घरेलू एवं औद्योगिक जल का पुन: चक्रण
जल के वर्तमान तरीकों से उपयोग के कारण भविष्य में जल की गम्भीर समस्या का संकट सामने है। जल में भौतिक एवं रासायनिक अवयवों के विद्यमान होने से जल प्रदूषित हो जाता है और मानव उपयोग में हानिकारक प्रभावों के कारण जल जन्य रोग होता है (त्रिवेदी, 280 -281)। त्रिवेदी ने जल प्रदूषकों का मानक तैयार किया है।
बस्तर जिले में इन मानकों के आधार पर किये गये विश्लेषण से जगदलपुर, किरंदुल एवं बचेली में जल प्रदूषक तत्व पाये गये हैं। जिले के इन अपशिष्ट प्रदूषक जल बहिर्स्राव निम्नलिखित रूप में है :
(1) घरेलू बहिर्स्राव : विभिन्न घरेलू कार्यों जैसे खाना पकाने, नहाने, धोने तथा अन्य सफाई कार्यों में विभिन्न पदार्थों का उपयोग होता है, जो अंतत: अपशिष्ट पदार्थों के रूप में घरेलू बहिर्स्राव के साथ बहा दिये जाते हैं। सामान्य मलिन जल से अधिक गंभीर जल प्रदूषण नहीं होता है। परंतु यदि उसमें कीटनाशी तथा प्रक्षालक पदार्थ भी सम्मिलित हो, तब हानि की संभावना बढ़ जाती है।
बस्तर जिले के 93 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्र 94635 किलो लीटर जल का उपयोग होता है। इसमें लगभग 20,000 किलो लीटर जल बह जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में अपशिष्ट जल की निकासी कम मात्रा में होती है। क्योंकि ग्रामीण लोग तालाबों का अधिकतर प्रयोग करते हैं। जिसके कारण घरेलू बहिर्स्राव कम होता है। अत: इसका पुन: उपयोग श्रमसाध्य एवं खर्चिला है।
बस्तर जिले में शहरी क्षेत्रों में 18460 किलो लीटर जल का उपयोग होता है। जिसका 3700 किलो लीटर जल व्यर्थ बह जाता है। इस अपशिष्ट जल में रासायनिक पदार्थों की मात्रा अधिक होती है। इस जल का उपचार करके जल का पुन: उपयोग किया जा सकता है।
(2) वहित मल : वहित मल के अंतर्गत मुख्यत: घरेलू तथा सार्वजनिक शौचालयों से निकले मानव मल मूत्र का समावेश होता है। वहित मल में कार्बनिक तथा अकार्बनिक दोनों प्रकार के पदार्थ होते हैं, जो जल की अधिकता होने पर धुली हुई अथवा निलंबित अवस्था में रहते हैं। सामान्यत: ठोस मल का अधिकांश भाग कार्बनिक होता है, जिसमें मृतोपजीवी तथा सूक्ष्मजीवी भी उपस्थित रहते हैं। इस प्रकार का जल बस्तर जिले के जगदलपुर, किरंदुल एवं बचेली में पाया जाता है। इन क्षेत्रों में 14155 किलो लीटर जल का उपयोग होता है, जिसका लगभग 2800 किलो लीटर जल बहिर्स्राव के रूप में बह जाता है। इस जल में 1000 किलो लीटर जल वहित मल का उपयोग किया हुआ जल होता है।
इस प्रदूषित जल में अनेक जल जन्य रोगों के सूक्ष्म जीव उपस्थित रहते हैं। प्रदूषित जल का उपचार करके इसका पुन: उपयोग किया जा सकता है। बस्तर जिले के नगरीय अपशिष्ट जल की गुणवत्ता का रासायनिक विश्लेषण किया गया है। बस्तर जिले में दूषित जल में अपशिष्ट पदार्थ की मात्रा आई. एस. आई. द्वारा निर्धारित मानक से अधिक है, इसका विश्लेषण तालिका क्र. 9.1 में दर्शाया गया है। जल का पीएच मान (हाइड्रोजन आयन साद्रण) 9 से 12 तक है।
(3) औद्योगिक बहिर्स्राव : उत्पादन प्रक्रिया के अंत में उद्योगों से निकलने वाला बहिर्स्राव हानिकारक अपशिष्ट पदार्थों से युक्त रहता है, जिनका उपचार अति आवश्यक होता है। औद्योगिक रूप से बस्तर जिला बहुत पिछड़ा हुआ उद्योग के नाम पर जिले में केवल लौह अयस्क के निष्कर्षण का उद्योग विद्यमान है। लौह अयस्क के खनन के पश्चात अयस्क पर चिपके अवांछित मृदा पदार्थ को धोकर अलग कर दिया जाता है। इस प्रक्रिया में मुख्यत: अयस्क के ऊपर चिपके मृदा के कण घुलकर जल के साथ चले जाते हैं। इसमें मृदा कणों का आकार पत्थर से लेकर महीन कण तक हो सकते हैं। इनमें छोटे कण जलस्रोत के साथ-साथ दूर तक जा सकते हैं, जो बहते हुये जल से धीरे-धीरे अलग होकर लाल रंग के महीन मृदा के रूप में जमा हो जाते हैं। इसलिये सामान्यत: इसके रंग के कारण लाल कीचड़ मिट्टी कहते हैं। अत: ऐसे जल के उपचार की आवश्यकता है। इसमें उपस्थित विभिन्न प्रकार के कणों या अघुलनशील पदार्थों को धीरे-धीरे जमा करके अलग कर दिया जाता है। जिले में लौह अयस्क के निष्कर्षण में जल का उपयोग लगभग 3000 किलोलीटर प्रतिदिन होता है। जिसका 1200 किलो लीटर जल बह जाता है। इसे उपचार करके पुन: लौह निष्कर्षण के उपयोग में लाया जा सकता है।
(4) कृषि बहिर्स्राव : दोषपूर्ण कृषि पद्धतियों के कारण मृदारक्षण अधिक होता है। मृदाक्षरण के फलस्वरूप मृदा बहकर नदियों तथा तालाबों में पहुँचकर उनके तल में पंक के रूप में बैठ जाती है। इस प्रकार की कीचड़ मिट्टी से जल प्रदूषित होता है। इसके अतिरिक्त आजकल उर्वरक के साथ कीटनाशी का अत्यधिक प्रयोग भी जल प्रदूषण में एक प्रमुख कारक बन गया है।
बस्तर जिले में सिंचाई के लिये 400.08 घन मीटर जल का उपयोग होता है। जिले में बहुत कम क्षेत्र (कुल फसली क्षेत्र का 4.30 प्रतिशत) ही सिंचित है। अत: जिले में कृषि के द्वारा व्यर्थ बह जाने वाले पानी की मात्रा नगण्य है। बल्कि खेत में ही अधिकांश सूख जाता है।
उपर्युक्त सभी स्रोतों से बहने वाला व्यर्थ जल लगभग 5900 किलो लीटर है। इसमें अनेक प्रकार के पदार्थ, मिश्रण या घोल के रूप में होते हैं। अपशिष्ट जल की कुल मात्रा अधिक होती है। अपशिष्ट जल मुख्यतया शहरी क्षेत्रों में अधिक मात्रा में निकलता है। इसके किसी निर्दिष्ट या सीमित क्षेत्र में एकत्रित रख पाना संभव नहीं है। इनके अवशिष्ट को अलग करने का सबसे सरल विधि ऐसे जल को नदी-नालों, झीलों अथवा तालाबों के जल के साथ मिला देना है। प्रारंभ में प्रदूषित जल की कम मात्रा तथा स्वच्छ जल की कम मांग के कारण समस्या नहीं थी, परंतु वर्तमान में स्थिति विपरीत है। बस्तर जिले में विभिन्न स्रोतों से निकलने वाले अपशिष्ट जल की मात्रा कम है जिले में सिंचाई की समस्या अधिक है। अत: आवश्यक है कि इस अपशिष्ट जल को सिंचाई के लिये पुन: उपयोग में ले आया जाए।
बस्तर जिले में वार्षिक वर्षा 137 सेमी होती है। यहाँ वर्षा के जल को इकट्ठा करके जलाशय, तालाबों में रखा जाय, तो वर्तमान में जल की कोई समस्या नहीं होगी। अत: भविष्य में जनसंख्या एवं उद्योगों में वृद्धि होने से जल की मांग बढ़ती जायेगी। तब विभिन्न प्रकार के उपचार के पश्चात प्राप्त जल का उपयोग किया जा सकता है।
बस्तर जिले में जल संसाधन मूल्यांकन एवं विकास एक भौगोलिक विश्लेषण, शोध-प्रबंध 1997 (इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिये कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें।) | |
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2 | बस्तर जिले की भौगोलिक पृष्ठभूमि (Geography of Bastar district) |
3 | बस्तर जिले की जल संसाधन का मूल्यांकन (Water resources evaluation of Bastar) |
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5 | बस्तर जिले का अंतर्भौम जल (Subsurface Water of Bastar District) |
6 | बस्तर जिले का जल संसाधन उपयोग (Water Resources Utilization of Bastar District) |
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8 | बस्तर जिले के जल का अन्य उपयोग (Other uses of water in Bastar District) |
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11 | बस्तर जिले के जल संसाधन विकास एवं नियोजन (Water Resources Development & Planning of Bastar District) |
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