जल का घरेलू और औद्योगिक उपयोग, ग्रामीण तथा नगरीय जल प्रदाय, पेयजल योजना का विकास, जल पूर्ति के स्रोत, नदी, नाले, तालाब एवं नलकूप, जल की मात्रा तथा गुणवत्ता, जल शुद्धिकरण प्रक्रिया का विकास।
पानी पर सभी का जीवन आधारित है। यह मनुष्य के जीवन तथा स्वास्थ्य के लिये बहुत आवश्यक अवयव है। लोगों के लिये सुरक्षित पीने के पानी की आपूर्ति एक आधारभूत आवश्यकता है। प्रति व्यक्ति 150 से 200 लीटर प्रतिदिन जल आपूर्ति को पर्याप्त समझा जाता है। जल क उपयोग यद्यपि मौसम, रहन सहन के स्तर और मनुष्यों की आदतों पर निर्भर करता है। तथापि जल की ज्यादा मात्रा और गुणवत्ता होने से लोगों के स्वास्थ्य में वृद्धि होती है (पार्क, 1983, 143)। एक कहावत है - जल का अपव्यय न करो, अभाव नहीं होगा। हम जल का अभाव तब तक महसूस नहीं करते, जब तक कि कुआँ सूख न जाये। इसमें कोई शंका नहीं है कि जल की आवश्यकता सर्वाधिक है। प्रत्यक्षत: अक्षय होने की वजह से इसके उपयोग पर मानव प्रयास का मार्ग प्रशस्त हुआ है (गारलैंड, 1958, 203)।
जल का उपभोग, पीने, खाना पकाने, इत्यादि कार्यों में होता है, जिसके बिना मानव-सभ्यता नष्ट हो सकती है। जल की कमी होने की स्थिति में इस उपयोग को प्राथमिकता दिया जाता है।
अध्ययन क्षेत्र की जनसंख्या 22,71,314 है। यहाँ 3,715 गाँव हैं। जिले की जनसंख्या का 92.88 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्र में और 7.12 प्रतिशत शहरी क्षेत्र में निवास करती है। इस अध्याय का उद्देश्य पीने के पानी का उपयोग, ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्रों में इसके वितरण, पीने के पानी की गुणवत्ता और उन बीमारियों का आकलन करना है, जो जल प्रदूषण द्वारा उत्पन्न होती है।
शहरी क्षेत्र में जल आपूर्ति :
बस्तर जिले के शहरी क्षेत्र में जनसंख्या का केवल 7.12 प्रतिशत निवास करता है। जगदलपुर जिले का सबसे बड़ा शहर है। उसके बाद कोंडागाँव, कांकेर, किरंदुल एवं बचेली आते हैं।
जिले में शहरों की जनसंख्या 1991 में 1,61,883 व्यक्ति थी, जहाँ प्रतिदिन 24,281 किलो लीटर पानी की आवश्यकता होती थी। शहरों में जल आपूर्ति की जिम्मेदारी नगर निकायों और लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग की है। ये एक दूसरे का सहयोग करते हुए कार्य करते हैं। पर नगर निकाय तेजी से बढ़ती शहरी जनसंख्या की जल की जरूरत को पूरा करने में असमर्थ हैं। लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग ने शहरी क्षेत्र के लिये 150 लीटर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन के हिसाब से पानी की आवश्यकता निर्धारित की है। वर्तमान में शहर में प्रतिदिन औसतन जल की आपूर्ति केवल 18,460 किलोमीटर है, जो कुल जरूरत का केवल 76.02 प्रतिशत है। जिले के शहरों में कुल जल आपूर्ति का 57.64 प्रतिशत नदियों के द्वारा 10.97 प्रतिशत नलकूपों से 9.45 प्रतिशत हैंडपंप से और 21.94 प्रतिशत तालाबों तथा जलाशयों से होती है।
सभी शहरों में लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग और नगर निकायों के द्वारा प्रति व्यक्ति पीने के पानी की आपूर्ति अपर्याप्त है। जनसंख्या में तेज गति से वृद्धि के कारण विभाग द्वारा किये जा रहे प्रयास पीछे रह जाते हैं। तकनीकी और आर्थिक स्रोत जनसंख्या में हो रही तीव्र वृद्धि के बराबरी नहीं कर पा रहे हैं। जिले के कुछ कस्बों में अभी भी ग्रामीण परिवेश है। जल के शुद्धिकरण के लिये आवश्यक वस्तुएँ कई बार अनुपलब्ध होती है। जिससे नियोजित जल आपूर्ति में कई समस्याएँ उत्पन्न होती है। अनेक लोग शहर की ओर रोजगार की तलाश में भागे जा रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप गंदी बस्ती के क्षेत्र में वृद्धि तथा सुनियोजित पीने के पानी की आपूर्ति में कमी होती जा रही है। जिले में पीने के पानी की कुल जरूरत और वास्तविक पूर्ति तालिका क्र. 6.1 में प्रदर्शित है।
जगदलपुर : 1991 की जनगणना के अनुसार जगदलपुर शहर की कुल जनसंख्या 84,578 है। जिसके लिये प्रतिदिन 12.686 किलो लीटर जल की आवश्यकता होती है। वर्तमान में जगदलपुर नगर पालिका क्षेत्र की जनसंख्या लगभग एक लाख तक पहुँच गई है। अत: पानी की वर्तमान जरूरत 15,000 किलो लीटर तक बढ़ गई है। परंतु नगर पालिका केवल 10.825 किलो लीटर जल की आपूर्ति करने में सक्षम है। जो वास्तविक जरूरत का केवल 72.16 प्रतिशत है। इस तरह नगर पालिका 150 लीटर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन की जगह 108 लीटर प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन जल की आपूर्ति कर रहा है।
जगदलपुर शहर के लिये पीने के पानी की आपूर्ति का मुख्य स्रोत इंद्रावती नदी है। यह वास्तविक आपूर्ति का 81.55 प्रतिशत जल शहर को उपलब्ध कराती है। जल आपूर्ति अन्य स्रोत नलकूप (10.76 प्रतिशत), हैंडपंप (6.52 प्रतिशत) एवं तालाब (1.12 प्रतिशत) पीने के पानी की आपूर्ति कर रहे हैं। नगर पालिका द्वारा लगभग 500 नल आवासीय मकानों में और 800 सार्वजनिक नल उपलब्ध कराये गये हैं। जल आपूर्ति का पूरा प्रबंध लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग और नगर निकाय करते हैं। नगर निकाय प्रतिवर्ष लगभग 50 लाख रुपये जल शुद्धिकरण और आपूर्ति पर व्यय कर रहा है। बोधघाट कॉलोनी, हवाई पट्टी कॉलोनी और कुछ छोटी औद्योगिक इकाइयाँ जल आपूर्ति नलकूपों और हैंडपंपों की सहायता से स्वयं करते हैं जगदलपुर शहर की जरूरतों को पूरा करने में इंद्रावती नदी का पानी अपर्याप्त है। इन अवस्थाओं में निवासियों को पीने के पानी की भयंकर कमी का सामना करना पड़ता है। कम वर्षा एवं गर्मी के दिनों में बोधघाट लघु परियोजना से बड़ी मात्रा में पानी की आपूर्ति की जाती है। गर्मी के दिनों में कम वर्षा होने से जल सतह नीचे चला जाता है। इसलिये शहर से ऊपरी क्षेत्र में पानी की अत्यंत कमी हो जाती है। इन क्षेत्रों में नल की सुविधा भी कम है। अनेक घरों में स्वयं का हैंडपंप है। गर्मी में भूमिगत जलस्तर बहुत कम हो जाता है और जल आपूर्ति में कमी हो जाती है।
जगदलपुर शहर की वास्तविक आवश्यकता को पूरा करने में उपलब्ध पीने के पानी और इसकी वितरण व्यवस्था बिलकुल अपर्याप्त है। वास्तविक समस्या तब उत्पन्न होती है, जब ग्रीष्म काल में इंद्रावती नदी में जल का स्तर घट जाता है।
जिले में पेयजल आपूर्ति के विकास के लिये कई योजनाएँ प्रस्तावित हैं। जिनमें पीने के पानी की मात्रा बढ़ाने, आपूर्ति करने तथा पानी छानने के तरीकों में सुधार करने के लिये नगर पालिका द्वारा संचालित शहरी योजनाएँ हैं।
कोंडागाँव : बस्तर जिले में जनसंख्या की दृष्टि से कोंडा नगर का दूसरा स्थान है। इस शहर की जनसंख्या 24,398 है। लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के मानक के अनुसार इस जनसंख्या की जरूरत को पूरा करने के लिये लगभग 3,659 किलो लीटर पीने के पानी की आवश्यकता होगी। नगर पालिका 2596 किलो लीटर पीने के पानी की आपूर्ति करने में सक्षम है। 1991 की जनगणना के अनुसार यहाँ केवल 70.94 प्रतिशत जल उपलब्ध है। कोंडागाँव शहर में पीने के पानी की आपूर्ति के मुख्य स्रोत भवडीग एवं नारंगी नदियाँ हैं। ये नदियाँ वास्तविक आपूर्ति का 62.51 प्रतिशत पूरा करते हैं। जल आपूर्ति के अन्य स्रोत नलकूप (18.96 प्रतिशत), हैंडपंप (10.11 प्रतिशत) एवं तालाब (8.42 प्रतिशत) है। इस क्षेत्र में ग्रेनाइट नाइस, चट्टानें हैं। जिसमें पानी सोखने की क्षमता 5-5 यील्ड है। जिसके कारण पीने के पानी के लिये भू-गर्भ जल निकासी कम होती है। वास्तविक आपूर्ति तालिका क्र. 6.1 में दर्शायी गयी है।
कांकेर : यह 20702 जनसंख्या वाला शहर है। इस जनसंख्या के लिये 3105 किलो लीटर पानी की आवश्यकता होती है। कांकेर नगरपालिका प्रतिदिन 1709 किलो लीटर पीने के पानी की आपूर्ति करता है। यह लगभग 50 लीटर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन है। इस शहर में पीने के पानी की आपूर्ति करने में महानदी मुख्य स्रोत है, जो वास्तविक आपूर्ति का 61.38 प्रतिशत जल की आपूर्ति करता है। जल आपूर्ति के अन्य स्रोत नलकूप (14.53 प्रतिशत) हैंडपंप (15.38 प्रतिशत) एवं तालाब (8.71 प्रतिशत) है। कुल जनसंख्या के लगभग 20 प्रतिशत लोगों के पास आवासीय मकानों में पीने के पानी की सुविधा है। कांकेर में जलस्तर गहरा है। यहाँ मुख्य रूप से ग्रेनाइट चट्टानें हैं, जिनमें सरंध्रता कम होने से पानी की आपूर्ति कम होती है। जिससे गर्मियों में पीने के पानी की अत्यंत कमी का सामना करना पड़ता है। नगर पालिका भी पीने के पानी की आपूर्ति की मात्रा में परिवर्तन करते रहती है। कांकेर में भी पेयजल व्यवस्था हेतु शहरी योजना नगर पालिका द्वारा संचालित की जा रही है। जिससे भविष्य में कुछ पीने के पानी की व्यवस्था में बढ़ोत्तरी हो जायेगी।
किरंदुल : यह नगर जिले के दक्षिण मध्य भाग में स्थित है। यहाँ की जनसंख्या 19623 है। इसे प्रतिदिन 2944 किलो लीटर पेयजल की आवश्यकता होती है। लेकिन 2132 किलो लीटर जल की ही आपूर्ति हो पाती है। जो वास्तविक जरूरत का 72.41 प्रतिशत है। इस तरह राष्ट्रीय खनिज विकास निगम 60 लीटर प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन जल की आपूर्ति कर रहा है। किरंदुल औद्योगिक क्षेत्र है। वहाँ वालंबाल बाँध और मालेऊन घाटी पर बने जलाशय से 82.28 प्रतिशत पीने के पानी की आपूर्ति की जा रही है। ये सभी स्रोत राष्ट्रीय खनिज विकास निगम द्वारा संचालित है। अन्य स्रोत नदी (1.90 प्रतिशत), नलकूप (3.71 प्रतिशत) एवं हैंडपंप (12.10 प्रतिशत) पीने के पानी की आपूर्ति कर रहे हैं। यहाँ लेटेराइट शैल एवं लौह अयस्क वाली चट्टानें पायी जाती हैं। जिनमें सरंध्रता बहुत कम पायी जाती है। इसलिये भू-गर्भ जल कम उपलब्ध होता है।
बचेली : यह औद्योगिक क्षेत्र है। जहाँ राष्ट्रीय खनिज विकास निगम की आवासीय कॉलोनी निर्मित है। यहाँ की जनसंख्या 12582 है। इसे प्रतिदिन 1887 किलो लीटर जल की आवश्यकता होती है। लेकिन वास्तविक जल आपूर्ति 1198 किलो लीटर है, जो वास्तविक आवश्यकता का 63.48 प्रतिशत है। इस तरह लगभग 55 लीटर प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन जल की आपूर्ति की जा रही है। यहाँ की वालम्बाल बांध और मलेऊन घाटी के बांध से 85.14 प्रतिशत पीने के पानी की आपूर्ति की जा रही है। अन्य स्रोत नदी (1.50 प्रतिशत) एवं हैंडपंप (13.28 प्रतिशत) पीने के पानी की आपूर्ति कर रहे हैं। बचेली पूर्णत: लेटेराइट लौह अयस्क क्षेत्र है। जिसके कारण भू-गर्भ कठोर है। जहाँ चट्टानों की सरंध्रता बहुत कम है। जिसके कारण ट्यूबवेल सफल नहीं होता और भू-गर्भ जल कम उपलब्ध होता है।
इस प्रकार जिले के सभी शहरों में पेयजल की गंभीर समस्या है। अधिक समस्या कांकेर में है। शहरों में पानी की आपूर्ति और प्रबंधन की कोई योजना नहीं है। योजनाएँ सिर्फ बनायी गयी है। वर्तमान में लागू नहीं की गई है। शहर की वृद्धि के साथ-साथ आपूर्ति केद्रों में बढ़ोत्तरी करके जल आपूर्ति को विकेंद्रीकृत करना चाहिए। भूमिगत जलस्रोतों को जल की बढ़ती जरूरत के अनुसार ठीक तरह से आंकलित और विकसित करना होगा।
ग्रामीण क्षेत्रों में जल आपूर्ति : बस्तर जिले की ग्रामीण जनसंख्या 1991 की जनगणना के अनुसार 2109431 है, जो जिले की कुल जनसंख्या का 92.88 प्रतिशत है, जो 3715 गाँवों में निवास करती हैं। ग्रामीण क्षेत्र की पूरी जनसंख्या अपने पेयजल के लिये परंपरागत साधनों और अन्य घरेलू सुविधाओं पर निर्भर करती है।
जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल की उपलब्धता निम्नांकित साधनों द्वारा होती है :
(1) तालाब एवं जलाशय : तालाब बड़े उत्खनन है, जिनमें सतही जल को एकत्रित किया जाता है। ये जिले में पेयजल की आपूर्ति के महत्त्वपूर्ण स्रोत है। जिले में 25934 तालाब हैं, जिनका उपयोग घरेलू एवं सिंचाई के लिये भी किया जाता है। सामान्यत: प्रत्येक गाँव में 2 से 4 तालाब हैं। अधिक संख्या में तालाब और जलाशय जिले के समतल क्षेत्र में स्थित हैं। इन क्षेत्रों की तुलना में ऊपरी भूमि और पहाड़ी क्षेत्र में कम संख्या में तालाब है। तालाब और पोखरों का निर्माण वातावरणीय स्थिति तथा मनुष्यों को पानी की जरूरत का परिणाम है। तालाबों और जलाशयों का उपयोग मानसूनी जल को एकत्रित करने में होता है। महानदी और इंद्रावती के मैदानी क्षेत्र छोटे और बड़े तालाबों के निर्माण के लिये उपयुक्त है।
तालाब और जलाशय ग्रामीण भू-दृश्य के आवश्यक अंग हैं, जो ग्रामीण जनसंख्या की घरेलू जल आवश्यकता की आपूर्ति करते हैं। जिले में लगभग 375 गाँवों में तालाबों का पानी पीने के काम में लाया जाता है। तालाब का जल अन्य उपयोग में भी लाया जाता है। तालाब जल के अन्य उपयोग निम्नानुसार है :
(1) नहाने के लिये - गाँवों में लगभग सभी व्यक्तियों के नहाने के लिये तालाब का ही उपयोग होता है। निजी स्नानागार लगभग नगण्य है।
(2) कपड़े साफ करने में,
(3) घर तथा बर्तन साफ करने में,
(4) खाना बनाने में,
(5) पालतू पशुओं को नहलाने तथा पिलाने में,
(6) एक पखवाड़े से ज्यादा तक जूट के पौधों को तालाबों के जल में डुबाने में, तथा
(7) खाद बोरी, दवाई छिड़काव के पंप को साफ करने इत्यादि में उपयोग होता है।
इस प्रकार तालाब के जल के उपयोग होने के परिणामस्वरूप तालाबों में सभी तरह का दूषित जल जमा होता है। तालाबों के किनारे उगने वाले खरपतवार अगली वर्षा से तालाबों में चले जाते हैं और जल को दूषित करते हैं।
बस्तर जिले में तालाबों की संख्या 8473 है। जिले में तालाबों से 17 प्रतिशत जल की आपूर्ति होती है। फरसगाँव कोंडागाँव नारायणपुर, विकासखंडों में 50 से 300 तक तालाब हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में तालाब के जल का विभिन्न उपयोग के कारण प्रदूषित हो जाता है। साथ ही कई प्रकार के जीवाणुगत अशुद्धियाँ भी आ जाती है। इस प्रकार तालाब पेयजल की दृष्टि से अत्यंत खतरनाक हैं। फिर भी ग्रामीण अंचलों में आज भी तालाब ही जल आपूर्ति के प्रमुख साधन हैं।
नदी एवं नाले : जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में नदी और नालों के पीने का पानी तथा घरेलू तथा पेयजल की जरूरत को पूरा करने के लिये 11 गाँव नदी जल तथा 102 गाँव नाले के जल पर निर्भर हैं। ऐसे ग्रामों की संख्या - कांकेर, नरहरपुर, कोंटा, बस्तर, जगदलपुर विकासखंडों में है। नदी एवं नालों का जल बिना उपचार के पीने के लिये अनुपयुक्त होता है। जल में सभी तरह के घुलनशील और निलंबित अशुद्धियाँ होती हैं। इसमें बैक्टिरिया की संख्या बहुत अधिक होती है। औद्योगिक अपशिष्ट पदार्थ आदि से भी जल प्रदूषित हो जाता है। जिससे जल जनित रोग संभाव्य होते हैं।
कुएँ : बस्तर जिले के प्राय: सभी ग्रामों में कुआँ पेयजल आपूर्ति का प्रमुख साधन हैं। जिले में पेयजल प्राप्ति योग्य कुओं की संख्या 15,577 है। जिले के 42 प्रतिशत पेयजल की पूर्ति कुओं के द्वारा होती है। जिले में औसतन 4 कुएँ प्रति गाँव हैं। जिले में दो प्रकार के कुएँ हैं :-
(1) पक्के कुएँ : ये खुले कुएँ हैं। जिसे र्इंट या पत्थर से बनाया जाता है। जिले में करीब 70 प्रतिशत पक्के कुएँ हैं।
(2) कच्चे कुएँ : ये र्इंट पत्थर से बने नहीं होते। जिले के करीब 30 प्रतिशत कुएँ कच्चे हैं। इन कुओं में आसपास का गंदा जल रिसता है, जिससे इन कुओं का जल प्रदूषित हो जाता है। यह स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है।
हैंडपंप : जिले में हैंडपंप को पेयजल आपूर्ति के स्रोत के रूप में सफल पाया गया है। इसका पानी उपयोग के लिये सुरक्षित होता है। जिले में हैंडपंपों की स्थापना महँगी है, क्योंकि मिट्टी की तहों के नीचे कठोर चट्टानें पायी जाती हैं, जिससे बहुत कम गाँव अपने हैंडपंप लगाने का साहस कर पाते हैं। इसलिये इस कार्य को सरकार ने अपने हाथों में लिया है। गाँवों में हैंडपंपों द्वारा जल आपूर्ति के लिये दो स्वतंत्र इकाइयाँ यथा लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग एवं ग्राम पंचायत कार्य कर रही हैं। जिले में हैंडपंपों की कुल संख्या 14623 है। जगदलपुर, नरहरपुर, कोंडागाँव, चारामा विकासखंडों में 600 से 700 तक हैंडपंप हैं। लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग ने ग्रामीण क्षेत्रों के लिये 100 लीटर पेयजल प्रतिव्यक्ति का निर्धारण किया है। यह माना गया है कि एक हैंडपंप 100 व्यक्तियों की पेयजल की आवश्यकता पूरी करने में सक्षम होता है। जिले में कुल 14623 हैंडपंप लगाने हैं, जो 1462300 व्यक्तियों के लिये पेयजल की आपूर्ति कर सकते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि जिले में 19 प्रतिशत जल आपूर्ति हैंडपंप से होती है।
लेकिन जिले में ग्रेनाइट, क्वार्टजाइट, जैसी चट्टानें पायी जाती हैं। सरंध्रता कम होती है, जिसके कारण वास्तविक जल आपूर्ति का 40 प्रतिशत हैंडपंपों के द्वारा होती है। जिले की कठोर चट्टानें और ऊँची-नीची स्थलाकृति हैंडपंपों की खुदाई में बड़ी बाधा है। जिले में आठवीं पंचवर्षीय योजना के अंत (1997) तक प्रत्येक गाँव में सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया है। इसके लिये केंद्र सरकार तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन की सहायता भी प्राप्त हुई है।
पेयजल की कमी की समस्या : घरेलू जल आपूर्ति के लिये बस्तर जिले के समस्त गाँव कुएँ, तालाबों और नदियों पर निर्भर करते हैं। ये सभी स्रोत अनेक प्रदूषणकारी तत्वों से प्रभावित रहते हैं। सुरक्षित पानी की समस्या के साथ ही कई गाँवों में ग्रामीणों के लिये पर्याप्त पेयजल भी उपलब्ध नहीं है। इस समस्या के समाधान के लिये लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग ने जिले में गहरे हैंडपंप लगाने का कार्य प्रारंभ किया है। ग्रामीण क्षेत्रों में यह कार्य 1970 से प्रारंभ हो चुका है और अब तक 14,623 हैंडपंप जिले में स्थापित किये जा चुके हैं। लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग ने समस्याग्रस्त गाँव के निर्धारण के लिये मानक निश्चित किया है। तदनुसार किसी गाँव को समस्याग्रस्त गाँव तब कहा जायेगा, जब वह निम्नलिखित में से किसी भी तथ्य को पूरा करता है :
1. जहाँ खुदे कुएँ विफल हो गये हों,
2. जहाँ 15 मीटर गहरे खुदे कुएँ गर्मी के महीनों में सूख गये हों,
3. खुले कुएँ जब ग्रामीण जनसंख्या की आवश्यकता को भीषण गर्मी में पूरा नहीं कर पाते और कुएँ खोदने से समस्या हल न होती हो,
4. ग्राम में पेयजल प्राप्ति का स्रोत एक किलोमीटर से अधिक दूरी पर हो,
5. जिन स्थानों पर कुओं के खनन हेतु 15 मीटर तक की गहराई तक चट्टानों को काटने के उपरांत भी जल उपलब्ध न हों अथवा उपलब्ध जल की मात्रा अत्यंत कम हो एवं जिनका जल गर्मी में सूख जाता हो,
6. जहाँ कुएँ खोदने का प्रयास किया गया और 10 मीटर चट्टान को काटने के बाद भी पानी नहीं मिला हो या बहुत थोड़ा पानी मिला हो, जो गर्मी में सूख भी जाता हो।
7. जहाँ सतह की भू-गर्भीय आकृति यह दर्शाती हो कि कठोर चट्टान को काटने और विस्फोटित करने की आवश्यकता होगी और खुला कुआँ बनाना किफायती न हो।
8. लवणीय क्षेत्र, जहाँ जल में खारापन हो और स्वादिष्ट न हो। इस तरह का जलस्रोत पीने की दृष्टि से नुकसानदायक होता है।
9. उपलब्ध स्रोत सतह का या सतह के नीचे का जल प्रदूषित हो गया हो और जीवाणुवीय शुद्धीकरण की आवश्यकता हो।
10. जल से फैलने या उत्पन्न होने वाली बीमारियाँ, जैसे फीताकृमि, हैजा, कालाज्वर, दस्त और अन्य आंत्र संक्रमण के विषाणु उपस्थित हो।
जिले में उपर्युक्त प्रकार के ग्रामों को तालिका क्र. 6.3 में दर्शाया गया है।
लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग ने 3563 समस्याग्रस्त गाँवों का पता लगाया है, जो पेयजल की कमी की समस्या का सामना कर रहे हैं। इनमें से 470 गाँव गर्मियों में समस्या का सामना करते हैं। 152 ग्राम पूरे वर्ष समस्या का सामना करते हैं। 203 ग्राम स्रोतहीन ग्राम हैं।
शेष 2890 ग्रामों को लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग ने पेयजल में कमी की समस्या में दिसंबर 1995 तक मुक्त कर दिया है। इन गाँवों को पर्याप्त संख्या में हैंडपंप उपलब्ध करा दिये गये हैं। जिले के 77 प्रतिशत गाँवों को इस समस्या से मुक्त कर दिया गया है, क्योंकि जिले के विभिन्न विकासखंडों में 300 से 600 तक हैंडपंप की सुविधा उपलब्ध करा दी गई है। अत: इन विकासखंडों के गाँवों में सुरक्षित पेयजल आपूर्ति योजना के अंतर्गत सुविधा दी गई है (तालिका क्र. 6.2)।
पेयजल की उपलब्धता : लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग ने गहरे हैंडपंपों की औसत क्षमता 12,500 लीटर प्रतिदिन और कुएँ से 2500 लीटर प्रतिदिन निर्धारित की है। ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल की आवश्यकता की निर्धारित मात्रा 100 लीटर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन निर्धारित की गई है। जिले में 14623 हैंडपंप और 15577 घरेलू कुएँ हैं। उपर्युक्त स्रोतों की कुल पेयजल क्षमता 572.22×106 लीटर है, जो लगभग 60 लीटर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन पड़ता है। इस तरह यह औसत वर्तमान जनसंख्या के लिये पर्याप्त है। परंतु इन स्रोतों की वितरण व्यवस्था असमान है। जिले के नरहरपुर (सरोना), कोंडागाँव, जगदलपुर, बस्तर, कोंटा, चारामा, कोयलीबेड़ा में पेयजल की पर्याप्त व्यवस्था है, लेकिन दुर्गकोंदल, ओरछा, कटेकल्यान, बास्तानार विकासखंडों में जल की उपलब्धता निर्धारित मात्रा से कम है। इन विकासखंडों में पेयजल की उपलब्धता 30 लीटर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन है।
जल की मात्रा तथा गुणवत्ता : शुद्ध जल की खोज प्राचीन काल से की जा रही है। आज शुद्धता की माप के लिये विशेष पैमानों का निर्माण हो चुका है। इन मापकों का उपयोग जीवाणुओं, विषाणुओं, रासायनिक और भौतिक कारक शासन द्वारा स्वीकार कर लेने से कानूनन लागू होता है। इन मापकों के निर्धारण का उद्देश्य स्वास्थ्य के लिये नुकसानदायक तत्वों को कम करना है, क्योंकि स्वास्थ्य संगठन द्वारा प्रकाशित सभी प्रदूषकों का अन्तरराष्ट्रीय और यूरोपीय मापकों से निर्मूलन संभव नहीं है। अन्तरराष्ट्रीय मापक उस न्यूनतम जल शुद्धता का निर्धारण करता है, जो स्वास्थ्य की दृष्टि से आवश्यक और सभी देशों द्वारा प्राप्य है।
भारत में लागू भारतीय स्वास्थ्य अनुसंधान परिषद द्वारा अन्तरराष्ट्रीय मापकों पर आधारित है। जल शुद्धता का मात्रा स्थिर नहीं है, ये नए ज्ञान के अंतर्गत बदलते रहते हैं।
पानी की गुणवत्ता से सम्बन्धित आंकड़े : कुआँ, तालाब, नदी-नाला, नल एवं हैंडपंप पानी के स्रोत हैं। इनमें से अधिकतर स्रोत कई प्रकार से दूषित होते हैं। इस अध्याय में घरेलू उपयोग के जल के गुण का निर्धारण के लिये प्रयास किया गया है। यह निर्धारण शोधकर्ती द्वारा जिले के विभिन्न भागों से एकत्रित किये गये जल के नमूनों के जैविक एवं रासायनिक विश्लेषण पर आधारित है। रासायनिक विश्लेषण के आंकड़े 138 नमूनों पर आधारित हैं। इनमें से 62 कुओं से, 32 तालाबों एवं जलाशयों से, 14 नदी-नालों से तथा 30 हस्तचलित पंपों से लिये गए हैं। इनका रासायनिक विश्लेषण शोधकर्ती के द्वारा स्वयं किया गया है। इनमें से 46 नमूनों के आंकड़े लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के जल संग्राहक प्रयोगशाला से प्राप्त किये गये हैं।
जल का रासायनिक विश्लेषण : जल की गुणवत्ता जल में घुली कठोरता की गुणवत्ता पर निर्भर करती है, जो कि प्रति दस लाख या विशिष्ट संवहन के बराबर किया जाता है। पीएचमान अम्लीयता एवं क्षारीयता तथा घुले हुये तत्वों के प्रकार के मध्य सम्बन्ध को दर्शाता है। अत: जल के नमूनों का रासायनिक विश्लेषण आवश्यक है।
कुल घुलित ठोस पदार्थ : कुल घुलित ठोस पदार्थ का मान जल के वाष्पीकरण के पश्चात बचे हुये अवशेष को तौलकर प्राप्त किया जाता है। विभिन्न खनिजों का भाग प्रति दस लाख (पी. पी. एम.) आयनों के भार के द्वारा व्यक्त किया जाता है। 1000 पीपीएम के कुल घुलित ठोस के साथ जल को शुद्ध जल माना जाता है तथा 1000-10000 पीपीएम के जलघुलित ठोस पदार्थ की विपुलता खनिज लवणों के या संदूषण के कारण हो सकती है। अधिकतर, घरेलू एवं कारखानों में प्रयोग किये जाने वाले जल में 1000 पीपीएम कुल घुलित ठोस पदार्थ होता है तथा इसे कृषि के लिये उपयोग में लाया जाता है (हेमिट एवं बेल 1986, 128, डेविस एवं डेवेस्ट, 1966, 100)।
विश्व स्वास्थ्य संगठन तथा भारतीय आयुर्विज्ञान समिति के अनुसार पीने योग्य पानी में कुल घुलित ठोस 500 पीपीएम होना चाहिए।
बस्तर जिले के कांकेर, भानुप्रतापपुर, दुर्गकोंदल, विकासखंड में कुल घुलित ठोस 500-700 पीपीएम है। कुल 138 नमूनों से 16 नमूनों में कुल घुलित ठोस 700 पीपीएम है तथा बाकी 122 नमूनों में यह 500 पीपीएम है। जिले में 95 प्रतिशत पानी पीने योग्य है। जिले में पानी बालुयुक्त चट्टानों से होकर निकलती है, इसलिये कुल घुलित ठोस की मात्रा कम है।
जल की कठोरता या खारापन : पानी की कठोरता का ज्ञान उसकी साबुन के साथ क्रिया से सम्बन्धित है। यह अधिकांशत: कैल्शियम एवं मैग्नेशियम से होता है। इसमें भारी अम्ल तथा क्षारीय तत्व भी साबुन के साथ क्रिया कराने पर अघुलनशील पदार्थों को जन्म देते हैं। पानी की कठोरता को मैग्नेशियम एवं कैल्शियम की मात्रा (मिग्रा / लीटर) में दर्शाया जाता है।
कठोरता का मापन वर्सनेट विधि से किया जाता है। इसमें कठोरता की मात्रा, जल का ईडीटीए (इथिलिन डायएमीन टेट्रा एसिटिक एसीड) लवण घोल के साथ 7 से 10.1 पीएच पर (एलिओ क्रोम ब्लैक सूचक प्रयोग करके) अनुमापन करके निकाली जाती है। इसमें मिश्रण द्रव्य का रंग बैगनी से नीला हो जाता है। इससे प्राप्त जल की कठोरता की प्रतिशत को निम्नलिखित रूप में वर्णित किया गया है :
घरेलू उपयोग में लाये जाने वाले जल की कठोरता साधारण 100 पीपीएम से कम होनी चाहिये। भू-गर्भ सर्वेक्षण विभाग में 300 से 600 पीपीएम कैल्शियम कार्बोनेट की मात्रा वाले जल को घरेलू उपयोग के योग्य माना है।
बस्तर जिले में छिंदगढ़, कटेकल्याण, दरभा, गीदम, बकावंड, बस्तर, लोहण्डीगुड़ा, तोकापाल एवं जगदलपुर विकासखंडों में एक लीटर में 75 किग्रा से कम कठोरता पायी गयी है। अधिक कठोर जल चारामा, कांकेर, सरोना, भानुप्रतापपुर एवं दुर्गकोंदल विकासखंड में (225 मिग्रा से अधिक) पाया गया है। जिले के बाकी क्षेत्रों में 75 से 225 किग्रा तक जल की कठोरता पायी गयी है।
पानी की अम्लीयता एवं क्षारीयता (पी-एच) : हाइड्रोजन आयन सांद्रण जिसे पीएच द्वारा दर्शाया जाता है, जल की क्षारीयता अथवा अम्लीयता की माप है। यह मान 7 से कम होने पर जल अम्लीय तथा अधिक होने पर क्षारीय होता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार पीने योग्य जल का पी-एच मान 7.0 से 8.5 के मध्य होना चाहिये और कृषि उपयोग के जल का पीएच मान 5.5 से 9 के मध्य होना चाहिये।
बस्तर जिले में जल का पीएच मान 7 से 9 के मध्य है। 138 नमूनों में 5 नमूनों का पीएच मान 9 से अधिक है। यह स्थिति जिले के दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र में पायी गयी है। अत: जिले का जल कृषि, घरेलू एवं औद्योगिक उपयोग हेतु उपयुक्त है।
जल में विभिन्न मात्रा में खनिज मिले होते हैं, जो जल की गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं। जल में घुले हुए खनिजों का विवरण निम्नानुसार हैं :-
कैल्शियम एवं मैग्नेशियम की सांद्रता साधारण पीने योग्य जल में 10 से 100 पीपीएम के मध्य होता है। इस सांद्रता में कैल्शियम किसी प्राणी के स्वास्थ्य को हानि नहीं पहुँचाता। मैग्नेशियम 0 से 150 पीपीएम के मध्य रहता है। क्लोराइड - 200 पीपीएम तक पाया जाता है। सोडियम, पोटेशियम क्षारीय धातु के अंतर्गत आते हैं। इसे सामान्य चट्टान को बनाने वाले पदार्थ के मूल तत्वों के रूप में नहीं पाये जाते (डेविस एवं डेवेस्ट, 1966, 103)।
जल जीवाणु विश्लेषण : जल की गुणवत्ता ज्ञात करने के साथ जल में उत्पन्न जीवाणु को ज्ञात करना जरूरी है। जल प्रदूषण नियंत्रण का मुख्य उद्देश्य पानी से उत्पन्न होने वाली बीमारियों को रोकना और इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिये पहली आवश्यकता यह है कि पानी में रहने वाले हानिपद्र जीवाणु तथा अन्य जीवाणुओं का पता लगाया जाय। कॉलीफार्म बैक्टिरिया की पहचान के लिये जिले के विभिन्न क्षेत्रों तथा जलस्रोतों से शोधकर्ति द्वारा 65 नमूने लिये गये, जिनकी लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के जल संग्रहण प्रयोगशाला (जगदलपुर) से कॉलीफार्म बैक्टिरिया की जाँच करायी गई है। 65 नमूनों में से 10 नमूने नदी और नालों के पानी से लिये गये थे। 23 नमूने ग्रामीण तालाबों से, एक शहरी तालाब से, 26 नमूने कुओं से तथा 5 नमूने हस्तचलित पंप से एकत्रित किये गये।
बी-कॉलीफार्म के परीक्षण में, सामान्यत: विभिन्न अनुपात में विरल बनाये गये जल के नमूने के भागों को संवर्धक पदार्थ (Culture Media) के दुग्ध शर्करा या मैकांकी के रस (Lactose or Macc onkyeys Broth) के साथ उष्म नियंत्रित पेटी में 37 से. तापमान पर (अर्थात मानव शरीर का तापमान) 25-28 घंटों तक रखा जाता है। उपर्युक्त परीक्षित जल में अम्लता या वायु का निर्माण ही बी-कोली का होना सूचित करता है। तब प्रमाणित संख्या मानक सांख्यिकीय तालिका (उदाहरण - मैककार्डी) की सहायता से जल के नमूने के प्रति 100 मिली में होने वाली बी-कोली की अधिकतम संभाव्य संख्या निकाली जा सकती है। परीक्षण किये जाने वाले जल में मल जीवाणु यदि बहुत संख्या में हो, तो धनात्मक परिणाम प्राप्त होंगे। इस प्रकार की शंका यदि हो, तो अतिरिक्त परीक्षणों की सहायता से जिनमें ठोस संवर्धक पदार्थ पर जीवाणुओं के समूहों का संवर्धन कराके सूक्ष्म दर्शक यंत्र की सहायता से उनका अवलोकन किया जाता है तथा मीडियम घोल के रंजक के साथ उनकी प्रतिक्रिया देखी जाती है एवं बी-कोली का अस्तित्व सिद्ध किया जा सकता है।
कॉलीफार्म बैक्टिरिया की अत्यधिक संभावित संख्या (MPN/100 ml) में गणना प्रदर्शित की गयी है। इसे ज्ञात करने हेतु निम्नांकित सूत्र का प्रयोग किया गया है :-
MPN/100 मिली में कॉलीफार्म संगणना का परिणाम जिले के विभिन्न स्रोतों में जल प्रदूषण की सीमा दर्शाता है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान शोध संस्थान के अनुसार प्रदूषण जल में कॉलीफार्म की अधिकतम सीमा 10/100 मिली है। जिले में 5 हस्तचलित पंप में कॉलीफार्म बैक्टिरिया नहीं पाया गया है। कुओं से लिये गये नमूनों में (तोकापाल विकासखंड) कॉलीफार्म की मात्रा 10/100 मिली तथा 89/100 मिली (दुर्गकोंदल विकासखंड) के मध्य रही है। शहरी क्षेत्र के (जगदलपुर) तालाब के नमूने में कॉलीफार्म जीवाणु की मात्रा 2105/100 मिली एवं ग्रामीण तालाब से लिये गये नमूनों में कॉलीफार्म की मात्रा 188/100 मिली (माकड़ी विकासखंड) तथा 490/100 मिली (भोपालपटनम विकासखंड) के मध्य रही। नदी नालों से लिये गये नमूनों में कॉलीफार्म की मात्रा महानदी के जल में 105 (नरहरपुर विकासखंड) तथा 115/100 मिली चारामा के मध्य रही। इंद्रावती नदी के जल में यह मात्रा 215 (बकावंड विकासखंड) तथा 250/100 मिली (भैरमगढ़ विकासखंड) के मध्य रही। सबरी नदी के जल में यह मात्रा 145/100 मिली रही।
अत: जिले के तालाबों, नदी-नालों एवं कुओं के जल में कॉलीफार्म जीवाणु की मात्रा अधिक है। जिसके उपयोग से स्वास्थ्य पर खतरा अधिक है। जबकि हैंडपंपों के जल में यह मात्रा कम है और यह जल, स्वास्थ्य के लिये अधिक सुरक्षित है।
बस्तर जिले में जल संसाधन मूल्यांकन एवं विकास एक भौगोलिक विश्लेषण, शोध-प्रबंध 1997 (इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिये कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें।) |
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बस्तर जिले की भौगोलिक पृष्ठभूमि (Geography of Bastar district) |
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बस्तर जिले की जल संसाधन का मूल्यांकन (Water resources evaluation of Bastar) |
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बस्तर जिले का अंतर्भौम जल (Subsurface Water of Bastar District) |
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बस्तर जिले का जल संसाधन उपयोग (Water Resources Utilization of Bastar District) |
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बस्तर जिले के जल का अन्य उपयोग (Other uses of water in Bastar District) |
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बस्तर जिले के जल संसाधन विकास एवं नियोजन (Water Resources Development & Planning of Bastar District) |
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