बर्बाद दिखता भविष्य

एरी
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सरकार तालाबों और झीलों की सबसे बड़ी दुश्मन बनी हुई है। इन अधिकतर तालाबों पर बंगलुरु नगर निगम, बंगलुरु विकास प्राधिकरण, उद्यान विभाग जैसी सरकारी संस्थाओं ने अतिक्रमण कर रखा है। नगर निगम ने धरमबुधी तालाब पर बस अड्डा बना दिया, सम्पांगी तालाब के एक हिस्से पर कांतीर्वा स्टेडियम बना दिया, जबकि बाकी हिस्से का अधिग्रहण सम्पानीरम नगर एक्स. कॉलोनी के लिये किया गया है।

कर्नाटक के इतिहास में तालाबों में झीलों आदि ने अहम भूमिका निभाई है। कर्नाटक का बड़ा भाग चूँकि दक्षिणी पठार के कम बारिश वाले क्षेत्र में पड़ता है, इसलिये तालाब और झील पीने के पानी और सिंचाई के प्रमुख स्रोत हैं। इनमें से अधिकतर तालाब ब्रिटिश राज से पहले बनाये गये थे। आपस में जुड़े तालाबों की श्रृंखला प्रत्येक क्षेत्र में बनाई गई थी। एक ही आगोर क्षेत्र में होने के कारण एक तालाब का अतिरिक्त पानी नीचे के दूसरे तालाब में चला जाता है।

कोई नदी पास में न होने के कारण बंगलुरु हमेशा तालाबों और झीलों पर निर्भर रहा है। आधुनिक बंगलुरु के संस्थापक केंपे गौड़ा ने 15वीं सदी में कई तालाब बनवाये थे। इनमें से कुछ हैं- केंपाबुधि तालाब, धर्मबुधि तालाब, संपांगी तालाब, सिद्धिकट्टे केरे।

सन 1860 तक बंगलुरु में वर्षा के पानी को सिंचित करने की व्यवस्था बना ली गई थी। वर्षाजल को बर्बाद नहीं होने दिया जाता था। 1866 में बंगलुरु के कमिश्नर लेविंग बेंथम बॉरिंग ने बाहरी इलाकों के तालाबों तक वर्षाजल पहुँचाने के लिये विशाल नाले बनवाये थे।

कर्नाटक स्टेट गजेटियर में बंगलुरु के तालाबों के बारे में मद्रास सैपर्स एंड माइनर्स के चीफ इंजीनियर ले. कर्नल आर.एच. सैंकी ने लिखा है “जल संग्रह के नियम का इस हद तक पालन किया गया है कि इस विशाल क्षेत्र में नये तालाब के लिये जगह ढूँढने में हिम्मत लगानी पड़ेगी। किसी पुराने तालाब को पुनः उपयोगी बनाना तो सम्भव है, मगर इस क्षेत्र में इस तरह का नया तालाब बनाने से नीचे के किसी तालाब के पानी में निश्चित ही कटौती होगी।”

सन 1892 में मैसूर के दीवान सर के. शेषाद्रि अय्यर ने बंगलुरु से 20 किमी उत्तर-पश्चिम में हस्सारघट्टा तालाब बनवाया ताकि शहर को स्थाई और भरोसेमंद स्रोत से पानी मिलता रहे। शहर में पाइप से पानी सर्वप्रथम 23 जून 1896 को पहुँचाया गया। 1899 में महसूस किया गया कि जल आपूर्ति की लोक निर्माण व्यवस्था असन्तोषजनक है। सो, इसे नगर पालिका के हाथ में सौंप दिया गया। लेकिन 1925-26 में लगातार दो साल बारिश न होने के कारण पानी का भारी संकट हो गया तो सर एम. विश्वेश्वरैया की अध्यक्षता में एक समिति ने टिप्पागोंडनहल्ली परियोजना बनाई, बंगलुरु से 40 किमी दूर टिप्पागोंडनहल्ली में अर्कावती बाँध बनाने की।

इस स्रोत से जल आपूर्ति 2.7 करोड़ लीटर प्रतिदिन से बढ़ाकर 1958 में 7.2 करोड़ लीटर कर दी गई, लेकिन प्रति व्यक्ति खपत 90 लीटर प्रतिदिन ही थी। 1958 में गठित एक समिति ने कावेरी से पानी लेने का सुझाव दिया। 1974 में बंगलुरु को कावेरी से 13.5 करोड़ लीटर पानी प्रतिदिन मिलने लगा और इसका दूसरा चरण 1982 से शुरू हो गया। कावेरी जल योजना का तीसरा चरण फरवरी 1995 से शुरू हुआ।

आज बंगलुरु को 65 करोड़ लीटर पानी प्रतिदिन मिलता है। इसमें 54 करोड़ लीटर कावेरी परियोजना से मिलता है और 10 करोड़ लीटर टिप्पागोंडनहल्ली से और 1 करोड़ लीटर हस्सरघट्टा जल व्यवस्थाओं से। कावेरी के पानी को 1,000 मीटर की ऊँचाई तक ऊपर ले जाना पड़ता है। बंगलुरु जल आपूर्ति और मल व्ययन बोर्ड बिजली पर हर महीने 4 करोड़ रुपये खर्च करता है। कावेरी योजना के तीसरे चरण के बाद भी बंगलुरु में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 80-100 लीटर पानी मिलता है।

बंगलुरु में पानी पहुँचाने पर सरकारी खर्च इस उपमहाद्वीप में सबसे ज्यादा (7 रुपये प्रति लीटर) है। फिर भी तालाबों को पुनः उपयोगी बनाने की कोई योजना नहीं है। बोर्ड के अध्यक्ष एस.के. घोषाल कहते हैं, “इन तालाबों को उनकी शानदार प्राचीन हैसियत में वापस ला सकने की कोई सूरत नहीं है।”

भारतीय विज्ञान संस्थान के डी.के. सुब्रमण्यन कहते हैं कि नदी के पाइप से पानी को खींचने की व्यवस्था पर निर्भरता के कारण पारम्परिक जल व्यवस्थाओं की उपेक्षा हुई है। रेड्डी कहते हैं कि तालाबों के पानी की थोड़ी सफाई करके पीने के सिवा दूसरे कामों में उपयोग किया जा सकता है। वे कहते हैं, “स्थानीय समुदायों को वर्षाजल का सर्वेक्षण सीखना चाहिए। हर इलाके में वर्षाजल के संग्रह की कोई-न-कोई व्यवस्था होनी चाहिए।”

बंगलुरु शहर के 127 में से 46 तालाब बेकार घोषित किये जा चुके हैं। बंगलुरु के तालाबों का व्यवस्थित सर्वे पहली बार एन. लक्ष्मण राउ की अध्यक्षता में 1985 में किया गया। राउ को इन पुराने तालाबों को पुनः उपयोगी बनाने में काफी सम्भावनाएँ दिखती हैं। वे कहते हैं, “अधिकतर तालाबों पर खुला अतिक्रमण किया गया है। उन्हें प्रदूषित किया गया है और गाद भरने के कारण उनकी क्षमता आधी रह गई है। अधिकतर लोगों के लिये वे कचरे के गड्ढे से ज्यादा कुछ नहीं है। बंगलुरु को आज उनकी जरूरत न हो, लेकिन जल संकट को देखते हुए कल वे काम के साबित हो सकते हैं। लोगों के लाभ के लिये उनके आस-पास कुछ सफाई तालाब बनाये जा सकते हैं।”

लक्ष्मण राउ समिति की सिफारिश पर ‘उपयोगी तालाबों’ को 1988 में वन विभाग के अधीन कर दिया गया। लेकिन वन संरक्षण प्रमुख परमेश्वरप्पा कहते हैं कि केवल 85 तालाब विभाग के हवाले किये गये, जो मृतप्राय थे उनमें सात का तो अता-पता ही नहीं मिल सका और आठ रिहायशी और व्यावसायिक क्षेत्रों में शुमार कर लिये गये हैं।

तालाब बचाओ अभियान


कर्नाटक वन विभाग ने ‘तालाब बचाओ अभियान’ शुरू किया और 25 तालाबों के लिये 50 लाख रुपए की परियोजना तैयार की गई। वन विभाग और तालाब रक्षा समिति ने पदयात्राएँ और नुक्कड़ नाटक आयोजित किये। विभाग ने रक्षा के नाम पर अब तक 21 तालाबों की बाड़बन्दी की है।

परमेश्वरप्पा बताते हैं कि इन तालाबों के विकास के लिये उनमें से मिट्टी निकालने और उस मिट्टी से द्वीप जैसा बनाने की योजना बनाई गई है। इस द्वीप पर सजावटी पेड़-पौधे लगाने की भी योजना है। लेकिन पर्यावरणवादियों को सन्देह है कि बाड़ें तोड़ दी जायेंगी और द्वीप बहकर फिर तालाब में समा जायेंगे। सुब्रमण्यन बताते हैं कि वन विभाग ने सांकी तालाब के किनारों को काटकर नर्सरी लगा दी। वह कहते हैं “समस्या का मूल कारण है बकवास योजनाएँ। उन्हें सिर्फ विशाल नालों की सफाई करनी चाहिए और यह देखना चाहिए कि वर्षाजल तालाबों में पहुँचता है या नहीं।”

सरकारी अतिक्रमण


सरकार तालाबों और झीलों की सबसे बड़ी दुश्मन बनी हुई है। इन अधिकतर तालाबों पर बंगलुरु नगर निगम, बंगलुरु विकास प्राधिकरण, उद्यान विभाग जैसी सरकारी संस्थाओं ने अतिक्रमण कर रखा है। नगर निगम ने धरमबुधी तालाब पर बस अड्डा बना दिया, सम्पांगी तालाब के एक हिस्से पर कांतीर्वा स्टेडियम बना दिया, जबकि बाकी हिस्से का अधिग्रहण सम्पानीरम नगर एक्स. कॉलोनी के लिये किया गया है। सिद्दी कट्टे पर एक अरसे से बाजार बना हुआ है।

सन 1860 तक उल्सूर, शूले और पुदुच्चेरी तालाब बंगलुरु छावनी को पानी मुहैया करते रहे। शूले पर आज फुटबॉल स्टेडियम खड़ा है, पुदुच्चेरी को थॉमस टाउन और कूकस टाउन मुहल्लों ने निगल लिया। नगर विकास योजना में तालाबों को सार्वजनिक उद्यान और खेतल मैदान के रूप में चिन्हित किया गया है। बंगलुरु विकास प्राधिकरण यह तर्क देता है कि बंगलुरु भारत का सबसे तेजी से फैलता शहर है और आबादी का भारी दबाव है। प्राधिकरण के चीफ इंजीनियर एम. होंबैया कहते हैं, “हम अतिक्रमण नहीं कर रहे, बल्कि लोगों को मकान देकर उनका भला कर रहे हैं।”

सिटिजंस वालंटरी इनिशिएटिव फॉर द सिटी (सिविल) और शहर की पाँच दूसरी स्वयंसेवी संस्थाओं ने कोरमंगला तालाब की 47 एकड़ जमीन पर खिलाड़ियों के लिये 5,000 फ्लैट बनाने की मंजूरी देने के सरकारी फैसले के खिलाफ जनहित याचिका दायर की है। कोरमंगला तालाब की बर्बादी के खिलाफ जनहित याचिका दायर की है। कोरमंगला तालाब की बर्बादी के खिलाफ हुई एक रैली में अभिनेता गिरीश कर्नाड ने कहा, “इसकी मूल वजह भ्रष्टाचार है। ऐसा नहीं है कि वे इन तालाबों का महत्त्व नहीं समझते।”

प्रदूषण भी इन तलाबों की हत्या कर रहा है, क्योंकि विशाल नाले उनमें पानी के बदले कचरा भर रहे हैं। डोमलुर तालाब तो 1875 में ही कचरे के नाले की वजह से प्रदूषित हो गया था। घोषाल के मुताबिक, बंगलुरु में तीन बड़ी घाटियाँ हैं, जहाँ कचरे का परिशोधन करके फेंक दिया जाता है- चल्लाघट्टा घाटी, हेब्बाल घाटी और वृषिभावती घाटी। उनका कहना है कि बंगलुरु शहर की ऊँची-नीची सतह के कारण कई छोटी घाटियों को बड़े नालों से नहीं जोड़ा गया है, जो उन बड़ी घाटियों में कचरा पहुँचाते हैं। इसलिये कचरा तालाबों में पहुँचता है। घोषाल का कहना है कि इन छोटी घाटियों की पहचान कर ली गई है और मेगासिटी परियोजना के तहत वहाँ कचरा परिशोधन संयंत्र लगाये जायेंगे।

भूमिगत जलस्रोत इतनी तेजी से खाली हुए हैं कि आज पानी के लिये 300 मीटर गहराई तक खुदाई करनी पड़ती है। इसके अलावा, झीलों के सूखने से मछुआरों और धोबियों की जीविका छिन गई है। मछलियों की आमद में भारी कमी आई है। अच्छे मौसम में जहाँ 6,000 टन मछली मिलती है वहाँ पिछले साल केवल 700 टन मछली मिली।

(‘बूँदों की संस्कृति’ पुस्तक से साभार)

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