ब्रह्मपुत्र नदी का जल प्रवाह किस दिशा में जाएगा?

ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध परियोजना पर विवाद
ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध परियोजना पर विवाद

भारत और चीन के बीच संबंधों में एक नया विवाद खड़ा हो गया है। इस नए विवाद का कारण यह है कि चीन ने ब्रह्मपुत्र नदी पर एक नए बांध का निर्माण करने की योजना बनाई है ताकि चीन के उत्तर-पश्चिम में शिंजियांग और तिब्बत के शुष्क क्षेत्रों की सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध कराया जा सके। अगर चीन इस बांध का निर्माण करेगा तो ज़ाहिर है, कि इस महानदी का जल प्रवाह धीमा पड़ जाएगा जिसके परिणामस्वरूप भारत के पूर्वोत्तर राज्यों और बांग्लादेश में सिंचाई पर बुरा असर पड़ेगा। इन क्षेत्रों में कृषि पूरी तरह से मौसमी कारकों पर निर्भर करती है- बरसात के मौसम में पानी को जलाशयों में एकत्र किया जाता है और शुष्क मौसम में सिंचाई के लिए इसी जल का इस्तेमाल किया जाता है। हाँ, यह सच है कि चीनी सरकार ने आश्वासन दिया है कि इस नए बांध के निर्माण से भारत और बांग्लादेश में कृषि कार्यों पर कोई बुरा असर नहीं पड़ेगा। लेकिन भारत सरकार ने पहले ही इस बात पर अपनी गंभीर चिंता व्यक्त की है। भारत ने चीन से इस मामले को पूरी तरह से स्पष्ट करने की मांग की है और कहा है कि यदि आवश्यक होगा तो उपयुक्त राजनयिक कदम भी उठाए जा सकते हैं। इस संबंध में रूस के रणनीतिक अध्ययन संस्थान के एक विशेषज्ञ बोरिस वॉल्ख़ोन्स्की ने कहा-

इस जल संसाधन की समस्या के कई पहलू हैं। चीन के लिए देश के पश्चिम में भूमि की सिंचाई- देश की क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखने का एक महत्वपूर्ण सवाल है। बात दरअसल यह है कि शिंजियांग और तिब्बत आर्थिक रूप से सबसे कम विकसित क्षेत्र हैं। इन दोनों इलाकों में अलगाववादी प्रवृत्तियां भी बहुत मज़बूत हैं। चीनी सरकार इन क्षेत्रों में अलगाववाद को ख़त्म करने के लिए एक सक्रिय नीति पर चल रही है। उसके द्वारा इस उद्देश्य को हासिल करने के लिए कई किस्म के उपाय किए जा रहे हैं। उदाहरण के लिए, इन क्षेत्रों में चीन की सबसे बड़ी जाति- हान के प्रतिनिधियों को बसाया जा रहा है। इस नीति का उद्देश्य यह है कि तिब्बत में तिब्बती लोग और शिंजियांग में उइगूर जाति के लोग अल्पसंख्यक बन जाएँ। दूसरी ओर से इन क्षेत्रों में लोगों का जीवन स्तर ऊँचा करने तथा आर्थिक विकास की दर को बढ़ाने के लिए आवश्यक उपाय भी किए जा रहे हैं। नदियों पर बांधों और सिंचाई नहरों का निर्माण किया जा रहा है।

चीन और भारत के बीच ब्रह्मपुत्र नदी के जल का मौजूदा विवाद 21वीं शताब्दी की एक नई वास्तविकता का संकेत भी है। कई राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अगर 20वीं शताब्दी में विवादों और युद्धों का कारण ऊर्जा संसाधन रहे हैं तो 21वीं शताब्दी में विवादों और युद्धों का कारण जल संसाधन ही बनेंगे। आजकल अफ्रीका, मध्य पूर्व और दक्षिणी अमरीका में जल संसाधनों को लेकर कई विवाद खड़े हो रहे हैं। खासकर केन्द्रीय और दक्षिण-पूर्वी एशिया में पानी को लेकर कई विवाद अभी तक अनसुलझे पड़े हैं। उदाहरण के लिए, भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर का मसला इतने लंबे समय से हल क्यों नहीं किया जा रहा है? इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि पाकिस्तान में बहती सभी प्रमुख नदियां जम्मु-कश्मीर से ही निकलती हैं। इसका मतलब यह है कि जिस देश का कई नदियों के स्रोतों वाले इस इलाके पर नियंत्रित होगा वास्तव में उस पर ही पाकिस्तान में पूरी कृषि का विकास निर्भर करेगा। चीन और भारत के बीच इस नए विवाद के सिलसिले में बोरिस वॉल्ख़ोन्स्की ने कहा-

ब्रह्मपुत्र नदी के जल प्रवाह के इस्तेमाल से जुड़ा तीसरा पहलू सीधा पर्यावरण से संबंधित है। ब्रह्मपुत्र नदी के ऊपरी भाग में बांधों का निर्माण करने से पर्यावरण पर इतना बुरा प्रभाव पड़ सकता है कि इसका अनुमान लगाना भी असंभव है। आजकल जब पृथ्वी का जलवायु बड़ी तेज़ी से बदल रहा है, जिसका एक बड़ा कारण मानव की गतिविधियां ही हैं, प्रत्येक नई बड़ी परियोजना जलवायु परिवर्तन पर बुरा प्रभाव डाल सकती है। इसलिए प्रत्येक ऐसी परियोजना की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संपूर्ण जांच-परीक्षा कराने ही आवश्यकता है। हम आशा करते हैं कि ब्रह्मपुत्र नदी के जल प्रवाह पर भारत और चीन के बीच उत्पन्न इस विवाद के गंभीर राजनीतिक या सैन्य-राजनीतिक परिणाम नहीं निकलेंगे। चीन और भारत एक दूसरे से बहुत जुड़े हुए हैं और कई बातों में एक दूसरे पर इतना निर्भर करते हैं कि वे पहले से ही अपने तनावपूर्ण संबंधों को और जटिल नहीं बना सकते हैं फिर भी चीन को बड़े पैमाने की परियोजना पर अमल करने की दिशा में कोई भी कदम बहुत सोच-समझकर उठाना चाहिए और उसे अपने ऐसे कदम के परिणामों के बारे में भी ज़रूर सोचना चाहिए।
 

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