ब्रिटेन में क्लाइमेंट चेंज इमरजेंसी की घोषणा

क्लाइमेंट चेंज इमरजेंसी की मांग करते लोग
क्लाइमेंट चेंज इमरजेंसी की मांग करते लोग

ब्रिटेन दुनिया का पहला ऐसा देश बन गया है जिसने क्लाइमेंट चेंज पर इमरजेंसी की घोषणा कर दी। क्लाइमेंट चेंज को लेकर लंदन में पिछले 11 दिनों से विरोध हो रहा था। इसके बाद ब्रिटेन की संसद ने पर्यावरण और क्लाइमेंट चेंज को लेकर इमरजेंसी की घोषणा कर दी है। इसमें सबसे बड़ी बात है विपक्ष की भूमिका। देश में क्लाइमेंट चेंज पर इमरजेंसी लाने का प्रस्ताव विपक्ष की ओर से पेश किया गया था।

संसद द्वारा क्लाइमेंट चेंज इमरजेंसी की घोषणा करने के पहले ही ब्रिटेन के दर्जनों कस्बों और शहरों ने जलवायु आपात स्थिति घोषित कर दी थी। ब्रिटेन के लोगों का कहना है कि वे 2030 तक कार्बन न्यूट्रल होना चाहते हैं। यानी उतना ही कार्बन उत्सर्जित हो जिसे प्राकृतिक रूप से समायोजित किया जा सके। अप्रैल में क्लाइमेंट चेंज पर आपात स्थिति की मांग एक छोटे-से समूह ने लंदन में की थी। इसके बाद ये विरोध प्रदर्शन बढ़कर पूरे देश में जनांदोलन बन गया। प्रदर्शनकारियों ने शहर की सड़कों को बंद कर दिया और लंदन की भूमिगत परिवह प्रणाली को भी बंद कर दिया। जिसके बाद क्लाइमेंट चेंज पर सरकार ने इमरजेंसी की घोषणा कर दी है।

क्या है क्लाइमेंट चेंज इमरजेंसी?

क्लाइमेंट चेंज इमरजेंसी की कोई सटीक परिभाषा नहीं है। इस दौरान क्या कदम उठाये जाते हैं इस पर अभी तक कोई भी कार्रवाई नहीं है? लेकिन इस कदम की पर्यावरण के स्तर पर एक जंग के तौर पर देखा जाए, न कि राजनीतिक निर्णय माना जाना चाहिए। ब्रिटेन ने कानून तौर पर ये निर्णय लिया है कि 2050 तक वो 80 प्रतिशत तक कार्बन उत्सर्जन को कम कर देगा, जो वर्ष 1990 के कार्बन उत्सर्जन के स्तर पर आ जायेगा। ब्रिटेन उन 18 विकसित देशों में एकमात्र ऐसा देश है जिसने पिछले एक दशक में सबसे कम कार्बन उत्सर्जन किया है।

ब्रिटेन की संसद में लेबर पार्टी ने क्लाइमेंट चेंज पर इमरजेंसी लाने का समर्थन किया और उनके ही दबाव में ही ब्रिटेन की संसद में ये प्रस्ताव पास हो पाया। लेबर पार्टी के नेता जेरेमी काॅर्बिन ने कहा, ‘हम उन देशों का स्वागत करते हैं जो जलवायु परिवर्तन की समस्या को लेकर गंभीर हैं और खत्म करना चाहते हैं। मैं अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को स्पष्ट कर देना चाहता हूं  कि वे जलवायु संकट पर अंतर्राष्ट्रीय समझौते और कार्रवाई को नजरंदाज नहीं कर सकते। संसद के बाहर भी हजारों लोग सड़क पर प्रदर्शन करते रहे। ब्रिटेन और दुनिया भर के स्कूली बच्चे भी इसमें शामिल हुए।  स्वीडन की स्कूली छात्रा ग्रेटा थनबर्ग ने क्लाइमेंट चेंज को बड़ा खतरा बताते हुये एक मीटिंग बुलाई थी और संबोधित किया था। जिसमें प्रधानमंत्री को छोड़कर, देश के कई बड़े नेताओं ने भाग लिया था। ये सब घटनाएं तब हुई, जब अदालत ने हीथ्रो में एक नए रनवे के विस्तार के लिए मंजूरी दे दी है। जिसके बाद पेरिस जलवायु समझौते में ब्रिटेन की भागीदारी को खत्म कर दिया गया है। जिसके आधार पर परिवहन की एक नीति तय की जानी चाहिए। सरकार के क्लाइमेंट चेंज सलाहकारों ने कहा है कि 2050 तक ग्रीनहाउस गैसों को शून्य तक करना संभव है लेकिन उसके लिए सार्वजनिक उपभोग, उद्योग और सरकार की नीति में बड़े बदलाव की जरूरत होगी।

क्या है क्लाइमेंट चेंज?

औद्योगिक क्रांति के बाद से पृथ्वी का औसत तापमान साल दर साल बढ़ रहा है। आईपीसीसी की रिपोर्ट में पहली बार क्लाइमेंट चेंज के बारे में आगाह किया गया था। अब इसके दुष्परिणाम भी सामने आने लगे हैं, गर्मियां लंबी होती जा रही हैं और सर्दियां छोटी। पूरी दुनिया से जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं। प्राकृतिक आपदाओं को बार-बार आना और उसकी प्रकृति बढ़ चुकी है। ऐसा ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन की वजह से हो रहा है। साल 2030 बहुत महत्वपूर्ण वर्ष होने वाला है। आज जब हम जलवायु के बारे में नीति बनायेंगे तो उसका प्रभाव 2030 से दिखना शुरू होगा। इस पर बहुत लोग विरोध कर सकते हैं लेकिन सच यही है कि 2010 के बाद से हमारे गृह ने सबसे गर्म होने वाले साल दर्ज किये हैं। 2018 ने तो क्लाइमेंट चेंज पर सभी रिकाॅर्ड तोड़ दिये। हाल के दशकों में ब्रिटेन में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन तेजी से गिरा है। इसकी वजह है इन दशकों में वित्तीय सेवाओं, आर्थिक विकास, समृद्धि पर अधिक ध्यान दिया है। जिसने ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन वाले कामों से दूर कर दिया है।

ब्रिटेन में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन बढ़ने की पीछे एक बड़ी वजह है। 1980 और 1990 के दशक में ब्रिटेन के कोयला उद्योग का लगभग सफाया हो गया था। उद्योग के अन्य क्षेत्रों में 2000 के अंत में लगभग 1 लाख से अधिक नौकरियां चली गई। लेकिन उद्योग के अन्य क्षेत्रों जैसे नवीनीकरण ऊर्जा और प्रौद्योगिकी के निम्न-कार्बन रूपों में अनुसंधान और विकास ने तेजी से विकास किया है। इस समय ब्रिटेन में काॅर्बन अर्थव्यवस्था में लगभग आधा मिलियन नौकरियां होने का अनुमान है। ब्रिटेन में प्रति व्यक्ति कार्बन डाइआक्साइड टन के हिसाब से उत्सर्जित करता है। जो दूसरे बड़े देशों के मुकाबले कम है। 1990 में ब्रिटेन कोयला से प्राकृतिक गैस की ओर शिफ्ट हो गया था। जिसकी सबसे बड़ा कारक बना, उत्तरी सागर। हाल के दशकों में देखा जा रहा है कि कई विकासशील देश विद्युत उर्जा को लाने की दिशा में काम कर रहे हैं। ये वही देश है जिन्होंने पहले ऐसा करने से मना कर दिया था।
 
क्लाइमेंट चेंज इमरजेंसी क्यों?

संयुक्त राष्ट्र का का कहना है कि क्लाइमेंट चेंज की तबाही को सीमित करने  के लिए हमारे पास सिर्फ 12 साल बचे हैं। ब्रिस्टल काउंसलर कार्ला डेनियर वो शख्स हैं जिन्होंने पहली बार क्लाइमेंट चेंज इमरजेंसी घोषित करने का विचार को सामने रखा था, जिसे नवंबर में नगर परिषद ने प्रस्ताव के रूप में पारित कर दिया। कार्ला डेनियर कहती हैं, हमे स्वीकार कर लेना चाहिए कि एक आपातकालीन स्थिति में जी रहे हैं। हमें कार्बन उत्सर्जन की कमी के लिए सिर्फ स्थानीय स्तर पर काम करने की जरूरत नहीं हैं। बल्कि इसके बारे में सबको जागरूक रहना पड़ेगा ताकि परिवर्तन किया जा सके। क्लाइमेंट चेंज इमरजेंसी के रूप में एक बेहतरीन कदम है।

हमारा ग्रह हर साल गर्म होता जा रहा है इस बात का जब सबको अनुभव हुआ तो इसके उपाय के लिए यूनाइटेड नेशन ने पेरिस समझौत पर ध्यान केन्द्रित किया। जिसे 2016 में पारित किया, उस प्रस्ताव पर 197 देशों ने हस्ताक्षर भी किये। जिसके अनुसार सभी देश इस बात पर राजी हो गये थे कि वैश्विक तापमान को कम करने के लिए कार्बन का उत्सर्जन भी कम करना पड़ेगा। जिसका उद्देश्य था ग्लोबल तापमान 2 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचाना और उद्योगों का तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा नहीं होना चाहिए। इन सबके बावजदू ये पक्का है अगर चाहें तो हम ग्रीनहाउस से दूर हो सकते हैं। उसके लिए सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि करनी पड़ेगी, जैसा यूके ने हाल के वर्षों में किया है। ब्रिटेल सरकार ने ‘डिकंपलिंग’ की नीति बनाई है जो कार्बन को कम करने के लिए एक उदाहरण बन सकती है। जो नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में काम करने के लिए महत्वपूर्ण है। इसके अलावा अक्षय ऊर्जा, आनशोर, आफशोर विंड और सोलर पैनल भी कार्बन उत्सर्जन से दूर करने के साधन बन सकते हैं। पहले इन ऊर्जाओं पर सब्सिडी मिलती थी लेकिन हाल के वर्षों में ब्रिटेन ने इन पर सब्सिडी खत्म कर दर है। दुनियाभर में नवीकरण की लागत में तेजी से कमी आई है जिससे वे सभी देशों लिए और अधिक सुलभ हो गए हैं।

पेरिस समझौते के बावजूद कई सालों से विकासशील देश तर्क दे रहे हैं कि 1980 से  कार्बन के उत्सर्जन से ही उनके विकास की गाड़ी चल रही है। उत्सर्जन करना उनके लिए बड़ी जिम्मेदारी बन गई थी। अब जब क्लाइमेंट चेंज एक बड़ी समस्या बन गई है तो इन देशों के लिए कार्बन का उत्सर्जन कम करना मुश्किल हो रहा है। हालांकि धीरे-धीरे कुछ देश जागरूक हो रहे हैं। ब्रिटेन ने कार्बन के उत्सर्जन को कम किया है, उसे देखकर ही चीन ने भी कार्बन के उत्सर्जन को कुछ मात्रा में कम किया है। ऐसे समय में जब राजनेता ‘संसाधनों के भीतर रहने’ की बात करते हैं, उस पर चर्चा करते है। लेकिन जब इसमें पैसे की व्यवस्था की बात आती है तो हम आने वाली पीढ़ियों पर विचार करने लगते हैं। पर्यावरण पर काम करने की बजाय, हम उसमें आने वाली लागत को लेकर बहस करने लगते हैं और उसमें फंसे रह जाते हैं। ब्रिटेन ने पर्यावरण और क्लाइमेंट चेंज को लेकर एक बड़ा कदम उठाया है। जो भविष्य में स्थायी होकर काम करेगा और अच्छे कदम उठायेगा। ब्रिटेन के इस फैसले के बाद बाकी देशों को भी इस दिशा में कदम उठाने चाहिए।

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