भानपुर खंती मामले में भोपाल नगर निगम को एनजीटी की फटकार, कहा दो सप्ताह के अन्दर सभी स्थानीय जलस्रोत सील कर मुहैया कराए स्वच्छ पेयजल। शहर के कचरे के कारण जहरीला हो चुका है डेढ़ किमी दायरे का पानी
राष्ट्रीय हरित पंचाट (एनजीटी) ने पिछले दिनों भोपाल नगर निगम को आदेश दिया कि वह भानपुर खंती क्षेत्र से डेढ़ किलोमीटर के दायरे में मौजूद सभी बोरवेल और हैण्डपम्प की बिजली आपूर्ति खत्म करे ताकि कोई उनसे पानी न ले सके। निगम को इन सभी जगहों पर ऐसे नोटिस लगाने का आदेश भी दिया गया जिन पर लिखा हो कि यह पानी प्रदूषित है और पीने के लायक नहीं है। निगम को यह सारा काम 14 दिन के भीतर करना होगा।
भानपुर खंती राजधानी भोपाल शहर से लगा वह इलाका है जिसका इस्तेमाल नगर निगम शहर का कचरा ठिकाने लगाने के लिये करता है। एक अनुमान के मुताबिक निगम हर रोज यहाँ तकरीबन 600 टन कचरा ठिकाने लगाता है। इससे सटे हुए ढेर सारे रिहाइशी इलाके हैं। रियल एस्टेट बाजार में आई तेजी के बाद यहाँ बहुत बड़ी संख्या में फ्लैट और टाउनशिप भी बनकर तैयार हैं जिससे जोखिम लगातार बढ़ता जा रहा है।
एक अनुमान के मुताबिक इस लैंडफिल एरिया के कारण करीब एक से डेढ़ लाख लोग रोज प्रभावित होते हैं। सरकार ने तकनीकी तौर पर भले ही इस इलाके के लिये सुरक्षित पेयजल मुहैया कराने का दावा किया हो लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही कहती है। यही वजह है कि एनजीटी ने भी तत्काल प्रभाव से इस इलाके के बोरवेल और हैण्डपम्प सील करने तथा स्थानीय लोगों को सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराने की बात कही है।
भानपुर खंती के आसपास से गुजरते हुए मुँह पर कपड़ा बाँधे बिना साँस लेना भी मुश्किल है। ऐसे में सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि यहाँ पीने के पानी की क्या स्थिति होगी? इससे पहले गत 5 अप्रैल को भानपुर के भूजल की गुणवत्ता की जाँच करने के बाद पीएचई विभाग और नगर निगम अपनी रिपोर्ट एनजीटी की सौंपी थी। रिपोर्ट में इस लैंडफिल एरिया से डेढ़ किलोमीटर के दायरे में मौजूद जलस्रोतों की गुणवत्ता की पूरी जानकारी थी।
रिपोर्ट में कहा गया था कि कोलीफॉर्म बैक्टीरिया जिसकी मात्रा प्रति 100 एमएल पानी में शून्य होनी चाहिए, वह प्रति 100 एमएल 2400 थी। इसके अलावा पानी में तमाम हानिकारक रसायन होने की बात कही गई जो कैंसर जैसी बीमारी की वजह भी बन सकते हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि भानपुर खंती के आसपास एक बड़े इलाके में पानी की दशा नालियों से भी गई गुजरी हो चुकी है लेकिन वे इसका इस्तेमाल करने के लिये मजबूर हैं।
यद्यपि भोपाल नगर निगम का पक्ष रखने आये अधिकारी सन्तोष गुप्ता ने कहा कि अब लोगों को बोर और हैण्डपम्प का पानी इस्तेमाल नहीं करने दिया जा रहा है और उनको नर्मदा का साफ पानी पीने के लिये मुहैया कराया जा रहा है। लेकिन इस मामले के याचिकाकर्ता सुभाष सी पांडेय ने दावा किया कि लोग अभी भी वही गन्दला पानी पीने को मजबूर हैं। स्थानीय लोग भी इस बात की पुष्टि करते हैं। खानपुर निवासी सुभाष रजक कहते हैं कि नर्मदा लाइन बिछाई जरूर गई है लेकिन उसमें कभी-कभी ही पानी आता है।
दोनों पक्षों की बात सुनने के बाद न्यायमूर्ति दलीप सिंह और विशेषज्ञ सदस्य एसएस गबरियाल ने भोपाल नगर निगम को आदेश दिया वह तत्काल प्रभाव से इस इलाके में पानी की आपूर्ति रोके और एक रिपोर्ट पेश करके बताए कि भानपुर के लोगों को प्रदूषित पेयजल का प्रयोग करने से रोकने के लिये क्या इन्तजामात किये जा रहे हैं?
याचिकाकर्ता पर्यावरणविद सुभाष सी पांडेय कहते हैं कि खुद भोपाल नगर निगम और पीएचई विभाग की रिपोर्ट में यह माना जा चुका है कि उक्त इलाके के पानी में न केवल हानिकारक बैक्टीरिया सामान्य से 2400 गुना ज्यादा है बल्कि लोहा, सीसा, कैल्शियम, मैगनीशियम आदि अन्य तत्त्व भी बहुत अधिक मात्रा में हैं जो कैंसर जैसी बीमारी के अलावा अन्य कई स्वास्थ्यगत समस्याएँ पैदा कर सकते हैं। लेकिन इसके बावजूद निगम इस झूठ पर अड़ा हुआ है कि वहाँ पीने का साफ पानी मुहैया कराया जा रहा है।
अगर यह मान भी लिया जाये कि निगम कुछ घरों में साफ पानी उपलब्ध करा रहा है, हालांकि ऐसा है नहीं तो भी उस इलाके में बहुत अधिक संख्या में होटल, रेस्तरां और वाणिज्यिक परिसर भी हैं जहाँ पानी की आपूर्ति की कोई व्यवस्था नहीं है। जाहिर है वे इसी विषाक्त पानी पर निर्भर हैं।
बहरहाल, एनजीटी के आदेश के बाद अब लग रहा है हालात में कुछ सुधार देखने को मिलेगा।
नियम-कायदों का मजाक है भानपुर खंती
भानपुर खंती मामले में एनजीटी के समक्ष याचिका लगाने वाले पर्यावरणविद सुभाष सी पांडेय से पूजा सिंह द्वारा की गई बातचीत पर आधारित साक्षात्कार
आपको क्यों लगा कि इस मामले को एनजीटी के समक्ष ले जाना चाहिए?
यह 2013 की बात है मैं किसी काम से वहाँ से निकल रहा था। मैं कार में बैठा था और इसके बावजूद बदबू के मारे साँस लेना मुश्किल हो रहा था। मैंने गाड़ी रुकवाई और इतना अधिक कचरा देखकर हैरान हो गया। पूछताछ में लोगों ने बताया कि पूरे शहर की गन्दगी पिछले 40-50 सालों से निगम यहीं फेंक रहा है। बातों-बातों में मेरे एक परिचित ने बताया कि हम तो ट्रेन में आते वक्त सोते रहते हैं, खंती आते ही बदबू से खुद-ब-खुद नींद खुल जाती है। पता चल जाता है कि भोपाल आने वाला है। यह बात मेरे लिये शर्मनाक थी। शहर की पहचान एक बदबूदार खंती से बन रही थी। इस बात ने मुझे प्रेरित किया।
आपने किस तरह शुरुआत की?
मैंने तमाम आरटीआई लगाई और अपने स्तर पर जानकारी जुटाई तो मुझे पता चला कि यह सब अवैध और अनधिकृत है। पूरी तरह छानबीन करने के बाद ही मैंने एनजीटी के समक्ष याचिका दायर की कि इस खंती को बन्द किया जाये क्योंकि यह स्थानीय लोगों के स्वास्थ्य के लिये बहुत बड़ा खतरा बनकर उभर रही थी।
तो क्या इसके स्वास्थ्यगत खतरे प्रमाणित भी हुए हैं? यानी इसके उदाहरण हैं हमारे बीच?
जी हाँ, इससे निकलने वाली घातक गैसों का आँकड़ा मेरे पास है। साथ ही इसकी वजह से प्रभावित होने वाले लोगों को मैं अदालत में प्रस्तुत कर चुका हूँ। उन लोगों को दमा, त्वचा की बीमारियाँ तथा तमाम अज्ञात बीमारियाँ भी उनको हो चुकी हैं जिनको अभी पहचाना जाना बाकी है। मैं स्वयं वैज्ञानिक हूँ इसलिये इनके तथ्यात्मक होने में मुझे कोई सन्देह नहीं है।
इस तरह के लैंडफिल एरिया या खंती बनाने के क्या मानक हैं?
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड भारत सरकार के पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के अधीन आता है। इस बोर्ड ने नगरों के ठोस कचरों के निपटान के लिये दिशा-निर्देश तैयार किये हैं। इनको लैंडफिल साइट कहते हैं। चूँकि यह बहुत खतरनाक कचरा है इसलिये उन्होंने इसके निपटारे के लिये जमीन चयन तक का ब्यौरा दिया है कि जमीन चुनते समय क्या सावधानियाँ बरती जानी चाहिए।
भानपुर खंती में क्या प्रशासनिक चूक आप देखते हैं?
यह जगह इतनी दुर्भाग्यशाली है कि यहाँ सारी चूक इकट्ठी हो गईं। जमीन चयन में कोई सावधानी नहीं बरती गई। यह नहीं देखा गया कि भविष्य में यह जगह आबाद होगी या नहीं। यह नहीं सुनिश्चित किया गया कि रसायनों और कचरे का रिसाव जमीन में न हो। नतीजतन 500-700 फीट नीचे भी पानी बुरी तरह संक्रमित हो चुका है। यह अब कई पीढ़ियों तक यूँ ही प्रदूषित रहेगा। कचरा फेंकने के पहले कोई अध्ययन नहीं किया गया। मृत जानवरों को यूँ ही फेंक दिया गया। कचरा ज्यादा होने पर उसे निपटाने के लिये जानबूझकर आग लगा दी गई जो अभी तक सुलग रही है। इससे बड़े पैमाने पर वायु प्रदूषण भी फैल रहा है। नगरनिगम वहाँ आग लगाता है ताकि कचरा कम हो जाये। वहीं कबाड़ी वहाँ आग लगाते हैं ताकि प्लास्टिक गलाकर धातु बटोरी जा सके।
खंती से प्रमुख तौर पर क्या नुकसान हुए?
देखिए खंती की वजह से पहले तो वहाँ जमीन की उर्वरा शक्ति और पानी दोनों बुरी तरह प्रदूषित हुए। पानी विषाक्त हुआ और आसपास की कृषि भूमि पर होने वाला अन्न भी। मानो इतना ही काफी नहीं था कि आसपास के तमाम इलाके में कॉलोनियाँ काट दी गईं जिनमें बड़ी संख्या में लोग रह रहे हैं। ये सभी लोग अपना भविष्य दाँव पर लगा चुके हैं।
Keywords
bhopal municipal corporation in hindi, bhopal municipal corporation ward list in hindi, bhopal municipal corporation tenders in hindi, bhopal municipal corporation map in hindi, bhopal development authority in hindi, bhopal municipal corporation bhopal madhya pradesh in hindi, bhopal municipal corporation recruitment 2016 in hindi, bhopal municipal corporation water supply in hindi, shahpura lake bhopal wikipedia in hindi, bhopal disaster in hindi, bhopal air pollution in hindi, bhanpur bhopal water pollution in hindi, bhanpur khanti bhopal water pollution in hindi, bhopal city in hindi, ngt bhopal contact no in hindi, ngt bhopal address in hindi, national green tribunal central zonal bench bhopal in hindi, ngt bhopal daily order in hindi, national green tribunal daily cause list in hindi, ngt bhopal internship in hindi, ngt bhopal office address in hindi, ngt bhopal news in hindi, national green tribunal act 2010 bare act in hindi, salient features of national green tribunal act 2010 in hindi, national green tribunal act 2010 hindi pdf, national green tribunal act summary in hindi, national green tribunal act 2015 in hindi, national green tribunal act 2010 ppt in hindi, national green tribunal act 2010 challenged in hindi, national green tribunal cause list in hindi, writer pooja singh in hindi, pooja singh in hindi pooja singh story in hindi, pooja singh story on HWP in hindi.
/articles/baiemasai-kao-enajaitai-kai-jhaada