1. जल जनित रोग : रोगों के स्रोत, उनका स्थानिक वितरण एवं उनसे बचाव के उपाय
2. जल प्रदूषण : जल प्रदूषण के स्रोत, प्राकृतिक स्रोत, मानवीय स्रोत, प्रदूषण का स्थानिक स्वरूप, जल प्रदूषण की समस्याओं के निराकरण के उपाय
जल जनित रोग
जल जन्य रोग : जल संसाधन के अध्ययन में जल जनित रोगों का अध्ययन महत्त्वपूर्ण है। यह जल की गुणवत्ता एवं जल उपयोग के मनुष्य स्वास्थ्य के साथ प्रत्यक्ष रूप से सम्बन्धित है। प्राय: जल में प्राप्त जैविक प्रदूषण जल में शक्य रोग जनक जैवों के अनुसंकुलन या परिवर्धन है। इसके कारण जल का प्रयोग संकटकारी हो गया है। इस प्रकार प्रदूषित जल से जल जनित रोगों का प्रसार होता है (रघुवंशी, 1989, 126)।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के सर्वेक्षण के अनुसार विश्व के 80 प्रतिशत से अधिक रोग दूषित जल के कारण होते हैं। बस्तर जिले में भोजन एवं दूषित जल से रोग होता है। प्रथम, दूषित जल के प्रत्यक्ष उपयोग से जल जन्य रोग जैसे : हैजा, आंत्रशोध, डायरिया, मियादी बुखार, इत्यादि होते हैं। द्वितीय, जल एक संक्रमणकारी तत्व के रूप में भी रोगों को जन्म देता है, जैसे - स्कर्वी, स्ट्राकोमा आदि। तृतीय संक्रमणकारी कुछ रोग जल में कुछ बड़े परोपजीवियों की उपस्थिति से होते हैं, जैसे कृमि संक्रमण के कारण होने वाली सिस्टोसोलियासिस रोग। यह रोग सिस्टोसोमय नामक चपटे सधरे पणीभ कृमियों के कारण होता है, जो संदूषित जल में पाये जाते हैं (बाघमार, 1988, 189)।
बस्तर जिले में जल जनित गंभीर स्तर तक पाये जाते हैं, क्योंकि आदिवासी लोग जल का उपयोग परिष्कृत रूप से नहीं करते हैं। बस्तर जिला जल जन्य रोगों के प्रभाव से मुक्त नहीं है। जिले में जल जनित रोगों का अध्ययन जिला अस्पताल एवं प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के माध्यम से प्राप्त द्वितीयक आंकड़ों के आधार पर किया गया है। वर्ष 1990-94 की अवधि के लिये जल जन्य रोगों के अध्ययन में आंत्रशोध, अतिसार, पीलिया, खूनी पेचिस, गिनीवर्म, मियादी बुखार का फैलाव पाया गया है। ये रोग अधिकांशत: ग्रामीण क्षेत्रों में पाये गये। इसका मुख्य कारण शुद्ध पेयजल एवं स्वास्थ्य सम्बन्धी सुविधाओं का ग्रामीण क्षेत्रों में अभाव एवं पिछड़े आदिवासी लोगों का चिकित्सा-सुविधा में कम विश्वास का होना है, जिससे रोग का प्रभाव बढ़ जाता है। आंकड़ों के आधार पर जल जन्य रोगों का स्पष्ट आकलन नहीं हो पाता है। इसका मुख्य कारण है कि दूरस्थ क्षेत्रों और पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले लोग स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ नहीं ले पाते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में एवं कम योग्य लोग स्थानीय जड़ी बूटियों से इलाज करवाते हैं। जबकि शहरी क्षेत्रों में निजी व्यवसायरत, स्वास्थ्य केंद्रों पर अधिकतर लोग इलाज करवाते हैं। शासकीय अस्पतालों में लगभग 50 प्रतिशत बीमार लोग ही पहुँचते हैं।
बस्तर जिले के प्रमुख जल जनित रोग - बस्तर जिला आदिवासी बहुल क्षेत्र है। जहाँ प्राकृतिक संसाधनों की बहुलता है। भौतिक स्वरूप सघन वन विकास के तारतम्य में अवरोधक बन जाते हैं। स्वास्थ्य सेवाओं की प्रचार प्रसार योजनायें, आस्था, अशिक्षा, शुद्ध पेयजल अनुपलब्धता, गरीबी, प्राथमिक चिकित्सा सुविधा का अभाव, आदि ऐसे कारण हैं, जिससे जल जनित रोग का प्रकोप गंभीर हो जाता है।
(1) आंत्रशोथ : अशुद्ध जल में निहित कीटाणुओं से यह रोग उत्पन्न होता है। इसका प्रकोप जुलाई से सितंबर माह के मध्य सर्वाधिक रहता है। बस्तर जिले में व्यक्तिगत स्वच्छता एवं शुद्ध पेयजल की कमी है। जिसके कारण यह रोग उत्पन्न होता है। जिले में आंत्रशोथ से 1991-95 के मध्य 10431 व्यक्ति पीड़ित हुए। वर्ष 1991 में 5630 व्यक्ति इस रोग से ग्रसित थे। धीरे-धीरे रोगियों की संख्या में कमी आ रही है। जिले के 23 विकासखंड आंत्रशोथ से प्रभावित हैं। सबसे अधिक बस्तर विकासखंड प्रभावित होता है, जबकि सबसे कम चारामा विकासखंड प्रभावित हुआ। दुर्गकोंदल, कांकेर, सुकमा में आंत्रशोथ का प्रभाव लगभग नहीं हुआ। इन क्षेत्रों में मैदानी स्वरूप के कारण जल की पूर्ति हस्तचलित पंपों, कुओं, तालाबों इत्यादि की उचित व्यवस्था से होती है। साथ ही प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की सुविधा होने के कारण इस रोग की प्रभावी स्थिति नहीं होती।
(2) अतिसार : जल जनित रोगों में सर्वाधिक प्रकोप, विशेषकर बच्चों में अतिसार रोग देखा जाता है। इसके जीवाणु गंदी भूमि एवं गंदे जल में लंबे समय तक पनपते हैं। ये जीव आंत एवं यकृत में पहुँचकर आंत्र विष बनाते हैं। बस्तर जिले में औसतन 4875 (1991-95) प्रति वर्ष प्रभावित होते हैं इसमें तोकापाल विकासखंड में 918 व्यक्ति तथा दरभा विकासखंड में 881 व्यक्ति प्रभावित हुये। सबसे कम फरसगाँव विकासखंड में 9 व्यक्ति प्रभावित हुये। जिले में 22 विकासखंड अतिसार से प्रभावित हुये।
(3) खूनी पेचिस : खूनी पेचिस में आंतों में एमीबियासिस बैक्टीरिया की अधिकता से रक्त प्रवाह के साथ दस्त होता है एवं ऐठन के साथ आंतों में अधिक दर्द होता है। दूषित जल के प्रयोग से होने वाले पेचिस से जिला अक्सर प्रभावित होता है। जिले में औसतन 2902 व्यक्ति प्रति वर्ष इस रोग से प्रभावित होते हैं। सबसे अधिक दरभा विकासखंड में 1002 व्यक्ति तथा सबसे कम सरोना विकासखंड में 2 व्यक्ति प्रभावित हुये। अधिक प्रभावित क्षेत्र पहाड़ी एवं सघन वन वाले क्षेत्र हैं। इन क्षेत्रों में चिकित्सा एवं परिवहन की कम सुविधा इस रोग के नियंत्रण में बाधक है।
(4) मियादी बुखार : जल पूर्ति के स्रोत जैसे - तालाबों एवं कुओं में उत्पन्न संक्रामक कीटाणुओं द्वारा यह रोग होता है। रोगी के मल-मूत्र, भोजन एवं पीने के पानी के द्वारा इस रोग के विषाणु अन्य लोगों के शरीर में पहुँचकर व्यक्ति को रोगग्रस्त करते हैं। जिले में औसतन 372 व्यक्ति इस रोग से प्रतिवर्ष प्रभावित होते हैं। इस रोग से सबसे अधिक जगदलपुर विकासखंड में 197 व्यक्ति तथा सबसे कम भैरमगढ़ विकासखंड में 2 व्यक्ति प्रभावित हुये हैं।
(5) पीलिया : पीलिया जल जन्य भंयकर बीमारी है। शीत - ऋतु में इसका प्रकोप अपेक्षाकृत अधिक रहता है। यह निम्न स्तर के लोगों में अधिक होता है। आँखों तथा नाखून का पीला दिखना, भूख कम लगना, शरीर में पीलापन तथा पीला पेशाब होना इस रोग के लक्षण हैं। जिले में इस रोग से प्रतिवर्ष लगभग 638 व्यक्ति प्रभावित होते हैं। सबसे अधिक तोकापाल विकासखंड में 105 व्यक्ति और सबसे कम फरसगाँव विकासखंड में एक व्यक्ति पीलिया से प्रभावित हुये।
(6) गिनीवर्म : यह रोग कीटाणु के द्वारा फैलता है। यह कीटाणु दूषित जल में रहता है। यह धागे की तरह होता है। यह तालाबों एवं झीलों के जल में अधिक पाया जाता है। जिले में इससे प्रतिवर्ष लगभग 491 व्यक्ति प्रभावित होते हैं। बस्तर जिले में प्राकृतिक जलस्रोतों में आयोडीन की कमी है, जिसके कारण कहीं-कहीं इस रोग का प्रकोप बढ़ा है।
(7) अन्य जल जनित रोग : जल से उत्पन्न अन्य महत्त्वपूर्ण रोगों में हैजा, हुकवर्म, टायफाइड, सेंदरीमाता इत्यादि है। जिले में अन्य जलजनित रोगों से प्रतिवर्ष लगभग 1493 व्यक्ति प्रभावित होते हैं। लोहण्डीगुडा तथा छिंदगढ़ विकासखंडों में इन रोगों का प्रकोप अधिक होता है।
बस्तर जिले की भौगोलिक पृष्ठभूमि, शिक्षा का अभाव, अज्ञानता, चिकित्सा केंद्रों की सुदूर स्थिति, परिवहन के साधनों का अभाव, पेयजल के साधनों का अभाव, बीमारियों के प्रति परंपरागत दृष्टिकोण एवं अंधविश्वास के कारण जिले में जल जन्य रोग का प्रकोप भयंकर स्थिति तक होता है।
जल जन्य रोगों से बचाव के उपाय : बस्तर जिले में उपर्युक्त जल जनित रोगों का प्रकोप अधिक होता है। इनसे बचाव के उपाय निम्नलिखित हैं :
(1) जल पूर्ति के साधनों में जल शुद्धीकरण की पर्याप्त व्यवस्था की जानी चाहिये। आदिवासी अंचल में आंगनबाड़ी कार्यक्रमों में जल शुद्ध-करण की सामान्य विधियों जैसे - उबालकर या छानकर जल के उपयोग करने की जानकारी देने का प्रयास किया जाना आवश्यक है।
(2) स्वास्थ्य शिक्षा कार्यक्रम के संदर्भ में विशेषकर, स्त्रियों को स्वास्थ्य, सफाई आदि के प्रति शिक्षित करना आवश्यक है। क्योंकि परिवार में गृह कार्य की पूर्ण व्यवस्था उन पर निर्भर रहती है। पुन: जल जन्य रोगों के नियंत्रण के लिये सभी शैक्षणिक संस्थाओं में विभिन्न स्तर पर स्वास्थ्य शिक्षा का प्रसार किया जाना चाहिये। विशेषकर उन क्षेत्रों में जहाँ आंत्रशोथ एवं हैजे का प्रकोप होता है। लोगों को परंपरागत दृष्टिकोण के बदले वैज्ञानिक तरीकों की जानकारी देना होगा।
(3) बस्तर जिले में स्वास्थ्य सेवाएँ पर्याप्त नहीं है। इनका विस्तार करना आवश्यक है। ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों तक स्वास्थ्य-रक्षकों की उपलब्धता हेतु प्रति 500 व्यक्ति पर एक स्वास्थ्य कार्यकर्ता एवं प्रति 5000 व्यक्ति पर एक डॉक्टर नियुक्त किया जाना चाहिये। प्राथमिक चिकित्सा केंद्रों एवं अस्पतालों में, आंगनबाड़ियों में दवाओं का संग्रहण भरपूर होना चाहिये, विशेषकर जीवन रक्षक घोल जो जल जन्य रोगों के उपचार के लिये आवश्यक है।
(4) सभी क्षेत्रों में पीने का स्वच्छ पानी और मनुष्य तथा जानवरों के मल मूत्र त्याग तथा अशुद्ध जल की निकासी की समुचित व्यवस्था पर पूर्ण ध्यान देना होगा।
जहाँ रोग निवारक स्वास्थ्यवर्धक, जन स्वास्थ्य सेवाएँ स्थापित की जाती हैं। वहीं रोगों के फैलाव को रोकने के लिये उपचार सेवाओं को पुन: गठित किया जाता है। खनिज एवं वन संसाधनों के दोहन के समय दोहन प्रक्रिया के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले कुप्रभाव के रोकथाम का उपाय भी होना चाहिए। अत: जरूरी है कि आर्थिक विकास योजनाओं के निर्माण में स्वास्थ्य अधिकारियों की मदद ली जाये। इसके अतिरिक्त जिन क्षेत्रों में आंत्रशोथ, पेचिस, हैजा जैसी बीमारियों का प्रकोप है, उन क्षेत्रों में लोगों को टीके लगवाने का संगठित कार्यक्रम किया जाना चाहिये। चूँकि बच्चे जल जनित रोगों से अधिक प्रभावित होते हैं। अत: इन विशेष कार्यक्रमों में बच्चों के स्वास्थ्य में सुधार सम्बन्धी कार्यक्रम को उच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
निष्कर्षत: इस आदिवासी अचल में स्वास्थ्य चेतना के प्रसार एवं जल संसाधन के समुचित प्रबंधन से ही जल जन्य रोगों को नियंत्रित करके क्षेत्र के लोगों को स्वस्थ किया जा सकता है।
जल प्रदूषण
जल-प्रदूषण के स्रोत : वर्षण की प्रक्रिया प्रारंभ होने के साथ ही जल में प्रदूषण होना प्रारंभ हो जाता है। बस्तर जिले में जल प्रदूषण की समस्या अत्यधिक नहीं है। सिर्फ नगरीय एवं औद्योगिक क्षेत्र में जल प्रदूषण की मात्रा अधिक है।
बस्तर जिले में वन क्षेत्र अधिक है, जिससे वहाँ नदी नालों के जल में पेड़-पौधों एवं घास-फूस से होने वाले प्रदूषण ही प्रभावकारी है। बस्तर जिले में लौह अयस्क का दोहन अधिक हो रहा है। अत: खनन की प्रक्रिया से उत्पन्न धूल आस-पास के धरातलीय जल में घूलकर जल को प्रदूषित कर देता है।
बस्तर जिले को जल प्रदूषण, इंद्रावती नदी के कुछ भागों में ही है। इन भागों में जल प्रदूषण का प्रमुख कारण औद्योगिक बहिर्स्राव एवं घरेलू बहिर्स्राव है।
वैसे तो तालाबों एवं जलाशयों में स्वत: स्वच्छीकरण की प्रक्रिया प्राकृतिक रूप से चलती रहती है। तथापि, मनुष्य के दुरुपयोग के परिणामस्वरूप इन स्रोतों का जल प्रदूषित हो रहा है। घरेलू, मलिन पदार्थ, जानवरों द्वारा निस्तृत मल, कपड़ों की धुलाई, इत्यादि कारणों से तालाबों नदियों का जल प्रदूषित हो रहा है। इनमें फास्फेट वर्धकों की उपस्थिति के कारण जल में शैवाल की वृद्धि होती है, जिससे जल गंदा हो जाता है और पीने के अयोग्य हो जाता है। दूषित सक्रिय पदार्थों की उपस्थिति के कारण जल शोधन प्रक्रिया में बाधा पहुँचती है। ऐसे जल के प्रयोग से मनुष्यों के स्वास्थ्य को हानि पहुँचती है।
बस्तर जिले में बचेली, कांकेर के गोविंदपुर में जल में पीएच का मान 6 से 7 तक है। ऐसे अम्लयुक्त जल के प्रयोग से मनुष्यों में पेट की बीमारी बढ़ जाती है। जिले में छोटे-छोटे उद्योगों से अपशिष्ट पदार्थों को जल में सीधे निष्कासन से जल प्रदूषण की समस्या बढ़ती जा रही है। जिले में औद्योगिक क्षेत्र की कमी है। इसलिये औद्योगिक जल प्रदूषण की अधिकता नहीं है, बल्कि जिले में चार नगरीय क्षेत्र के समीप में जल प्रदूषण की समस्या जन्म ले रही है। इस क्षेत्र में जल प्रदूषण का मुख्य कारण निष्कासित मल, घरेलू अपशिष्ट पदार्थ है। कांकेर, कोंडागाँव, जगदलपुर, बचेली में जल का पीएच मान 7 से 8 तक है।
जल प्रदूषण के कारण जगदलपुर, कोंडागाँव क्षेत्र में जल जनित रोगों का प्रकोप अधिक है।
जल प्रदूषण की समस्याओं के निराकरण के उपाय :
जिले में उपर्युक्त जल प्रदूषण के नियंत्रण हेतु निम्नांकित उपाय आवश्यक है :
(1) विभिन्न जलाशयों में उपस्थित अनावश्यक जलीय पौधों तथा जल से एकत्रित गंदगी को निकालकर जल को स्वच्छ करना चाहिये।
(2) घरों से निकलने वाले दूषित जल एवं मल मूत्र को एकत्रित करके शोधन संयंत्र में पूर्णत: उपचार के बाद ही नदियों या तालाबों में बहा देना चाहिये। इस शोधित जल का उपयोग सिंचाई के लिये करना चाहिये।
(3) कुओं, तालाबों, नदियों के चारों ओर पक्की दीवाल बनाकर गंदगी के प्रवेश को रोका जाना चाहिये।
(4) उद्योगों की स्थापना तालाबों के निकट या नदियों के तट के समीप नहीं करनी चाहिये, क्योंकि उद्योगों से निष्कासित रासायनिक पदार्थ जल को प्रदूषित करने के साथ-साथ जल में उपस्थित जीवों का नाश करते हैं।
(5) किसी भी प्रकार के अवशिष्ट युक्त बहाव को नदियों, तालाबों में नहीं मिलने देना चाहिये।
(6) कुओं, तालाबों के निकट पेड़-पौधे नहीं लगाना चाहिये। इसके पत्ते गिरकर जल में गंदगी उत्पन्न करते हैं।
बस्तर जिले में जल संसाधन मूल्यांकन एवं विकास एक भौगोलिक विश्लेषण, शोध-प्रबंध 1997 (इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिये कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें।) | |
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2 | बस्तर जिले की भौगोलिक पृष्ठभूमि (Geography of Bastar district) |
3 | बस्तर जिले की जल संसाधन का मूल्यांकन (Water resources evaluation of Bastar) |
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5 | बस्तर जिले का अंतर्भौम जल (Subsurface Water of Bastar District) |
6 | बस्तर जिले का जल संसाधन उपयोग (Water Resources Utilization of Bastar District) |
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8 | बस्तर जिले के जल का अन्य उपयोग (Other uses of water in Bastar District) |
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11 | बस्तर जिले के जल संसाधन विकास एवं नियोजन (Water Resources Development & Planning of Bastar District) |
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