बिहार के प्रमुख वेटलैंड्स: एक नज़र

वेटलैंड्स या नमभूमि - जैसाकि नाम से ही सर्वविदित होता है यह भूमि के बीचो बीच स्थित अथाह जलराशि वाला क्षेत्र होता है। यह यह जानना आवश्यक है कि वेटलैंड्स भी कई प्रकार के होते है। मसलन कुछ वेटलैंड्स तो आकार में कई किलोमीटर लम्बे एवं चैड़े होते है वहीं दूसरी ओर कुछ मात्र छोटे-छोटे तालाबों, सरोवरों एवं झीलों के रूप में पाये जाते है। गौरतलब बात है कि आकार में बड़े एवं विस्तृत वेटलैंड्स सालों भर सदानीरा रहते है क्योंकि या तो वो किसी बड़ी एवं चौड़ी नदी से या किसी नहर के द्वारा जुड़े होते है या कभी-कभी किसी जलप्रपात का एक अंग होता है। वहीं कई छोटे वेटलैंड्स बरसात के मौसम में अपने पूरे शवाब में होते है पर गर्मी पड़ते ही वे पूर्णतः सूख जाते है। कारण चाहे कुछ भी हो कहने का तात्पर्य है कि ये वेटलैंड्स हमारे जीवन नैया को पार लगाने में एक महती भूमिका निभाते है। एक तरफ तो ये वर्षा के जल को संग्रहीत कर वाटर टेबल को एक निश्चित परिमाण तक मेंटेन रखते है। जिससे विपरीत परिस्थितियों में हमें जल की पर्याप्त मात्रा जरूरत के अनुसार सुलभ हो जाती है वहीं दूसरी ओर वे वर्षा के पानी की स्टोर कर उसे बेकार बहने से रोकते हैं जिनमें प्रचुर मात्रा में कई जरूरी खनिज लवण, साल्ट इत्यादि घुले होते है। जिससे इन वेटलेड्स के आस-पास के भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ जाती है। अतः इस तरह ये वेटलैंड्स पारिस्थितिकी में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यदि हम इनके दूसरे पहलू पर विचार करें तो हम यह पायेगें कि ये वेटलेंड्स अपने आँचल तले जीवन के कई रूपों के पालन पोषण, संरक्षण तथा संवर्धन में भी बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। ये वेट्लैंडस नाना प्रकार की मछलियों के अलावा कई रंग बिरंगे जल कीटों, तितलियों तथा मक्खियों का मुख्य बसेरा होते है तथा सर्दियों में विदेशों से आए प्रवासी परिन्दों की आश्रय स्थली भी होते है। अतः इस बात में तनिक भी अतिश्योक्ति नहीं है कि ये वेटलैंड्स बायोलाजिकल रिद्म को बनाये रखने में एक महत्वपूर्ण घटक साबित होते हैं तथा इनकी उपस्थिति से जीवन के विविध आयामों में एक अलग किस्म की सिम्फनी तथा तारतम्यता क्रिएट होती है।

इस सन्दर्भ में मेरे गृह राज्य बिहार में भी अन्र्तराष्ट्रीय महत्व के कई छोटे-बड़े वेटलेड्स मौजूद है जिनकी पर्याप्त मात्रा में जानकारी के अभाव से ये जनसाधारण के पहुंच के बाहर चले गये है जिसकी वजह से इनकी उचित रख रखाव ठीक तरह से नही हो पाती है आइए हम बिहार के कुछ ऐसे ही वेटलैंड्स पर एक दृष्टिपात करते है जो आजकल की तेज रफ्तार वाली जीवनशैली तथा सरकारी उपेक्षा के दंश के कारण वर्तमान परिदृश्य में नेपथ्य में चले गये है तथा वहीं कुछ ऐसे वेटलैंड्स की भी चर्चा करेगें जो बिहार के मानचित्र में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते है।

प्रवासी पक्षियों का अद्भुत रैन बसेरा है जगतपुर झील

भागलपुर जिला के अन्र्तगत भगलपुर नवगछिया मुख्य मार्ग (एनएच-31) से सटा लगभग 1 वर्ग किलोमीटर में फैला है जगतपुर झील। स्थानीय पक्षियों के अलावा पक्षियों की कई दुर्लभ एवं संकटग्रस्त प्रजातियाँ को यहाँ आसानी से देखा जा सकता है। यह झील गंगा नदी द्वारा एक छोटे से नहर द्वारा जुड़ी है जिसके परिणामस्वरूप इस झील का पानी सालों भर कमोबेश एक सामान ही रहता है। गर्मियों में हालाकि इसका जल स्तर कुछ घट जाता है तथा इसके क्षेत्रफल में भी व्यापक कमी आ जाती है पर वर्षा ऋतु के आगमन होते ही यह झील अपने आप में एक अनोखी झील है। एक तरफ तो घास के हरे-हरे मैदान इसे चारो ओंर से घेरे हुये हैं वही दूसरी तरफ यह जल से प्लावित दलदलों से घिरी हुई है। यूँ तो इस ढील में पक्षियों की पुकार तथा चहचटाट साल भर गूंजती रहती है परन्तु सर्दियों में मुख्यतः नवम्बर माह से लेकर मार्च के अन्त तक रंग बिरंगे मेहमानों तथा स्थानीय पक्षियों का कुदरती बसेरा बन जाता है। सर्दियों के उनमेषकाल शुरू होते ही यह झील पूर्वी बिहार में प्रवासी पक्षियों का एक मुख्य पड़ाव बन जाती है जहाँ शरद ऋतु में लगभग 50 से भी अधिक प्रजातियों के पक्षियों का एक साथ अध्ययन संभव है बर्ड वाचिंग या पक्षी अवलोकन के दृष्टिकोण से यह एक अनुकूल स्थल है। शान्त और संतुलित आहारयुक्त वातावरण तथा अपनी परिष्कृत एवं प्रचुर जैव विविधता के कारण ही यह झील प्रवासी पक्षियों का अस्थाई मसकन बन जाती है। कहने को तो उत्तरी बिहार के लगभग तमाम छोटे-बडे जलाशय शरद ऋतु में प्रवासी पक्षियों की कलरव स्थली बन जाते है पर जगतपुर झील की एक खास विशेषता रही है इसका अपना एक प्राकृतिक परिवेश है जो परिन्दो को बहुत भाता है। अतः यहाँ पक्षियों के झुण्डों को बड़े ही नजदीक से अध्ययन किया जा सकता है। झील के चारों ओर से घिनी घनी झाडि़याँ तथा ऊॅचे-ऊॅचे उगे हुये मनमोहक पुष्पाछादित वृक्षों के झुण्ड एक अलग ही मंजर परिलक्षित करते है तथा परिंदो के छिपने तथा आरामगाह के साधन भी बनते है।

2- विक्रमशिला गैंगेटिक डाल्फिन सेंचुरी

भागलपुर के कहलगांव से लेकर सुल्तानगंज तक के मध्यस्थ स्थित गंगा का अविरल प्रवाह विक्रमशिला गैंगेटिक डाल्फिन सेंचुरी के नाम से सारी दुनिया में प्रसिद्ध है। एक तरफ सुल्तानगंज जहाँ हिन्दुओं की धार्मिक आस्था का मुख्य केन्द्र बिन्दु है। जहाँ सावन के पवित्र महीने में सारी दुनिया से हिन्दू जाति के लोग सुल्तानगंज में उत्तरवाहिणी गंगा में पवित्र स्नान कर यहाँ स्थित बाबा अजगैबीनाथ की पूजा का पत्रि गंगाजल को लेकर देवघर स्थित बाबाधाम की पवित्र यात्रा शुरू करते है वही दूसरी ओर यह स्थान विक्रमशिला गांगेय डाल्फिन सॆंचुरी की प्रवेश द्वार भी है यह सेंचुरी पूरी दुनिया में गांगेय डाल्फिनों की एक मात्र प्रजनन स्थली के रूप में मशहूर है तथा विश्व में मौजूद चार बड़े अभ्यारण्य में से एक है। यहाँ फिलहाल 250 के आस पास डाल्फिनें निवास कर रही है। राष्ट्रीय जल जीव घोषित यह डाल्फिन दुर्लभ मानी जाती है गांगेय डाल्फिन जिन्हें स्थानीय भाषा में ‘‘सोंस‘‘ कहा जाता है सम्पूर्ण दक्षिण दशिया में पायी जाने वाली मीठे पानी की डाल्फिनों की चार प्रजातियों में से एक है। डाल्फिनों की अन्य तीन प्रजातियाँ है- उड़ीसा के महानदी में पायी जाने वाली ईरावली डाल्फिन, सिंधु नदी में पायी जाने वाली इंडस रिवर डाल्फिन तथा चीन की यांग्तजे कयांग नदी में पायी जाने वाली यांग्तजे-क्याँग डाल्फिन। पर बड़ी अफसोस की बात है कि सन 2007 के बाद यांग्तजे-क्याँग डाल्फिनों को देखने की रिपोर्ट आनी बन्द हो गई है ताकि ऐसी आशंका है कि ये अब विलुप्त हो चुकी है तथा साथ ही साथ अन्य मीठे पानी की डाल्फिनों का भी हाल भी कुछ कलहदा नहीं कहा जा सकता है। अतः इन डाल्फिनों के संरक्षण तथा संवर्धन की माली जरूरतों को मददेनजर रखते हुये बिहार सरकार ने सन 1991 में कहलगाँव से लेकर सुल्तानगंज तक की लगभग 50 किमी गंगा के क्षेत्र हर दृष्टि से डाल्फिनों के लिये मुफीद है। अतः इसलिये इस अभयारण्य घोषित किया गया है। यह अभयारण्य अपने आप में अनोखा है। एक तरफ जहाँ इन गांगेस डाल्फिनों को स्वच्छंद कलरव करते हुये देखा जा सकता है वहीं दूसरी शील ऋतु में यह क्षेत्र प्रवासी पक्षियों का एक मुख्य बसेरा बन जाता है। लगभग 100 से अधिक प्रजातियों के परिंदो का यहाँ अध्ययन एवं अवलोकन संभव है। परिंदो में विशेष रूप से कई प्रकार की माईग्रेटरी बतखों जैसे, पिंटेलडक, पोचार्ड, सुर्खाव, मतार्ड, गडबाल (तालिका संलग्न) आदि विशेष रूप से पाये जाते हैं। वही स्थानीय पक्षियों में विसलिंग टील, अधंगा, हेराँन, पनकौओं, डार्टर, किंगफिशर, चीलों इत्यादि की भारी संख्या को यहाँ आसानी से देखा जा सकता है। बात सिर्फ यहीं खत्म नही होती है।

डाल्फिनों तथा पक्षियों के अलावा यहाँ कई तरह की उदबिलावों, कछुओं तथा घडि़यालों का भी यह एक सुरक्षित घर साबित हो रहा है। हर साल सर्दियों में स्थानीय लोगों के अलावा, शोद्यार्थियों, विद्यार्थियों तथा पक्षी-प्रेमियों का भारी जमावड़ा इस अभयारण्य में अध्ययन हेतु नावों पर विचरते हुये देखा जा सकता है। अतः इस बात की कहीं से भी अतिश्योक्ति नहीं होगी कि यह अभयारण्य सम्पूर्ण बिहार के लिये गौरव की प्रतीक है तथा इसकी पहचान स्वरूप है। परन्तु देख की बात है कि कमजोर सरकारी तंत्र, सुरक्षा चूक व जागरूकता के अभाव के कारण विगत चार वर्षो के दौरान इस परिक्षेत्र में कम से कम आधा दर्जन डाल्फिनें फजा की भेंट चढ गर्द है। इस अभयारण्य के डाल्फिनों की मौत वजह अब तक मछुआरों द्वारा लगाये जाने वाले जाल व डाल्फिन को लेकर मछुअरों के बीच मौजूद भ्रांतियों सहित कुछ हद तक गश्ती मे कमी भी रही है। शनद रहे भगतपुर स्थित स्थानीय एनजीओ मंदार नेचर क्लब द्वारा विगत 20 वर्षो से न सिर्फ डाल्फिनों वरन स्थानीय एवं माईग्रेटरी पक्षियों के संरक्षण हेतु विस्तृत कार्यक्रमों का आयोजन हर साल किया जाता रहा है। अतः आशा है आने वाला समय इन मासूम जीवों के संरक्षण में एक सतत हस्ताक्षर सिद्ध होगा।

3- कांवर लेक काँवरताल) बर्ड सेंचुरी

बिहार में स्थित बेगूसराय शहर से 20 किमी उत्तर बेगुसराय-गरहपुर मार्ग में अवस्थित काँवर लेक बर्ड सेंचुरी जिसे स्थानीय भाषा में काँवर ताल कहा जाता है सारे दक्षिण एशिया में मीठे पानी की सबसे बड़ी झील है। 63 वर्ग कि0मी0 तथा 7400 हे0 भूमि में फैली यह झील बिहार सरकार की नाटोईड बर्ड सेंचुरी है। यह झील बड़ी गंडक नदी तथा बागमती नदियों के समपार्शव में स्थित एक चाप झील है। इसकी उपयोगिता तथा विस्तार को गौर करते हुये सन 1986 में इसे प्रोटेक्टेड एरिया घोषित किया गया। सन 1989 में इसे वर्ड सेंचुरी घोषित किया गया तथा सन 2005 में इसे बिहार की एक प्रमुख रामसर साईट घोषित किया गया। काँवर झील के अनुकूल मौसम, पर्याप्त सुरक्षा व प्रचुर मात्रा में आहार की उपलब्धता शीतकाल में असंख्य माईग्रेटरी पक्षियों को आकर्षित करती है। यह एक ऐसा स्थान है जो शीतकाल के दौरान प्रवासी व स्थानीय पक्षियों की गतिविधियों के कलरव तथा क्रीड़ास्थली का प्रमुख केन्द्र बन जाती है।

इस सरोवर का एक अनूठा जलचक्र तथा जीवनचक्र है। ग्रीष्मकाल का संस्पर्श होते ही इस झील की अधिकांश भाग सूखने लगती है तथा इसमें मौजूद जीवन समाप्ति की ओर आ जाती है। वही वर्षाकाल की पटाक्षेप होते ही इस मृतप्राय सरोवर में जिन्दगी एक बार फिर से पुष्पित एवं पल्लवित होनी शुरू हो जाती है। इस झील में विभिन्न स्तरों वाले गहरे पाली, उथले पाली, सतही एवं दलदली किनारों पर जीवन अपने कई रूपों में दृष्टिगोचर होने लगती है। वर्षा में बाह्रा जल प्रणालियों से इसमें जल भराव, अनुकूल तापमान तथा वातावरण की तारतम्यता के कारण झील के आस पास न केवल हरियाली लौटने लगती है वरन तरह-तरह के सूक्ष्मजीवों जलीय वनस्पतियों छोटी-बड़ी मडलियों तथा कीट पतंगों की संख्या भी असामान्य रूप से बढ़ने लगती है। शीलकाल में यह झील प्रवासी पक्षियों की भी एक प्रमुख आरामगाह के रूप में प्रसिद्ध है। कई स्थानीय पक्षियों के अलावा यहाँ वैसे पक्षी भी आसानी से दृष्टिगोचर हो जाते है जो आई0यू0सी0एन0 की संकटग्रस्त सूची में शामिल है। (तालिका संलग्न) पक्षियों की 100 से भी अधिक प्रजातियों के अलावा यहाँ मछलियों की 41 प्रजातियाँ भी पाई जाती है। जिनमें प्रमुख है तिलापिया, मोजम्बिका, ओपियोसिफेलस, लेबियों रोहिता, वेलगो, चन्ना आदि प्रमुख है। सरोवर क्षेत्र में लगभग 50 प्रकार की पृष्ठीय वनस्पतियों की प्रजातियाँ भी मिलती है। जिनमें प्रमुख है प्रोसोफिल जलीफ्लोरा, प्रोसोविस साल्वेडीरा, टेमरिंक्स आदि है। जबकि जलीय वनस्पतियों में हाइड्रिला, साइवेरस, आइर्कोनिया आदि प्रमुख है। सरोवर के पानी में भी लगभग 40 तरह के शैपाल पैदा होते है जो जलीय पक्षियों का प्रमुख भोजन है अथवा इसके बास पास के क्षेत्रों में नीम, शीशम, साल, खिजदी, गुलमोहर, बास आदि के वृक्ष भी बहुतायत में मिलते है जो फिजा में एक अलग किस्म की प्रमाद को जन्म देते हैं।

4- बरौनी रिफाईनरी इकाँलोजिकल पार्क

बिहार में स्थित बेगुसराय शहर से मात्र 8 कि0मी0 दूर स्थित बरौनी रिफाईनरी इकालोजिकल पार्क या (आईओसी पार्क बरौनी) इण्डियन आयल कारपोरेशन (आईसीसी) लिमिटेड द्वारा 1964 में स्थापित मानव निर्मित झीलों का एक समूह है जो शीतकाल में प्रवासी पक्षियों की एक प्रमुख आरामगाह बन जाती है। लगभग 75 एकड़ में फैली तथा मोकामा ताल, कावर झील तथा गंगा नदी के सन्निकट स्थित यह झील बिहार के प्रमुख वेटलैंड्स में से एक है। सनद् रहे कि मोकामा ताल तथा कावर झील बिहार के प्रमुख रामसर साईट तथा इंपोर्टेड बर्ड एरियाज आईबीए साइटों में से एक है। इस झील के चारों ओर मानव द्वारा निर्मित जंगल तथा चारो ओर बड़ी-बड़ी चहारदीवारी से घिरे होने के कारण यह पार्क पूर्णतः सुरक्षित वेटलैंड्स में एक प्रमुख स्थान रखती है तथा यही कारण है कि प्रवासी पक्षी इसकी ओर चुम्बकीय रूप से आकर्षित हो जाते है। पार्क के अन्दर अप्राकृतिक रूप से निर्मित हर्बल गार्डन, जन्तु बिहार, जल बिहार कला बिहार, प्रभात बिहार आदि न सिर्फ पक्षियों की कई किस्मों को आकर्षित करते है वरन इसमें कई स्तनपाई जीवों जैसे लोमड़ी, नेवला, मानीटर लिजार्ड आदि भी प्रमुख रूप से पाये जाते है। पार्क में पाये जाने वाले प्रमुख वृक्ष जैसे अर्जुन, सेमल, पीपल, बबूल, आम आदि वृक्ष पक्षियों को पूर्ण सुरक्षा एवं प्रजनन हेतु मुकम्मल स्थान मुहैया कराते है। पार्क के अन्दर की हरियाली एवं चहूँ ओर पक्षियों का कलरव एक अलग समाँ बयान करती है और इसे देखकर ऐसा लगता है मानो प्रकृति यहां सुकून के गीत गाती है।

उपसंहार

यूँ देखा जाये तो इन प्रमुख वेटलैंड्स के अलावा बिहार में कई और भी छोटे-बड़े वेटलैंड्स हैं जैसे कुरेसवर स्थान, सरैया मान, गोगाविल बर्ड सेंचुरी इत्यादि पर स्थानाभाव के कारण इन सबों का वर्णन एक साथ संभव नही है। हालांकि ये वेटलैंड्स न सिर्फ पक्षियों एवं उसमें मिलने वाले तमाम तरह के जानवरों एवं वनस्पतियों की जीवन रेखा है वरन इनके सानिध्य में निवास करने वाले लोगों की भी जीवन की डोर इनसे जुड़ी है परन्तु इसकी एक दूसरी तल्ख सचाई यह है कि मानवों द्वारा लगातार दोहन करने के फलस्वरूप ये वेटलैंड्स अपनी प्राकृतिक अस्मिता खोते जा रहे है। हर साल प्रवासी पक्षियों तथा मछलियों के अवैध शिकार के कारण ये स्थान हमारे उन मेहमानों की आरामगाह के जगह पवर कब्रगाह बनते जा रहे है। ये इंसानी मजलूम यहीं समाप्त नही होते अपितु कृषि के लिये वृक्षों की अवैध कटाई, सिल्टेशन तथा मवेशियों की बढती संख्या के कारण प्रवासी पक्षियों का इन स्थानों से धीरे-धीरे ही सही परन्तु मोह भंग शुरू हो चुका है और इसका ताजा उदाहरण है विगत कुछ वर्षो से इनकी संख्या में भारी गिरावट का दर्ज होना। पक्षी पर्यावरण के मित्र हैं और इन्हें बचाना हमारा नैतिक कर्तव्य है। इन शरीफ प्राणियों को बचाकर हम पर्यावरण संतुलन में अहम योगदान दे सकते है। पर दुख की बात है कि मानव अपने कुकृत्यों में इतना मगरूर हो गया है कि उसे प्रत्यक्ष के पीछे छिपी जो परोक्ष सच्चाई है उसके प्रति वह आँखे मूँदे बैठा हुआ है। आइये आज हम यह शपथ लें कि हम अपने आस पास स्थित वेटलैंड्स की परित्राण हेतु अपना जी-जान लगा देगें तथा सर्व साधारण में भी यह पैगाम जोशो-खरोस के साथ फैंलायेगें।

संकलन/प्रस्तुति

पंकज कुमार महोबा ।
बुंदेलखंड,उत्तरप्रदेश।

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Post By: pankajbagwan
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