बिजली की तंगहाली होगी गुजरे समय की बात

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जैसे-जैसे नवीनीकृत ऊर्जा सस्ती होती जाएगी धनी घरेलू उपभोक्ता और व्यावसायिक एवं औद्योगिक उपभोक्ता वितरण कंपनियों या डिस्कॉम्स से दूर होना शुरू कर देंगे। इससे डिस्कॉम कंपनियों के लिये कारोबार करना और भी मुश्किल भरा हो जाएगा। आने वाले समय में या कहें कि आगामी 25 वर्षो के दौरान भारत में ऊर्जा परिदृश्य क्या होगा? यह अकादमिक प्रश्न तो है ही, साथ ही राजनीतिक परख भी है क्योंकि इस सवाल का जवाब ही देश के विकास और पर्यावरणीय वहनीयता को तय करेगा। लेकिन ज्यादा विस्तार में जाने से पूर्व ऊर्जा क्षेत्र में उभरते कुछ रुझानों का विश्लेषण कर लेना उचित जान पड़ता है। इस साल अप्रैल माह में भारत में उपयोगिता-संबद्ध बड़ी सौर ऊर्जा परियोजनाओं का शुल्क रिकॉर्ड गिरावट दर्ज कराते हुए तीन रुपये प्रति केएच के स्तर पर जा पहुंचा। यह कोयला-आधारित ऊर्जा के औसत शुल्क जितना ही है। तथ्य तो यह है कि इस शुल्क के मद्देनजर सौर ऊर्जा संयंत्र बड़ी संख्या में स्थापित पुराने और नये कोयला-आधारित संयंत्रों की तुलना में सस्ते हैं। बीते 20 वर्षो में भारत में उपयोगिता-संबद्ध सौर ऊर्जा में सालाना 20 प्रतिशत की दर से गिरावट दर्ज की गई। अनुमान है कि 2020 तक दिन के समय मिलने वाली सौर ऊर्जा सर्वाधिक सस्ती बिजली का स्रोत होगी।

पवन ऊर्जा के शुल्क में भी गिरावट का रुझान देखने को मिल रहा है। एक गिगावॉट क्षमता के विंड पावर की एक हालिया बोली में शुल्क ने 3 रुपये प्रति केडब्ल्यूएच की रिकॉर्ड गिरावट दर्ज कराई। यह आयातित कोयले से उत्पादित ऊर्जा से सस्ती है। अनुमान लगाए गए हैं कि 2025 तक ऑफशोर पवन ऊर्जा की वैश्विक स्तर पर औसत लागत गिरकर 2015 के लागत स्तर की चौथाई रह जाएगी। इस प्रकार यह कोयला-आधारित ऊर्जा से भी सस्ती होगी। 2040 में नवीनीकृत ऊर्जा भारत में ऊर्जा का प्रमुख स्रोत होगी। भारत में स्थापित क्षमता की अस्सी प्रतिशत, गैर-जीवाश्म ईंधन पर आधारित ऊर्जा होगी। बेशक, कोयला-आधारित और गैस-आधारित संयंत्र भी होंगे लेकिन उनकी भूमिका सीमित रह जाएगी। नवीनीकृत ऊर्जा में जो अस्थिरता होती है, उसके चलते कोयला-आधारित तथा गैस-आधारित ऊर्जा की भूमिका संतुलन लाने मात्र की होगी। मैं यह इसलिये कह रहा हूं कि सौर ऊर्जा या पवन ऊर्जा की तुलना में 2030 में कोई कोयला-आधारित ऊर्जा संयंत्र लगाना महँगा होगा। भारत में इसलिये 2030 के बाद शायद ही कोई कोयला-आधारित ऊर्जा संयंत्र स्थापित किया जाए। ऊर्जा क्षेत्र में कोयले का उपयोग संभवत: 2030 में अपने चरम पर होगा।

डिस्कॉम कंपनियों का बदलेगा स्वरूप


जैसे-जैसे नवीनीकृत ऊर्जा सस्ती होती जाएगी धनी घरेलू उपभोक्ता और व्यावसायिक एवं औद्योगिक उपभोक्ता वितरण कंपनियों या डिस्कॉम्स से दूर होना शुरू कर देंगे। इससे डिस्कॉम कंपनियों के लिये कारोबार करना और भी मुश्किल भरा हो जाएगा। 2030 तक वे डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क ऑपरेटर (डीएनओ) की शक्ल अख्तियार कर लेंगी जिनका कार्य होगा कि डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क के लिये योजना बनाएं, रखरखाव करें तथा उसका परिचालन करें। बिजली के आपूर्तिकर्ता ढांचागत आधार का उपयोग करने की एवज में डीएनओ को भुगतान करेंगे।

इस व्यवस्था में उपभोक्ताओं के पास विकल्प होगा कि जहाँ से चाहें बिजली खरीदें। स्मार्ट ग्रिड आम हो जाएंगी और नेटवर्क द्वि-आयामी हो जाएगा। लाखों प्रोज्यूमर्स (प्रोडय़ूसर-कन्ज्यूमर) उभर आएंगे जो छत पर सौर ऊर्जा का उत्पादन करेंगे और अतिरिक्त बिजली को डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क को बेच देंगे। ऐसी बिजली कंपनियां वजूद में आ जाएंगी जिनकी अपनी कोई परिसंपत्ति न होंगी। वे व्यक्तिगत छतों पर और नवीनीकृत ऊर्जा संयंत्रों में उत्पादित बिजली को संग्रहित करके अन्य उपभोक्ताओं को बेचेंगी। इससे बिजली क्षेत्र में ‘‘उबर मॉडल’ जैसा कुछ अस्तित्व में आ जाएगा। कंपनियां बिजली स्टोरेज उपकरण भी जुटाएंगी और जरूरतानुसार ग्रिड को बिजली मुहैया कराएंगी।

चूंकि ई-व्हीकल्स ऑटोमाबोइल क्षेत्र का सबसे बड़ा हिस्सा होंगे, इसलिये पेट्रोल पंप इलेक्ट्रिक पावर चार्जिग कंपनियों की शक्ल में तब्दील हो जाएंगे जहाँ दस मिनट से भी कम समय में बैटरियों को चार्ज किया जा सकेगा। देश में लाखों सौर घर होंगे जहाँ पर्याप्त मात्रा में बिजली का उत्पादन होगा ताकि ऊर्जा-चालित वाहनों समेत तमाम ऊर्जा जरूरतें पूरी की जा सकें। ग्रिड लाखों उपभोक्ताओं के लिये मात्र बैकअप की भूमिका में होंगे। यह दुनिया वॉट्स की होगी न कि किलोवॉट्स की क्योंकि बेहद सक्षम उपकरणों का इस्तेमाल किया जाएगा।

लेकिन गरीब का क्या होगा? वे तीन सौ मिलियन गरीब जिनकी बिजली तक पहुंच नहीं है, और वे सात सौ मिलियन लोग जो भोजन ऐसे ईंधन की मदद से तैयार करते हैं, जिससे प्रदूषण फैलता है। पहली बात तो यह कि 2040 में भारत में प्रत्येक भारतीय की बिजली तक पहुंच हो चुकी होगी। दूसरी यह कि नवीनीकृत ऊर्जा सर्वाधिक सस्ती ऊर्जा होगी। तीसरी बात यह कि ग्रिड और वितरण तंत्र का इस्तेमाल करने वाले धनी वर्ग के लिये सरकार बनिस्बत ऊंची दरें रखेगी। और इस प्रकार प्राप्त धन को वितरण संबंधी परिचालनों के लिये सब्सिडी मुहैया कराने में इस्तेमाल करेगी। और आखिरी बात यह कि जैसे वह आज कर रही है, उसी प्रकार सरकार न्यूनतम मात्रा में बिजली का उपभोग करने वाले उपभोक्ताओं को सब्सिडी मुहैया करा सकती है। इसलिये कहा जा सकता है कि 2040 तक ऊर्जा के मामले में भारत की तंगहाली बीते समय की बात हो जाएगी।

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