मानव की अनदेखी से जल, हवा व धरती सब प्रदूषित हो रहे हैं। बोकारो की उत्तर दिशा में सीसीएल की खदान हैं। यहाँ के अधिसंख्य लोग दमा के मरीज हैं, क्योंकि यहाँ वायु प्रदूषण है। यहाँ नदी में स्लरी डाली जाती है। शहरों का गन्दा जल नदी में प्रवाहित किया जाता है। इससे नदी का जल जहरीला होता जा रहा है। वन एवं वन्य प्राणियों के महत्त्व और उनकी सुरक्षा के प्रति चिन्ता को सिर्फ समाज के तथाकथित उच्च वर्ग के अंग्रेजीदां तबकों तक सीमित रखकर हम अपनी इन अमूल्य धरोहरों को बचा नहीं सकते। इनकी रक्षा तो वास्तव में उन्हीं आमलोगों को करनी है, जो जंगलों में और उसके आस-पास रह रहे हैं। उन्हें उनकी भाषा में बुनियादी बातें मनोरंजक तरीके से बतानी होंगी। तभी हम उनसे वन एवं वन्यप्राणियों के संरक्षण के संदर्भ में सकारात्मक व्यवहार और सहयोग की आशा कर सकते हैं।
हमारे वनकर्मियों का सीधा सम्पर्क ग्रामीणों से रहता है। उनकी भाषा में और सरल तरीके से यह बताए जाने की आवश्यकता है कि उन्हें वनों और वन्यप्राणियों की सुरक्षा करनी है। वनकर्मियों को अपने काम में अपनी आत्मा की शक्ति लगाने के साथ भावनात्मक रूप से जुड़ने की जरूरत है। जंगल को समझना हो, तो पदयात्राएँ करनी होंगी। सड़क मार्ग से गाड़ियों में बैठकर घूम आने से जंगल को देखा तो जा सकता है, परन्तु समझा नहीं जा सकता है।
पर्यावरण रक्षा के नाम पर बड़े पैमाने पर पाखंड: इस सच को नकारा नहीं जा सकता कि पर्यावरण रक्षा के नाम पर बड़े पैमाने पर पाखंड और दुरभिसंधियों का बोलबाला अनेक स्तरों पर है। इन पाखंडों के संदर्भ में भी सही जानकारी आम लोगों तक अवश्य पहुँचनी चाहिए, ताकि वे गलत और सही की पहचान करने में सक्षम हो सकें और उन्हें कोई गलत बातों में फँसाकर ठग न सके। पर्यावरण प्रदूषण से मुक्ति अगली पीढ़ी के लिये आवश्यक है।
विकास की अन्धी दौड़ में मानव बीमार पीढ़ी खड़ा कर रहा है। अगर प्रदूषण का दौर नहीं रोका गया तो विध्वंश निश्चित है। पृथ्वी पर बहुत सारी प्रजातियाँ आईं, यहाँ लाखों वर्ष रहीं और बाद में विलुप्त हो गईं। अगर मानव ने प्रदूषण पर काबू नहीं पाया तो इसका भी अस्तित्व समाप्त हो जाएगा।
जल, हवा व धरती सब प्रदूषित: मानव की अनदेखी से जल, हवा व धरती सब प्रदूषित हो रहे हैं। बोकारो की उत्तर दिशा में सीसीएल की खदान हैं। यहाँ के अधिसंख्य लोग दमा के मरीज हैं, क्योंकि यहाँ वायु प्रदूषण है। यहाँ नदी में स्लरी डाली जाती है। शहरों का गन्दा जल नदी में प्रवाहित किया जाता है। इससे नदी का जल जहरीला होता जा रहा है। साथ ही नदी के अस्तित्व पर संकट के बादल छा गए हैं। भूमि में कचरा को डम्प किया जा रहा है। इससे भूमि प्रदूषित हो रही है। साथ ही भूमिगत जल के प्रदूषित होने का खतरा बढ़ गया है। प्रदूषित जल का व्यवहार करने के कारण लोग बीमार पड़ जाते हैं। प्रदूषण की मार झेल रहा मानव शारीरिक व मानसिक रूप से कमजोर होता जा रहा है।
पर्यावरण प्रदूषण को दूर करना ही प्राथमिकता होनी चाहिए। हास्यास्पद है कि जिस राज्य के 29.6 फीसदी भूभाग पर वन हों, वहाँ वन विभाग में कर्मचारियों, अफसरों का टोटा है। आइएफएस से लेकर फॉरेस्ट गॉर्ड तक के कई पद खाली हैं। ऐसे में जिस विभाग पर वनों के संरक्षण और प्रबंधन की जिम्मेदारी है, वह अपने काम को कितने प्रभावी तरीके से अन्जाम देता होगा, इसका अन्दाजा लगाया जा सकता है। इस कारण विभागीय कर्मचारियों-अधिकारियों पर वर्कलोड काफी है और काम प्रभावित हो रहा है। यही वजह है कि जंगल में लकड़ी माफिया ही नहीं, वन्य प्राणियों की तस्करी का भी सिलसिला चल रहा है। विभाग की कई योजनाएँ भी इस वजह से प्रभावित हो रही हैं।
और कितना वक्त चाहिए झारखंड को (इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिये कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें।) | |
जल, जंगल व जमीन | |
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खनन : वरदान या अभिशाप | |
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