बराजों ने गंगा को बिहार का अभिशाप बनाया


गंगा के प्रवाह में अवरोध का बिहार पर सबसे अधिक असर पड़ा है। फरक्का बराज की वजह से गंगा की हालत ऐसी सर्पणी की तरह हो गई है जिसके मुँह को जकड़ दिया गया हो और छटपटा रही हो। नदी फूलती है, तेजी से कटाव करती है और बराज से फुँफकारती हुई निकलती है। हर बराज से ऐसा होता है। फरक्का की हालत अधिक विकराल है। बिहार उसका शिकार है।

फरक्का बराज से टकराकर बाढ़ के पानी का उलटा प्रवाह होता है। गंगा की सहायक नदियाँ- कोशी और गंडक आदि नदियों के पानी का विसर्जन थम जाता है, बल्कि उलटा प्रवाह होता है। कटिहार जिले के बड़े इलाके में भयानक कटाव, जलजमाव होता है।

इधर भागलपुर, मुंगेर से पटना जिले तक और उधर खगड़िया, बेगुसराय, समस्तीपुर, हाजीपुर से छपरा तक जगह-जगह लोग गंगा की छटपटाहट को झेल रहे हैं। मगर अफसोस है कि गंगा तट की समस्याएँ मीडिया में यदाकदा ही आती है। स्थानीय मीडिया गंगा की सहायक नदियों, छोटी नदियों से उत्पन्न समस्याओं से ही पट जाता है। गंगा राष्ट्रीय नदी है, इसलिये उसकी समस्याएँ शायद राष्ट्रीय मीडिया के लिये छोड़ दी जाती हैं।

बिहार में गंगा के मूल स्रोत गंगोत्री का जल नहीं आता। भीलंगना से लेकर कन्नौज, कानपुर तक बने बराज उसका सारा पानी निकाल लेते हैं। बिहार में बक्सर के पास प्रवेश के समय गंगा में चंबल और कर्मनाशा जैसी छोटी नदियों का पानी होता है और बनारस समेत कई शहरों का कूडा-़कचरा और मैला पानी।

बिहार में घाघरा, गंडक, कोसी आदि सारी नदियों से आये पानी को समेटकर गंगा आगे चलती है तो फरक्का बराज उसे रोक देता है। इन नदियों में आये सिल्ट ने बराज के निकास-़द्वारों में आधे से अधिक को पूरी तरह पाट दिया है। बराज के पास पानी जमता है और फैलता है। इस तरह पानी का उलटा प्रवाह आरम्भ होता है। तनिक पहले मिली कोशी पर तत्काल इसका असर पड़ता है।

कोशी अत्यधिक सिल्ट लेकर चलने वाली नदी है। उसका सिल्ट गंगा की धारा में जमता गया है। बिहार की दूसरी नदियाँ भी सिल्ट लाती हैं। तटबन्धों से बँधी होने से सभी नदियाँ गंगा में भरपूर सिल्ट पहुँचाती हैं।

गंगा अपनी शुद्धिकरण क्षमता के कारण विख्यात रही है। वैज्ञानिक मानते हैं कि इस नदी के जल में बैक्टीरियोफेज नामक जीवाणु होते हैं, जो विषाणुओं और अन्य हानिकारक सूक्ष्मजीवों को खत्म कर देते हैं। पहाड़ों पर तेज धारा के चलते नदियों का वेग बहुत अधिक होता है।

इसी प्रचंड वेग में स्वयं शुद्धीकरण की प्राकृतिक व्यवस्था है। लेकिन गंगा जैसे-जैसे हरिद्वार से दूर होती जाती है, उसके प्राकृतिक गुण घटते जाते हैं और कानपुर में पूूरी तरह समाप्त हो जाते हैं, प्रदूषित जल रह जाता है। इलाहाबाद में यमुना के माध्यम से चंबल का पानी आने पर नदी फिर पुनर्जीवित होती है। पर उसमें गंगाजल नहीं होता।

फरक्का बराज की डिजाइन कोलकाता बन्दरगाह को सिल्टमुक्त पानी (18 हजार क्यूसेक) देने के लिये हुआ है ताकि बन्दरगाह के पास सिल्ट का जमाव खत्म कर नव्यता (जहाज चलने की क्षमता) बनाई रखी जाये। अर्थात बराज के पास पानी को रोककर उसे यथासाध्य सिल्टमुक्त किया जाता है। गंगा की नव्यता का यह संकट दामोदर नदी पर बराज बनने से उत्पन्न हुआ था। पर फरक्का बराज से कथित तौर पर सिल्ट-मुक्त होकर आये पानी में भी सिल्ट होता है। और बन्दरगाह को हर साल सैकड़ों करोड़ खर्च कर ड्रेजिंग करानी पड़ती है।

फरक्का बैराज की वजह से बाढ़ की मारक क्षमता बढ़ गई हैगंगा में सिल्ट पहले भी आता था। पर गंगोत्री से आई प्रचंड वेगवान धारा गर्मी के दिनों में भी उस सिल्ट की सफाई करती रहती थी। अब ऐसा नहीं होता। जितना सिल्ट आता है और जो गन्दगी आती है, उसका वजनी हिस्सा नदी के पेट में जमता जाता है। गंगोत्री से चले पानी में जिस तरह के तत्वों से युक्त सिल्ट होते हैं, उनका नामोनिशान नहीं होता। अनेक तरह के हानिकारक तत्व होते हैं, हर तरह का कचरा, हर तरह की गन्दगी होती है।

फरक्का बराज का पहला शिकार पश्चिम बंगाल का मालदा और मुर्शिदाबाद जिला होता है। मालदा में 55 किलोमीटर और मुर्शिदाबाद में 104 किलोमीटर किनारा कटाव का शिकार है। पचासों हजार हेक्टेयर जमीन गंगा के गर्भ में समा गई है, ढाई लाख से अधिक लोग बेघर हो गए हैं। मालदा के सामने गंगा पार साहेबगंज जिले (झारखण्ड) में निकली नई जमीन पर दो-ढाई लाख कटाव पीड़ितों की बस्ती पनप गई है जिसे सरकारी भाषा में अवैध कहा जाएगा और वहाँ किसी तरह की जन सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हैं।

इस तरह की हालत बिहार में गंगा की लम्बी धारा के दोनों तटों पर जगह जगह है। बिहार में विभिन्न नदियों से हर साल होने वाली क्षति का एक आकलन बताता है कि 1991 के मूल्य के आधार पर तीन सौ करोड़ से अधिक का नुकसान होता है। गंगा सबसे अधिक कहर बरपाती है। गंगा पर बिहार में 596 किलोमीटर लम्बे तटबन्ध बने हैं। अन्य तटबन्धों की तरह यह पूरा इलाका संकटग्रस्त है।

गंगा का कटाव जून महीने में ही आरम्भ हो जाता है। उससे बचाव के लिये स्पर बनाए जाते हैं। पर स्पर स्वयं कटाव का शिकार बन जाता है। फिर स्पर बनाए जाते हैं, मगर विस्थापित आबादी का पुनर्वास नहीं होता। विडम्बना है कि को और दूसरी सहायक नदियों की बाढ़ के समाचारों से अखबार और सरकार दोनों हलकान रहते हैं, पर मूल कारक गंगा से होने वाले नुकसान को भुक्तभोगियों के अलावा कोई नहीं जानता, जनमानस में कोई समझ नहीं है।

उन स्थलों के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। थोड़ा बहुत जानकारी उपलब्ध है, उनका सूत्र पकड़कर अन्य स्थलों की पहचान की जा सकती है। इतना तय है कि बिहार को गंगा से लाभ तो कम ही है, नुकसान जरूर उठाना पड़ रहा है।
 

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Post By: RuralWater
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