बिहार में लोग आर्सेनिक, फ्लोराइड, लौह युक्त जल पीने को विवश

स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार ग्रामीण इलाकों में 80 फीसद से अधिक बीमारियाँ, अशुद्ध पेयजल और गंदगी के कारण होती हैं। लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार, वित्त वर्ष 2012-13 के दौरान आर्सेनिक प्रभावित 786 बसावटों, फ्लोराइड प्रभावित 1,507 एवं लौह प्रभावित 3,807 बसावटों में शुद्ध पेयजल मुहैया कराने का लक्ष्य रखा गया था। लेकिन केवल 2,040 बसावटों में ही अब तक ऐसा किया जा सका है। बिहार के 12,536 बसावटों में रहने वाले लोग शुद्ध पेयजल के अभाव में अपनी प्यास बुझाने के लिए आर्सेनिक, फ्लोराइड और लौह युक्त जल का सेवन करने को विवश हैं जबकि गर्मी के मौसम आते ही पानी की अहमियत बढ़ गई है। बिहार के 13 जिलों में गंगा नदी के दोनों किनारों पर स्थित 1001 बसावटों के भूजल में आर्सेनिक की बहुलता है। इसी तरह राज्य के पठारी और उप पठारी क्षेत्रों के 11 जिलों की 2,691 बसावटों के भूजल में फ्लोराइड और प्रदेश के पूर्वोत्तर कोसी प्रक्षेत्र के 9 जिलों की 10,844 बसावटों के भूजल में लौह की मात्रा अनुमान्य सीमा से अधिक है। स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार ग्रामीण इलाकों में 80 फीसद से अधिक बीमारियाँ, अशुद्ध पेयजल और गंदगी के कारण होती हैं। लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार, वित्त वर्ष 2012-13 के दौरान आर्सेनिक प्रभावित 786 बसावटों, फ्लोराइड प्रभावित 1,507 एवं लौह प्रभावित 3,807 बसावटों में शुद्ध पेयजल मुहैया कराने का लक्ष्य रखा गया था। लेकिन केवल 2,040 बसावटों में ही अब तक ऐसा किया जा सका है।

वित्त वर्ष 2012-13 के अंत तक आर्सेनिक प्रभावित बसावटों में 26 मिनी जलापूर्ति योजना, फ्लोराइड प्रभावित क्षेत्रों में 43 मिनी, जलापूर्ति योजना और लौह प्रभावित क्षेत्रों में 185 मिनी जलापूर्ति योजनाएं चालू की गई हैं। बिहार के 12536 हजार बसावटों में जहां शुद्ध पेयजल उपलब्ध नहीं है वहीं इस प्रदेश में गैर गुणवत्ता प्रभावित 10,392 बसावटों में पेयजल की पूर्ण व्यवस्था नहीं है। वित्त वर्ष 2012-13 के दौरान इन बसावटों में से 8,915 बसावटों में पेयजल की पूर्ण व्यवस्था किए जाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था, जिसमें से 4,944 बसावटों में ही काम हो पाया। बिहार सरकार ने ग्रामीण इलाकों में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 40 लीटर पेयजल उपलब्ध कराए जाने का मापदंड तय किया है और इसके लिए 250 की आबादी और 500 मीटर की दूरी पर एक जलापूर्ति स्रोत की व्यवस्था की जानी है। वित्त वर्ष 2012-13 के दौरान विभिन्न योजनाओं के तहत 16,813 चापाकलों का निर्माण, 85 ग्रामीण पाइप जलापूर्ति योजना, सौर ऊर्जा चालित 39 मिनी जलापूर्ति योजना, 40 विद्युत पंप आधारित मिनी जलापूर्ति योजना चालू की गई हैं।

बिहार विधानसभा के सदस्यों की अनुशंसा पर मुख्यमंत्री चापाकल योजना के तहत राज्य के सभी 38 जिलों में पेयजल आपूर्ति की व्यवस्था को सुदृढ़ करने की ख़ातिर अगले पांच सालों के लिए प्रति वर्ष प्रति पंचायत पांच चापाकल और शहरी इलाकों में नगर निगम क्षेत्रों में प्रति वार्ड तीन नगर परिषद के तहत प्रति वार्ड दो और नगर पंचायत के तहत प्रति वार्ड एक-एक नए चापाकल की व्यवस्था की जानी है। इसके अतिरिक्त बिहार परिषद की अनुशंसा पर प्रति सदस्य सौ की दर से ग्रामीण और शहरी क्षेत्र में सार्वजनिक स्थलों पर चापाकलों का निर्माण किया जाना है। मुख्यमंत्री चापाकल योजना के तहत चापाकलों के निर्माण के लिए वित्त वर्ष 2012-13 में 55,240 चापाकलों के निर्माण और उनके अगले तीन वर्षों तक उनकी मरम्मत और रख-रखाव के लिए 225.29 करोड़ रुपए की राशि के व्यय को मंजूरी दी गई है। इसका कार्यान्वयन भी किया जा रहा है। बिहार में पाइप के माध्यम से पेयजल आपूर्ति का औसत वर्तमान में मात्र चार फीसद है जिसे 12वीं पंचवर्षीय योजना में बढ़ाकर दस फीसद करने का लक्ष्य रखा गया है।

केंद्र सरकार के पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय की ओर पाइप जलापूर्ति से बसावटों में व्यवस्था के लिए विश्व बैंक की सहायता से लगभग 1,440 करोड़ रुपए की परियोजना प्रस्तावित की गई है जिसका कार्यान्वयन अगले छह सालों में किया जाना है। इसके लिए विस्तृत परियोजना प्रतिवेदन तैयार किए जा रहे हैं। इस योजना के तहत पहले चरण में 425 करोड़ रुपए की लागत से प्रदेश के दस जिलों पटना, नालंदा, नवादा, बेगूसराय, बांका, सारण, मुंगेर, मुज़फ़्फ़रपुर, पूर्णिया और पश्चिमी चंपारण में पाइप के माध्यम जलापूर्ति की जानी है।

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