बिशुनपुर : जैसा मैंने देखा


बिशुनपुर : झारखण्ड का यह क्षेत्र पहाड़ी है। सिंचाई के कोई साधन नहीं हैं। इसलिये वर्षा पर आधारित धान की एक फसल यहाँ होती है। हालांकि, अगर सिंचाई की व्यवस्था हो तो दो या तीन फसलें लेना सम्भव है। कल्पना का प्रदेश बनाने के लिये ‘विकास- भारती’ संस्था का गठन किया। फिलहाल अशोक भगत इस संस्था के सचिव हैं, जबकि बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. माता प्रसाद पाण्डेय इसके अध्यक्ष हैं।

झारखण्ड राज्य का गठन 15 नवम्बर 2000 को हुआ था। तब केन्द्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी। हालाँकि, इसकी माँग बहुत पुरानी थी। 1928 में जब साइमन कमीशन आया था, तब क्षेत्र के एक प्रतिनिधि मंडल ने झारखण्ड राज्य बनाने की माँग की थी। आज की परिस्थिति में एक चौंकाने वाला तथ्य यह है कि 85 वर्ष के लम्बे इस आन्दोलन में कभी हिंसा नहीं हुई। झारखण्ड का अर्थ है ‘वनों की भूमि’। यहाँ की कुल आबादी में 28 प्रतिशत लोग आदिवासी समाज से हैं। यहाँ के लोग आन्दोलनकारी स्वभाव के हैं। जब देश में 1857 का आन्दोलन हुआ था, उससे सौ वर्ष पहले ही झारखण्ड में लोग आन्दोलन शुरू कर चुके थे। उनका आन्दोलन जमींदारों और अंग्रेजों के खिलाफ था, लेकिन वह आन्दोलन अहिंसक था। इस बात को भी स्मरण में रखना जरूरी होगा कि आदिवासियों में कई सुधारवादी आन्दोलन भी हुए हैं।

यह राज्य भू-सम्पदाओं से भरा पड़ा है। जमशेदपुर, बोकारो, धनबाद, राँची और हजारीबाग जैसे औद्योगिक नगर हैं। लोगों को यकीन था कि नया सूबा गठित होगा तो यह क्षेत्र विकास की पटरी पर तेजी से दौड़ने लगेगा। लेकिन, वह यकीन अब दरक चुका है। प्रदेश राजनैतिक अस्थिरता का शिकार हो गया है। 13 वर्षों में नौवीं सरकार 13 जुलाई को अस्तित्व में आई है। भ्रष्टाचार ने सारे रिकार्ड तोड़ दिये हैं। आलम यह है कि एक पूर्व मुख्यमंत्री अभी भी जेल में हैं। माओवादियों की ओर से संचालित हिंसा से सारा देश चिन्तित है। यहाँ निराशा है। कुछ अच्छा होने की सम्भावनाएँ सिर्फ हवा में हैं, लेकिन गुमला जिले का बिशुनपुर उम्मीद जगाता है। यहाँ छह दिनों के प्रवास से आशा की डोर अपेक्षाकृत मजबूत हुई है, जो यह विश्वास स्थापित करने के लिये पर्याप्त है कि उन गैरसरकारी संगठनों ने जिन्होंने कुछ अच्छा करने का संकल्प लिया था, वे वैसा कर पाये, जैसा उन्होंने चाहा।

देश में ऐसे भी व्यक्ति हैं, जिन्होंने बहुत पहले समझ लिया था कि यदि आदिवासियों को देश के विकास की मुख्य धारा के साथ नहीं जोड़ा गया तो देश विरोधी ताकतें उन्हें गुमराह कर गलत रास्ते पर ले जा सकती हैं। कुछ ऐसे ही विचारों से प्रेरित होकर आजमगढ़ (उत्तर प्रदेश) का एक शिक्षित नवयुवक तीस साल पहले झारखण्ड के गुमला जिले के बिशुनपुर गाँव में अपने तीन अन्य साथियों के साथ पहुँचा था। कुछ अन्तराल बाद वे तीनों वापस लौट आये, लेकिन अशोक राय ने उस क्षेत्र को अपनी कर्मभूमि बना ली। वे अशोक भगत से पहचाने जाने लगे हैं। उत्साह और कर्मठता के साथ आदिवासियों के उत्थान में लगे हैं। आदिवासियों के बीच काम करने के लिये अपनी पहचान मिटा दी। नाम बदल लिया। उन जैसा होने के लिये केवल एक वस्त्र पहनने का संकल्प भी लिया। कल्पना का प्रदेश बनाने के लिये ‘विकास - भारती’ संस्था का गठन किया। फिलहाल अशोक भगत इस संस्था के सचिव हैं, जबकि बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. माता प्रसाद पाण्डेय इसके अध्यक्ष हैं। उन्हीं से मुलाकात करने और धरातल की वास्तविकता जानने के लिये बिशुनपुर गया था। यहाँ मैंने जो देखा, अनुभव किया और इसके साथ-साथ जो बताया गया वह प्रभावी और दिलचस्प कहानी है।

अशोक भगत ने चर्चा में अवगत कराया कि वे अच्छी तरह समझ गए थे कि आदिवासियों में काम करने के लिये उन सूत्रों को शक्ति देना आवश्यक है जो उन्हें देश और समाज से जोड़ते हैं। इसके लिये उनके गौरवशाली अतीत से उनका स्मरण कराना आवश्यक है।

आदिवासियों में स्वाभिमान जगे और देश-प्रेम बढ़े इसके लिये उस क्षेत्र के प्रमुख आदिवासी समाज सुधारक ताना भगत आन्दोलन के जनक तथा अहिंसक स्वतंत्रता आन्दोलन के अगुआ जतरा उराँव से उनका परिचय कराया। जतरा उराँव को स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद करीब-करीब भुला दिया गया था, पर उनकी मूर्ति उनके गाँव ‘चिंगरी’ में स्थापित कराई गई। उनके जन्मदिन पर प्रतिवर्ष उत्सव मनाया जाने लगा। इससे उस समाज में आत्मविश्वास जागा। पूरे प्रदेश के लोग बड़े उत्साह से इस उत्सव में भाग लेते हैं। इसके साथ-साथ झारखण्ड के वीर सेनानियों और शहीदों की वीर गाथाओं को पुस्तक का आकार देकर बच्चों को उपलब्ध कराया गया। बिरसा मुंडा और सिदो कान्हू की कई कहानियाँ यहाँ लोगों की जुबान पर हैं।

बिशुनपुर : जैसा मैंने देखाझारखण्ड का यह क्षेत्र पहाड़ी है। सिंचाई के कोई साधन नहीं हैं। इसलिये वर्षा पर आधारित धान की एक फसल यहाँ होती है। हालांकि, अगर सिंचाई की व्यवस्था हो तो दो या तीन फसलें लेना सम्भव है। सतो गाँव के लोगों के अनुसार अशोक भगत के सहयोग से उनके गाँव में पहाड़ पर बाँध बनाकर बरसाती पानी को इकट्ठा किया जा रहा है। उससे मार्च तक सिंचाई के लिये पानी उपलब्ध हो रहा है। ऐसे और भी कई बाँध बनाए गए हैं, जिससे उन क्षेत्रों में दो फसलें ली जाने लगी हैं। कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिये विकास भारती उन्नत किस्म के बीज तैयार कर बड़े पैमाने पर किसानों तथा सरकार को भी उपलब्ध कराती है। हमारे भ्रमण के समय किसानों को धान का बीज वितरित किया जा रहा था।

‘विकास भारती’ की ओर से ग्रामीण महिला और पुरुषों की आय में वृद्धि करने के उद्देश्य से फल संरक्षण, बाँस के फर्नीचर बनाना, सिलाई-कढ़ाई और बुनाई करना, नकली फूल तैयार करना व ग्रामीण दस्तकारी का प्रशिक्षण दिया जाता है। फल संरक्षण का काम तो व्यावसायिक स्तर पर चलाया जा रहा है वहाँ तैयार जैम, अचार, शहद, जामुन का सिरका राँची की दुकानों पर बेचा जा रहा है। इन कामों में महिलाएँ लगी हैं।

बागवानी को प्रोत्साहन और प्रशिक्षण देने के लिये विकास भारती ने बिशुनपुर से 20 किलोमीटर दूर बलातु गाँव में 20 एकड़ में उद्यान विकसित किया है, जिसमें महिलाओं को प्रशिक्षण के साथ-साथ फलदार तथा चिकित्सकीय पौधों की उन्नत किस्म तैयार की जा रही है। प्रदेश के चार जनपदों में चार हजार हेक्टेयर भूमि में विकास भारती की ओर से बाग लगाए गए हैं। तीन वर्ष तक विकास भारती द्वारा देखभाल के बाद ये बाग भू-स्वामी किसानों को सौंप दिए जाएँगे।

शिक्षा के क्षेत्र में भी विकास भारती की ओर से कई विद्यालयों का संचालन किया जा रहा है। इन विद्यालयों में ढाई-तीन हजार बच्चे शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। उन बच्चों से बातचीत के बाद अनुभव आया कि समाज की मुख्यधारा में अनुभव कर वे प्रसन्न हैं। आदिवासी बालक व बालिकाओं के लिये छात्रावास संचालित हैं। विकलांगों के लिये भी अलग से छात्रावास की व्यवस्था है। इन छात्रावासों में 650 बच्चे रह रहे हैं, जिनके लिये भोजन, आवास, वस्त्र और पढ़ाई की भी व्यवस्था है। कम्प्यूटर प्रशिक्षण के साथ-साथ बीबीए तथा बीसीए जैसे उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रम भी संचालित किये जा रहे हैं।

हालांकि, गुमला भी माओवाद से प्रभावित जिला है। सरकारी अधिकारी/ कर्मचारी गाँवों में जाने से डरते हैं। इन परिस्थितियों में ‘विकास भारती’ द्वारा सरकार की कई योजनाओं का सफलता के साथ संचालन किया जा रहा। प्रदेश के सभी 24 जिलों में विकास भारती द्वारा चिकित्सा वैन का संचालन किया जा रहा है, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है। इस संस्था के मार्गदर्शन में संचालित कृषि विज्ञान केन्द्र के द्वारा कृषि सुधार के बड़े प्रशिक्षण, प्रदर्शन तथा नवीनतम वैज्ञानिक जानकारियाँ किसानों को दी जा रही है। इस कार्य के लिये कृषि विज्ञान केन्द्र को विकास भारती ने सालम गाँव में 50 एकड़ भूमि कृषि फार्म हेतु उपलब्ध कराई है। विकास भारती ने सेवा के माध्यम से न केवल जनता में, बल्कि सरकार में भी एक प्रतिष्ठा अर्जित की है। संस्था में 1,500 से अधिक पूर्णकालिक कार्यकर्ता हैं, जो अशोक भगत के मार्गदर्शन में अपने दायित्वों का सफलतापूर्वक निर्वाह कर रहे हैं।

माओवादी वहाँ भी सक्रिय हैं, जिस दिन हम बिशुनपुर पहुँचे, उसके अगले ही दिन अखबारों में खबर आई कि बिशुनपुर विकास खण्ड के कुंवारी गाँव के पाँच बच्चों को माओवादी उठा ले गए हैं। हालांकि तीसरे दिन खण्ड छपा कि बच्चे गाँव में ही हैं, उन्हें कोई नहीं ले गया है। वैसे माओवादी आते-जाते रहते हैं, लेकिन विकास भारती के कार्यकर्ताओं से उनका टकराव नहीं होता। सम्भवत: वे विकास भारती के कार्यों को समाज हित में मानते हैं। वहाँ के लोगों का कहना है कि वे आम आदमी को कुछ नहीं कहते हैं। हाँ, ठेकेदारों, उद्योगपतियों से जरूर चौथे वसूलते हैं। पुलिस और प्रशासन से टकराते हैं। एक तरह से वे शासन-प्रशासन पर भारी हैं। शाम होते ही थाने बन्द हो जाते हैं। दिन होने पर ही पुलिस किसी भी कार्रवाई के लिये थाने से निकलती है। हालांकि, लोगों ने यह भी बताया कि अब माओवाद के पीछे कोई विचार (दर्शन) नहीं है। धन उगाही उनका प्रमुख काम है, जिसमें वे गाँव के बेरोजगारों को लालच या फिर भय दिखाकर अपने साथ जोड़ लेते हैं।

(लेखक उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री रह चुके हैं।)

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