फलों के रिकॉर्ड उत्पादन के बाद पूरे देश की नजर बिहार पर टिक गई है। लीची उत्पादन में बिहार को देश में पहला स्थान हासिल है ही लेकिन अब यह प्रदेश अनानास में तीसरा और आम की पैदावार में देश का चौथा बड़ा उत्पादक राज्य बन गया है। बिहार में पहली बार सिंचाई संसाधनों के विकास को कृषि रोडमैप के दायरे में लाया गया है ताकि उत्पादन और उत्पादकता समान रूप से बढ़ाई जा सके। मिट्टी की उर्वरा शक्ति को कायम रखने के लिए सरकार की कोशिश है कि रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग में कमी लाई जाए। कुल मिलाकर हरी रोशनी में विकास के सफर की शुरुआत हो चुकी है।
देश भर के कृषि विशेषज्ञ अब मानने लगे हैं कि दूसरी हरित क्रांति अब पूर्वी राज्यों में ही संभव है। इन राज्यों की माटी की उर्वरा शक्ति का अभी तक पूर्ण दोहन नहीं हुआ है । मौके की नजाकत महसूस करते हुए बिहार ने हरियाली की रोशनी में विकास का सफर तय करने का फैसला लिया है। इसके सकरात्मक परिणाम भी दिखने लगे हैं। शहद उत्पादन में बिहार ने देश में अव्वल स्थान बना लिया है और नालंदा के दरवेशपुरा गांव के किसान सुमंत कुमार ने एक हेक्टेयर में 22.4 टन धान का उत्पादन कर विश्व रिकॉर्ड कायम किया है। फलों के उत्पादन में बिहार अब तक लीची के लिए ही मशहूर था लेकिन अब अन्य फलों के रिकॉर्ड पैदावार से इंद्रधनुषी क्रांति के आसार दिखने लगे हैं। फलों के रिकॉर्ड उत्पादन के बाद पूरे देश की नजर बिहार के किसानों की क्षमता पर टिक गई है। लीची उत्पादन में बिहार को पहले से ही देश में पहला स्थान हासिल है लेकिन अब अनानास में तीसरा और आम के पैदावार में यह प्रदेश देश का चौथा बड़ा उत्पादक राज्य बन गया है।मुजफ्फरपुर और वैशाली जिले को केला उत्पादन में महारत हासिल है तो दरभंगा, पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण और वैशाली आम उत्पादन में लगातार रिकॉर्ड तोड़ रहे हैं। रोहतास और भोजपुर में अमरूद के उत्पादन में वृद्धि ने पूरे देश का ध्यान खींचा है। आर्थिक सर्वेक्षण के आंकड़े भी इसकी तसदीक करते हैं। वर्ष 2010-11 में बिहार में 296.42 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल में 3,912 हजार टन फलों का उत्पादन हुआ जो एक रिकॉर्ड है। फलों की खेती के कुल क्षेत्रफल के आधे हिस्से में आम के बगीचे हैं लेकिन कुल फल उत्पादन में आम का हिस्सा 34.12 प्रतिशत ही है। सब्जी के उत्पादन में तीन गुना वृद्धि ने दूसरी हरित क्रांति के दरवाजे खोल दिए हैं। पिछले साल देश में बिहार के किसानों ने लीची का रिकॉर्ड उत्पादन किया था। बिहार देश का सबसे बड़ा लीची उत्पादक राज्य है और देश के कुल उत्पादन का 74 प्रतिशत बिहार में ही होता है।
बिहार के मुजफ्फरपुर को 'लीची जिला' के रूप में जाना जाता है और यहां 30 हजार 600 हेक्टेयर में फैले लीची बागानों में पिछले साल 215 टन लीची का उत्पादन हुआ था। इस जिले में लीची की दो किस्में शाही और चीनी का उत्पादन होता रहा है। देश में दिल्ली, बेंगलुरु, मुंबई, चेन्नई और कोलकाता के अलावा बिहार की लीची की खपत विदेशों में भी होती रही है। खाड़ी देशों, बांग्लादेश और नेपाल में मुजफ्फरपुर की लीची की विशेष मांग रही है। लीची का निर्यात नीदरलैंड, यूनाइटेड अरब अमीरात, सऊदी अरब, लेबनान, कनाडा, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस और यमन में होता रहा है। अब तक हर साल 50 टन लीची विदेशों में भेजी जाती रही है। पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड, त्रिपुरा और असम में भी लीची की खेती होती है लेकिन बिहार ही मुख्य उत्पादक राज्य है। लीची चीन से चलकर भारत में सबसे पहले त्रिपुरा में आई और बाद में पश्चिम बंगाल में इसके उत्पादन ने जोर पकड़ा लेकिन अनुकूल वातावरण के कारण यह बिहार की मुख्य फसल बनकर रह गई।
फलों और सब्जियों के अलावा अन्य फसलों के उत्पादन में बढ़ोतरी के लिए बिहार सरकार ने कार्ययोजना पर अमल शुरू कर दिया है। कृषि के विकास और विस्तार के लिए अगले दस वर्षों का रोडमैप तैयार किया गया है जिस पर डेढ़ लाख करोड़ रुपए खर्च होंगे। बिहार सरकार ने कृषि को उन्नत बनाने के लिए कई योजनाएं बनाई हैं। कृषि कैबिनेट का गठन किया गया है। बिहार देश का पहला ऐसा राज्य है जिसने कृषि की उन्नति के लिए योजनाएं बनाने को अलग से कृषि कैबिनेट का गठन किया है। 2012 से 2022 तक की योजनाएं तैयार की जाएंगी। राज्य में पहला कृषि रोडमैप 2008 से 2012 तक लागू रहा जिसमें मुख्यमंत्री तीव्र बीज विस्तार योजना, बीज ग्राम योजना, नई तकनीक के प्रचार-प्रसार, जैविक खेती और कृषि यांत्रीकरण योजना के लागू होने से कई प्रकार के परिवर्तन आए। खेती में बड़े बदलाव आए।
नया रोडमैप पहले पांच वर्ष के लिए 2012 से 2017 तक लागू होगा। हरी खादों के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए ही इस बार पांच लाख हेक्टेयर में और इतने ही रकबे में मूंग और ढैंचा की खेती की जा रही है। अब किसानों को बीज के साथ बायो फर्टिलाइजर भी उपलब्ध कराए जाएंगे। बीज निर्माता कंपनियों को सरकार इसके बदले में धन मुहैया कराएगी। अगले पांच वर्षों में कृषि के विकास पर एक लाख 52 हजार करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे। इसमें एक लाख 22 हजार करोड़ रुपए राज्य सरकार अपने स्तर से खर्च करेगी। जबकि शेष रकम निजी क्षेत्रों के माध्यम से खर्च की जाएगी बिहार को खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाया जाएगा। बिहार में पहली बार सिंचाई संसाधनों के विकास को कृषि रोडमैप के दायरे में लाया गया है ताकि उत्पादन और उत्पादकता समान रूप से बढ़ाई जा सके।
शाक, सब्जी, फल, धान, चावल और दलहन, दूध और अंडा उत्पादन पर जोर देने के लिए ही बिहार में कृषि कैबिनेट का गठन किया गया और इसके दायरे में 18 विभागों को लाया गया है। इसी प्रयास के अनुसार मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिए रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग में कमी लाई जा रही है। जैविक खादों के प्रयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है। अब किसानों को बीज के साथ बायो फर्टिलाइजर भी उपलब्ध कराए जा रहे हैं। उल्लेखनीय है कि समागम में दो हजार से अधिक किसान जुटे थे। आंतरिक संसाधनों से प्राप्त रकम के अलावा विभिन्न एजेंसियों से लोन लेकर बिहार को खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाया जाएगा। बिहार में पहली बार सिंचाई संसाधनों के विकास को कृषि रोडमैप के दायरे में लाया गया है ताकि उत्पादन और उत्पादकता समान रूप से बढ़ाई जा सके। मिट्टी की उर्वरा शक्ति को कायम रखने के लिए सरकार की कोशिश है कि रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग में कमी लाई जाए। कुल मिलाकर हरी रोशनी में विकास के सफर की शुरुआत हो चुकी है।
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