पानी का प्रबन्ध पंचायत करेगी। पहली नजर में यह खबर सराहनीय लगती है। पंचायतों को पानी का प्रबन्धन करने के लिये बड़ी रकम दी जाएगी। 14वें वित्त आयोग की सिफारिश के अनुसार राज्य को जो रकम मिलने वाली है, उसमें से ग्रामीण क्षेत्रों में पानी के प्रबन्धन के लिये आवंटित रकम पंचायतों को दे दी जाएगी।
पानी का मसला लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग के बजाय पंचायती राज विभाग को सौंप दिया जाएगा। पूरा खाका राज्य कैबिनेट को सौंप दिया गया है। लेकिन इस योजना में तालाब और कुओं का कहीं उल्लेख भी नहीं है। नलकूप, मोटरपम्प, पाइपलाइन, जलमीनार, जल-परिशोधन यंत्र इत्यादि के प्रावधान जरूर किये गए हैं। यहीं असली पेंच है जिससे खटका होता है।
यह पानी पर टैक्स लगाने की तैयारी का हिस्सा है। इस टैक्स को वसूलने का जिम्मा पंचायतों को दिया जाएगा। हर ग्रामीण परिवार को एक रुपया प्रतिदिन अर्थात 30 रुपए प्रतिमाह की दर से पानी टैक्स देना होगा। पंचायती राज विभाग ने पानी टैक्स की दरें निर्धारित की है। यह काम मुख्यमंत्री ग्रामीण पेयजल सुनिश्चय योजना के कार्यान्वयन में हुआ है। पंचायती राज विभाग की योजना राज्य कैबिनेट को सौंप दी गई लेना है।
इस योजना पर अन्तिम निर्णय राज्य कैबिनेट को लेना है। पंचायती राज विभाग के सूत्रों के हवाले से खबरें छपी हैं कि पंचायतों को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने के मकसद से उन्हें पानी-टैक्स वसूलने का जिम्मा दिया जाना है। पहले चरण में यह योजना पाँच हजार पंचायतों में लागू की जाएगी। राज्य में आठ हजार से अधिक पंचायतें हैं।
योजना के अनुसार प्रत्येक ग्रामीण परिवार को प्रति व्यक्ति औसतन 70 लीटर पानी प्रति व्यक्ति के हिसाब से पानी की आपूर्ति की जाएगी। प्रत्येक वार्ड को इकाई मानकर योजना बनाई जाएगी। इस हिसाब से प्रत्येक वार्ड में औसतन 63 हजार लीटर पानी की प्रतिदिन आपूर्ति की जाएगी।
‘हर घर को नल का जल’ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सात बहुचर्चित निश्चयों में शामिल है। इन निश्चयों के कार्यान्वयन में सरकार के विभिन्न विभाग जुटे हैं। नल-जल योजना को साकार करने में लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग ने सभी बसावटों में समुदाय आधारित जलापूर्ति योजनाओं के कार्यान्वयन का मन बनाया।
राजधानी पटना से सटे फुलवारी शरीफ में एक संस्था द्वारा संचालित पेयजल योजना के तर्ज पर पूरे राज्य के लिये योजना बनाने की बात हुई। राज्य में एक लाख दस हजार 140 बसावट हैं। पीएचईडी मानता है कि लगभग चार हजार बसावटों का भूजल काफी प्रदूषित है।
उन बसावटों में जलदूत और वाटर एटीएम जैसी योजनाएँ लागू करने के बारे में सोचा जा रहा है। लेकिन अन्य बसावटों में नलकूपों के जरिए पानी देने का विचार है। बताया यह भी जा रहा है कि इस योजना के कार्यान्वयन से हर बसावट के एक दो व्यक्ति को नलकूप संचालन आदि कामों में रोजगार भी मिल जाएगा।
उल्लेखनीय है कि बिहार में भूजल-दोहन नियंत्रित करने के मकसद से कानून बना है। इस कानून के अनुसार नलकूप लगाने के लिये अनुमति लेनी होती है। पर जब सरकारी स्तर पर धड़ल्ले से नलकूप लगाए जाते हों तो इस कानून का कोई मतलब नहीं रह जाता। इतना ही नहीं, बोतलबन्द पानी के कारोबारी और शीतलपेय कम्पनियों द्वारा भूजल का दोहन धड़ल्ले से किया जाता है। उन कम्पनियों ने नलकूप लगाने की अनुमति लेने का प्रयास किया हो, ऐसा सूना भी नहीं गया। भूजल दोहन नियंत्रित करने का कानून महज फाइलों की शोभा बढ़ा रहा है।
अभी राजधानी पटना में भी ‘हर घर को नल का जल’ उपलब्ध नहीं है। यहाँ 18 जगहों पर जल मीनार बनाने की योजना है। नए नलकूप लगाने के लिये और पाइपलाइन बिछाया जाएगा। यह लगभग 172 करोड़ रुपए की योजना है। दूसरे चरण में 54 जल मीनार बनाने का प्रस्ताव भी नगर विकास विभाग ने आगे बढ़ाया है। यह 515 करोड़ की योजना है। सारी योजनाएँ भूजल आधारित हैं। वर्षाजल के उपयोग या पास से प्रवाहित गंगा नदी के जल के उपयोग की कोई योजना प्रस्ताव की शक्ल में भी सामने नहीं।
इस वर्ष मार्च-अप्रैल में ही पटना समेत पूरे प्रदेश में पेयजल की जैसी किल्लत का सामना हुआ और भूजल स्तर में गिरावट के मामले सामने आये, भूजल के इस्तेमाल से बचने की जरूरत रेखांकित हुई। पर सरकारी स्तर पर इस ताजा अनुभव से कोई सीख नहीं ली गई। भूजल आधारित योजनाओं को ही आगे बढ़ाया जा रहा है।
चापाकलों की जगह नलकूप और पाइप लाइनें लेने जा रही हैं। ऐसी स्थिति में आम लोग की पेयजल समस्या घटने के बजाय कालान्तर में अधिक विकराल होगी, इसकी समझ अभी कहीं नहीं दिखती। पेयजल की किल्लत और भूजल स्तर में गिरावट की संकटपूर्ण स्थिति को देखते हुए नगर विकास विभाग के प्रधान सचिव चैतन्य प्रसाद ने प्रदेश के सभी नगर निकायों के कार्यकारी अधिकारी को सचेत किया था।
हर जगह मुख्यालय पर नियंत्रण कक्ष बनाने और जरूरत के अनुसार आपातकालीन इन्तजाम करने के निर्देश दिये गए थे। नलकूप व चापाकलों के सूखने पर नए अधिक गहरे नलकूप या चापाकल लगाने के अलावा टैंकर से पानी भेजने के इन्तजाम करने पड़े। फिर कई जगह हाहाकार की स्थिति रही। इस साल दक्षिण बिहार के सूखग्रस्त जिलों के साथ-साथ उत्तर बिहार के बाढ़ ग्रस्त कहलाने वाले जिलों में भी पेयजल की किल्लत होने से स्थिति विकट हो गई थी।
पटना में हर घर नल का जल पहुँचाने में वर्तमान तैयारियों के आधार पर करीब साढ़े तीन वर्ष लगेंगे। यह बात नगर निगम की जल शाखा की एक रिपोर्ट से सामने आई है। नगर निगम क्षेत्र में दो लाख 94 हजार 640 घर या होल्डिंग हैं। इनमें 60 प्रतिशत हिस्से तक नगर निगम की मौजूदा पाइप लाइनों का विस्तार है। बाकी क्षेत्रों में पाइप लाइन बिछाने, पुरानी जर्जर पाइप लाइनों को बदलने और सभी घरों को नल से जोड़ने में अभी साढ़े तीन साल लगने का अनुमान किया गया है।
पटना के अलावा 32 शहरों में हर जल नल से जल योजना अभी चल रही है जिसका जिम्मा बिहार राज्य जल परिषद को दिया गया है। परिषद के एमडी शीर्षत कल्पित के अनुसार इन योजनाओं को 18 महीने में पूरा कर लिया जाएगा। केन्द्र सरकार की अमृत भारत योजना के अन्तर्गत जल मीनार बनाकर उसे पाइप लाइनों से जोड़ा जाएगा।
यह लगभग 370 करोड़ की योजना है। ‘हर घर नल का जल’ योजना पर अगले पाँच वर्षों में 7400 करोड़ रुपए खर्च किये जाएँगे। राज्य कैबिनेट ने इसकी मंजूरी दे दी है। पहले चरण में आयरन, फ्लोराइड और आर्सेनिक प्रभावित लगभग 21 हजार टोलों में पाइप से शुद्ध जल पहुँचाना सुनिश्चित किया जाएगा।
उल्लेखनीय है कि 14वें वित्त आयोग की अनुशंसा के अनुसार बिहार की पंचायतों को बड़ी राशि मिलने वाली है। उसका एक बड़ा हिस्सा हर घर नल का जल योजना पर खर्च करने की योजना है। इसकी कार्ययोजना बनाकर पंचायती राज विभाग ने मुख्यमंत्री को सौंप दी है। कार्य योजना के मुताबिक पानी का प्रबन्ध करने में प्रत्येक पंचायत में 47 लाख से 65 लाख के बीच खर्च होगा।
नल जल योजना के लिये पहले से चल रही मुख्यमंत्री चापाकल योजना को स्थगित कर दिया गया है। इसके बारे में स्पष्टीकरण देते हुए मुख्यमंत्री ने विधानपरिषद में स्वयं कहा कि नई योजना से पाइप का कारोबार बढ़ेगा। यह सही भी है। वर्षाजल संचयन और भूजल के साथ उसका सम्यक उपयोग के लिहाज से तालाब और कुओं का उपयोग अधिक लाभप्रद होता। पर तालाब बनवाना और पुराने तालाबों का पुनरुद्धार कराना सरकारी रस्म अदायगी का हिस्सा भर है।
मुख्य योजनाओं का हिस्सा कभी नहीं बनी। उनकी लगातार उपेक्षा होती रही है। वैसे भी तालाबों की चर्चा मत्स्यपालन के लिहाज से होती है, जल संग्रहण, संरक्षण और संवर्धन के लिहाज से नहीं। इस प्रकार हर घर नल से जल योजना से पाइप व दूसरे औजार बनाने वाली कम्पनियों का कारोबार चमकेगा, आम जनता की जल समस्या पहले से बढ़ेगी ही। सामाजिक कार्यकर्ता रंजीव कुमार के इस सन्देह को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता।
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