वायु प्रदूषण के मुद्दों पर पहली बार कड़ा रुख अपनाने वाले एनजीटी को उस समय बहुत हैरानी हुई, जब एक सुनवाई के दौरान उसने पाया कि दिल्ली प्रदूषण नियन्त्रण समिति की वेबसाइट पर पदर्शित प्रदूषण स्तर सूचकांक ‘गम्भीर’ स्तर पर पहुँच चुका है।
नई दिल्ली, 31 दिसम्बर 2015 : दिल्ली में वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर के कारण 2015 में लोगों में फैली घबराहट के बीच, नागरिकों को एक स्वस्थ पर्यावरण में जीने का अधिकार देने के लिये न्यायपालिका को कड़ा रुख अपनाना पड़ा।सुप्रीम कोर्ट हो या दिल्ली हाई कोर्ट, सभी ने बिगड़ते पर्यावरण को लेकर कड़े रुख का परिचय दिया। दिल्ली हाई कोर्ट ने तो यहाँ तक कह दिया कि राष्ट्रीय राजधानी में रहना ‘एक गैस चैम्बर में रहने’ के समान है। वहीं राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) ने इन मुद्दों से कड़ाई से निपटते हुए कई कड़े निर्देश जारी किए।
इस समस्या से निपटने में, न्यायपालिका द्वारा कोई कसर न छोड़े जाने का कड़ा संदेश देते हुए शीर्ष अदालत ने 16 दिसम्बर को डीजल से चलने वाले नए एसयूवी, महंगी निजी कारों और 2000 सीसी या इससे ऊपर की क्षमता के इंजन वाले वाहनों के पंजीकरण पर 31 मार्च 2016 तक के लिये प्रतिबंध लगा दिया। अदालत ने कहा कि ऐसे महंगे वाहनों के पंजीकरण पर प्रतिबंध लगाने से दिल्ली के आम आदमी पर असर नहीं पड़ेगा क्योंकि ये एसयूवी आम तौर पर समाज के सम्पन्न तबके द्वारा इस्तेमाल किए जाते हैं।
डीजल से चलने वाले नए वाहनों पर प्रतिबंध का विचार दरअसल एनजीटी की उपज थी। एनजीटी ने कहा था कि स्थिति इतनी अधिक खतरनाक हो गई है कि लोगों को उनके स्वास्थ्य पर पड़ने वाले खराब प्रभाव के चलते दिल्ली छोड़ने की सलाह दी जाने लगी है।
2015 में प्रदूषण का मुद्दा चर्चा में रहा और इसी चर्चा में शामिल होते हुए हाई कोर्ट ने भी कहा कि वायु प्रदूषण ‘आपात-स्थिति वाले स्वरूप’ में आ चुका है और यदि अधिकारियों ने पर्यावरण को होने वाले नुकसान को रोकने के लिये नियमों और कानूनों को लागू किया होता तो ऐसी स्थिति पैदा न होती।
बीते साल में न्यायपालिका द्वारा की गई कड़ी टिप्पणियों और जताई गई चिन्ता के बाद दिल्ली सरकार राजधानी के बढ़ते प्रदूषण सूचकांक पर काबू पाने के लिये राजधानी में चलने वाले वाहनों के लिये सम-विषम संख्या वाली योजना लेकर आई। आप सरकार की सम-विषम संख्या वाली यह योजना हाई कोर्ट द्वारा यह कहने के एक ही दिन बाद ले आई गई थी कि राष्ट्रीय राजधानी में प्रदूषण ‘खतरनाक’ स्तर तक पहुँच चुका है।
इस योजना के तहत सम और विषम नंबर प्लेट वाले निजी वाहनों को वैकल्पिक दिनों पर परिचालन की अनुमति होगी। भारत के प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर ने इस योजना का एक तरह से अनुमोदन करते हुए कहा था कि यदि यह समस्या को ‘कम करने में मददगार’ साबित होती है तो इसे अपनाया जा सकता है।
एनजीटी द्वारा इस योजना पर सवाल उठाए जाने के बाद आप सरकार को इस समय एक बड़ी राहत मिली, जब हाई कोर्ट ने सम-विषम नंबर प्लेट वाले फार्मूले पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर दिया। वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर का मुद्दा न्यायालय के गलियारों में भी चर्चा का विषय रहा। इनमें से एक मुद्दे की सुनवाई के दौरान तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश एचएल दत्तू ने कहा, ‘मेरा पोता प्रदूषण के कारण मास्क पहनता है और एक निंजा जैसा लगता है।’
बीते साल एनजीटी ने हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तरप्रदेश और दिल्ली में पुआल जलाने के खिलाफ भी कड़ा रुख अपनाते हुए किसानों पर जुर्माने लगाए थे और सम्बन्धित सरकारों से कहा था कि वे इस चलन को प्रतिबंधित करने की अधिसूचना लेकर आएँ। पुआल जलाने से राष्ट्रीय राजधानी की हवा की गुणवत्ता पर बेहद खराब असर पड़ता है।
इन मुद्दों से जुड़ी याचिकाओं पर निर्देश जारी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अग्रिम मोर्चा संभाले रखा। इनमें से एक 1984 की जनहित याचिका थी। अदालत ने दिल्ली में प्रवेश करने वाले व्यावसायिक वाहनों पर प्रायोगिक आधार पर 1400 से 2600 रुपए तक का पर्यावरण क्षति-पूर्ति शुल्क (ईसीसी) लगाया।
वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर की गम्भीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि शीर्ष अदालत के कक्षों में हवा को स्वच्छ करने वाले उपकरण लगाए गए। 1984 की जनहित याचिका से जुड़े सलाहकार एवं वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने अपील की थी कि स्थिति के बेहद बिगड़ जाने से पहले तत्काल उपाय किए जाने चाहिए। इसके बाद ये उपकरण लगाए गए।
हाई कोई में भी उस समय खतरे की घंटी बज गई थी, जब विज्ञान एवं पर्यावरण केन्द्र (सीएसई) ने यह कह दिया कि अदालत की प्रमुख लॉबी में निलम्बित पदार्थ की मात्रा सुरक्षा के मानक से ढाई गुना ज्यादा है।
हाई कोर्ट ने अपने सम्बन्धित पैनल रख-रखाव एवं निर्माण समिति को इस मुद्दे पर कुछ न करने पर फटकार लगाते हुए कहा कि यह बात बिल्कुल ‘अस्वीकार्य’ है कि लॉबी में जाने वाला हर व्यक्ति खतरे में है।
वायु प्रदूषण के मुद्दों पर पहली बार कड़ा रुख अपनाने वाले एनजीटी को उस समय बहुत हैरानी हुई, जब एक सुनवाई के दौरान उसने पाया कि दिल्ली प्रदूषण नियन्त्रण समिति की वेबसाइट पर पदर्शित प्रदूषण स्तर सूचकांक ‘गम्भीर’ स्तर पर पहुँच चुका है।
एनजीटी ने कहा कि दिल्ली-एनसीआर में इतनी अधिक प्रदूषित हवा का प्रभाव जन स्वास्थ्य के लिये बेहद हानिकारक है। एक अंतरिम उपाय के तहत हरित पैनल ने 11 दिसम्बर को आदेश दिया कि दिल्ली में डीजल से चलने वाला कोई वाहन पंजीकृत नहीं किया जाना चाहिए और दस साल से पुराने वाहनों के पंजीकरण का नवीकरण भी नहीं किया जाना चाहिए। एनजीटी ने दस साल से पुराने डीजल वाहनों को दिल्ली-एनसीआर में परिचालन की अनुमति न देने की बात कही।
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