बिहार में क्यों बरप रहा वज्रपात का कहर

Victims families receiving relief fund
Victims families receiving relief fund

गुरुवार की सुबह से शाम के बीच बिहार में तेज बारिश और आकाशीय बिजलियां गिरीं, जिनमें 90 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई। मरनेवालों मे ज्यादातर लोगों की पृष्ठभूमि देखें, तो वे खेतिहर समाज से थे और साथ ही साथ खेत मजदूर भी शामिल थे।

बिहार आपदा प्रबंधन विभाग के मुताबिक, बिहार के 38 जिलों में से दो दर्जन जिलों में वज्रपात का कहर बरपा है। सबसे ज्यादा 13 लोगो की मौत अकेले गोपालगंज में दर्ज की गई है। 

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मारे गए लोगों के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए मृतकों के परिजनों को 4-4 लाख रुपए का मुआवजा देने का ऐलान किया है। कई लोगों को तत्काल मुआवजे का चेक दे दिया गया।

बिहार में वज्रपात से इतने लोगों की मौत की यह कोई पहली घटना नहीं है। बिहार में हर साल दर्जनों लोगों की मौत वज्रपात से हो जाती है। पिछले साल बिहार में वज्रपात से 221 लोगों की मौत हो गई थी। इसी तरह  साल 2018 में 302 लोगों की जान वज्रपात ने ले ली थी। इससे पहले साल 2017 में 514 और 2016 में 243 लोगों की जान वज्रपात से चली गई थी। 

 

मौसम के जानकारों का कहना है कि मौसमी गतिविधियों के चलते आकाशीय बिजली (वज्रपात) ज्यादा गिरती है। साउथ बिहार सेंट्रल यूनिवर्सिटी के एनवायरमेंट साइंस विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर प्रधान पार्थ सारथी कहते हैं,दरअसल स्थानीय स्तर पर मौसम गर्म हो जाता है, जिसके चलते चलते कनवेक्टिव बादल बनते हैं। इन बादलों मे आकाशीय बिजली होते हैं। ये बादल जब बगाल की खाड़ी से आने वाली नमीयुक्त हवाओं के संपर्क में आते हैं, तो बारिश होती और बिजलियां गिरती हैं।”

 

उन्होंने कहा, बिहार में हाल के समय में ऐसी स्थितियां ज्यादा बन रही हैं, जिनमें स्थानीय वजहों से तापमान अचानक बढ़ जाता है और वज्रपात के साथ बारिश होती है। गुरुवार को हुए वज्रपात और बारिश की बात करें, तो इससे पहले दो-तीन दिनों तक बारिश नहीं हुई थी और मौसम भी गर्म हो गया था।

 

लाइटनिंग रिसाइलेंट इंडिया कैम्पेन और भारतीय मौसमविज्ञान विभाग की तरफ से पिछले साल जारी एक रिपोर्ट के अनुसार बिहार में पिछले जनवरी से सितंबर तक वज्रपात की ढाई लाख से ज्यादा वारदातें हुई थीं। इससे समझा जा सकता है कि बिहार में वज्रपात कितना बढ़ गया है। कुछ जानकारों का ये भी कहना है कि जलवायु परिवर्तन के चलते इस तरह की घटनाओं में इजाफा हुआ है। 

 

वज्रपात से बचाव के लिए बिहार सरकार ने इंद्रवज्र नाम से एक ऐप भी लांच किया है। लेकिन बताया जाता है कि अब तक महज 10 हजार के आसपास लोगों ने ही इस ऐप को डाउनलोड किया है और इसका रिव्यू भी खराब है। लोगों की शिकायत है कि ये ऐप सही जानकारी नहीं देता है। इसके अलावा बिहार सरकार बरसात के मौसम में विज्ञापन देकर बताती है कि वज्रपात होने की स्थिति में कैसे बचा जा सकता है। लेकिन, सच बात ये है कि ज्यादातर लोग सुबह का अखबार पढ़कर खेतों में काम करने के लिए नहीं निकलते हैं। ऐसे में जरूरी है कि गांवों में चौपाल लगाकर लोगों को वज्रपात से बचाव की जानकारी दी जाए।

 

इसके अलावा जानकारों का कहना है कि ज्यादा से ज्यादार संख्या में ताड़ के पेड़ लगाकर वज्रपात से जिंदगियां बचाई जा सकती हैं। बांग्लादेश में पिछले कुछ वर्षों में भारी संख्या में ताड़ के पेड़ लगाए गए हैं क्योकि वहां भी खूब वज्रपात होता था और लोगों की जान जाती थी। बताया जाता है कि ताड़ के पेड़ वज्रपात को अपनी तरफ खींचते हैं क्योंकि वे लंबे होते हैं। 

 

वहीं, लाइटनिंग रिसाइलेंट इंडिया कैम्पेन के कनवेनर कर्नल (रिटायर्ड) संजय श्रीवास्तव का कहना है कि लाइटनिंग अरेस्टर भी वज्रपात से बचाव का कारगर उपाय होता है। उन्होंने बताया कि झारखंड के देवघर में सावन में हर साल एक दर्जन से अधिक कांवरियों की मौत हो जाती थी, लेकिन 6-7 साल पहले वहां कई लाइटनिंग अरेस्टर लगाए गए, जिसके बाद से वहां मौतों का सिलसिला थम गया है। 

 

उन्होंने कहा, बिहार सरकार को वज्रपात से सबसे ज्यादा प्रभावित इलाको मे लाइटनिंग अरेस्टर लगाना चाहिए। ये बहुत खर्चीला भी नहीं है। हर साल बिहार वज्रपात से मारे गए लोगों के परिजनों को मुआवजा देने में खर्च करती है, उतने में बिहार में लाइटनिंग अरेस्टर लग जाएंगे।”

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