बलिया जिला का सुरहा ताल, जलसंपदा का प्राकृतिक संजाल

बलिया जिला का सुरहा ताल, फोटो-India water portal Flicker
बलिया जिला का सुरहा ताल, फोटो-India water portal Flicker

सुरहा ताल परिचय

सुरहा ताल या सुरहा झील गंगा और सरयू के दोआब में स्थित एक गोखुर झील है जो गंगा नदी द्वारा निर्मित है। यह उत्तर प्रदेश के अंतिम छोर पर बसे  बलिया जनपद के मुख्यालय से  करीब 13 किलोमीटर की दूरी पर 2549 वर्ग हेक्टेयर के विशाल भू-भाग में फैला  प्राकृतिक झील ‘सुरहा ताल’ अपने अंदर अपार  संभावनाओं को समेटे हुए है। यह सुरहा ताल  गंगा और सरयू के दोआब में स्थित एक गोखुर  झील है जो गंगा नदी द्वारा निर्मित है। यह ताल  प्रवासी पक्षियों के लिए खासा प्रसिद्ध है और इसे  1991 में पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चंद्रशेखर जी के  प्रयास से पक्षी विहार भी घोषित किया जा चुका  है। पर्यटन के लिहाज से देखा जाए तो यह ताल  पूरे देश में एक विशिष्ट स्थान रखता है। यहां की  प्राकृतिक छटा और दूर-दूर से आने वाले  देशी-विदेशी पक्षियों का कलरव सैलानियों को  बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करने की क्षमता रखता है। ठंड के दिनों में यहां लाखों की संख्या  में सैलानी पक्षी आते हैं जिन्हें देखने के लिए  काफी लोग यहां पहुंचते हैं। हालांकि देखरेख के  अभाव में इन पक्षियों का लोग शिकार भी करते हैं  जिन्हें कड़ाई से रोकने की जरूरत है। वाटर  स्पोर्ट्स के लिहाज से तो यह झील बिल्कुल ही  अनुकूल है। यहां वर्ष भर पानी रहता है जिसमें  वाटर स्पोर्ट के माध्यम से लोगों को ट्रेनिंग,  मनोरंजन और रोजगार दिया जा सकता है। इसे  यदि समुचित ढंग विकसित किया जाए तो केरल  आदि राज्यों के तर्ज पर यह भी वाटर स्पोर्ट्स का  हब बन सकता है। इस झील को विकसित किया  जाए तो यहां जल पर्यटन की भी अपार  संभावनाएं हैं। यहां पानी के छोटे जहाजों से लेकर  स्पीड बोट आदि का भी संचालन किया जा सकता है जिसके लिए यहां दूर-दूर से लोग पहुंचेंगे। यही  नहीं सुरहा ताल में अकूत प्राकृतिक संपदा से  लेकर जंगली जीव व विदेशी पक्षियों तक का भी  अनोखा समुच्चय है। भौगोलिक दृष्टि से सुरहा  ताल का अलग स्थान है। इसका उद्गम गंगा के  बहिर्गमन के कारण हुआ है और लगभग 23  किमी का एक संकीर्ण नाला इसे नदी से जोड़ता  है। झील का क्षेत्र मौसमी बदलाव के अधीन है  और झील हर साल अगस्त-सितंबर के महीने में  मानसूनी बारिश के दौरान अपने अधिकतम  इलाके तक फैल जाती है। इसमें जल संचयन की  व्यवस्था की जाए तो यहां पानी की भी कभी कमी  नहीं हो सकती है। ताल के इर्द-गिर्द का इलाका  तो और भी खूबसूरत है। बरसात के दिनों में ताल  में पानी भर जाने के बाद तो यहां का नजारा और  भी मनोरम और सुरम्य हो जाता है। सुरहा ताल  ऐतिहासिक रूप से प्रवासी और देशी पक्षियों की  विविधता के लिए प्रसिद्ध है। 

सुरहा ताल पारिस्थितिकी तंत्र 

परंपरागत रूप से सुरहा ताल के पारिस्थितिकी तंत्र को चावल की खेती और मछली पकड़ने के  लिए काफी मुफीद माना जाता है, लेकिन क्षेत्र की  मूल समस्या अधिक जनसंख्या है जो झील के  साथ-साथ झील के जलग्रहण पर अत्यधिक दबाव  डालती है। ताल के इर्द-गिर्द के क्षेत्रों व इसकी  तलहटी में विशेषज्ञों द्वारा किए गए तमाम अध्ययनों में कई तथ्य ऐसे मिले हैं जिसे मूर्त रूप  दे दिया जाए तो यह देश के लिए किसी गौरव से  कम नहीं होगा। सुरहा ताल की तलहटी में अकूत  प्राकृतिक संपदा भरी पड़ी है। झील के किनारे  फैले विशाल भूभाग में विदेशों की तर्ज पर एक  अलग शहर बसाया जा सकता है जो पर्यटन के  लिहाज से अपने आप में बिल्कुल अनूठा होगा।  केंद्र सरकार के स्मार्ट सिटी योजना के तहत झील  के किनारे स्थित विशाल भूभाग पर एक शहर  बसाया जा सकता है जो विदेशों में ही देखने को  मिलता है। समय-समय पर यहां विशेषज्ञों द्वारा  किए गए शोध में यह तथ्य भी आया था कि इस  ताल में विभिन्न जलीय जीव, मछलियां व कीड़ों  की 37 प्रजातियां निवास करती हैं। यहां नायलान  के कीड़े बहुतायत में पाए जाते हैं जिन्हें विकसित  कर नायलॉन बनाया जा सकता है। करीब 5  किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैले इस ताल में कभी  पारंपरिक धान की 32 प्रजातियों की पैदावार  होती थी लेकिन 2009 के बाद से घटकर अब  मात्र 13 प्रजाति ही शेष रह गई है। 1991 में  इसको पक्षी अभ्यारण्य के तौर पर घोषित किए  जाने के बाद ताल में दूरदराज से आने वाले  साइबेरियन पक्षियों के अलावा अन्य कई विदेशी पक्षियों का बसेरा रहता है।  

सुरहा ताल की पारिस्थितिकी खतरे में

अनेक विशेशताओं से परिपूर्ण सुरहा ताल को बायोटेक्नोलॉजी के हब के रूप में भी विकसित  किया जा सकता है। आज बायोटेक्नोलॉजी देश  में उभरता हुआ क्षेत्र है जिसके लिए यह ताल सबसे उपयुक्त है। दिल्ली, बीएचयू और लखनऊ विश्वविद्यालय के विषय विशेषज्ञों की टीम ने यहां  पूर्व में किए गए अध्ययनों व अनुसंधान के बाद  कई चीजों को विकसित किए जाने की रिपोर्ट दी  थी लेकिन इस पर कुछ विशेष काम आज तक  नहीं हो सका। सरकार अगर विशेषज्ञों की रिपोर्ट  और शोध के आधार पर विचार करे तो बायो  टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में यहां अपार संभावनाओं  की तलाश की जा सकती है। बायोटेक्नोलॉजी पार्क बनाए जाने के बाद यहां जलीय जीवो के  साथ विदेशों से आने वाले पक्षियों पर शोध भी  किए जा सकते हैं। पक्षियों के रूट पर शोध के  साथ यहां की मिट्टी व जलीय जीव पौधे तथा  विभिन्न फसलों आदि पर भी अनुसंधान किए जा  सकते हैं। बीएचयू के बॉटनी विभाग के प्रोफेसर  आरएस अंबष्ट, अजीत श्रीवास्तव व सिद्धार्थ सिंह ने 1999 में यहां इकोलॉजिकल स्टडी  किया था जिसमें कई तथ्य सामने आए थे टीम ने ताल में कई गतिविधियों की वजह से लगातार  फैल रहे फिजियोकेमिकल को यहां के पर्यावरण के  लिए खतरनाक करार दिया था लेकिन इस पर  गौर नहीं किया गया। बलिया नगर के टाउन  महाविद्यालय के कृषि रक्षा व मृदा विज्ञानी डॉ  अशोक कुमार सिंह ने भी अपनी टीम के साथ  यहां शोध किए थे। उन्होंने बताया कि झील की  तलहटी में कई तरह के जीवों का भंडार है। यहां  की मिट्टी में नाइट्रोजन, फास्फोरस, जैविक  कार्बन, जस्ता, बोरान व लोहा आदि पोषक तत्वों  की मात्रा काफी अधिक है। बायोलॉजिकल पार्क  के लिए तो जो भी मानक है वह इस ताल में  पर्याप्त मात्रा में है। इसे विकसित किया जाए तो  ताल बहुत बड़ा व्यवसायिक केंद्र भी बन सकता  है। प्राकृतिक रूप से सुरहा ताल में इतनी संपदा  है कि यह हजारों, लाखों किसानों के लिए वरदान  साबित हो सकता है। सुरहा के जल में  वानस्पतिक पौधों, धान के तने व अन्य जलीय  पौधों के सड़ते रहने से इसकी 2 फीट तक की  मिट्टी पूरी तरह से जैविक खाद बन चुकी है।  इसके ऊपर से 2 फीट तक की मिट्टी को ही सीधे  खाद व कंपोस्ट की तरह खेतों में प्रयोग किया जा  सकता है। इसकी मिट्टी में ही इतनी उर्वरा शक्ति  है कि किसी भी तरह के खेत को उर्वर व उपजाऊ  बनाने में योग्य है। टीडी कालेज के प्रोफेसर डॉ  अशोक सिंह के नेतृत्व में एक टीम ने लगातार 2  वर्ष तक यहां किए गए अध्ययन में पाया कि  इसकी मिट्टी में प्राकृतिक व जैविक खाद का  अकूत भंडार है। इसका शोध पत्र अंतरराष्ट्रीय  जनरल के एग्रो पीडोलॉजी में प्रकाशित भी हो  चुका है। यहां की 2 फीट की मिट्टी में जैविक  कार्बन की मात्रा 3.5 फीसद है जो सबसे अधिक  है। इसमें उपलब्ध नाइट्रोजन की मात्रा प्रति  हेक्टेयर 600 किलोग्राम तक है। इसी प्रकार  फास्फोरस प्रति हेक्टेयर 22 किलोग्राम,  पोटेशियम प्रति हेक्टेयर 11 किलोग्राम तो  उपलब्ध गंधक की मात्रा 12 किलोग्राम प्रति  हेक्टेयर है। इसके अलावा इस खाद युक्त मिट्टी में  धनायन विनिमय क्षमता यानी पोषक तत्वों को  एक स्थान से दूसरे स्थान पर बदलने की क्षमता  55 से 60 तक पाई गई है। इतना ही नहीं, मिट्टी  में सूक्ष्म मात्रिक पोषक तत्वों की मात्रा मसलन  लोहा, जस्ता, तांबा, मैग्नीशियम व मैग्नीज की  मात्रा भी गोबर की खाद की जैसी है। ऐसे में इन  सारे तथ्यों को ध्यान में रखते हुए अगर ताल को  विकसित किया जाए तो यह देश के लिए बहुत  बड़ा व्यवसायिक केंद्र भी बन सकता है। 

उपसंहार

इसकी  मिट्टी को खाद के तौर पर विकसित कर इसे  व्यावसायिक रूप दिया जा सकता है। सुरहा ताल  के विशाल क्षेत्र से मिट्टी को 60 सेंटीमीटर की  गहराई तक निकाला जाए तो एक तरफ खेतों के  लिए उत्तम खाद मिल जाएगी, तो दूसरी ओर 2  फीट गहराई बढ़ने से ताल की जल धारण की  क्षमता भी हजारों क्यूसेक बढ़ जाएगी। ताल का  कायाकल्प कर दिया जाए तो यह पूरे देश के लिए  एक नजीर बन सकता है।

लेखक धर्मेन्द्र सिंह लोकसम्मान पत्रिका के प्रबंध सम्पादक हैं।

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