पटना। बिहार के औरंगाबाद जिले के कुटुम्बा गांव के किसान रामनंदन सिंह का कहना है कि वह अब समझ गए हैं कि आखिर मध्य प्रदेश के झांसी इलाके में किसान नहरों पर पानी के लिए पहरा क्यों लगा रहे थे।
उन्होंने कहा कि पहले वह इस खबर से चकित होते थे लेकिन सिंचाई के लिए जल की किल्लत से अब वह भी इसकी रखवाली करने लगे हैं। सिंह ने कहा किसान के लिए रोपाई के समय खेतों में पानी नहीं रहने से बड़ा दर्द कुछ भी नहीं हो सकता।
उन्होंने कहा, “अब हमने भी महसूस कर लिया है कि गांव में तालाबों के पानी की रखवाली की जाए। अब हम ग्रामीण पानी की पहरेदारी कर रहे हैं।” कम बारिश और सूखे की स्थिति ने इस इलाके के किसानों की तकदीर तथा उनके घरों की तस्वीर बदल दी है।
कोयल नदी में बने भीम बैराज से इस वर्ष पानी नहीं छोड़े जाने के कारण नहर में पानी नहीं आया लेकिन अब कुछ बारिश होने से नहर में पानी आया है। अब नहर में पानी की रक्षा के लिए यहां के किसान मोर्चे पर तैनात हो गए हैं।
“अब हमने भी महसूस कर लिया है कि गांव में तालाबों के पानी की रखवाली की जाए। अब हम ग्रामीण पानी की पहरेदारी कर रहे हैं।”पटना के पालीगंज के भी किसानों का यही हाल है। यहां के किसान सोन कैनाल में पहरा लगाए हुए हैं। यहां के एक किसान रामेश्वर सिंह बताते हैं, “नहर के निचले क्षेत्र के किसान अगर नहर में सेंध लगाकर पानी ले जाएंगे तो उनकी फसल बचेगी ही नहीं। पानी की रखवाली की मुख्य वजह नहर में पानी की जितनी मात्रा होनी चाहिए थी उतनी नहीं है।”
गया जिले के नक्सल प्रभावित एक गांव में शस्त्रों के साथ पहरेदारी कर रहे ग्रामीणों का कहना है कि किसानों का मकसद किसी को नुकसान पहुंचाना नहीं बल्कि दूसरे गांव के किसान या नक्सली बांध काटकर पानी अपने तरफ न ले जाएं इसके लिए वे पहरेदारी कर रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि राज्य में कम बारिश के कारण सुखाड़ की स्थिति पैदा हो गई है। सरकार ने 38 जिलों में से 26 जिलों को सूखाग्रस्त घोषित कर दिया है।
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