केवल 30 फीसदी गंदा पानी हो रहा शोधित, नालों से जहरीली हो रही है यमुना
![तिल-तिल मरती यमुना](https://farm6.staticflickr.com/5541/12740604394_631f6596f2_o.jpg)
विशेषज्ञों का मानना है कि मांग का 80 फीसदी पानी (पेयजल को छोड़कर अन्य रोजाना कार्य में किया गया उपयोग) उपयोग के बाद नालियों में डाला जाता है। अर्थात दिल्ली में रोजाना लगभग 650 एमजीडी गंदा पानी पैदा होता है। लेकिन इसके विपरीत जल बोर्ड द्वारा स्थापित किए गए 10 सीवर ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) की क्षमता मात्र 301 एमजीडी है। लेकिन ये प्लांट वर्तमान में केवल 200 एमजीडी के करीब गंदे पानी को शोधित कर रहे हैं। मंगलवार को इन संयंत्रों के जरिए केवल 186.76 एमजीडी गंदा पानी शोधित किया गया।
विशेषज्ञों की दलील
यमुना जिए अभियान के संयोजक मनोज मिश्रा का कहना है कि दिल्ली जल बोर्ड को एसटीपी की क्षमता बढ़ाने की जरूरत है, ताकि गंदा पानी यमुना में न जाए। दिल्ली विश्वविद्यालय के जियोलॉजी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ.शशांक शेखर का कहना है कि यमुना एक्शन प्लान के तहत सबसे ज्यादा धनराशि का निवेश एसटीपी स्थापित करने पर खर्च किया जाना चाहिए। यमुना मामले में जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाई जानी चाहिए।
यदि अनधिकृत कॉलोनियों अथवा बाहरी दिल्ली में गंदा पानी खुले में फेंका जाता है तो इससे मिट्टी में अमोनिया और नाइट्रेट की मात्रा बढ़ जाती है, जो कि स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा है।
जल बोर्ड की दलील
जल बोर्ड के सदस्य बी.एम.धौल का कहना है कि वेबसाइट पर आंकड़ा गलत दिया गया है, फिलहाल हम रोजाना 300 एमजीडी गंदा पानी ट्रीट कर रहे हैं। लेकिन जब शेष गंदा पानी के बारे में धौल से पूछा गया तो उन्होंने भी स्वीकार किया कि शेष गंदा पानी नालों में जाता है, जिसकी वजह से यमुना का पानी गंदा है।
जल बोर्ड के एसटीपी
ओखला स्थित 170 एमजीडी क्षमता वाला संयंत्र का वास्तविक शोधन 128 एमजीडी, 90 एमजीडी क्षमता वाला कोंडली स्थित संयंत्र फिलहाल 30 एमजीडी गंदा पानी शोधित कर रहे हैं। इनके अलावा वसंत कुंज, यमुना विहार, महरौली, दिल्ली गेट, सेन नर्सिंग होम, कॉमनवेल्थ गेस, मोलर बंद, कापस-हेरा स्थित अन्य 8 एसटीपी से लगभग 29 एमजीडी गंदे पानी का शोधन हो रहा है।
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