सरकार ने चालू योजनाओं को सहायता बढ़ाकर, नई योजनाएँ शुरू कर और कृषक समुदाय की सामाजिक-आर्थिक स्थिति सुधारने में सहायक विभिन्न उपाय कर 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने की प्रतिबद्धता दोहराई है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद में बजट पेश करते हुए केन्द्र सरकार की मंशा व्यक्त करते हुए कहा कि सरकार जो कुछ भी करती है, उसके केन्द्र में गांव, गरीब या किसान होता है। इसी बयान के अनुरूप, बजट प्रस्तावों में किसानों की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए प्रावधान किए गए हैं और कृषि क्षेत्र को बदलने के लिए प्रक्रियाएँ भी शुरू कर दी गई हैं।
केन्द्रीय बजट (वित्त वर्ष 2019-20) किसानों के कल्याण और कृषि को, वित्तीय आवंटन और परिवर्तन की अवधारणा, दोनों दृष्टियों से सर्वाधिक बढ़ावा देने का प्रावधान किया गया है। इसमें सरकार ने चालू योजनाओं को सहायता बढ़ाकर, नई योजनाएँ शुरू कर और कृषक समुदाय की सामाजिक-आर्थिक स्थिति सुधारने में सहायक विभिन उपाय कर 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने की प्रतिबद्धता दोहराई है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने केन्द्र सरकार की मंशा व्यक्त करते हुए कहा कि सरकार जो कुछ भी करती है, उसके केन्द्र में गाँव, गरीब या किसान होता है। इसी बयान के अनुरूप, बजट प्रस्तावों में किसानों की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए प्रावधान किए गए हैं और कृषि क्षेत्र को बदलने के लिए प्रक्रियाएँ भी शुरू कर दी गई हैं।
समृद्धि को दृष्टि में रखते हुए आवंटन
कृषि और सम्बद्ध क्षेत्रों के लिए कुल आवंटन बढ़ाया गया है। पहले के 86,600 करोड़ रुपए के आवंटन को बढ़ाकर 1,51,500 करोड़ रुपए कर दिया गया है। यह बढ़ोत्तरी मुख्य रूप से प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के लिए 75,000 करोड़ रुपए की बड़ी राशि आवंटित किए जाने के कारण हुई है। इस अनूठी योजना के तहत प्रत्येक किसान को सीधे 6,000 रुपये की नकद सहायता दी जाती है। यह राशि एक वर्ष के दौरान दो-दो हजार की तीन किस्तों में दी जाती है। नकद सहायता से ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानीय आय और खपत बढ़ने की आशा है, जिससे आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा, लेकिन कृषि के लिए आवंटन में उर्वरक सब्सिडी शामिल नहीं है, जो अब लगभग 14 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 80,000 करोड़ रुपए हो गई है। बजट में फसलों, पशुओं और मत्स्य से सम्बन्धित विभिन्न मुख्य और केन्द्रीय योजनाओं के लिए आवंटन और फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) सहित मूल्य हस्तक्षेप (गेहूँ और धान के अलावा) के लिए बजट में 6 से 50 प्रतिशत अधिक प्रावधान किया गया है। ब्याज सब्सिडी के सकारात्मक प्रभाव को बढ़ाने के लिए इसमें पिछले वर्ष की तुलना में 20 प्रतिशत की शुद्ध वृद्धि कर 18,000 करोड़ रुपए कर दिया गया है। यह सहायता किसानों को मिलने वाले सभी अल्पकालिक ऋणों पर लागू होती है।
ग्रामीण अवसंरचना को मजबूत करने के लिए बजट में ग्रामीण सड़कों के लिए 19,000 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया है। यह पिछले वर्ष के व्यय से 22.5 प्रतिशत अधिक है। बेहतर सड़क सम्पर्क से बाजारों तक आसानी से पहुँचा जा सकता है और इससे कृषि को बहुत मदद मिलती है। वित्त मंत्री ने पात्र बस्तियों को सड़कों से जोड़ने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए इस काम में तेजी लाने पर जोर दिया। यह लक्ष्य हासिल करने की समय सीमा 2022 से घटाकर 2019 कर दी गई है। नई सड़कों के निर्माण के अलावा, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना-III (पीएमजीएसवाई-III) में अगले पाँच वर्षों में 80,250 करोड़ रुपए की अनुमानित लागत से 1.25 लाख कि.मी. सड़क मार्ग के उन्नयन की परिकल्पना की गई है। सतत विकास की प्रतिबद्धता के तहत हरित प्रोद्यौगिकी, रद्दी प्लास्टिक और कोल्ड मिक्स टेक्नोलॉजी का उपयोग करके 30,000 कि.मी सड़क का निर्माण पीएमजीएसवाई के तहत किया गया है। सरकार ने ग्रामीण सड़कों के अलावा प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई) के तहत आवंटन में 17 प्रतिशत की वृद्धि की है। वर्ष 2016 में शुरू की गई इस योजना से बड़ी और मध्यम सिंचाई परियोजनाओं को सहायता देने तथा इनमें तेजी लाने और सिंचाई के अन्य उपायों, जैसे की माइक्रो सिंचाई, जल-संभर विकास और पारम्परिक जल निकायों के उपयोग को बढ़ावा देने से सिंचित क्षेत्रों के विस्तार में महत्त्वपूर्ण प्रगति हुई है।
कारोबार को बढ़ावा
किसानों को उनकी उपज का अधिकतम बाजार मूल्य सुनिश्चित करने के उद्देश्य से 2016 में इलेक्ट्रॉनिक नेशनल एग्रीकल्चर मार्केट (ई-नेम) की शुरुआत की गई थी। सरकार का प्रस्ताव इस वर्ष इलेक्ट्रॉनिक नेशनल एग्रीकल्चर मार्केट व्यवस्था लागू करने के लिए राज्य सरकारों के साथ मिलकर इस प्रकार काम करने का है जिससे किसान इसका पूरा लाभ उठा सकें। वित्तमंत्री ने कहा कि कृषि उपज विपणन सहकारी अधिनियम (एपीएमसी), किसानी को उनकी उपज का उचित मूल्य प्राप्त करने में बाधक नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि करोबार सुगमता और सहज जीवन यापन, दोनों को किसानों पर भी लागू होना चाहिए। उत्पादन बढ़ाकर लागत में कमी लाने से किसानों के लिए खेती को अधिक लाभकारी बनाना सुनिश्चित करने के लिए अगले पाँच वर्षों में 10,000 नए किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) बनाने का प्रस्ताव है। ये संगठन मूल रूप से किसान-उन्मुख कम्पनियाँ हैं जो कृषि मंत्रालय की नीति और प्रक्रिया दिशानिर्देशों के अनुसार अपनी उपज के विपणन के लिए बी-2-बी मॉडल का पालन करते हैं। ये किसानों को कुशल, सस्ते और टिकाऊ संसाधनों के उपयोग से उत्पादकता बढ़ाने और उनकी फसल की बेहतर कीमत पाने में सक्षम बनाता है। कई राज्यों में, एफपीओ ने शानदार सफलता दर्ज की है। इनकी संख्या में वृद्धि किसानों के लिए स्थाई आजीविका बढ़ाने की दिशा में एक प्रभावी कदम है।
पारम्परिक उद्योग पुर्नउद्भव और उन्नयन निधियन योजना (स्कीम ऑफ फंड फॉर अपग्रेडेशन एंड रिजनरेश ऑफ ट्रेडिशनल इंडस्ट्रीज-स्फूर्ति) का लक्ष्य परम्परागत उद्योग क्षेत्र को सुविधाएँ उपलब्ध कराने के लिए अधिक संख्या में सामान्य सुविधा केन्द्र स्थापित करना है। सरकार ने परम्परागत उद्यमों को अधिक उत्पादक तथा लाभदायक बनाने और निरन्तर रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए क्लस्टर विकास के वास्ते बांस, शहद और खादी उद्योगों की पहचान की है। इस योजना का लक्ष्य 2019-20 के दौरान 100 नए क्लस्टर स्थापित करना है जिसमें 50,000 ग्रामीण कारीगरों को क्षमता विकास और विपणन सहायता के रूप में सरकार से मदद मिलेगी। बहुत जल्द, ग्रामीण कारीगर आर्थिक मूल्य श्रृंखला का एक हिस्सा होंगे। इसके अतिरिक्त, इन उद्योगों में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल के लिए, सरकार का प्रस्ताव है कि 2019-20 के दौरान 80 आजीविका बिजनेस इनक्यूबेटर और 20 टेक्नोलॉजी बिजनेस इनक्यूबेटर स्थापित करने के लिए नवाचार, ग्रामीण उद्योग और उद्यमिता को बढ़ावा देने की योजना को मजबूत किया जाए। इस पहल से कृषि-ग्रामीण उद्योग क्षेत्रों में 75,000 कुशल उद्यमी तैयार किए जा सकते हैं। इन उपायों से ग्रामीण क्षेत्रों में, खासकर कृषि-प्रसंस्करण क्षेत्र में मध्यम, लघु तथा सूक्ष्म उद्यमों के विकास और वृद्धि को बढ़ावा मिलेगा। वर्तमान में, खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र की विकास दर लगभग 1 प्रतिशत पर स्थिर है, लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार इसे 3 प्रतिशत से अधिक करने से कृषि परिवर्तन में मदद मिलेगी। बजट में प्रस्तावित हालिया पहलों का कृषि-खाद्य क्षेत्र पर अनुकूल प्रभाव पड़ेगा।
निवेश आकर्षित करना
सरकार ने महसूस किया है कि अन्य क्षेत्रों की तरह, कृषि को भी कॉर्पोरेट जगत से पर्याप्त निवेश की आवश्यकता है। वर्तमान में, कृषि में सफल मूल्यवर्धन का केवल 14 प्रतिशत निवेश है। इसमें किसानों द्वारा 78.01 प्रतिशत, सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा 19.4 प्रतिशत और निजी क्षेत्र द्वारा 2.5 प्रतिशत निवेश शामिल है, इसलिए, वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में कहा कि सरकार किसानों की फसल और सम्बन्धित गतिविधियों जैसे बांस तथा लकड़ी के उत्पादों और नवीकरणीय ऊर्जा पैदा कर मूल्यवर्धन करने के लिए निजी उद्यमिता को बढ़ावा देने में मदद करेगी। उन्होंने कहा कि अन्नदाता (किसान), ऊर्जादाता भी बन सकते हैं। इस सम्बन्ध में, सरकार ने पहले ही मार्च, 2019 में एक विशेष योजना किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान (कुसुम) शुरू की है। इस योजना में बंजर या किसानों की व्यक्तिगत सहकारी समितियों/पंचायतों/एफपीओ की कृषि भूमि पर कृषि पम्पों के सौरकरण और सौर ऊर्जा संयंत्रों (500 किलोवाट से 2 मेगावाट) की स्थापना की परिकल्पना की गई है। यह योजना किसानों को, अधिशेष बिजली ग्रिड को बेचने का विकल्प देकर उनकी आय में इजाफा करेगी। इसके अलावा, यह वायु प्रदूषण पर काबू पाने में सहायक होगी और स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर पैदा होंगे।
डेयरी एक अन्य क्षेत्र है जिसमें निजी क्षेत्र और सहकारी समितियाँ किसानों की आय बढ़ाने में केन्द्रीय भूमिका निभा सकती हैं। बड़ी संख्या में उद्यमी, विशेष रूप से युवा, आजीविका के लिए पूर्णकालिक पेशे के रूप में डेयरी का सहारा ले रहे हैं, और उप-शहरी या ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर भी पैदा कर रहे हैं। इसलिए, सरकार ने पशु खाद्य उत्पादन, दूध की खरीद, प्रसंस्करण और विपणन के लिए बुनियादी ढाँचे का निर्माण करके सहकारी समितियों के जरिए डेयरी को प्रोत्साहित करने का प्रस्ताव किया है। इसी तरह, विशेष रूप से तटीय क्षेत्रों में ग्रामीण समृद्धि को बढ़ाने के लिए एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र के रूप में मत्स्य पालन की पहचान की गई है। वित्त मंत्री ने कहा कि मत्स्य पालन और मछुआरा समुदाय खेती के साथ निकटता से जुड़े हुए हैं और ग्रामीण भारत के लिए महत्त्वपूर्ण है। वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में कहा कि एक मजबूत मत्स्य प्रबन्धन ढाँचा स्थापित करने के लिए एक केन्द्रित योजना, प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना (पीएमएमएसवाई) शुरू करने का प्रस्ताव है। यह व्यापक योजना, मूल्य शृंखला में खामियों का समाधान करेगी। इस योजना में बुनियादी ढाँचा, आधुनिकीकरण, उत्पादन, उत्पादकता, कटाई के बाद प्रबन्धन और गुणवत्ता नियंत्रण जैसे मुद्दे शामिल होंगे। केन्द्र सरकार ने पशुपालन, डेयरी और मत्स्यपालन पर अधिक ध्यान देकर तथा इन्हें अधिक संसाधनों के साथ बढ़ावा देने के लिए पहले से ही एक विशेष मंत्रालय बनाया है। मौसम की विसंगतियों और प्रतिकूलताओं के कारण जब फसल को नुकसान पहुँचता है तो पशुधन ‘आजीविका बीम’ के रूप में कार्य करता है।
शून्य बजट खेती
सरकार ने शून्य बजट खेती को बढ़ावा देने का इरादा और इच्छा दिखाई है। वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में कहा कि इस अभिनव मॉडल को फिर से अपनाने की आवश्यकता है। कुछ राज्यों में यह काफी लोकप्रिय हो रहा है। कई राज्यों में किसानों को इसका प्रशिक्षण दिया गया है। कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश, केरल, उत्तराखण्ड, छत्तीसगढ़ और आन्ध्रप्रदेश में इस पद्धति को अपनाया जा रहा है। इसमें कम पानी, कम निवेश और कम लागत के संसाधनों की आवश्यकता होती है, फिर भी पैदावार अधिक होती है। पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित और विदर्भ के 70 वर्षीय किसान सुभाष पालेकर इस अनूठी तकनीक के अग्रदूत हैं, जिसे वे शून्य बजट प्राकृतिक खेती कहते हैं। अधिकांश प्राकृतिक संसाधनों से की जाने वाली खेती की इस विधि में उत्पादन लागत बहुत कम होती है। शून्य बजट का अर्थ यह नहीं है कि खेती पर किसान का बिल्कुल खर्चा नहीं होगा, बल्कि उस पर आने वाली लागत की क्षतिपूर्ति, अतिरिक्त आय वाले अन्य संसाधनों या अंतर फसलों से की जाती है। केन्द्र सरकार की ओर से प्रोत्साहन और सहायता के साथ, देशभर में शून्य बजट प्राकृतिक खेती की एक लहर चलने की आशा है।
दलहन के बाद अब सरकार तिलहन का उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने पर ध्यान केन्द्रित कर रही है। ठोस प्रयासों के साथ, देश पहले ही दालों में आत्मनिर्भर हो गया है, जिससे इनके आयात पर खर्च होने वाली मूल्यवान विदेशी मुद्रा की बचत होती है। देश में 1990 के दशक में तिलहन के भरपूर उत्पादन के साथ ‘पीली क्रान्ति’ आई थी, लेकिन विभिन्न कृषि कारकों और नीतिगत मुद्दों के कारण यह अधिक समय तक टिक नहीं पाई। तिलहन की उत्पादकता बढ़ाने के लिए किए गए बजटीय प्रस्ताव के साथ, देश फिर से तिलहन में आत्मनिर्भरता की राह पर हैं। वित्त मंत्री ने आशा व्यक्त की कि किसानों की सेवा से, देश का आयात बिल कम होगा।
केन्द्रीय बजट में, कृषि अवसंरचना में व्यापक निवेश करने और निजी उद्यमिता को समर्थन देने के प्रस्ताव के साथ, 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए किसान कल्याण के प्रयासों को तेजी से आगे बढाया गया है। साथ ही, ग्रामीण अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करनके के लिए और प्रोत्साहन दिया गया है। आशा की जाती है कि इन उपायों से किसानों के चेहरों पर खुशी लाने और कृषि संकट को दूर करने में सहायता मिलेगी।
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