बिहार में बाढ़ की विभीषिका


फरक्का बाँध नहीं बना था तो यह सारा सिल्ट और बालू बहकर बंगाल की खाड़ी में गिर जाता था, परन्तु अब फरक्का बाँध बनने के कारण गंगा में गाद का जमाव प्रतिवर्ष बढ़ता ही जा रही है। इस कारण नदी की गहराई घटती जा रही है और जो भी पानी सहायक नदियों से आता है वह गंगा नदी में न रहकर बाहर के शहरों और देहात में फैल जाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस वर्ष मानसून में बिहार में 14 प्रतिशत बारिश कम हुई है, परन्तु अन्य वर्षों की अपेक्षा गंगा में भयानक बाढ़ आ गई है जिसका मुख्य कारण गंगा के गर्भ में बालू या गाद का जमा होना है। कुछ महीनें पहले भीषण गर्मी के कारण लोग बूँद-बूँद पानी के लिये तरस रहे थे। लोगों को यह डर सता रहा था कि गत दो वर्षों की तरह ही कहीं इस बार भी भयानक सूखा न पड़ जाये। परन्तु इस वर्ष देश के प्रायः सभी जिलों में अनुमान से बहुत अधिक बारिश हुई, जिसका फल यह हुआ कि आधे भारत में भयानक बाढ़ की स्थिति पैदा हो गई है।

बिहार, असम, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, राजस्थान समेत देश के कई हिस्सों में लाखों लोग बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित हो गए हैं। सबसे दुखद स्थिति तो बिहार की है। पिछले अनेक वर्षों से यह माँग हो रही थी कि नेपाल से निकलने वाली नदियाँ बिहार में कहर ढा रही हैं।

कुछ ऐसा किया जाये कि जहाँ से ये नदियाँ निकलती हैं वहीं डैम बनाकर इसके वेग को रोका जाये। इससे नेपाल और बिहार, दोनों में हर वर्ष आने वाली भयानक बाढ़ से छुटकारा मिल जाएगा। यही नहीं, इतनी अधिक बिजली का उत्पादन होगा कि नेपाल और उत्तर बिहार का आर्थिक प्रगति के कारण कायाकल्प हो जाएगा।

कई बार तो नेपाल की सरकार भारत के प्रस्ताव को मानने को तैयार भी हो गई थी, लेकिन ऐसा समझा जाता है कि पड़ोसी देशों के बहकावे के कारण नेपाल इस तरह के किसी समझौते से पीछे हट गया। नतीजा यह हुआ कि उसके भयानक परिणाम बिहार, खासकर उत्तर बिहार के लोगों को हर वर्ष भुगतने पड़ते हैं।

पिछले अनेक वर्षों से नेपाल से निकलने वाली नदियाँ खासकर कोसी, कमला और दूसरी सहायक नदियाँ अचानक ही उत्तर बिहार में एकाएक बाढ़ लाकर प्रलय मचा देती हैं।

पिछले अनेक वर्षों से उत्तर बिहार के लोग बाढ़ से त्रस्त होकर उस क्षेत्र से निकलकर दिल्ली, हरियाणा और पंजाब में मजदूरी करने के लिये आ रहे हैं। परन्तु अधिकतर लोग तो अपने परिवार को बिहार में छोड़कर ही आते हैं।

साल भर मजदूरी करके वे अपनी बहन-बेटियों के विवाह के लिये पैसे जमा करते हैं और शादी का सामान लेकर घर जाते हैं। अचानक ही नेपाल से आने वाली नदियों में बाढ़ आ जाती है और देखते-ही-देखते सब कुछ बहकर समाप्त हो जाता है। दुखी और निराश होकर ये गरीब लोग फिर से पंजाब और हरियाणा में मजदूरी करने के लिये इस भयानक चिन्ता के साथ कि अब उनकी बेटी बहनों का विवाह कैसे होगा, लौट जाते हैं।

जिन लोगों ने उत्तर बिहार की बाढ़ की विभीषिका को देखा है उसकी कल्पना अन्य लोग नहीं कर सकते हैं। बाढ़ आने पर गाँव के लोग पेड़ों पर चढ़कर कई दिनों तक भूखे-प्यासे दिन बिताते हैं। नेपाल से आने वाले जहरीले साँप भी उन्हीं पेड़ों पर चढ़ जाते हैं। यह दृश्य अत्यन्त ही भयावह होता है।

एक डाल पर बाढ़ से पीड़ित लोग पानी के जलस्तर के घटने का इन्तजार करते हैं और दूसरी तरफ पेड़ की दूसरी डालों पर बैठे हुए जहरीले साँप भी जलस्तर घटने का इन्तजार करते हैं। दोनों एक दूसरे से डरे रहते हैं। हर वर्ष बिहार में सर्पदंश से सैकड़ों लोग मारे जाते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में सर्पदंश का तो इलाज ही नहीं रहता है।

कई बार तो ऐसा देखा गया है कि जो सरकारी या निजी नाव राहत लेकर इन नदियों के किनारे जाती हैं उनमें पेड़ों के ऊपर से जहरीले साँप गिर जाते हैं जिनके काटने से कई राहतकर्मी भी मारे जाते हैं। यह व्यथा इतनी दर्दनाक है जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता है। अंग्रेजी में एक कहावत है- ‘सीइंग इज बिलीविंग’ अर्थात आप देखेंगे तभी आपको विश्वास होगा।

बिहार में 22 जुलाई से अब तक आई बाढ़ के कारण राज्य की प्रायः 60 लाख जनता प्रभावित हुई है। राज्य के विभिन्न भागों में अब तक 100 लोगों से ज्यादा की मौत हो चुकी है। हाल में सन 2008 में कोसी नदी के कुसहा बाँध टूटने से जो प्रलयंकारी बाढ़ आई थी उसकी याद अभी भी लोगों के मन में जीवित है।

शेष उत्तर बिहार तो प्रभावित हुआ ही था, परन्तु सबसे बुरा हाल सुपौल, पूर्णिया, मधेपुरा, सहरसा और अररिया का था जिससे 40 लाख लोगों की सारी सम्पत्ति नष्ट हो गई थी और वे देखते ही देखते सम्पन्नता से दरिद्रता की श्रेणी में आ गए थे। दुर्भाग्यवश उस समय भी बिहार को केन्द्र से पूरी सहायता नहीं मिली थी। परन्तु इस बार की बाढ़ तो और भी प्रलयंकारी है।

गंगा नदी की उफनती धाराओं के कारण बिहार में गंगा से सटे सभी जिलों में बाढ़ की स्थिति अत्यन्त ही गम्भीर हो गई है। गंगा ने पिछले कई वर्षों के रिकार्ड तोड़ दिये हैं। जो लोग बाढ़ के विशेषज्ञ हैं उनका कहना है कि नेपाल से जो नदियाँ निकलती हैं वे अपने साथ बहुत बड़ी मात्रा में ‘गाद’ (सिल्ट) ले आती हैं।

पहले जब फरक्का बाँध नहीं बना था तो यह सारा सिल्ट और बालू बहकर बंगाल की खाड़ी में गिर जाता था, परन्तु अब फरक्का बाँध बनने के कारण गंगा में गाद का जमाव प्रतिवर्ष बढ़ता ही जा रही है। इस कारण नदी की गहराई घटती जा रही है और जो भी पानी सहायक नदियों से आता है वह गंगा नदी में न रहकर बाहर के शहरों और देहात में फैल जाता है।

विशेषज्ञों का कहना है कि इस वर्ष मानसून में बिहार में 14 प्रतिशत बारिश कम हुई है, परन्तु अन्य वर्षों की अपेक्षा गंगा में भयानक बाढ़ आ गई है जिसका मुख्य कारण गंगा के गर्भ में बालू या गाद का जमा होना है। जब-जब फरक्का बाँध का गेट बन्द हो जाता है तो गाद तेजी से नीचे बैठ जाती है जो बाढ़ का प्रमुख कारण बनती है।

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गंगा की दुर्दशा पर कहा कि इस दुर्दशा को देखने से उन्हें रोना आ जाता है। दिल्ली आकर उन्होंने प्रधानमंत्री से बात की और कहा कि अविलम्ब कुछ ऐसा उपाय किया जाये जिससे कि गंगा की गाद को साफ किया जा सके। उन्होंने यह भी कहा कि इस बार विशेषज्ञों द्वारा इस बात की जाँच की जानी चाहिए कि फरक्का बाँध की आवश्यकता है भी या नहीं। फरक्का बाँध के बारे में तो प्रधानमंत्री ने कोई आश्वासन नहीं दिया, परन्तु इतना अवश्य कहा कि वे विशेषज्ञों को बिहार भेजकर गाद से निपटने का तुरन्त उपाय ढूँढेंगे।

पूर्व में संप्रग सरकार के कार्यकाल में भी यह प्रयास हुआ था कि पटना के पास ही प्रतिवर्ष इस तरह से ‘ड्रेजिंग’ की जाये जिससे गंगा नदी का पेट गहरा हो जाये और गाद का वहाँ जमा नहीं हो सके। परन्तु दुर्भाग्यवश यह योजना कार्यान्वित नहीं हो सकी और प्रतिवर्ष गाद के भयानक तरीके से जमा होने के कारण गंगा का पेट गहरा नहीं किया जा सका और उसका पानी अगल-बगल फैलकर शहर-देहात को तबाह करता रहा है।

नेपाल से आने वाली नदियों के अलावा मध्य प्रदेश के बाणसागर में जमा पानी भी खोल दिया गया है जिसके कारण भी गंगा में भयानक बाढ़ आ गई है। लोग यह माँग कर रहे हैं कि इस बात की भी जाँच होनी चाहिए कि फरक्का बाँध के साथ ‘बाणसागर’ बाँध की उपयोगिता है भी अथवा नहीं?

अब यह मानकर चलना चाहिए कि बिहार में बाढ़ की समस्या अन्य राज्यों की समस्याओं से बिल्कुल भिन्न है और जब तक गंगा नदी के गाद को निकालने की समुचित व्यवस्था नहीं की जाएगी तब तक बिहार हर वर्ष आने वाली बाढ़ से मुक्ति नहीं पा सकेगा।

(लेखक पूर्व सांसद एवं पूर्व राजदूत हैं)

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