“एक महीना बहुत तकलीफ में गुजरा। ऊपरका (भगवान) के भरोसे बच गए, यही बहुत है।”
43 साल के प्रकाश मुखिया जब ये वाक्य कहते हैं, तो उनकी आवाज में दर्द साफ महसूस किया जा सकता है। वह एक महीने से ज्यादा वक्त तक बाढ़ में अपनी फूस की झोपड़ी में फंसे रहे। अब जाकर पानी उतरा है, तो घर में खाना बनना शुरू हुआ है।
प्रकाश इंडिया वाटर पोर्टल के साथ बातचीत में कहते हैं, “4 जुलाई से ही बाढ़ का पानी गांव में आने लगा था। धीरे-धीरे पानी की रफ्तार तेज हो गई और घरों में घुटना भर पानी भर गया।”
प्रकाश का घर चूंकि फूस का था, तो हर तरफ से पानी घर में घुसा। आसपास कोई राहत शिविर बना नहीं था और जिस रास्ते से प्रकाश सुरक्षित स्थान पर पहुंच सकते थे, उस पर भी पानी भरा हुआ था, तो उन्होंने घर में ही रहना ठीक समझा.
वह बताते हैं, “मेरे फूस के ही तीन कमरे हैं। हमारे परिवार में14 लोग हैं। बाढ़ का पानी आया, तो तीनों घरों में बांस की मदद से मचान बनाया और उसी पर हमलोग रहने लगे। मचान पर ही गैस सिलिंडर और चूल्हा रख लिया।”
अगले एक महीने तक मचान ही उनका ठिकाना बना रहा। प्रकाश सहरसा जिले के महिषी ब्लॉक के टिकुलवा गांव में रहते हैं। सहरसा जिले के एक अधिकारी ने कहा, “जिले के 4 ब्लॉक की 33 पंचायतें बाढ़ की चपेट में हैं। कुल 3,36,307 लोग बाढ़ से प्रभावित हुए हैं।” लेकिन, हैरानी की बात है कि यहां एक भी राहत शिविर नहीं है और न ही कोई सामुदायिक किचेन ही चल रहा है ताकि लोगों को खाना मिल सके। नतीजतन, प्रकाश जैसे लोगों को किसी तरह अपने घरों में ही रहने को विवश होना पड़ा। जिन लोगों के घरों के पास पक्का और छत वाला मकान था, उन लोगों ने छत पर शरण ली।
प्रकाश मूल रूप से खेतिहर हैं। उनके पास 10-15 कट्ठा जमीन है, जिस पर मक्के की खेती करते हैं।
“चावल और मक्का भूनकर खाते थे”
लगभग एक महीने तक प्रकाश को खाने के लाले रहे। उन्होंने कहा, “घर में चावल और मक्का था। कभी चावल को भूनकर तो कभी मक्के को भूनकर हमलोग खाते थे। घर में आटा था नहीं कि रोटी बनती। हां, कभी-कभार चावल से भात बनाते थे, लेकिन सब्जी नहीं थी क्योंकि बाजार तक जाने का रास्ता पानी से बहुत भरा हुआ था। इसलिए भात में नमक डालकर और माड़ (भात का पानी) मिलाकर हमलोग खाते थे।”
“हमलोगों ने एक महीने तक ऐसे ही जिंदगी बिताई है। अब पानी कुछ कम हुआ है, तो ठीक से खाना बन रहा है। लेकिन इतने दिनों में एक बार भी कोई सरकारी अधिकारी हमारे पास नहीं आया। सरकारी मदद की बात तो छोड़ ही दीजिए”, प्रकाश मुखिया ने बताया।
टिकुलवा गांव झारा पंचायत के अंतर्गत आता है। पंचायत के मुखिया मनोज राम ने इंडिया वाटर पोर्टल को बताया, “हमारी पंचायत में लगभग 2000 घर हैं, जिनमें से 600 से ज्यादा घरों में बाढ़ का पानी घुस आया था। लगभग एक महीने तक पानी चढ़ता-उतरता रहा। अब जाकर घरों से पानी निकला है। लेकिन गांव में पानी अब भी है।”
सहरसा बाढ़ प्रवण जिला है क्योंकि कोसी नदी सहरसा से होकर गुजरती है। कोसी हर साल उत्तर बिहार के एक बड़े हिस्से बाढ़ का कारण बनती है। इस बार सुपौल, खगड़िया, मधुबनी और सहरसा में कोसी के कारण बाढ़ आई है। लेकिन, स्थानीय लोगों का कहना है कि इस बार बाढ़ की प्रकृति कुछ अलग किस्म की है।
इस बार ज्यादा दिनों तक टिका रहा बाढ़ का पानी
टिकुलवा के स्थानीय निवासी 50 साल के नइमुद्दीन ने इंडिया वाटर पोर्टल को बताया, “हमारे गांव बाढ़ यों तो हर साल ही आ जाती थी, लेकिन हर बार 2 से 4 दिनों तक ही बाढ़ का पानी ठहरता था। मेरी जिंदगी में मैं पहली बार देख रहा हूं कि एक महीने तक बाढ़ का पानी गांव में ठहरा है।”
नइमुद्दीन कहते हैं, “इस बार नेपाल की तरफ बेतहाशा बारिश हुई है और उत्तरी बिहार में भी खूब बारिश हुई, जिस कारण बाढ़ ने ज्यादा असर डाला है।”
“सड़क पर पानी भर जाने और सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिलने के कारण हमलोग एक महीने से ज्यादा वक्त तक घरों में कैद में रहे। घर में खाने पीने का जो सामान बचा हुआ था, उसी से किसी तरह गुजारा किया”, मोइनुद्दीन बताते हैं।
मुखिया मनोज राम ने बताया, “बाढ़ की जानकारी उन्होंने ब्लॉक के सीओ को दी थी, लेकिन सीओ ने हमसे दो टूक शब्दों में कहा कि पैसा नहीं है, इसलिए मदद नहीं पहुंचाई जा सकती है। बाढ़ से जूझते एक महीने से ज्यादा वक्त निकल चुका है, लेकिन अब भी सरकार से एक रुपए की मदद नहीं पहुंची है। बाढ़ पीड़ितों के अकाउंट में 6 हजार रुपए देने की बात है, लेकिन वो पैसा भी अभी तक नहीं मिला है।”
20 अगस्त तक बिहार में बाढ़ से 81.79 लाख लोग प्रभावित हुए हैं और 27 लोगों की मौत हुए हैं। बाढ़ के कारण अब तक 86 मवेशी मारे जा चुके हैं। बाढ़ से प्रभावित 81.79 लाख लोगों में से अब तक सरकार महज 5.50 लाख लोगों को ही सुरक्षित निकाल सकी है, लेकिन ये लोग अभी कहां हैं, इसका कोई आंकड़ा सरकार के पास नहीं है। आपदा प्रबंधन विभाग के अधिकारियों ने बताया कि समस्तीपुर में 5 और खगड़िया में एक राहत शिविर चल रहे हैं जिनमें 5186 लोग ठहरे हुए हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि बाकी 5.45 लाख लोग कहां ठहरे हुए हैं।
इंडिया वाटर पोर्टल ने अपनी पिछली रपट में बताया था कि राहत शिविर नहीं होने और सरकारी मदद नहीं मिलने से लोग हाईवे के किनारे और तटबंधों पर तिरपाल व पॉलीथिन डालकर रहने को विवश हैं। ये हाल कमोबेश सभी बाढ़ प्रभावित जिलों का है।
गंगा नदी के जलस्तर में बेतहाशा इजाफा
जून के मध्य में मॉनसून की दस्तक के बाद से कोसी, गंडक, बूढ़ी गंडक, बागमती समेत अन्य नदियों की तरह गंगा नदी के जलस्तर में भी भारी इजाफा देखा जा रहा है।
आपदा प्रबंधन विभाग के अधिकारियों ने बताया कि मध्यप्रदेश में वनसागर बराज से सोन नदी में 1.25 लाख क्यूसेक पानी छोड़ा गया है, जो जल्द ही गंगा नदी के रास्ते पटना तक पहुंच जाएगा।
उधर, गंगा का जलस्तर बढ़ने से दियारा और निचले इलाके में पानी फैल गया है। गंगा नदी का जलस्तर पटना के गांधी घाट पर 48.60 मीटर दर्ज किया गया है, जो खतरे के निशान से 11 सेंटीमीटर ऊपर है। इसी तरह हथिदह गॉज स्टेशन पर गंगा का जलस्तर खतरे के निशान से 21 सेंटीमीटर और भागलपुर के कहलगांव में 18 सेंटीमीट ऊपर दर्ज किया गया है।
बिहार के जलसंसाधन विभाग के मंत्री संजय झा ने पटना के गांधी घाट व अन्य घाटों का दौरा किया और विभाग के अधिकारियों के साथ बैठक कर तैयारियों का जायजा लिया। हालांकि, उन्होंने इससे पटना में बाढ़ आने की आशंका को खारिज किया है।
दूसरी तरफ, उत्तरी बिहार की नदियों के जलस्तर में सुधार के कोई संकेत फिलहाल नजर नहीं आ रहे हैं, जिससे बाढ़ की स्थिति और भी बिगड़ने की आशंका है। आपदा प्रबंधन विभाग के अधिकारियों ने बताया कि बागमती, बूढ़ी गंडक, घाघरा, गंडक आदि नदियों का जलस्तर लगातार बढ़ रहा है।
उधर, कटिहार में अलग अलग जगहों में दो नावें डूब गईं। सेमापुर में गंगा नदी की सहायक नदी कुंडी धार में बुधवार को 12 लोगों भरी नाव डूब गई। इस वारदात में बाकी लोग तो तैरकर निकलने में कामयाब रहे, लेकिन तीन बच्चों का अब तक नहीं चल सका है। दूसरी घटना महानंदा नदी में हुई, जहां 36 लोगों को लेकर जा रही नाव डूब गई। इस नाव में सवार सभी लोग सुरक्षित निकल गए, लेकिन एक लड़की का पता नहीं चल पा रहा है। बचाव कार्य के लिए एनडीआरएफ की टीम लगाई गई है।
मूल आलेख हिंदी में उमेश कुमार राय
हिंदी से अंग्रेजी अनुवाद स्वाति बंसल
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