बिना चकबन्दी क्लस्टर फार्मिंग का सपना अधूरा

कृषि
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देहरादून: किसानों की आय दोगुनी करने के लिये सरकार ने पर्वतीय क्षेत्रों में क्लस्टर फार्मिंग व एकीकृत आदर्श कृषि गाँव (आईएमए विलेज) योजना बनाई है। पर्वतीय क्षेत्रों में कृषि जोत की बिना चकबन्दी किए योजनाओं को परवान चढ़ाना सबसे बड़ी चुनौती है।

पहाड़ों के किसानों को अभी तक चकबन्दी के बारे में जानकारी नहीं है और न ही पहाड़ों में आज तक चकबन्दी को बढ़ावा दिया गया। हरिद्वार व ऊधमसिंह नगर जिलों तक ही चकबन्दी सीमित रही है।

सरकार ने 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य रखा है। इसके लिये एकीकृत आदर्श कृषि गाँव (आईएमए विलेज), क्लस्टर आधारित खेती, अनुबन्ध खेती के साथ 1500 करोड़ की जैविक खेती की योजना तैयार की है। प्रत्येक ब्लॉक स्तर पर एक आईएमए विलेज को विकसित किया जाना है। जिसमें एक ही जगह पर कृषि, बागवानी, दुग्ध उत्पादन, मत्स्य, शहद, मशरूम, पुष्प उत्पादन व मुर्गीपालन होगा।

वहीं, 1500 करोड़ की जैविक खेती योजना में प्रदेश में 10 हजार नये क्लस्टर स्थापित किये जाने हैं। जिसमें चार हजार क्लस्टरों के लिये केन्द्र से धनराशि भी स्वीकृत हो चुकी है। इन योजनाओं का किसानों को तभी फायदा मिलेगा। जब बड़े पैमाने पर किसान चकबन्दी के लिये तैयार होंगे। सबसे बड़ी चुनौती यह है कि अभी तक पहाड़ों में बिखरी कृषि जोत की चकबन्दी नहीं हो पाई है। जबकि पर्वतीय जिलों में कृषि भूमि का क्षेत्रफल ज्यादा है। छोटे-छोटे किसानों के पास बिखरी कृषि भूमि है। जहाँ पर मेहनत करने के बावजूद भी मुनाफा नहीं होता है।

इस कारण किसान खेती-बाड़ी छोड़ने को मजबूर हो रहे हैं। अब सरकार पहाड़ों में स्वैच्छिक व आंशिक चकबन्दी को बढ़ावा देने जा रही है। चकबन्दी में सबसे बड़ी दिक्कत ये हैं कि किसानों को इसकी जानकारी नहीं है।

“यह सही बात है कि पर्वतीय क्षेत्रों के किसानों को अभी तक चकबन्दी के बारे में जानकारी नहीं है। बिना चकबन्दी के किसानों की आय दोगुनी नहीं हो सकती है। इसके लिये सरकार पर्वतीय क्षेत्रों के किसानों को चकबन्दी करने को जागरूक करेगी। पाँच गाँवों से चकबन्दी की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। आंशिक व स्वैच्छिक चकबन्दी कानूनी रूप से मान्य की जाएगी।” -सुबोध उनियाल, कृषि मंत्री

17 प्रतिशत कृषि भूमि घटी

उत्तराखण्ड का गठन होने के बाद 18 साल में 17 प्रतिशत कृषि भूमि घट गई है। प्रदेश में करीब 7 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि है। जिसमें 1.43 लाख हेक्टेयर परती भूमि (जिस पर पहले खेती होती थी अब नहीं) और 3.18 लाख हेक्टेयर बंजर भूमि है।
 

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