बन्द करो गंगा पर बाँधों का निर्माण - स्वामी सानंद

स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद
स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद


साल 2005-06 में जैसे ही उत्तराखण्ड की सभी नदियों पर बाँध बनाने की सूचना फैली वैसे वरिष्ठ भू-वैज्ञानिक प्रो. जीडी अग्रवाल अब के स्वामी सानंद ने उत्तरकाशी के केदारघाट पर तम्बू गाड़ दिया था और इन्हें पर्यावरण विरोधी करार देते हुए इनके निर्माण को बन्द करने की माँग की थी।

भारी जन समर्थन लिये अग्रवाल का यह अनशन एक माह तक चला और अन्ततोगत्वा लगभग एक दर्जन ऐसी निर्माणाधीन जलविद्युत परियोजनाएँ सरकार को बन्द करनी पड़ी। अब फिर पिछले एक सप्ताह से स्वामी सानंद हरिद्वार स्थित मातृसदन में चार सूत्री माँगों को लेकर अनशन पर बैठ गए हैं। कहा कि वे तब तक साँस नहीं लेंगे जब तक उनकी माँगों का निराकरण नहीं होगा। यही नहीं उन्होंने इस बाबत प्रधानमंत्री को भी चिट्ठी लिखी है।

बता दें कि सरकार ने गंगा और उसकी सहायक नदियों पर फिर से बाँध बनाने की कवायद शुरू कर दी है। इधर स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद का कहना है कि चुनाव के वक्त पीएम नरेंद्र मोदी ने अपने को माँ गंगा का बेटा कहकर गंगा की रक्षा करने की बात कही थी। किन्तु गंगा संरक्षण विधेयक आज तक पारित नहीं हुआ है। इससे क्षुब्ध होकर प्रो. अग्रवाल 22 जून से गंगा की रक्षा के लिये हरिद्वार में अनशन पर बैठ गए हैं।

प्रो. अग्रवाल मानते हैं कि पीएम मोदी के गंगा की रक्षा की बात कहने पर उन्हें खुशी हुई थी, किन्तु चार साल बाद भी गंगा की रक्षा करने की बजाय गंगा के स्वास्थ्य खराब करने का काम किया जा रहा है। उन्होंने पीएम को पत्र लिखकर यह माँग की है कि अलकनंदा नदी पर बनी विष्णुगाड़ पीपलकोटी बाँध, मन्दाकिनी नदी पर फाटा व्योंग, सिंगोली भटवाड़ी पर हो रहे निर्माण को बन्द किया जाये। उन्होंने बाँध और खनन के विरोध में उपवास शुरू कर दिया है और प्राण त्यागने तक इसे जारी रखने की चेतावनी भी दी है।

गौरतलब है कि, स्वामी सानंद ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र प्रेषित कर यह सवाल उठाया है कि केन्द्र सरकार ने गंगा पर बाँध निर्माण और खनन के प्रबन्धन के लिये वर्ष 2014 में बनी कमेटी द्वारा रिपोर्ट सौंप दिये जाने के बाद भी उसे सार्वजनिक क्यों नहीं किया? यह पत्र उन्होंने प्रधानमंत्री को 24 फरवरी को भेजा था लेकिन प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) से कोई जवाब न मिलने पर स्वामी सानंद ने नाराजगी जताई।

करोड़ों रुपए खर्च कर चलाए जा रहे नमामि गंगे जैसी योजनाओं पर भी इन्होंने सवाल उठाया है। उनका कहना है कि सरकार और सरकारी मण्डलियाँ (संस्थाएँ) गंगा जी व पर्यावरण का जानबूझकर अहित करने में जुटी हुई हैं। उनकी माँग है कि गंगा महासभा की ओर से प्रस्तावित अधिनियम ड्रॉफ्ट 2012 पर तुरन्त संसद में चर्चा हो या फिर इस विषय पर अध्यादेश लाकर इसे तुरन्त लागू किया जाये। इसके अलावा अलकनंदा, धौलीगंगा, नंदाकिनी, पिंडर, मंदाकिनी पर निर्माणाधीन व प्रस्तावित जल विद्युत परियोजनाओं को तुरन्त निरस्त किया जाये। इसके साथ ही इन्होंने विभिन्न परियोजनाओं की बली चढ़ने वाले दुर्लभ प्रजाति के पेड़ों की कटान पर रोक लगाने और नदियों में हो रहे अवैध खनन पर त्वरित प्रतिबन्ध लगाने की भी माँग की है। उनका कहना है कि उन्हें माँ गंगा के लिये यदि इस उपवास बाबत प्राण त्यागने पड़े तो उन्हें कोई मलाल नहीं है। वे कहते हैं कि प्रधानमंत्री ने गंगा को माँ कहा है इसलिये उन्हें भी माँ की रक्षा के लिये कड़े कदम उठाने चाहिए।

आईआईटीयन्स फॉर होली गंगा का समर्थन

इधर प्रोफेसर जी डी अग्रवाल के समर्थन में देश भर के आईआईटीयन्स एकत्र हो गए हैं। उन्होंने बाकायदा आईआईटीयन्स फॉर होली गंगा नाम से संगठन का निर्माण किया है। वे भी प्रो. अग्रवाल के समर्थन में देश भर में अभियान चलाएँगे। उन्होंने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा है कि सरकार आईआईटी कंसोर्टियम की सिफारिशों को लागू करे और गंगा नदी के प्राकृतिक प्रवाह को सुनिश्चित करे। इस हेतु प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जल संसाधन मंत्री नितिन गडकरी को हस्तक्षेप करने की आवश्यकता है। उन्होंने उत्तराखण्ड में गंगा और उसकी सहायक नदियों पर बन रही सभी पनबिजली और सुरंग परियोजनाओं के निर्माण को तत्काल बन्द करने की गुहार भी लगाई है।

आईआईटीयन्स फॉर होली गंगा ने केन्द्र के एनडीए सरकार के चार साल के कार्यकाल के दौरान गंगा संरक्षण का काम अधूरा रहने पर असन्तोष प्रकट किया है। उन्होंने कहा कि पर्यावरण और वन मंत्रालय ने 2010 में सात भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (आईआईटी) का एक कंसोर्टियम बनाया था। इस कंसोर्टियम को गंगा नदी बेसिन पर्यावरण प्रबन्धन योजना (जीआरबी ईएमपी) बनाने की जिम्मेदारी दी गई थी। इस कंसोर्टियम में आईआईटी बॉम्बे, दिल्ली, गुवाहाटी, कानपुर, खड़गपुर, मद्रास और रुड़की के लोग शामिल थे।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों की ओर से तैयार और सरकार को सौंपी गई रिपोर्ट में गंगा नदी बेसिन पर्यावरण प्रबन्धन योजना (जीआरबी ईएमपी) को विकसित करने के लिये रणनीति, विभिन्न सूचनाएँ और उनके विश्लेषण के साथ सुझाव की विस्तृत चर्चा की गई है। रिपोर्ट में सबसे ज्यादा जोर गोमुख से ऋषिकेश तक ऊपरी गंगा नदी सेगमेंट के प्राकृतिक प्रवाह को सुनिश्चित करने पर दिया गया है।

आईआईटीयन्स फॉर होली गंगा के अध्यक्ष यतिन्दर पाल सिंह सूरी ने केन्द्र सरकार से आईआईटी कंसोर्टियम की रिपोर्ट को सार्वजनिक कर इसे लागू करने की माँग भी की है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केन्द्र सरकार के चार साल पूरे हो गए हैं, लेकिन उत्तराखण्ड में पवित्र गंगा नदी के संरक्षण के लिये कोई सार्थक प्रयास नहीं दिख रहा, जो बेहद दुखदायी है। यहाँ तक कि प्रस्तावित गंगा अधिनियम भी अब तक नहीं बन पाया है।

श्री सूरी ने बताया कि उत्तराखण्ड में गंगा नदी पर पनबिजली परियोजनाओं और सुरंगों के निर्माण की वजह से नदी के प्रवाह का बड़ा हिस्सा प्रभावित हो रहा है और फैलाव भी संकुचित होता जा रहा है। राजमार्ग और चारधाम यात्रा के लिये चार लेन की सड़कों का निर्माण हालात को और बिगाड़ रहा है। अब गोमुख से ऋषिकेश तक महज 294 किलोमीटर नदी का केवल छोटा हिस्सा प्राकृतिक और प्राचीन रूप में बहता है।

आईआईटीयन्स फॉर होली गंगा के कार्यकारी सचिव एस के गुप्ता ने कहा कि वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री नितिन गडकरी से सुप्रसिद्ध पर्यावरण वैज्ञानिक और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर के पर्यावरण विज्ञान के 86 वर्षीय पूर्व प्रोफेसर जी डी अग्रवाल (स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद) की माँग को मान लेने के लिये गुजारिश करते हैं।

आईआईटीयन्स फॉर होली गंगा के कार्यकारी सदस्य पारितोष त्यागी का कहना है कि इस क्षेत्र की विभिन्न नदियों पर मौजूदा और प्रस्तावित जल विद्युत परियोजनाओं से नदी घाटी को होने वाली क्षति अपूरणीय होगी। उन्होंने कहा कि गंगा नदी के प्राकृतिक प्रवाह पर नियंत्रण बहुमूल्य पारिस्थितिकी तंत्र को नष्ट करने के साथ-साथ गंगाजल को भी प्रदूषित कर रहा है।

स्वामी सानंद ने उपवास करने के पूर्व पर्यावरण से जुड़े मुद्दों पर कई महत्त्वपूर्ण सवाल खड़े किये हैं। उन्होंने कहा कि सन 2000-01 में टिहरी और अन्य बाँधों को लेकर मुरली मनोहर जोशी के नेतृत्व में एक कमेटी बनी थी, वे भी उस कमेटी के सदस्य थे। तब भी उन्होंने इन बाँधों के निर्माण पर सवाल उठाया था लेकिन कमेटी ने उस पर गौर नहीं किया तो उन्होंने इस्तीफा दे दिया था। वे कहते हैं कि वे तब से अब तक उन्हीं सवालों के साथ खड़े हैं। उनके अनुसार यदि कमेटी उनकी बात मान लेती तो उत्तराखण्ड में आज पर्यावरण का इतना विनाशकारी स्वरूप हमारे सामने नहीं होता।

वर्ष 2001 में मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता में बनी कमेटी के समक्ष स्वामी सानंद द्वारा पत्र के माध्यम से उठाए गए सवालों को हम अक्षरशः प्रस्तुत कर रहे हैं।

मुरली मनोहर जोशी समिति की रिपोर्ट हिन्दू समाज के विरुद्ध एवं षडयंत्र और दण्डनीय अपराध (डॉ. गुरूदास अग्रवाल, समिति सदस्य)

(1) टिहरी बाँध के भूकम्प सम्बन्धी खतरों और गंगाजी की प्रदूषण नाशिनी क्षमता पर दुष्प्रभावों का आकलन कर बाँध निर्माण को आगे बढ़ाने या न बढ़ाने के बारे में अनुशंसा देने के लिये माननीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा अप्रैल 2001 में गठित इस समिति ने जनवरी 2002 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। उक्त रिपोर्ट की ‘सूचना का अधिकार अधिनियम’ (RTI) के अन्तर्गत प्राप्त प्रति में पेज सख्या 28, 29, 30 गायब हैं। पृष्ठ 26 पर समिति का सर्ग 7.0 ‘निष्कर्ष और अनुशंसा’ है, पृष्ठ 27 पर सर्ग 8.0 ‘आभार-प्रदर्शन’ और पृष्ठ 31 पर ‘सन्दर्भ’ (References) पृष्ठ 28, 29, 30 पर क्या था, पता नहीं। निम्न विचार और विवेचना इस अपूर्ण रिपोर्ट पर ही आधारित हैं पर पृष्ठ 27 पर ‘आभार-प्रदर्शन’ आ जाने से माना जा सकता है कि गायब पृष्ठों पर निष्कर्ष, अनुशंसा या अन्य कोई महत्त्वपूर्ण सामग्री नहीं रही होगी।

(2) गंगाजल की प्रदूषणनाशिनी क्षमता के बारे में पृष्ठ 26 पर दिये निष्कर्ष बेहद अधूरे, अर्थहीन और हिन्दू समाज के लिये ही नहीं अपितु गंगा जी के लिये भी अपमानजनक है। जैसाकि नीचे देखा जा सकता हैः


(क) पैरा 4 गंगाजल के विशिष्ट गुणों को मात्र आस्था और अप्रामाणिक के रूप में मानता है- नकारता नहीं तो स्वीकारता भी नहीं, जैसा कि पेज पर it is conceivable वाक्यांश से स्पष्ट है। निष्कर्ष के रूप में यह अर्थहीन है।


(ख) पैरा 5 में गंगाजल, विशेषतया ऋषिकेश से ऊपर के गंगाजल की ‘प्रदूषण-क्षमता’ पर गहन और विशद वैज्ञानिक अध्ययन की तात्कालिक और त्वरित अध्ययन की अनुशंसा की गई है। पर ऐसे अध्ययन की स्पष्ट रूप रेखा न दिये जाने और ऐसे अध्ययन के निर्णायक निष्कर्ष मिलने तक बाँध पर आगे का काम रोक देने की बात न देने से यह अनुशंसा निपट अधूरी है। और इसमें NEERI Proposal की बात कहकर (जो Annexure के रूप में पेज 125 से 137 में दिया गया है) तो सारा गुड़-गोबर कर दिया है। NEERI के इस प्रस्ताव में अपने पेज 3 के अन्तिम पैरा में गंगाजल की विलक्षण प्रदूषणनाशिनी क्षमता को तो स्वीकारा गया है पर इस विलक्षण क्षमता के आकलन और अध्ययन के लिये आवश्यक वैज्ञानिक समझ/सामर्थ्य और मानसिक समर्पण दोनों ही के अभाव में लगभग 50 लाख लागत का यह प्रस्ताव अपने Scope of work में और विशेषतया Work Plan में बेहद अधकचरा है। इसमें प्रदूषणनाशिनी क्षमता क्या होती है और इसका आकलन या मापन कैसे किया जाएगा इसका कोई जिक्र नहीं। यह तो एक सामान्य जल-गुणवत्ता आकलन और जैविक अध्ययन का प्रस्ताव है और समिति के उद्देश्यों के लिये अर्थहीन है। रिपोर्ट से यह भी पता नहीं चलता कि यह अध्ययन हुआ भी या नहीं और इसके परिणाम मिले बिना समिति ने इस विषय में अपनी अनुशंसा क्या और किस आधार पर की।


(ग) पैरा 7 की अन्तिम अनुशंसा जो कुछ थोड़ा सा ‘अविरल’ प्रवाह बनाए रखने के अर्थ में है उतनी ही अधूरी, अनिश्चय-भरी और अर्थहीन है जितनी पैरा 4, 5 की ऊपर विवेचित अनुशंसा हैं।


(घ) सब मिलाकर पृष्ठ 26 के निष्कर्ष पूरी तरह अधूरे और अर्थहीन हैं और अनुशंसा का सच पूछें तो कोई है ही नहीं। रिपोर्ट हिन्दू समाज की आस्था और गंगा जी के प्रति अपमानजनक भी है क्योंकि वह गंगा जी को विशिष्ट स्थान न देकर उन्हें सामान्य नदियों के समकक्ष रखना चाहती है।

(3) कमेटी की 28-04-01 की बैठक में गंगाजल की प्रदूषण-विनाशिनी क्षमता के प्रश्न पर विचार करने और इस विषय पर अपनी अनुशंसा देने के लिये एक उपसमिति गठित की गई थी। इस उपसमिति के सदस्यों की सूची तो रिपोर्ट में लगी है पर 29-04-01 को लगभग 7 घंटे तक चली इस उपसमिति के सत्र में हुई चर्चा या निष्कर्षों के बारे में कोई विवरण नहीं। सम्भवतः वे पृष्ठ हमें RTI के अन्तर्गत प्रति देते समय निकाल दिये गए या शायद सरकार को भी नहीं दिये गए (हमारी प्रति में पृष्ठ 87 के बाद पृष्ठ 93 के बीच 5 के बदले केवल 2 पृष्ठ हैं- तीन नदारद हैं)। मैं (गुरूदास अग्रवाल) इस उपसमिति का अध्यक्ष था और मैंने इसकी चर्चाओं के निष्कर्ष और अनुशंसा अपने हाथ से 30-04-01 को माननीय जोशी जी को सौंपा था - उन्हें रिपोर्ट में जाने क्यों सम्मिलित नहीं किया गया। मैं चाहुँगा कि माननीय जोशी जी मेरे हाथ से लिखे निष्कर्ष-अनुशंसा को मूल रूप में हिन्दू समाज के समक्ष प्रस्तुत कराएँ।

(4) मेरी अध्यक्षता वाले उपसमूह का निष्कर्ष और मेरी अपनी स्पष्ट अनुशंसा थी कि गंगाजल की विलक्षण प्रदूषणनाशिनी क्षमता पर गहन अध्ययन और शोध का कार्य 6 मास के भीतर पूरा करा लिया जाये और ऐसे अध्ययन के स्पष्ट और निर्णायक परिणाम मिलने तक बाँध पर आगे का कार्य स्थगित कर दिया जाये। इस अनुशंसा का 30-04-01 की बैठक में श्री माशेलकर और ठाटे ने मुखर विरोध किया और ठाटे ने यह कहते हुए कि यदि काम एक मिनट के लिये भी बन्द करने की बात हों तो वह कमेटी पर काम नहीं करेंगे और अपना त्यागपत्र समिति के अध्यक्ष जोशी को सौंप दिया। इस पर श्री माशेलकर और माननीय जोशी जी ठाटे को मनाने में लग गए पर उनकी ‘ना मानूँ ना मानूँ’ जारी रही और अन्य सदस्य बस देखते रहे। जब इस तमाशे को चलते 45 मिनट हो गए तो इससे आजिज आकर कि यदि काम बन्द होने की स्थिति में ठाटे समिति में भाग लेने को तैयार नहीं तो काम न रोके जाने की स्थिति में मैं समिति के कार्य में भाग नहीं लूँगा। (यद्यपि इससे पहले मैंने ऐसा कभी नहीं कहा था, पर यदि काम आगे चलता रहे तो समिति की चर्चा चलाते रहना क्या हिन्दू समाज को धोखा देना, भुलावे में रखना नहीं था) कहते हुए मैंने अपना हाथ से लिखा तीन लाइन का सशर्त त्यागपत्र माननीय जोशी जी को सौंप दिया। जोशी जी का (और इस सारे तमाशे का) मन्तव्य स्पष्ट हो गया, जब मेरा त्यागपत्र हाथ में आते ही जोशी जी ने ‘अरे मुझे तो संसद की बैठक में जाना है’ कहते हुए मीटिंग समाप्त कर बाहर चले गए उसके बाद मुझे उस त्यागपत्र की स्वीकृति/अस्वीकृति की कोई सूचना न मिलने और जोशी-माशेलकर-ठाटे तिकड़ी का खेल और अन्य सभी सदस्यों की असहायता देख लेने के बाद, उसके बाद की बैठकों में मेरे जाने का तो प्रश्न था ही नहीं। जहाँ तक मुझे ज्ञात हैं, समिति की ड्रॉफ्ट या अन्तिम रिपोर्ट मुझे दिखाने, उन पर मेरी राय या हस्ताक्षर लेने का कोई प्रयास नहीं किया गया (माशेलकर जैसे गंगा-विरोधी के होते, ऐसा भला होता भी क्यों कर!)। समिति की उपलब्ध रिपोर्ट न 30-04-2001 की बैठक में हुए इस तमाशे का जिक्र करती है न मेरे त्यागपत्र का जो स्वयं उन्होंने अपने हाथ में पकड़ा था। या तो वे इस सब का सत्य हिन्दू समाज के सामने प्रत्यक्ष रखें या हाथ में गंगा जल लेकर, गंगा जी की सौगन्ध खाकर मेरे त्याग पत्र की बात नकारें।

(4) यदि श्री दिलीप बिस्वास, डॉ. आर. एन. सिंह, और डॉ. यू. के. चौधरी को छोड़ दिया जाये जो विषय के जानकार होते हुए भी अन्ततः डरपोक सरकारी कर्मचारी थे जिनके लिये माँ गंगा और हिन्दू समाज के हितों से कहीं पहले उनके अपने स्वार्थ (Career) आते थे, तो पूरी समिति में जल गुणवत्ता और गंगाजल की प्रदूषणनाशिनी क्षमता की बात समझने वाले केवल दो ही सदस्य थे - मैं और प्रोफेसर शिवा जी राव। हम दोनों के हस्ताक्षर रहित (और प्रो. शिवा जी राव की तो स्पष्ट असहमति लिखित में होते हुए) यह रिपोर्ट कैसी होगी आप स्वयं समझ सकते हैं।

(5) यह रिपोर्ट और पूरा काण्ड, सर्व श्री जोशी जी/ माशेलकर/ ठाटे की तिकड़ी का माँ गंगा और हिन्दू समाज के विरूद्ध षडयंत्र और दण्डनीय अपराध है।

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