामान्य वाष्पोत्सर्जन की मात्रा भी घटते जाती है। थार्नथ्वेट एवं माथर के सामान्य वाष्पोत्सर्जन सारणी के अनुसार जिले के उत्तरी क्षेत्र में मिट्टी में संचित आर्द्रता 200 मिमी एवं दक्षिणी में 250 मिमी है। सामान्यत: अधिकतम सामान्य वाष्पोत्सर्जन अधिकतम तापमान वाले मई एवं जून में तथा न्यूनतम सामान्य वाष्पोत्सर्जन दिसंबर एवं जनवरी में होता है।
मासिक वर्षण एवं मान्य वाष्पोत्सर्जन के अंतर्संबंधों के परिणामस्वरूप जलाभाव एवं जलाधिक्य की स्थिति विकसित होती है। मिट्टी में आर्द्रत संचयन की मात्रा भी वर्षण एवं वाष्पोत्सर्जन के द्वारा कुछ मात्रा में संतुलित होती है।
संचित आर्द्रता उपयोग एवं संचित सामान्य जल हानि : बस्तर जिले में मुख्यत: दो प्रकार की मिट्टी लाल बलुई तथा लाल दोमट पाई जाती है। संपूर्ण मानसून की अवधि में लाल बलुई मिट्टी 200 मिमी और लाल दोमट मिट्टी में 250 मिमी आर्द्रता संचित होती है। यह मात्रा इन मिट्टियों की पूर्ण क्षमता है। आर्द्रता की मात्रा अक्टूबर-नवंबर से घटती जाती है, क्योंकि सितंबर के पश्चात वर्षा की मात्रा क्रमश: कम होती जाती है। जल की आवश्यकता की पूर्ति हेतु मिट्टी में संचित आर्द्रता का उपयोग प्रारंभ हो जाता है। संचित आर्द्रता की मात्रा तालिका क्र. 2.3 में प्रदर्शित है।
अप्रैल तथा मई तक प्राय: सभी स्थानों पर संचित आर्द्रता की मात्रा न्यूनतम होती है। यह स्थिति मानसून के आगमन तक बनी रहती है। जबकि जुलाई एवं अगस्त में वाष्पोत्सर्जन की मात्रा से वर्षा की मात्रा अधिक होती है। जिसमें मिट्टी पुन: आर्द्रता से पूर्ण हो जाती है।
जलाभाव : सामान्य वाष्पोत्सर्जन की मात्रा, वास्तविक वाष्पोत्सर्जन की मात्रा से ज्यादा होने पर जल की कमी होती है। इस स्थिति को जलाभाव की स्थिति कहते हैं। यह अवस्था अक्टूबर से शुरू होकर जून तक होती है। अक्टूबर में थोड़ा कम जलाभाव 5 मिमी होता है। जबकि नवंबर में 10 से 15 मिमी जलाभाव होता है। यह मात्रा मई में बहुत बढ़ जाता है। जैसे - भानुप्रतापपुर में मई में 200 से 225 मिमी जलाभाव पाया गया। जगदलपुर में मई में 109 मिमी जलाभाव पाया गया। जलाभाव जून में थोड़ा कम हो जाता है। बस्तर जिले के विभिन्न केंद्रों में 1957-92 की अवधि में वार्षिक जलाभाव जगदलपुर में 515.77 मिमी कोंटा में 622.52 मिमी, दंतेवाड़ा में 640.55 मिमी, भोपालपटनम में 644.16 मिमी, सुकमा में 675.16 मिमी, बीजापुर में 709.27 मिमी, कोण्डागाँव में 718.51 मिमी, नारायणपुर में 746.22 मिमी, कांकेर में 728.5 मिमी, केशकाल में 777.25 मिमी, अंतागढ़ में 804.55 मिमी एवं भानुप्रतापपुर में 819.36 मिमी है। (मानचित्र क्र. 2.8)।
बस्तर जिले में इस तरह दो प्रदेश निर्मित हो गये हैं। उत्तर में अधिक जलाभाव का प्रदेश एवं दक्षिण में कम जलाभाव का प्रदेश। जिन स्थानों में जैसे भानुप्रतापपुर, कोंडागाँव, अंतागढ़, केशकाल, नारायणपुर, वार्षिक वर्षा की मात्रा कम है, वहाँ जलाभाव अधिक है। इसके विपरीत अधिकतम वर्षायुक्त क्षेत्र में जलाभाव का प्रतिशत कम है। जिले के उत्तरी भाग में मिट्टी की संचयी आर्द्रता क्षमता 200 मिमी है। आर्द्रता कम होने के कारण जलीय आवश्यकता का संभरण नहीं हो पाता, इसलिये जलाभाव हो जाता है। दक्षिणी क्षेत्र में मिट्टी की संचयी आर्द्रता क्षमता 250 मिमी है। साथ ही वार्षिक वर्षा की मात्रा भी अधिक है। इसलिये ये क्षेत्र न्यूनतम जलाभाव के क्षेत्र हैं।
बस्तर जिले के विभिन्न स्थानों पर जलाभाव के मासिक अध्ययन से स्पष्ट है कि सामान्य वर्षा की स्थिति में जिले में जलाभाव की सामान्यत: दो स्थिति निर्मित हो जाती है।
(1) उत्तर मानसून काल (अक्टूबर से फरवरी)
(2) पूर्व मानसून काल (मार्च से मध्य जून)
मानसून काल में संचित आर्द्रता से शीतकालीन जलीय आवश्यकता की पूर्ति पूर्ण नहीं हो पाती इसलिये शुष्कता की स्थिति निर्मित हो जाती है। मार्च-अप्रैल तक मिट्टी में संचित आर्द्रता की अधिकांश मात्रा समाप्त हो जाती है। जिसके कारण जलाभाव की स्थिति निर्मित हो जाती है, जो मानसून के आगमन तक बना रहता है। जिले में भानुप्रतापपुर और अंतागढ़ में अन्य केंद्रों की तुलना में मासिक जलाभाव भी अधिक है।
जलाधिक्य : वर्षा के दिन में जब वर्षा की मात्रा सामान्य वाष्पोत्सर्जन की मात्रा से ज्यादा होता है। तब पानी की अधिकतम मात्रा सूखी मिट्टी में संचित होती है। जब तक भूमि में आर्द्रता संचय करने की क्षमता रहती है। तब तक जल मिट्टी में अवशोषित होता रहता है। अगस्त-सितंबर में जल बहाव अधिक होता है। जबकि जुलाई में जल बहाव कम रहता है। जिले में वार्षिक वर्षा की अधिकता के कारण कई केंद्रों में जल का बहाव जून से ही प्रारंभ हो जाता है। अध्ययन की अवधि में जगदलपुर में 78 मिमी, कोंडागाँव में 7 मिमी, अंतागढ़ में 37 मिमी, बीजापुर में 11 मिमी जल का बहाव हुआ है। बाकी केंद्रों में जुलाई से जलाधिक्य प्रारंभ होता है, जिसकी मात्रा 227 मिमी से 450 मिमी तक पाया गया है।
बस्तर जिले में अध्ययन अवधि (1957-92) में वार्षिक जलाधिक्य अंतागढ़ में 1,239 मिमी, भोपालपटनम में 1,199.86 मिमी, बीजापुर में 1,181.61 मिमी, जगदलपुर में 1,088.75 मिमी, केशकाल में 1,025.65 मिमी, नारायणपुर में 913.41 मिमी, दंतेवाड़ा में 904.36 मिमी, सुकमा में 970.94 मिमी, कोंडागाँव में 888.25 मिमी, कोंटा में 823.55 मिमी एवं कांकेर में 701.00 मिमी पाया गया है (मानचित्र क्र. 2.9)। मिट्टी में आर्द्रता ग्रहण करने की क्षमता एवं वार्षिक वर्षा की मात्रा के कम या अधिक होने के कारण पानी के बहाव में भिन्नता पाई जाती है। अंतागढ़, भोपालपटनम, बीजापुर, जगदलपुर केंद्रों में जल का बहाव अधिक है और कोंटा, कांकेर, भानुप्रतापपुर में जल का बहाव कम है।
आर्द्रता पर्याप्तता : किसी क्षेत्र की जल की आवश्यकता एवं वर्षा के द्वारा उसकी आपूर्ति का अध्ययन आवश्यक है। आर्द्रता पर्याप्तता सूचकांक वास्तविक वाष्पोत्सर्जन का आनुपातिक स्वरूप है। जिसके माध्यम से किसी क्षेत्र की जलीय आवश्यकता के अनुपात में जल उपलब्धता की सूचना प्राप्त होती है। धान की कृषि के लिये 60 प्रतिशत की आर्द्रता उपयुक्त है (सुब्रह्मण्यम एवं सुब्बाराव, 1963)। आर्द्रता पर्याप्ताता सूचकांक की कम मात्रा क्षेत्र में अपर्याप्त आर्द्रता संचय को इंगित करता है। 40 से 60 प्रतिशत की आर्द्रता तिलहन के उत्पादन में उपयुक्त होता है।
बस्तर जिले में आर्द्रता पर्याप्तता का अधिक प्रतिशत जगदलपुर में 70.00 प्रतिशत, भोपालपटनम में 60.38 प्रतिशत, कोंटा में 60.78 प्रतिशत है। अधिक वार्षिक वर्षा, मिट्टी की उच्च जल धारण क्षमता, इस क्षेत्र में उच्च आर्द्रता पर्याप्तता को दर्शाता है। जिले में न्यूनतम आर्द्रता पर्याप्तता का प्रतिशत भानुप्रतापपुर में 51.65 प्रतिशत, अंतागढ़ में 52.35 प्रतिशत तथा केशकाल में 54.63 प्रतिशत पायी जाती है। जिले के अन्य भागों में सामान्यत: 55 से 60 प्रतिशत तक आर्द्रता पर्याप्तता की मात्रा रहती है (मानचित्र क्र. 2.10)। जिले की मिट्टियों में आर्द्रता पर्याप्त है एवं सर्वत्र कृषि कार्य किया जा सकता है। यद्यपि आर्द्रता पर्याप्तता में ऋतुगत विभिन्नता देखी जा सकती है। जिले में आर्द्रता की अधिकता मानसून काल में 90 प्रतिशत तक होती है और अक्टूबर के बाद आर्द्रता में कमी होने लगती है। जो मई तक 2 से 5 प्रतिशत तक पहुँच जाती है। इसलिये जिले में सिंचाई की व्यवस्था पर ही कृषि की जा सकती है।
शुष्कता सूचकांक की परिवर्तनशीलता : जल संसाधन के अध्ययन में शुष्कता के अध्ययन का विशेष महत्त्व है। जिसमें वर्षा से सम्बन्धित जलाभाव एवं वाष्पोत्सर्जन का अध्ययन होता है। शुष्कता किसी क्षेत्र में वार्षिक आर्द्रता की कमी अथवा आवश्यक वार्षिक वर्षा की कमी पर निर्भर रहता है। बस्तर जिले में शुष्कता ज्ञात करने के लिये थार्नथ्वेट एवं माथर (1977) की विधि, शुष्कता सूचकांक = जलाभाव/वाष्पोत्सर्जन × 100 को अपनाया गया है। वर्षा अधिक होने से जल प्रवाह होता है। प्रदेश में वर्षा कुछ माह में ही अधिक होता है। इस स्थिति में सामान्य वाष्पोत्सर्जन (P.E.) होता है। कम वर्षा होना जलाभाव या शुष्कता को प्रदर्शित करता है। जिस समय जल का कम प्रवाह रहता है, उस समय मिट्टी में संचित आर्द्रता से जल प्राप्त होता है। इस स्थिति में वास्तविक वाष्पोत्सर्जन (A.E.) होता है। शुष्कता सूचकांक ज्ञात करने का मुख्य उद्देश्य कृषि जलवायु प्रदेश के जल संसाधन क्षमता का आकलन कर जिले में जलवायु प्रकार ज्ञात करना है। जिससे जलवायु के अनुरूप जिले के लिये उपयुक्त फसल का निर्धारण किया जा सके।
जिले में अध्ययन के लिये 12 वर्षामापी केंद्रों में, वर्ष 1957-92 की वार्षिक वर्षा, मासिक वर्षा, वाष्पोत्सर्जन, मिट्टी की आर्द्रता ग्रहण करने की क्षमता का विश्लेषण किया गया है। जिले में पायी जाने वाली लाल बलुई तथा लाल दोमट मिट्टी में आर्द्रता ग्रहण करने की क्षमता क्रमश: 200 एवं 250 मिमी है।
शुष्कता सूचकांक का उपयोग अनावृष्टि की तीव्रता और आवृत्ति नापने के लिये किया जाता है। अनावृष्टि को किसी वर्ष विशेष के धनात्मक अपसरण द्वारा दर्शाया जाता है। सुब्रह्मण्यम (1982) ने अनावृष्टि तीव्रता को शुष्कता सूचकांक अपसरण में, मानक विचलन के रूप में मध्यमान मापन के आधार पर वर्गीकृत किया गया है।
(1) मध्यम सूखा (विचलन 0 - 1/2)
(2) वृहत सूखा (विचलन 1/2 - 1)
(3) भीषण सूखा (विचलन 1 - 2)
(4) भीषणतम सूखा (विचलन 2 - से अधिक)
बस्तर जिले में अनावृष्टि की विभिन्न तीव्रताओं को 1957-92 में 19 वर्ष के बीच किया गया है। जिले के सभी 12 वर्षामापी केंद्रों में भीषणतम सूखा परिलक्षित होता है।
अत: जिले के अध्ययन अवधि के 50 प्रतिशत वर्ष भीषणतम सूखा वर्ष के अंतर्गत आते हैं। अनावृष्टि का मुख्य लक्षण निम्नलिखित क्षेत्र में प्रदर्शित हो रहा है (मानचित्र क्र. 2.11)।
भीषणतम सूखा क्षेत्र
(1) कांकेर : यह जिले के उत्तर भाग में स्थिति है। यहाँ वार्षिक वर्षा की औसत मात्रा 1,211 मिमी है। मिट्टी की आर्द्रता क्षमता 250 मिमी है। शुष्कता सूचकांक का औसत माध्यम 41.95 प्रतिशत है। यहाँ पर 1957-92 की अवधि में 18 वर्ष भीषणतम सूखा को प्रदर्शित करते हैं।
(2) भानुप्रतापपुर : यह केंद्र जिले के उत्तरी भाग में स्थित है। यहाँ पर वार्षिक वर्षा 1.344 मिमी होती है। मिट्टी की आर्द्रता क्षमता 200 मिमी है। शुष्कता सूचकांक का औसत माध्य 49.73 प्रतिशत है। यहाँ पर 1957-92 की अध्ययन अवधि में 17 वर्ष भीषणतम सूखा को प्रदर्शित करते हैं तथा 1970 से 1973 तक लगातार भीषणतम सूखे के वर्ष रहे।
(3) अंतागढ़ : यह केंद्र जिले के उत्तर मध्य भाग में स्थित है। यहाँ वार्षिक वर्षा 1538 मिमी होती है। मिट्टी की आर्द्रता क्षमता 200 मिमी तथा शुष्कता सूचकांक का औसत माध्य 47.6 प्रतिशत है। इस केंद्र के 1957-92 की अवधि में 19 वर्ष भीषणतम सूखे को प्रदर्शित करता है तथा 1978-88 तक लगातार एक दशक तक सूखे की स्थिति रही।
(4) केशकाल : यह केंद्र जिले के उत्तर-पूर्व में स्थित है। यहाँ की वार्षिक औसत वर्षा 1,373 मिमी तथा भूमि की आर्द्रता क्षमता 200 मिमी है। शुष्कता सूचकांक का औसत माध्यम 46.32 प्रतिशत है। इस केंद्र में 1957-92 की अवधि में 17 वर्षों में भीषणतम सूखे की स्थिति रही, जिसमें 1984-92 तक लगातार भीषणतम सूखे की स्थिति रही।
(5) भोपालपटनम : जिले के पश्चिमी भाग में स्थित इस केंद्र की वार्षिक औसत वर्षा 1,531 मिमी तथा भूमि की आर्द्रता क्षमता 250 मिमी है। शुष्कता सूचकांक का औसत माध्य 50.93 प्रतिशत हैं। इस केंद्र के 1957-92 की अवधि में 18 वर्ष भीषणतम सूखे को प्रदर्शित करते हैं। जिसमें 1974-83 तक लगातार भीषणतम सूखे की स्थिति रही।
(6) नारायणपुर : यह केंद्र जिले के उत्तर मध्य में स्थित है। यहाँ की वार्षिक औसत वर्षा 1,295 मिमी है। मिट्टी की आर्द्रता क्षमता 200 मिमी तथा शुष्कता सूचकांक का औसत माध्य 45.11 प्रतिशत है। यहाँ पर 1957-92 की अवधि में 17 वर्ष भीषणतम सूखे के रहे, जिसमें 1978-86 तक लगातार भीषणतम सूखे की स्थिति रही।
(7) कोंडागाँव : यह केंद्र जिले के पूर्वी भाग में स्थित है। यहाँ की औसत वर्षा 1,309 मिमी, मिट्टी की आर्द्रता क्षमता 200 मिमी तथा शुष्कता सूचकांक का औसत माध्य 44.11 प्रतिशत है। इस केंद्र के 1957-92 की अवधि में 18 वर्ष भीषणतम सूखे के रहे, वहीं 1971-76 में लगातार भीषणतम सूखे की स्थिति रही।
(8) बीजापुर : जिले के पश्चिमी भाग में बीजापुर स्थित है। यहाँ की औसत वर्षा 1,473 मिमी है। इस क्षेत्र की मिट्टी की आर्द्रता क्षमता 200 मिमी तथा शुष्कता सूचकांक का औसत माध्य 55.42 प्रतिशत है। यहाँ पर 18 वर्ष भीषणतम सूखे के रहे, जिसमें 1987-92 तक लगातार भीषणतम सूखे की स्थिति रही।
(9) दंतेवाड़ा : यह क्षेत्र जिले के मध्य में स्थित है। यहाँ की औसत वर्षा 1,369 मिमी तथा भूमि की आर्द्रता क्षमता 200 मिमी है। शुष्कता सूचकांक का औसत माध्य 53.94 प्रतिशत है। इस केंद्र के 1957-92 की अवधि में 16 वर्ष भीषणतम सूखे के रहे तथा 1977-84 तक भीषणतम सूखे की स्थिति रही।
(10) जगदलपुर : यह केंद्र जिले के पूर्वी भाग में स्थित है। यहाँ की औसत वर्षा 1,536 मिमी तथा मिट्टी की आर्द्रता क्षमता 250 मिमी है। शुष्कता सूचकांक का औसत माध्य 42.42 प्रतिशत है। यहाँ पर 1957-92 की अवधि में 19 वर्ष भीषणतम सूखे रहे, जिसमें 1981 से 84 तक तथा 1986 से 89 तक शुष्कता की स्थिति रही।
(11) कोंटा : यह जिले के दक्षिण भाग में स्थित है। यहाँ की औसत वर्षा 1,206 मिमी तथा मिट्टी की आर्द्रता क्षमता 250 मिमी है। शुष्कता सूचकांक का औसत माध्य 49.60 प्रतिशत है। इस क्षेत्र में 17 वर्षों की भीषणतम सूखे की स्थिति में से 1967 से 70 तक लगातार शुष्कता की स्थिति रही।
(12) सुकमा : यह क्षेत्र जिले के दक्षिण-पूर्व में स्थित है। यहाँ की औसत वर्षा 1,281 मिमी तथा मिट्टी की आर्द्रता क्षमता 200 मिमी है। शुष्कता सूचकांक का औसत माध्य 53.55 प्रतिशत है। यहाँ पर 1957-92 की अवधि में 17 वर्ष भीषणतम सूखे के रहे, जिसमें 1989 से 92 तक लगातार शुष्कता की स्थिति रही।
उपर्युक्त विश्लेषण बस्तर जिले की भीषणतम सूखे की गंभीरता को प्रदर्शित करता है। जहाँ जिले की मिट्टी में आर्द्रता धारण करने की क्षमता कम है, वहीं वार्षिक वर्षा का 60 प्रतिशत जल-प्रवाह के रूप में बह जाता है। इन्हीं कारणों से लगभग पूरा जिला एक सूखा क्षेत्र के रूप में रह जाता है।
आर्द्रता सूचकांक एवं जलवायु विस्थापन : आर्द्रता सूचकांक जल की वृद्धि और कमी के बीच वाष्पोत्सर्जन परिवर्तन के प्रतिशत अनुपात को प्रदर्शित करता है (थार्नथ्वेट एवं माथर, 1955) :
आर्द्रता सूचकांक = जल प्रवाह - जलाभाव / वाष्पोत्सर्जन × 100
बस्तर जिले में 1957-92 की अवधि में जलप्रवाह, जलाभाव से अधिक हुआ है। जलवायु धनात्मक एवं ऋणात्मक दोनों मूल्य को प्रदर्शित करता है। आर्द्रता सूचकांक के आधार पर बस्तर जिले को (1) सीमांत आर्द्र (2) आर्द्र (3) नम आर्द्र एवं (4) शुष्क उपार्द्र प्रदेशों में विभाजित किया जा सकता है। इसके अनुसार बस्तर जिले में दो केंद्र में सीमांत आर्द्र, दो केंद्र में आर्द्र, पाँच केंद्र में नम आर्द्र एवं तीन केंद्र में शुष्क उपार्द्र जलवायु पायी जाती है। वार्षिक आर्द्रता सूचकांक जलवायु विस्थापन को प्रदर्शित करता है। 1957-92 की अवधि में बस्तर जिले में जलवायु अवस्थाओं में परिवर्तन परिलक्षित हो रही है। बस्तर जिले में आर्द्रता सूचकांक के आधार पर निम्नलिखित जलवायु प्रदेश निर्मित है (मानचित्र क्र. 2.13) :
(1) सीमांत आर्द्र प्रदेश : इसके अंतर्गत 40 से 100 प्रतिशत तक आर्द्रता सूचकांक वाले क्षेत्र आते हैं।
(1) जगदलपुर : यह जिले के पूर्वी भाग में स्थित है। यहाँ की वार्षिक औसत वर्षा 1,536 मिमी है तथा मिट्टी की आर्द्रता क्षमता 250 मिमी है। यहाँ आर्द्रता सूचकांक की अधिकतम धनात्मक सीमा वर्ष 1977 में 95.21 रहा। इस केंद्र का औसत आर्द्रता सूचकांक 44.80 प्रतिशत है, जो सीमांत आर्द्र जलवायु को प्रदर्शित करता है। इस क्षेत्र में 23 वर्ष में सीमांत आर्द्र, 11 वर्ष में आर्द्र, 2 वर्ष में नम आर्द्र प्रकार की जलवायु पायी गयी। यहाँ वर्ष 1957 में सीमांत आर्द्र जलवायु थी, जो 1992 में आर्द्र जलवायु में परिवर्तित हो गया है। 1961 से 66 तक तथा 1980 से 1991 तक सीमांत आर्द्र जलवायु की बारंबारता को मापा गया है।
(2) भोपालपटनम : यह केंद्र जिले के पश्चिमी भाग में स्थित है। यहाँ की वार्षिक औसत वर्षा 1,531 मिमी है। मिट्टी की आर्द्रता क्षमता 250 मिमी है। यहाँ आर्द्रता सूचकांक की अधिकतम धनात्मक सीमा 103.12 (1957) तथा अधिकतम ऋणात्मक सीमा 39.53 (1974) रही। यहाँ का औसत आर्द्रता सूचकांक 51.80 प्रतिशत है, जो सीमांत आर्द्र जलवायु को प्रदर्शित करता है। इस क्षेत्र में 4 वर्ष में नम आर्द्र, 5 वर्ष में आर्द्र, 24 वर्ष में सीमांत आर्द्र, 4 वर्ष में शुष्क उपार्द्र, 1 वर्ष में अर्ध शुष्क जलवायु पायी गयी। 1957 में यहाँ का सीमांत आर्द्र जलवायु 1992 में नम आर्द्र जलवायु में परिवर्तित हो गया। 1957 से 69 तक सीमांत आर्द्र जलवायु की बारम्बारता को मापा गया है।
वार्षिक वर्षा की अधिकता, मिट्टी की अधिक आर्द्रता ग्रहण क्षमता एवं वन क्षेत्र की अधिकता इन क्षेत्रों को सीमांत आर्द्र प्रकार की विशेषतायें लाने में सहायक है।
(2) आर्द्र प्रदेश : 20 से 40 प्रतिशत तक आर्द्रता सूचकांक वाले प्रदेश वर्ग में सम्मिलित हैं। ये केंद्र निम्नलिखित हैं :
(1) अंतागढ़ : यह जिले के उत्तर-मध्य भाग में स्थित है। यहाँ की वार्षिक वर्षा 1,538 मिमी है तथा मिट्टी की आर्द्रता क्षमता 200 मिमी है। आर्द्रता सूचकांक की अधिकतम धनात्मक सीमा 82.25 (1957) एवं अधिकतम ऋणात्मक सीमा 66.70 (1968) रही है। यहाँ औसत आर्द्रता सूचकांक 32.58 प्रतिशत है, जो आर्द्र जलवायु को प्रदर्शित करता है। इस क्षेत्र में 11 वर्ष में नम आर्द्र, 13 वर्ष में आर्द्र, 10 वर्ष में सीमांत आर्द्र, 1 वर्ष में शुष्क उपार्द्र, 1 वर्ष में अर्ध शुष्क जलवायु पायी गयी। यहाँ की जलवायु 1957 में सीमांत आर्द्र थी, जो 1992 में नम आर्द्र में परिवर्तित हो गयी है।
(2) बीजापुर : यह जिले के पश्चिमी भाग में स्थित है। यहाँ की वार्षिक औसत वर्षा 1,473 मिमी तथा मिट्टी की आर्द्रता क्षमता 200 मिमी है। आर्द्रता सूचकांक की अधिकतम धनात्मक सीमा 99.84 (1961) में एवं अधिकतम ऋणात्मक सीमा 1.79 (1989) रही है। यहाँ औसत आर्द्रता सूचकांक 37.47 प्रतिशत है। जो आर्द्र जलवायु को प्रदर्शित करता है। इस क्षेत्र में 4 वर्ष में नम आर्द्र, 15 वर्ष में आर्द्र, 15 वर्ष में सीमांत आर्द्र, 2 वर्ष में शुष्क उपार्द्र जलवायु पायी गयी। यहाँ 1957 की सीमांत आर्द्र जलवायु 1992 में आर्द्र जलवायु में परिवर्तित हो गयी। इस केंद्र में 1974 से 79 तक आर्द्र जलवायु तथा 1957 से 63 तक सीमांत आर्द्र जलवायु की बारंबारता को मापा गया है।
(3) दंतेवाड़ा : यह जिले के मध्य में स्थित है। यहाँ की वार्षिक औसत वर्षा 1369 मिमी तथा मिट्टी की आर्द्रता क्षमता 200 मिमी है। यहाँ आर्द्रता सूचकांक की अधिकतम धनात्मक सीमा 67.57 (1957) एवं अधिकतम ऋणात्मक सीमा 57.26 (1965) रही है। यहाँ औसत आर्द्रता सूचकांक 26.26 प्रतिशत है, जो आर्द्र जलवायु को प्रदर्शित करता है। इस क्षेत्र में 9 वर्ष में आर्द्र।
(4) नारायणपुर : यह जिले के उत्तरी मध्य भाग में स्थित है। यहाँ की वार्षिक औसत वर्षा 1295 मिमी तथा मिट्टी की आर्द्रता क्षमता 200 मिमी है। यहाँ की आर्द्रता सूचकांक की अधिकतम धनात्मक सीमा 76.87 (1985) में एवं अधिकतम ऋणात्मक सीमा 42.75 (1973) रही है। यहाँ का औसत आर्द्रता सूचकांक 12.68 प्रतिशत है, जो नम आर्द्र जलवायु को प्रदर्शित करता है। इस क्षेत्र में 17 वर्ष में नम आर्द्र, 9 वर्ष में आर्द्र, 2 वर्ष में सीमांत आर्द्र, 6 वर्ष में शुष्क उपार्द्र, 2 वर्ष में अर्ध शुष्क जलवायु पायी गयी। 1957 में यहाँ की आर्द्र जलवायु परिवर्तित होकर 1992 में शुष्क उपार्द्र प्रकार की हो गई है। यहाँ 1978 से 1982 तक नम आर्द्र जलवायु की बारंबारता मापा गया है।
(5) शुष्क उपार्द्र प्रदेश : इसके अंतर्गत (-) 0 से (-) 33.3 प्रतिशत तक आर्द्रता सूचकांक वाला क्षेत्र आता है। इस क्षेत्र में अधिकतम पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण लगभग 80 प्रतिशत जल प्रवाह हो जाता है। जिससे अधिकतम आर्द्रता सूचकांक ऋणात्मक हो गया है।
(1) कांकेर : जिले के उत्तर में स्थित इस केंद्र की वार्षिक औसत वर्षा 1,211 मिमी तथा मिट्टी की आर्द्रता क्षमता 250 मिमी है। यहाँ आर्द्रता सूचकांक की अधिकतम धनात्मक सीमा 66.58 (1978) एवं अधिकतम ऋणात्मक सीमा 44.98 (1982) रही है। यहाँ का औसत आर्द्रता सूचकांक 24.70 प्रतिशत है। इस क्षेत्र में 11 वर्ष में शुष्क उपार्द्र, 6 वर्ष में अर्ध शुष्क, 10 वर्ष में नम आर्द्र, 6 वर्ष में आर्द्र, 2 वर्ष में सीमांत आर्द्र जलवायु पायी गयी। 1957 में यहाँ की सीमांत आर्द्र जलवायु 1992 में शुष्क उपार्द्र जलवायु में परिवर्तित हो गयी है। यहाँ 1983 से 87 तक अर्ध शुष्क जलवायु की बारंबारता को मापा गया है।
(2) केशकाल : यह जिले के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में स्थित है। यहाँ की वार्षिक औसत वर्षा 1,373 तथा मिट्टी की आर्द्रता क्षमता 200 मिमी है। यहाँ की आर्द्रता सूचकांक की अधिकतम धनात्मक सीमा 77.79 (1977) एवं अधिकतम ऋणात्मक सीमा 45.41 (1989) रही है। यहाँ का औसत आर्द्रता सूचकांक 23.06 प्रतिशत है। इस क्षेत्र में 9 वर्ष में नम आर्द्र, 7 वर्ष में आर्द्र, 7 वर्ष में सीमांत आर्द्र, 12 वर्ष में शुष्क उपार्द्र, 1 वर्ष में अर्ध शुष्क जलवायु पायी गयी है। यहाँ की सीमांत आर्द्र जलवायु (1957) परिवर्तित होकर शुष्क उपार्द्र (1992) हो गयी है।
जिले में आर्द्रता सूचकांक में स्थानिक भिन्नता का विवरण स्पष्ट है। जिले के उत्तरी क्षेत्र कांकेर, केशकाल में शुष्क उपार्द्र जलवायु पाया गया है, बीजापुर एवं अंतागढ़ क्षेत्र में आर्द्र जलवायु, जगदलपुर और भोपालपटनम में सीमांत आर्द्र जलवायु तथा जिले के मुख्य भाग में नम आर्द्र जलवायु का लक्षण है। जिले के 12 केंद्रों में 1957-92 की अवधि में जलवायु का परिवर्तन हुआ है। 1957 में जिले में सीमांत आर्द्र जलवायु के लक्षण थे, जो 1992 की अवधि तक आर्द्र और नम आर्द्र के बीच परिवर्तन हो रहा है। जिले में वर्षा की मात्रा में कमी के फलस्वरूप आर्द्रता सूचकांक में गिरावट हो रही है।
बस्तर जिले में जल संसाधन मूल्यांकन एवं विकास एक भौगोलिक विश्लेषण, शोध-प्रबंध 1997 (इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिये कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें।) | |
1 | |
2 | बस्तर जिले की भौगोलिक पृष्ठभूमि (Geography of Bastar district) |
3 | बस्तर जिले की जल संसाधन का मूल्यांकन (Water resources evaluation of Bastar) |
4 | |
5 | बस्तर जिले का अंतर्भौम जल (Subsurface Water of Bastar District) |
6 | बस्तर जिले का जल संसाधन उपयोग (Water Resources Utilization of Bastar District) |
7 | |
8 | बस्तर जिले के जल का अन्य उपयोग (Other uses of water in Bastar District) |
9 | |
10 | |
11 | बस्तर जिले के जल संसाधन विकास एवं नियोजन (Water Resources Development & Planning of Bastar District) |
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