बिन बैलन खेती करै, बिन भैयन के रार।
बिन मेहरारू घर करै, चौदह साख लबार।।
शब्दार्थ- साख-पीढ़ी या पुश्त।
भावार्थ- घाघ कहते हैं कि जो गृहस्थ यह कहता है कि मैं बिना बैलों के खेती करता हूँ; बिना भाइयों की सहायता के दूसरों से झगड़ा करता हूँ और बिना स्त्री के गृहस्थी चलाता हूँ, वह चौदह पुश्तों का झूठा होता है।
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