(1966 का अधिनियम संख्यांक 54)
{29 दिसम्बर, 1966}
कुछ विक्रयार्थ बीजों की क्वालिटी के विनियमन और तत्संसक्त बातों के लिये उपबन्ध करने के लिये अधिनियम
भारत गणराज्य के सत्रहवें वर्ष में संसद द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो:-
1. संक्षिप्त नाम, विस्तार और विस्तार
(1) यह अधिनियम बीज अधिनियम, 1966 कहा जा सकेगा।
(2) इसका विस्तार सम्पूर्ण भारत पर है।
(3) यह उस तारीख1 को प्रवृत्त होगा जिसे केन्द्रीय सरकार शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा नियत करे और इस अधिनियम के विभिन्न उपबन्धों के लिये तथा विभिन्न राज्यों के लिये या उनके विभिन्न क्षेत्रों के लिये विभिन्न तारीखें नियत की जा सकेंगी।
2. परिभाषाएँ
इस अधिनियम में, जब तक कि सन्दर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,-
(1) “कृषि” के अन्तर्गत उद्यान कृषि आती है;
(2) “केन्द्रीय बीज प्रयोगशाला” से धारा 4 की उपधारा (1) के अधीन स्थापित या इस रूप में घोषित केन्द्रीय बीज प्रयोगशाला अभिप्रेत है;
(3) “प्रमाणन अभिकरण” से धारा 8 के अधीन स्थापित या धारा 18 के अधीन मान्यता प्राप्त प्रमाणन अभिकरण अभिप्रेत है;
(4) “समिति” से धारा 3 की उपधारा (1) के अधीन गठित केन्द्रीय बीज समिति अभिप्रेत है;
(5) “आधान” से कोई बक्स, बोतल, सन्दूकची, टिन, पीपा, डिब्बा, पात्र, बोरी, थैला, आवेष्टन या अन्य वस्तु, जिसमें कोई चीज या वस्तु रखी जाती है या पैक की जाती है, अभिप्रेत है;
(6) “निर्यात” से भारत में से भारत के बाहर के स्थान को ले जाना अभिप्रेत है;
(7) “आयात” से भारत के बाहर के स्थान से भारत में लाना अभिप्रेत है;
(8) “किस्म” से फसल के पौधों की एक या अधिक सम्बद्ध जातियाँ या उपजातियाँ अभिप्रेत हैं, जिनमें हर एक अलग-अलग या संयुक्त रूप से एक सामान्य नाम से जानी जाती हैं जैसे बन्दगोभी, मक्का, धान और गेहूँ;
(9) किसी बीज के सम्बन्ध में, “अधिसूचित किस्म या उपकिस्म” से उसकी धारा 5 के अधीन अधिसूचित किस्म या उपकिस्म अभिप्रेत है;
(10) “विहित” से इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा विहित अभिप्रेत है;
(11) “बीज” से बोने या रोपण करने के लिये उपयोग में लाए जाने वाले बीजों के निम्नलिखित वर्गों में से कोई अभिप्रेत है:-
(1) खाद्य फसलों के बीज, जिनके अन्तर्गत भक्ष्य तिलहन और फलों तथा शाकों के बीज आते हैं;
(2) बिनौला;
(3) पशुओं के चारे के बीज,
2{(4) जूट के बीज;}
और इसके अन्तर्गत खाद्य फसलों या पशुओं के चारे की पौध और कंद, शल्क कंद, प्रकंद, जड़ों, कलमें, सब प्रकार के उपरोपण और कायिक रूप से प्रवर्धित अन्य पदार्थ आते हैं;
(12) “बीजविश्लेषक” से धारा 12 के अधीन नियुक्त बीज विश्लेषक अभिप्रेत है;
(13) “बीज निरीक्षक” से धारा 13 के अधीन नियुक्त बीज निरीक्षक अभिप्रेत है;
(14) संघ राज्य क्षेत्र के सम्बन्ध में, “राज्य सरकार” से उस राज्य क्षेत्र का प्रशासक अभिप्रेत है;
(15) किसी राज्य के सम्बन्ध में, “राज्य बीज प्रयोगशाला” से उस राज्य के लिये धारा 4 की उपधारा (2) के अधीन स्थापित या इस रूप में घोषित राज्य बीज प्रयोगशाला अभिप्रेत है; तथा
(16) “उपकिस्म” से किस्म का ऐसा उपविभाजन अभिप्रेत है जो वृद्धि, उपज, पौधे, फल, बीज या अन्य लक्षण से पहचाना जा सकता है।
3. केन्द्रीय बीज समिति
(1) इस अधिनियम के प्रारम्भ के पश्चात् यथाशक्य शीघ्र, केन्द्रीय सरकार, स्वयं उसे और राज्य सरकारों को इस अधिनियम के प्रशासन से उद्भूत होने वाली बातों पर सलाह देने के लिये और इस अधिनियम द्वारा या उसके अधीन उसे सौंपे गए अन्य कृत्यों का पालन करने के लिये केन्द्रीय बीज समिति कही जाने वाली एक समिति गठित करेगी।
(2) समिति निम्नलिखित सदस्यों से मिलकर बनेगी, अर्थात :-
(i) एक सभापति, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा नाम निर्दिष्ट किया जाएगा;
(ii) आठ व्यक्ति, जो ऐसे हितों का, जिन्हें केन्द्रीय सरकार ठीक समझे, प्रतिनिधित्व करने के लिये उस सरकार द्वारा नामनिर्दिष्ट किये जाएँगे, और जिनमें से दो से अन्यून व्यक्ति बीज उगाने वालों के प्रतिनिधि होंगे;
(iii) राज्यों में से हर एक के द्वारा नाम निर्दिष्ट किया जाने वाला एक-एक व्यक्ति।
(3) समिति के सदस्य, जब तक उनके स्थान पद-त्याग या मृत्यु के कारण या अन्यथा पहले ही रिक्त न हो जाएँ, दो वर्ष के लिये पद धारण करने के हकदार होंगे और पुनः नाम निर्दिष्ट होने के पात्र होंगे।
(4) समिति, केन्द्रीय सरकार के पूर्वानुमोदन के अध्यधीन रहते हुए, उपविधियाँ बना सकेगी, जिनसे गणपूर्ति नियत हो तथा स्वयं उसकी प्रक्रिया और उसके द्वारा संव्यवहृत किये जाने वाले सब कारबार का संचालन विनियमित हो।
(5) समिति, चाहे तो पूर्णतया समिति के सदस्यों से, चाहे पूर्णतया अन्य व्यक्तियों से, चाहे भागतःसमिति के सदस्यों से और भागतः अन्य व्यक्तियों से, जैसा वह ठीक समझे, मिल कर बनने वाली एक या अन्य उपसमितियाँ, समिति के कृत्यों में से ऐसे कृत्यों के निर्वहन के प्रयोजनार्थ, जो उस उपसमिति या उन उपसमितियों को समिति द्वारा प्रत्यायोजित किये जाएँ, नियुक्त कर सकेगी।
(6) समिति के या उसकी किसी उपसमिति के कृत्य, उसमें कोई रिक्ति होते हुए भी, किये जा सकेंगे।
(7) केन्द्रीय सरकार एक व्यक्ति को समिति का सचिव नियुक्त करेगी और समिति के लिये ऐसे लिपिकीय तथा अन्य कर्मचारीवृन्द का उपबन्ध करेगी जो केन्द्रीय सरकार आवश्यक समझे।
4. केन्द्रीय बीज प्रयोगशाला और राज्य बीज प्रयोगशाला
(1) केन्द्रीय सरकार शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा केन्द्रीय बीज प्रयोगशाला को इस अधिनियम द्वारा या उसके अधीन न्यस्त किये गए कृत्यों के पालन के लिये एक केन्द्रीय बीज प्रयोगशाला स्थापित कर सकेगी या किसी बीज प्रयोगशाला को केन्द्रीय बीज प्रयोगशाला घोषित कर सकेगी।
(2) राज्य सरकार शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा एक से अधिक राज्य बीज प्रयोगशालाएँ स्थापित कर सकेगी या किसी बीज प्रयोगशाला को राज्य बीज प्रयोगशाला घोषित कर सकेगी, जहाँ किसी अधिसूचित किस्म या उपकिस्म के बीजों का विहित रीति से विश्लेषण इस अधिनियम के अधीन बीज विश्लेषकों द्वारा किया जाएगा।
5. बीजों की किस्मों या उपकिस्मों को अधिसूचित करने की शक्ति
यदि समिति से परामर्श के पश्चात केन्द्रीय सरकार की यह राय हो कि कृषि के प्रयोजनार्थ बेचे जाने वाले बीज की किसी किस्म या उपकिस्म की क्वालिटी का विनियमन करना आवश्यक या समीचीन है, तो वह ऐसी किस्म या उपकिस्म को इस अधिनियम के प्रयोजनार्थ अधिसूचित किस्म या उपकिस्म, शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, घोषित कर सकेगी और विभिन्न राज्यों के लिये या उसके विभिन्न भागों के लिये विभिन्न किस्में या उपकिस्में घोषित की जा सकेंगी।
6. अंकुरण और शुद्धता आदि की न्यूनतम सीमाएँ विनिर्दिष्ट करने की शक्ति
केन्द्रीय सरकार, समिति से परामर्श के पश्चात और शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, निम्नलिखित विनिर्दिष्ट कर सकेगी:-
(क) किसी अधिसूचित किस्म या उपकिस्म के बीज के बारे में अंकुरण और शुद्धता की न्यूनतम सीमाएँ;
(ख) वह चिन्ह या लेबल जिससे यह प्रतीत हो कि वह बीज अंकुरण और शुद्धता की खण्ड (क) के अधीन विनिर्दिष्ट न्यूनतम सीमाओं के अनुरूप है और वे विशिष्टियाँ जो ऐसे चिन्ह या लेबल में अन्तर्विष्ट हों।
7. अधिसूचित किस्मों या उपकिस्मों के बीजों के विक्रय का विनियमन
कोई व्यक्ति स्वयं या अपनी ओर से किसी अन्य के माध्यम से किसी अधिसूचित किस्म या उपकिस्म के बीज को बेचने, विक्रय के लिये रखने, बेचने की प्रस्थापना करने, उसका वस्तु-विनिमय करने या अन्यथा सन्दाय करने का कारबार तब के सिवाय नहीं चलाएगा जबकि-
(क) उस बीज की किस्म या उपकिस्म के बारे में पहचान हो सके;
(ख) वह बीज धारा 6 के खण्ड (क) के अधीन विनिर्दिष्ट अंकुरण और शुद्धता की न्यूनतम सीमाओं के अनुरूप हो;
(ग) धारा 6 के खण्ड (ख) के अधीन विनिर्दिष्ट उसकी ठीक विशिष्टियों से युक्त चिन्ह या लेबलविहित रूप से उस बीज के आधान पर लगा हो; तथा
(घ) वह अन्य ऐसी अपेक्षाओं का अनुपालन करे जो विहित की जाएँ।
8. प्रमाणन अभिकरण
राज्य सरकार या उसके परामर्श से केन्द्रीय सरकार, इस अधिनियम द्वारा या उसके अधीन प्रमाणन अभिकरण को न्यस्त कृत्यों के पालन के लिये एक प्रमाणन अभिकरण, शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, स्थापित कर सकेगी।
1{8क. केन्द्रीय बीज प्रमाणन बोर्ड- (1) केन्द्रीय सरकार प्रमाणन से सम्बन्धित सब मामलों पर केन्द्रीय सरकार और राज्य सरकारों को सलाह देने के लिये तथा धारा 8 के अधीन स्थापित अभिकरणों के कार्यकरण का समन्वय करने के लिये एक केन्द्रीय बीज प्रमाणन बोर्ड की (जिसे इसमें इसके पश्चात बोर्ड कहा गया है), राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, स्थापना करेगी।
(2) बोर्ड में निम्नलिखित सदस्य होंगे, अर्थात:-
(i) अध्यक्ष जो केन्द्रीय सरकार द्वारा नाम निर्दिष्ट किया जाएगा;
(ii) चार सदस्य जो कृषि निदेशकों के रूप में राज्य सरकारों द्वारा नियोजित व्यक्तियों में से केन्द्रीय सरकार द्वारा नाम निर्दिष्ट किये जाएँगे;
(iii) तीन सदस्य जो कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा अनुसन्धान निदेशकों के रूप में नियोजित व्यक्तियों में से केन्द्रीय सरकार द्वारा नाम निर्दिष्ट किये जाएँगे;
(iv) तेरह व्यक्ति जो ऐसे हितों का प्रतिनिधित्व करने के लिये, जिन्हें केन्द्रीय सरकार उचित समझे, केन्द्रीय सरकार द्वारा नाम निर्दिष्ट किये जाएँगे, जिनमें कम-से-कम चार व्यक्ति बीज उत्पादकों या व्यापारियों के प्रतिनिधि होंगे।
(3) बोर्ड का सदस्य, जब तक उसका स्थान त्याग-पत्र देने से या अन्यथा पहले ही रिक्त न हो जाये, अपने नाम निर्देशन की तारीख से दो वर्ष के लिये पद धारण करने का हकदार होगा;
परन्तु उपधारा (2) के खण्ड (ii) या खण्ड (iii) के अधीन नाम निर्दिष्ट व्यक्ति केवल तब तक पद धारण करेगा जब तक वह उस नियोजन को धारण करता है जिसके आधार पर उसका नाम निर्देशन किया गया था।
8ख. अन्य समितियाँ बोर्ड ऐसी शक्तियों का प्रयोग तथा ऐसे कर्तव्यों का पालन करने के लिये जो बोर्ड द्वारा ऐसी शर्तों के अधीन, जो वह उचित समझे, प्रत्यायोजित किये जाएँ उतनी समितियों की नियुक्ति कर सकता है जितनी वह उचित समझे और जिनमें केवल बोर्ड के सदस्य होंगे या केवल अन्य व्यक्ति होंगे या भागतः बोर्ड के सदस्य और भागतः अन्य व्यक्ति होंगे, जैसा वह उचित समझे।
8ग. बोर्ड या समिति की कार्य वाहियों का, उसमें किसी रिक्ति के कारण अविधिमान्य न होना- बोर्ड या उसकी किसी समिति की कोई कार्यवाही उसमें किसी रिक्ति के कारण या उसके गठन में किसी त्रुटि के कारण ही अविधिमान्य न होगी।
8घ. बोर्ड के लिये प्रक्रिया- बोर्ड, अपनी प्रक्रिया और अपनी किसी समिति की प्रक्रिया को तथा अपने द्वारा या ऐसी समिति द्वारा किये जाने वाले समस्त कामकाज के संचालन को विनियमित करने के प्रयोजन के लिये, केन्द्रीय सरकार के पूर्वानुमोदन से उपविधियाँ बना सकता है।
8ङ. सचिव तथा अन्य अधिकारी- केन्द्रीय सरकार-
(i) एक व्यक्ति को बोर्ड का सचिव नियुक्त करेगी, और
(ii) बोर्ड के लिये ऐसे तकनीकी और अन्य कर्मचारीवृन्द की व्यवस्था करेगी जो केन्द्रीय सरकार आवश्यक समझे।}
9. प्रमाणन अभिकरण द्वारा प्रमाण पत्र का अनुदान
(1) यदि कोई व्यक्ति, जो किसी अधिसूचित किस्म या उपकिस्म का बीज बेचे, बेचने की प्रस्थापना करे, उसका वस्तु-विनिमय करे या अन्यथा सन्दाय करे, उस बीज को प्रमाणन अभिकरण द्वारा प्रमाणित कराने की वांछा करे, तो वह उस प्रयोजनार्थ प्रमाण पत्र के लिये प्रमाणन अभिकरण से आवेदन कर सकेगा।
(2) उपधारा (1) के अधीन हर आवेदन ऐसे प्रारूप में किया जाएगा, उसमें ऐसी विशिष्टियाँ अन्तर्विष्ट होंगी और उसके साथ में ऐसी फीस होगी जो विहित की जाये।
(3) प्रमाण पत्र के अनुदान के लिये ऐसे किसी आवेदन के प्राप्त होने पर प्रमाणन अभिकरण, ऐसी जाँच के पश्चात जो वह ठीक समझे और अपना इस बात का समाधान करने के पश्चात कि वह बीज जिसके सम्बन्ध में आवेदन है उस बीज के लिये 1{विहित स्तरमान} के अनुरूप है, एक प्रमाणपत्र ऐसे प्रारूप में और ऐसी शर्तों पर अनुदत्त कर सकेगा जो विहित की जाएँ;
2{परन्तु ऐसे स्तरमान, धारा 6 के खण्ड (क) में उस बीज के लिये विनिर्दिष्ट अंकुरण और शुद्धता की न्यूनतम सीमाओं से निम्नतर नहीं होंगे।}
10. प्रमाणपत्र का प्रतिसंहरण
यदि प्रमाणन अभिकरण का, उससे इस निमित्त निर्देश किये जाने पर या अन्यथा, इस बात का समाधान हो जाये कि-
(क) धारा 9 के अधीन उसके द्वारा दिया गया प्रमाणपत्र किसी आवश्यक तथ्य के बारे में दुर्व्यपदेशन द्वारा अभिप्राप्त किया गया है; अथवा
(ख) प्रमाणपत्र का धारक उन शर्तों के अनुपालन में, जिनके अध्यधीन कि प्रमाणपत्र अनुदत्त किया गया है, युक्तियुक्त हेतु के बिना असफल रहा है या उसने इस अधिनियम या तद्धीन बनाए गए नियमों के उपबन्धों में से किसी का उल्लंघन किया है,तो किसी ऐसी अन्य शास्ति पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना जिसका कि प्रमाणपत्र का धारक इस अधिनियम के अधीन दायी हो प्रमाणन अभिकरण प्रमाणपत्र के धारक को हेतुक दर्शित करने का अवसर देने के पश्चात प्रमाणपत्र को प्रतिसंहृत कर सकेगा।
11. अपील
(1) कोई व्यक्ति, जो प्रमाणन अभिकरण के धारा 9 या धारा 10 के अधीन के विनिश्चिय से व्यथित हो, उस तारीख से तीस दिन के भीतर, जब उसे वह विनिश्चय संसूचित किया जाये और ऐसी फीस के सन्दाय पर जो विहित की जाये, ऐसे प्राधिकारी को अपील कर सकेगा जो राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त विनिर्दिष्ट किया जाये;
परन्तु यदि अपील प्राधिकारी का समाधान हो जाये कि समय के भीतर अपील फाइल करने में अपीलार्थी पर्याप्त हेतुक सेनिवारित हुआ तो वह तीस दिन की उक्त कालावधि के अवसान के पश्चात भी अपील ग्रहण कर सकेगा।
(2) उपधारा (1) के अधीन अपील प्राप्त होने पर अपील प्राधिकारी अपीलार्थी को सुनवाई का अवसर देने के पश्चात अपील यथासम्भव शीघ्रता के साथ निपटाएगा।
(3) अपील प्राधिकारी का इस धारा के अधीन हर आदेश अन्तिम होगा।
12. बीज विश्श्लेषक
शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, राज्य सरकार विहित अर्हताएँ रखने वाले ऐसे व्यक्तियों को, जिन्हें वह ठीक समझे, बीज विश्लेषक नियुक्त कर सकेगी और वे क्षेत्र परिभाषित कर सकेगी जिनमें वे अधिकारिता का प्रयोग करेंगे।
13. बीज निरीक्षक
(1) शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, राज्य सरकार विहित अर्हताएँ रखने वाले ऐसे व्यक्तियों को, जिन्हें वह ठीक समझे, बीज निरीक्षक के रूप में नियुक्त कर सकेगी और वे क्षेत्र परिभाषित कर सकेगी जिनमें वे अधिकारिता का प्रयोग करेंगे।
(2) हर बीज निरीक्षक भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 21 के अर्थ के अन्दर लोकसेवक समझा जाएगा और शासकीय रूप में ऐसे प्राधिकारी के अधीनस्थ होगा जिसे राज्य सरकार इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे।
14. बीज निरीक्षक की शक्तियाँ
(1) बीज निरीक्षक-
(क) निम्नलिखित से किसी अधिसूचित किस्म या उपकिस्म के बीज के नमूने ले सकेगा:-
(i) ऐसे बीज को बेचने वाला कोई व्यक्ति;
(ii) कोई व्यक्ति जो किसी क्रेता या परेषिती को ऐसा बीज प्रवहित करने, परिदत्त करने या परिदत्त करने की तैयारी करने के अनुक्रम में है;
(iii) कोई क्रेता या परेषिती जिसे ऐसे बीज का परिदान हो चुका है;
(ख) ऐसा नमूना उस क्षेत्र के बीज विश्लेषक को, जिसमें वह नमूना लिया गया हो, विश्लेषणार्थ भेज सकेगा;
(ग) किसी ऐसे स्थान में, जिसके बारे में उसके पास यह विश्वास करने का कारण हो कि उसमें इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध किया गया है या किया जा रहा है, ऐसी सहायता के साथ, यदि कोई हो, जैसी वह आवश्यक समझे, सब युक्तियुक्त समयों पर प्रवेश कर सकेगा और उसकी तलाशी ले सकेगा; तथा किसी ऐसे बीज को, जिसके बारे में अपराध किया गया है या किया जा रहा है, कब्जे में रखने वाले व्यक्ति को लिखित आदेश दे सकेगा कि वह तीस दिन से अनधिक की विनिर्दिष्ट कालावधि पर्यन्त ऐसे अधिसूचित बीज के किसी स्टाक का व्ययन न करे, अथवा, तब के सिवाय जबकि अभिकथित अपराध ऐसा हो कि त्रुटि बीज के कब्जाधारी द्वारा दूर की जा सकती है, ऐसे बीज के स्टाक का अभिग्रहण कर सकेगा;
(घ) खण्ड (ग) में वर्णित किसी स्थान में पाये गए किसी अभिलेख, रजिस्टर, दस्तावेज या अन्य भौतिक पदार्थ की परीक्षा कर सकेगा और यदि उसके पास यह विश्वास करने का कारण हो कि वह इस अधिनियम के अधीन दंडनीय किसी अपराध के किये जाने का साक्ष्य हो सकेगा तो उसका अभिग्रहण कर सकेगा;
(ङ) अन्य ऐसी शक्तियों का, जो इस अधिनियम या तद्धीन बनाए गए किसी नियम के प्रयोजनों के कार्यान्वयन के लिये आवश्यक हों, प्रयोग कर सकेगा।
(2) जहाँ कि किसी अधिसूचित किस्म या उपकिस्म के बीज का नमूना उपधारा (1) के खण्ड (क) के अधीन लिया जाये वहाँ उसकी उस दर से संगणित कीमत, जिस पर ऐसा बीज प्रायः जनता को बेचा जाता है, माँगे जाने पर उस व्यक्ति को दी जाएगी जिससे वह नमूना लिया गया हो।
(3) इस धारा द्वारा प्रदत्त शक्ति के अन्तर्गत ऐसा कोई आधान, जिसमें किसी अधिसूचित किस्म या उपकिस्म का बीज हो, तोड़ कर खोलने की शक्ति या ऐसे किसी परिसर के द्वार को, जिसमें ऐसा बीज विक्रयार्थ रखा हो, तोड़कर खोलने की शक्ति आती है;
परन्तु द्वार तोड़कर खोलने की शक्ति का प्रयोग तभी किया जाएगा जब स्वामी या उस परिसर का अधिभोगी अन्य व्यक्ति, यदि वह उसमें उपस्थित हो तो ऐसा करने की अपेक्षा किये जाने पर भी द्वार खोलने से इनकार करे।
(4) जहाँ कि बीज निरीक्षक उपधारा (1) के खण्ड (क) के अधीन कोई कार्रवाई करे वहाँ वह यावत्सम्भव दो से अन्यून व्यक्तियों को उस समय पर उपस्थित होने के लिये बुलाएगा जब ऐसी कार्रवाई की जाये और वह उसके हस्ताक्षर एक ज्ञापन पर कराएगा जो कि विहित प्रारूप में और विहित रीति से तैयार किया जाएगा।
(5) दंड प्रक्रिया संहिता, 1898 (1898 का 5) के उपबन्ध इस धारा के अधीन की किसी तलाशी या अभिग्रहण को उसी प्रकार लागू होंगे जैसे वे उक्त संहिता की धारा 98 के अधीन निकाले गए वारंट के प्राधिकार से ली गई तलाशी या किये गए अभिग्रहण को लागू होते हैं।
15. बीज निरीक्षकों द्वारा अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया
(1) जब कभी किसी बीज निरीक्षक का आशय किसी अधिसूचित किस्म या उपकिस्म के बीज का विश्लेषणार्थ नमूना लेने का हो तब वह-
(क) उस व्यक्ति को जिससे नमूना लेने का उसका आशय हो अपने उस आशय की लिखित सूचना तुरन्त वहीं देगा।
(ख) उन विशेष मामलों के सिवाय जिनका इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा उपबन्ध किया जाये, तीन प्रतिनिधि नमूने विहित रीति से लेगा और हर एक नमूने को ऐसी रीति से, जो उसकी प्रकृति के अनुसार अपनाई जा सके,चिन्हित करेगा और मुद्राबन्द करेगा या बाँधेगा।
(2) जबकि किसी अधिसूचित किस्म या उपकिस्म के बीज के नमूने उपधारा (1) के अधीन लिये जाएँ, तो बीज निरीक्षक-
(क) एक नमूना उस व्यक्ति को परिदत्त करेगा जिससे वह लिया गया हो;
(ख) दूसरा नमूना उस क्षेत्र के बीज विश्लेषक को जिसमें वह नमूना लिया गया हो विश्लेषणार्थ विहित रीति से भेजेगा; तथा
(ग) शेष नमूने को विहित रीति से प्रतिधारित करेगा जिससे, यथास्थिति, विधिक कार्यवाही की जाने की दशा में वह पेश किया जाये या केन्द्रीय बीज प्रयोगशाला द्वारा धारा 16 की उपधारा (2) के अधीन उसका विश्लेषण किया जाये।
(3) यदि वह व्यक्ति जिससे नमूने लिये गए हो उन नमूनों में से एक का प्रतिग्रहण करने से इनकार करे तो बीज निरीक्षक ऐसे इनकार की प्रज्ञापना बीज विश्लेषक को भेज देगा और तब वह बीज विश्लेषक जिसे विश्लेषणार्थ नमूना प्राप्त हुआ हो, उसे दो भागों में विभाजित करेगा और उनमें से एक भाग को मुद्राबन्द करेगा या बाँधेगा और, या तो नमूने की प्राप्ति पर या जब वह अपनी रिपोर्ट का परिदान करे तब उसे बीज निरीक्षक को परिदत्त कराएगा जो विधिक कार्यवाही किये जाने की दशा में पेश करने के लिये उसे प्रतिधारित करेगा।
(4) जहाँ कि बीज निरीक्षक धारा 14 की उपधारा (1) के खण्ड (ग) के अधीन कोई कार्रवाई करे, वहाँ-
(क) वह इस बात का अभिनिश्चय करने के लिये पूरी शीघ्रता करेगा कि वह बीज धारा 7 के उपबन्धों में से किसी का उल्लंघन करता है या नहीं और यदि यह अभिनिश्चय हो जाये कि वह बीज ऐसा उल्लंघन नहीं करता है तो वह, यथास्थिति, उक्त खण्ड के अधीन पारित आदेश तुरन्त प्रतिसंहृत कर लेगा या ऐसी कार्रवाई करेगा जो अभिगृहीत बीज के स्टाक को वापस करने के लिये आवश्यक हो;
(ख) यदि वह बीज के स्टाक का अभिग्रहण करे तो वह मजिस्ट्रेट को यथाशक्य शीघ्र इत्तिला देगा और उस स्टाक की अभिरक्षा के बारे में उसके आदेश लेगा;
(ग)किसी अभियोजन के संस्थित किये जाने पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, यदि अभिकथित अपराध ऐसा हो कि त्रुटि बीज का कब्जा रखने वाले द्वारा दूर की जा सके तो वह, अपना इस बात का समाधान हो जाने पर कि त्रुटि इस प्रकार दूर कर दी गई है, उक्त खण्ड के अधीन पारित आदेश तुरन्त प्रतिसंहृत कर लेगा।
(5) जहाँ कि बीज निरीक्षक धारा 14 की उपधारा (1) के खण्ड (घ) के अधीन कोई अभिलेख, रजिस्टर, दस्तावेज या अन्य भौतिक पदार्थ अभिगृहीत करे वहाँ वह मजिस्ट्रेट को यथाशक्य शीघ्र इत्तिला देगा और उसकी अभिरक्षा के बारे में उसके आदेश लेगा।
16. बीज विश्लेषक की रिपोर्ट
(1) धारा 15 की उपधारा (2) के अधीन नमूने की प्राप्ति के पश्चात यथाशक्य शीघ्र बीज विश्लेषक नमूने का विश्लेषण राज्य बीज प्रयोगशाला में करेगा और वह विश्लेषण के परिणाम की रिपोर्ट की एक प्रति बीज निरीक्षक को और उसकी दूसरी प्रति उस व्यक्ति को, जिससे नमूना लिया गया हो, ऐसे प्रारूप में, जो विहित किया जाये, परिदत्त करेगा।
(2) इस अधिनियम के अधीन अभियोजन संस्थित किये जाने के पश्चात अभियुक्त विक्रेता या परिवादी विहित फीस देकर, न्यायालय से इस बात के लिये आवेदन कर सकेगा कि धारा 15 की उपधारा (2) के खण्ड (क) या खण्ड (ग) में वर्णित नमूनों में से किसी नमूने को केन्द्रीय बीज प्रयोगशाला को उसकी रिपोर्ट के लिये भेजा जाये और आवेदन की प्राप्ति पर न्यायालय पहले इस बात का अभिनिश्चय करेगा कि धारा 15 की उपधारा (1) के खण्ड (ख) में यथा उपबन्धित चिन्ह और मुद्रा या बन्धन अविकल है और तब वह नमूने को अपनी मुद्रासे अंकित करके केन्द्रीय बीज प्रयोगशाला को भेज सकेगा, जो नमूने की प्राप्ति की तारीख से एक मास के विश्लेषण का परिणाम विनिर्दिष्ट करते हुए विहित प्रारूप में अपनी रिपोर्ट न्यायालय को भेजेगी।
(3) केन्द्रीय बीज प्रयोगशाला द्वारा उपधारा (2) के अधीन भेजी गई रिपोर्ट बीज विश्लेषक द्वारा उपधारा (1) के अधीन दी गई रिपोर्ट को अतिष्ठित कर देगी।
(4) जहाँ कि बीज प्रयोगशाला द्वारा उपधारा (2) के अधीन भेजी गई रिपोर्ट धारा 19 के अधीन की किसी कार्यवाही में पेश की जाये वहाँ उस कार्यवाही में यह आवश्यक न होगा कि विश्लेषणार्थ लिया गया कोई नमूना या उसका भाग पेश किया जाये।
17. अधिसूचित किस्मों या उपकिस्मों के बीजों के निर्यात और आयात पर निर्बन्धन
कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति द्वारा (जिसमें वह स्वयं आता है) बोए जाने या रोपण के प्रयोजनार्थ, किसी अधिसूचित किस्म या उपकिस्म के बीज का आयात या निर्यात तब के सिवाय न तो करेगा और न करवाएगा, जबकि-
(क) वह उस बीज के लिये धारा 6 खण्ड (क) के अधीन विनिर्दिष्ट अंकुरण और शुद्धता की न्यूनतम सीमाओं के अनुरूप हों; तथा
(ख) उस बीज के लिये धारा 6 के खण्ड (ख) के अधीन विनिर्दिष्ट उसकी ठीक विशिष्टियों से युक्त चिन्ह या लेबल विहित रीति से उसके आधान पर लगा हो।
18. विदेशों के बीज प्रमाणन अभिकरणों को मान्यता
समिति की सिफारिश पर केन्द्रीय सरकार किसी विदेश में स्थापित किसी बीज प्रमाणन अभिकरण को शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा इस अधिनियम के प्रयोजनार्थ मान्यता दे सकेगी।
19. शास्ति
यदि कोई व्यक्ति-
(क) इस अधिनियम या तद्धीन बनाए गए किसी नियम के किसी उपबन्ध का उल्लंघन करेगा; अथवा
(ख) बीज निरीक्षक को इस अधिनियम के अधीन नमूना लेने से निवारित करेगा; अथवा
(ग) बीज निरीक्षक को इस अधिनियम द्वारा या उसके अधीन प्रदत्त किसी अन्य शक्ति का प्रयोग करने से निवारित करेगा, तो वह दोष सिद्ध किये जाने पर निम्नलिखित प्रकार से दण्डनीय होगा-
(i) प्रथम अपराध के लिये, जुर्माने से, जो पाँच सौ रुपए तक का हो सकेगा; तथा
(ii) उस दशा में जबकि ऐसा व्यक्ति इस धारा के अधीन अपराध का पहले ही दोष सिद्ध किया जा चुका हो कारावास से जो छह मास तक का हो सकेगा, या जुर्माने से जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा या दोनों से।
20. सम्पत्ति का समपहरण
जबकि कोई व्यक्ति इस अधिनियम या तद्धीन बनाए गए नियमों के उपबन्धों में से किसी के उल्लंघन के लिये इस अधिनियम के अधीन दोष सिद्ध किया गया हो, तो वह बीज जिसके बारे में उल्लंघन किया गया हो, सरकार को समपहृत किया जा सकेगा।
21. कम्पनियों द्वारा अपराध
(1) जहाँ कि इस अधिनियम के अधीन अपराध कम्पनी द्वारा किया गया है वहाँ हर व्यक्ति जो अपराध किये जाने के समय कम्पनी के कारबार के संचालन के लिये उस कम्पनी का भारसाधक और उस कम्पनी के प्रति उत्तरदायी था और वह कम्पनी भी, उस अपराध के दोषी समझे जाएँगे और तद्नुसार अपने विरुद्ध कार्यवाही की जाने और दंडित किये जाने के दायित्व के अधीन होंगे;
परन्तु इस उपधारा में अन्तर्विष्ट कोई भी बात ऐसे किसी व्यक्ति को इस अधिनियम के अधीन किसी दण्ड के दायित्व के अधीन न करेगी यदि वह यह साबित कर देता है कि अपराध उसकी जानकारी के बिना किया गया था और ऐसे अपराध का किया जाना निवारित करने के लिये उसने सभी सम्यक तत्परता बरती थी
(2) उपधारा (1) में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, जहाँ कि इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध कम्पनी द्वारा किया गया है और यह साबित कर दिया जाता है कि वह अपराध कम्पनी के किसी निदेशक, प्रबन्धक, सचिव या अन्य ऑफिसर की सम्मति या मौनानुकूलता से किया गया है या उसकी ओर से हुई किसी उपेक्षा के कारण हुआ माना जा सकता है वहाँ ऐसा निदेशक, प्रबन्धक, सचिव या अन्य ऑफिसर उस अपराध का दोषी समझा जाएगा और तद्नुसार अपने विरुद्ध कार्यवाही की जाने और दंडित किये जाने के दायित्व के अधीन होगा।
स्पष्टीकरण
इस धारा के प्रयोजनों के लिये-
(क) “कम्पनी” से कोई निगमित निकाय अभिप्रेत है और उसके अन्तर्गत फर्म या व्यष्टियों का अन्य संगम आता है; तथा
(ख) फर्म के सम्बन्ध में ‘निदेशक’ से उस फर्म का भागीदार अभिप्रेत है।
22. सद्भावपूर्वक की गई कार्रवाई के लिये परित्राण
कोई भी वाद, अभियोजन या अन्य विधिक कार्यवाही इस अधिनियम के अधीन सद्भावपूवर्क की गई या की जाने के लिये आशयित किसी बात के लिये सरकार या सरकार के किसी ऑफिसर के विरुद्ध न होगी।
23. निदेश देने की शक्ति
केन्द्रीय सरकार किसी राज्य सरकार को ऐसे निदेश दे सकेगी जो केन्द्रीय सरकार को इस अधिनियम या तद्धीन बनाए गए किसी नियम के उपबन्धों को उस राज्य में निष्पादित करने के लिये आवश्यक प्रतीत हों।
24. छूट
इस अधिनियम में कोई बात किसी ऐसे अधिसूचित किस्म या उपकिस्म के बीज को लागू न होगी जो किसी व्यक्ति द्वारा उगाया गया हो और उसके द्वारा स्वयं अपने परिसर में सीधे किसी अन्य व्यक्ति को, उस व्यक्ति द्वारा बोए जाने या रोपण के प्रयोजनार्थ उपयोग में लाये जाने के लिये बेचा या परिदत्त किया गया हो।25. नियम बनाने की शक्ति
(1) केन्द्रीय सरकार इस अधिनियम के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिये नियम शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा बना सकेगी।
(2) विशिष्टतः और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियम निम्नलिखित के लिये उपबन्ध कर सकेंगे:-
(क) समिति के कृत्य और समिति के सदस्यों, तथा धारा 3 की उपधारा (5) के अधीन नियुक्त किसी उपसमिति के सदस्यों को सन्देय यात्रा एवं दैनिक भत्ते;
(ख) केन्द्रीय बीज प्रयोगशाला के कृत्य;
(ग) प्रमाणन अभिकरण के कृत्य;
(घ) किसी अधिसूचित किस्म या उपकिस्म के आधान को धारा 7 के खण्ड (ग) और धारा 17 के खण्ड (ख) के अधीन चिन्हित करने या उस पर लेबल लगाने की रीति;
(ङ) वे अपेक्षाएँ जो धारा 7 में निर्दिष्ट कारबार चलाने वाले व्यक्ति द्वारा अनुपालित की जाएँ;
(च) धारा 9 के अधीन प्रमाणपत्र के अनुदान के लिये आवेदन का प्रारूप, वे विशिष्टियाँ जो उसमें अन्तर्विष्ट हों, वह फीस जो उसके साथ होनी चाहिए, प्रमाणपत्र का प्रारूप, वे शर्तें जिनके अध्यधीन प्रमाणपत्र अनुदत्त किया जा सकेगा;
1{(चच) वे स्तरमान जिनके अनुरूप बीज होने चाहिए;}
(छ) वह प्रारूप जिसमें, वह रीति जिससे और वह फीस जिसके दिये जाने पर धारा 11 के अधीन अपील की जा सकेगी तथा अपील निपटाने में अपील प्राधिकारी द्वारा अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया;
(ज) बीज विश्लेषक और बीज निरीक्षकों की अर्हताएँ और कर्तव्य;
(झ) वह रीति जिससे नमूने बीज निरीक्षक द्वारा लिये जा सकेंगे, ऐसे नमूने बीज विश्लेषक या केन्द्रीय बीज प्रयोगशाला को भेजने की प्रक्रिया और ऐसे नमूनों के विश्लेषण की रीति;(ञ) धारा 16 की उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन विश्लेषण के परिणाम की रिपोर्ट का प्रारूप और उक्त उपधारा (2) के अधीन ऐसी रिपोर्ट के बारे में सन्देय फीस;
(ट) धारा 7 में निर्दिष्ट कारबार चलाने वाले व्यक्ति द्वारा रखे जाने वाले अभिलेख और वे विशिष्टियाँ जो ऐसे अभिलेखों में अन्तर्विष्ट होंगी; तथा
(ठ) कोई अन्य बात जो विहित की जानी है या की जाये।
1{(3) इस अधिनियम के अधीन बनाया गया प्रत्येक नियम बनाए जाने के पश्चात यथाशीघ्र, संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष, जब वह सत्र में हो, तीस दिन की अवधि के लिये रखा जाएगा। यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी। यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस नियम में कोई परिवर्तन करने के लिये सहमत हो जाएँ तो तत्पश्चात वह ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा। यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएँ कि वह नियम नहीं बनाया जाना चाहिए तो तत्पश्चात वह निष्प्रभाव हो जाएगा। किन्तु नियम के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।}
सन्दर्भ
1. 1 धारा 1 से धारा 6, धारा 8 से धारा 11, धारा 18 और धारा 22 से धारा 25 तक के उपबन्ध सम्पूर्ण भारत में 2-9-1968 से प्रवृत्त होंगे- देखिए अधिसूचना सं० का० आ० 3122, तारीख 29-8-1968, भारत का राजपत्र, असाधारण, भाग 2, खण्ड 3 (2), तारीख 2-9-1968, पृ० 965.
धारा 7, धारा 12 से धारा 17 (दोनों धाराएँ सम्मिलित) धारा 19 से धारा 21 (दोनों धाराएँ सम्मिलित) के उपबन्ध सम्पूर्ण भारत में 1-10-1969 से प्रवृत्त होंगे- देखिए अधिसूचना सं० का०आ० 4049, तारीख 24-9-1969, भारत का राजपत्र, असाधारण, भाग 2, धारा 3(ii), पृ० 1317.
2. 2 1972 के अधिनियम सं० 55 की धारा 2 द्वारा (16-1-1973 से) अन्तःस्थापित।
3. 1 1972 के अधिनियम सं० 55 की धारा 3 द्वारा (16-1-1973) से अन्तःस्थापित।
4. 1 1972 के अधिनियम सं० 55 की धारा 4 द्वारा (16-1-1973) से कुछ शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित।
5. 2 1972 के अधिनियम सं० 55 की धारा 4 द्वारा (16-1-1973) से अन्तःस्थापित।
6. 1 1972 के अधिनियम सं० 55 की धारा 5 द्वारा (16-1-1973 से) अन्तःस्थापित।
7. 1 1972 के अधिनियम सं० 55 की धारा 5 द्वारा (16-1-1973 से) प्रतिस्थापित।
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